JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Biology

प्रकाश श्वसन (photorespiration in hindi) , प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक , सिद्धांत

प्रकाश श्वसन (photorespiration in hindi) : सामान्यत: पादपों के प्रकाश संश्लेषी भागो में प्रकाश की उपस्थिति में सामान्य श्वसन के अतिरिक्त संपन्न होने वाला ऐसा श्वसन जिसमे ऑक्सीजन के द्वारा कार्बनिक यौगिक का ऑक्सीकरण किया जाए परन्तु ऊर्जा का उत्पादन नहीं हो तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड भी विमुक्त हो , प्रकाश श्वसन कहलाता है।

या

पादपो में पायी जाने वाली ऐसी क्रिया जिसके अन्तर्गत भोज्य पदार्थो का बिना ऊर्जा के उत्सर्जन के विघटन की क्रिया संपन्न हो प्रकाश श्वसन कहलाता है।

  • उपरोक्त क्रिया में ऊर्जा के उत्सर्जन न होने के कारण यह क्रिया नष्टकारी क्रिया के नाम से जानी जाती है।
  • प्रकाश श्वसन क्रिया सामान्यत: C3 चक्र में पायी जाती है।
  • C3 पादपों में कार्बोऑक्सीलीकरण हेतु एक विशिष्ट एंजाइम पाया जाता है जिसे रोबिस्को एंजाइम के नाम से जाना जाता है , यह CO2 की अधिक सान्द्रता पर कार्बो ऑक्सीलीकरण करता है अर्थात कार्बोऑक्सीलेज एंजाइम की भाँती कार्य करता है।  उपरोक्त एन्जाइम O2 की सांद्रता अधिक होने पर कार्बोऑक्सीलेज के स्थान पर ऑक्सीजनेज एंजाइम की भांति कार्य करता है।
  • उपरोक्त एंजाइम के ऑक्सीजनेज की तरह कार्य करने के कारण तीन कार्बन वाले PGA के स्थान पर दो कार्बन वाला यौगिक PhosphoGlycolic acid निर्मित किया जाता है जिसके कारण C3 चक्र अवरुद्ध हो जाता है तथा CO2 का स्वांगीकरण कम हो जाता है अर्थात ऐसे पादपो की उत्पादकता में कमी आती है।
  • उपरोक्त 2 कार्बन वाले यौगिक के निर्मित होने के कारण संपन्न होने वाले चक्र को C2 चक्र के नाम से जाना जाता है।

नोट : प्रकाशिक श्वसन की क्रिया पादप के तीन कोशिकागो में हरितलवक परऑक्सीसोम तथा माइटोकोंड्रीया में संपन्न होती है अर्थात प्रकाश श्वसन क्रिया पूर्ण होने तक उपरोक्त तीनों कोशिकांग एक इकाई के रूप में कार्य करते है।

प्रकाश श्वसन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम Krotkow नामक वैज्ञानिक के द्वारा सन 1963 में किया गया।

सन 1920 में वैज्ञानिक ottowarberg के द्वारा निम्न प्रतिपादन किया गया।

ऑक्सीजन की अधिक उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी आती है अत: ऑक्सीजन के इस प्रभाव को Warberg प्रभाव के नाम से जाना गया।

सन 1971 में ‘ओरेगन’ तथा ‘बौ’ नामक वैज्ञानिक के द्वारा Warberg प्रभाव का स्पष्टीकरण किया अर्थात उपरोक्त वैज्ञानिको के द्वारा यह स्पष्ट किया गया की पादपो में C3 चक्र के दौरान रुबिस्को को ग्रहण करने हेतु CO2 व O2 में प्रस्पर्दा पायी जाती है।

सन 1959  में डेकेर तथा टीओ नामक वैज्ञानिक के द्वारा C2 चक्र का अध्ययन किया गया।

प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक

  • पादपों में संपन्न होने वाली प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सामान्यत: आंतरिक तथा बाह्य कारको से प्रभावित रहती है।
  • आंतरिक कारको के रूप में आनुवांशिक कारक पाए जाते है , वही बाह्य कारकों के रूप में कुछ पर्यावरणीय कारक जैसे प्रकाश CO2 की उपलब्धता तापमान तथा मृदा , जल आदि पाए जाते है।
  • प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक मुख्य रूप से प्रकाश संश्लेषण को प्रत्यक्ष प्रकार से प्रभावित करते है।

प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारकों के अन्तर्गत वैज्ञानिको के द्वारा कुछ संकल्पनाएँ प्रतिपादित की गयी जो निम्न प्रकार से है –

(1) Sach’s की प्रधान बिंदु संकल्पना

उपरोक्त संकल्पना के अनुसार किसी पादप की प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले कारक के तीन मान पाए जाते है –

(i) न्यूनतम मान या बिंदु : प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक की वह मात्रा जिस पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संपन्न होती है , न्यूनतम मान या न्यूनतम बिंदु कहलाती है।

(ii) अधिकतम मान / बिन्दु : प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक की वह मात्रा जिस पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया रुक जाए , अधिकतम मान या अधिकतम बिंदु कहलाता है।

(iii) श्रेष्ठतम मान / बिंदु : प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक की वह मात्रा जिस पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सर्वाधिक गति से संपन्न हो , श्रेष्ठतम मान या बिन्दु कहलाती है।

नोट : प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले किसी भी कारक की उपरोक्त तीनों मात्राएँ प्रधान बिन्दुओ के नाम से जानी जाती है।

(2) Black mann नामक वैज्ञानिक का सीमाकारी कारकों का सिद्धांत

उपरोक्त वैज्ञानिक के द्वारा प्रतिपादित किये गया सिद्धान्त पूर्व में प्रकाशिक लिबिग का न्यूनतम सिद्धांत का रूपांतरण है।

इस सिद्धांत के अनुसार यदि किसी पादप की प्रकाश संश्लेषण की दर बहुतायत मात्रा वाले कारकों से प्रभावित होती है तो उसकी दर ऐसे कारक पर निर्भर करती है जो न्यूनतम मात्रा में उपस्थित होता है।

ऐसे कारक की मात्रा में वृद्धि होने पर प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि होती है।

उदाहरण : यदि किसी पादप के प्रकाश संश्लेषण हेतु CO2 उपस्थित हो परन्तु प्रकाश संश्लेषण अनुपस्थित हो तो प्रकाश सीमाकारी कारक होगा।

सीमाकारी कारक वह है जो न्यूनतम मात्रा में हो।

Sach’s के द्वारा उपरोक्त संकल्पना 1860 में तथा Blackmann’s के द्वारा 1905 में दी गयी।

प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

1. प्रकाश : हरे पादपो में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रकाश के दृश्य मान स्पेक्ट्रम में संपन्न होती है तथा दृश्य मान स्पेक्ट्रम के 400-700 nm के मध्य तरंग दैर्ध्य वाली प्रकार की विकिरण में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया दर्शायी जाती है अत: इसे PAR या Photosyntheticaly active radiation के नाम से जानी जाती है।

हरे पादपों में प्रकाश संश्लेषण की दर प्रकाश के प्रकार व प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है।

प्रकाश संश्लेषण की दर सर्वाधिक मात्रा में दृश्यमान स्पेक्ट्रम के लाल क्षेत्र में दर्शायी जाती है वही इस स्पेक्ट्रम के नीले क्षेत्र में लाल क्षेत्र की अपेक्षा कम दर्शायी जाती है।

दृश्यमान स्पेक्ट्रम के हरे क्षेत्र में प्रकाश संश्लेषण की दर शून्य हो जाती है क्योंकि पादप की पत्तियों के द्वारा प्रकाश के इस प्रकार को अवशोषित नहीं किया जाता क्योंकि हरित लवक स्वयं हरे रंग के होते है।

प्रकाश की तीव्रता के बढ़ने पर प्रारंभिक अवस्था में प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि होती है परन्तु प्रकाश की तीव्रता अधिक बढ़ाये जाने पर अन्य कारक सीमाकारी हो जाते है या हरितलवक व अन्य कोशिकीय अवयव प्रकाश के ऑक्सीकरण के द्वारा नष्ट कर दिए जाते है जिसे आतपन के नाम से जाना जाता है।

नोट : दृश्यमान स्पेक्ट्रम के लाल क्षेत्र में लाल क्षेत्र की मात्रा में वृद्धि किये जाने पर प्रकाश संश्लेषण की दर वृद्धि करने की अपेक्षा अचानक से कम हो जाती है जिसे लाल पतन के नाम से जाना जाता है।

2. तापमान : हरे पादपों में प्रकाश संश्लेषण की दर को 10-35 डिग्री सेल्सियस के ताप के मध्य सर्वाधिक देखा गया है परन्तु तापमान में वृद्धि होने पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सहायता करने वाले एंजाइम विकृत होना प्रारंभ होते है जिसके फलस्वरूप प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी आती है तथा एंजाइमो के विकृत होने पर प्रकाश संश्लेषण की दर शून्य हो जाती है।

तापमान में वृद्धि होने पर C3 पादपों में रोबिस्को एंजाइम की कार्बन डाई ऑक्साइड के प्रति बंधुता घटने लगती है अर्थात उत्पादन या प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी होने लगती है।

नोट : अपवाद स्वरूप कुछ पादप जैसे मरुद्भिद्ध पादप Chepronin protine की उपस्थिति के कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया 55 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर भी संपन्न कर पाते है।

गर्म जल में पाए जाने वाले कुछ विशिष्ट शैवाल उपरोक्त अनुकूलन की सहायता से प्रकाश की दर को संपन्न कर पाते है।

ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले Conifer पादप Antifreezing protein की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को -35 डिग्री सेल्सियस में भी संपन्न कर पाते है जैसे – जूनीपैरस।

3. कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) : प्रकाश संश्लेषण हेतु सामान्यत: CO2 की 0.03% सांद्रता की आवश्यकता होती है तथा इस सान्द्रता में वृद्धि होने के साथ साथ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में वृद्धि होती है परन्तु एक उचित सीमा तक अर्थात C3 पादपों में प्रकाश संश्लेषण की दर CO2 की 0.05% सांद्रता तक ही बढती है।

वही C4 पादपों में यह दर 0.03% सांद्रता तक ही बढती है।

सामान्य रूप से प्रकाश संश्लेषण की दर CO2 की 1% सान्द्रता तक बढती है परन्तु CO2 की सांद्रता 1% से अधिक होने पर रंध्रों पर विपरीत प्रभाव डालती है तथा रन्ध्र बंद हो जाते है जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण की दर में कमी आती है।

4. जल : पादपों में संपन्न होने वाले प्रकाश संश्लेषण के अंतर्गत जल एक प्रमुख अभिकारक की तरह कार्य करता है क्योंकि इसका प्रकाशिक अपघटन हाइड्रोजन आयन उत्पन्न करता है जो CO2 के अपघटन हेतु अपचायक शक्ति के निर्माण में उपयोग किया जाता है।

सामान्यत: पादपों के द्वारा अवशोषित जल की 1% मात्रा प्रकाश संश्लेषण हेतु उपयोग की जाती है अत: सामान्य रूप से जल प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाला सीमाकारी कारक नहीं है परन्तु मृदा में जल की अत्यधिक कमी जल को एक सीमाकारी कारक बना देती है क्योंकि जल की कमी होने पर पत्तियों का जल विभव कम हो जाता है तथा पत्तियों की सतह पर उपस्थित रन्ध्र बंद हो जाते है जिसके कारण गैस विनियमिता अवरुद्ध हो जाती है तथा प्रकाश संश्लेषण की दर न्यून हो जाती है।

5. ऑक्सीजन : प्रकाश संश्लेषण की दर को ऑक्सीजन की सान्द्रता में वृद्धि अत्यधिक प्रभावित करती है क्योंकि ऑक्सीजन की सांद्रता रोबिस्को नामक एन्जाइम के लिए संदमक की तरह कार्य करती है तथा ऐसा संदमक प्रतिस्पदात्मक संदमक कहलाता है अर्थात ऑक्सीजन की सान्द्रता में वृद्धि होने पर रुबिस्को एंजाइम कार्बोक्सीलेज के स्थान पर Oxygeuase एन्जाइम की तरह कार्य करने लगता है जिसके फलस्वरूप PGA के स्थान पर दो कार्बन वाले फास्फो ग्लुकोलिक अम्ल का निर्माण होता है तथा इसके फलस्वरूप प्रकाशीय श्वसन प्रारंभ हो जाता है अर्थात उत्पादकता में कमी आती है अत: प्रकाश संश्लेषण की दर कम होती है।

प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले आंतरिक कारक

1. पर्णहरित / chlorophyll : प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के अन्तर्गत क्लोरोफिल प्रमुख प्रकाश संश्लेषी वर्णक की तरह कार्य करता है।
इस वर्णक के द्वारा सूर्य की प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है तथा यह रासायनिक ऊर्जा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को संपन्न करती है।
यदि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के अन्तर्गत अन्य कारको को मानक रखा जाए तो ऐसी स्थिति में पर्ण हरित की संख्या में वृद्धि किये जाने पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में वृद्धि होती है।
2. संचित भोजन की मात्रा : यदि प्रकाश संश्लेषण के स्थान पर संचित भोजन की मात्रा अधिक उपस्थित रहे तो प्रकाश संश्लेषण की दर धीमी गति से संपन्न होती है वही संचित भोजन को अन्यत्र स्थानांतरित किये जाने पर प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि होती है।
3. पत्ती की आन्तरिक संरचना : एक सामान्य पादप में संपन्न होने वाली प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पत्ति की सतह पर पाए जाने वाले रन्ध्रो की संख्या उनके वितरण तथा उनके खुलने की अवधि पर निर्भर करती है अर्थात रंध्र अधिक संख्या में उपस्थित हो अधिक समय तक खुले रहे तो ऐसी स्थितियों में प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि होती है।
Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

14 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

15 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now