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फास्फीन क्या है , फ़ॉस्फ़ीन की परिभाषा , गुण , उपयोग , बनाने की विधियाँ , सूत्र , संरचना (phosphine in hindi)
(phosphine in hindi) फास्फीन क्या है , फ़ॉस्फ़ीन की परिभाषा , गुण , उपयोग , बनाने की विधियाँ , सूत्र , संरचना : यह एक रासायनिक यौगिक है जिसका सूत्र होता PH3 है , यह यौगिक ऑर्गोफॉस्फोरस यौगिकों के अंतर्गत आता है। 1783 में सबसे पहले ‘फिलिप गेंगेम्ब्रे’ (Philippe Gengembre) ने इस यौगिक को प्राप्त किया जाता है अर्थात इन्होने इस यौगिक की खोज सबसे पहले की थी। फास्फोरस जैव रासायनिक चक्र में फास्फीन का अपना बहुत बड़ा योगदान होता है।
बनाने की विधियाँ
1. जब कैल्शियम फास्फाइड की क्रिया जल या तनु HCl के साथ करायी जाती है तो अभिक्रिया के उत्पाद के रूप में हमें फास्फीन प्राप्त होती है , यह क्रिया निम्न प्रकार संपन्न होती है –
Ca3P2 + 6H2O → 3Ca(OH)2 + 2PH3
Ca3P2 + 6HCl → 3CaCl2 + 2PH3
2. प्रयोगशाला में जब श्वेत फास्फोरस को सान्द्र सोडियम हाइड्रॉक्साइड के विलयन के साथ कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस के अक्रिय वातावरण में गर्म किया जाता है तो अभिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पाद के रूप में फास्फीन प्राप्त होती है , यह क्रिया निम्न तरह होती है –
P4+3NaOH+3H2O → PH3 + 3NaH2PO2
फास्फीन के भौतिक और रासायनिक गुण
- यह एक रंगहीन गैस होती है , इसमें सड़ी हुई मछली के समान बदबू आती है।
- यह बहुत अधिक विषैली गैस होती है।
- फास्फीन गैस पानी में आंशिक रूप से घुलती है लेकिन यह ऑर्गेनिक विलायको में अधिक घुलनशील होती है।
- जब फास्फीन , हाइड्रोजन आयोडाइड के साथ क्रिया करती है तो यह अपना एक लोन पैर (एकांकी) इलेक्ट्रॉन त्यागकर एक लुईस क्षार की तरह व्यवहार करता है।
- सामान्य अवस्था में इस गैस का दहन नहीं होता है लेकिन जब इस गैस को उच्च ताप पर गर्म किया जाता है तो यह आग को पकड लेती है अर्थात जलने लगती है ऐसा इसलिए होता है तो क्यूंकि इसे गर्म करने से यह ऑक्सीजन के साथ मिलकर फास्फोरिक अम्ल का निर्माण कर लेती है जिसकी अभिक्रिया को निम्न प्रकार समझा जा सकता है –
- जब फास्फिन गैस किसी ऑक्सीकारक के संपर्क में आती है तो यह एक विस्फोट उत्पन्न कर सकती है।
- जब फास्फीन में थोड़ी भी मात्रा में P2H4 पदार्थ मिलाया जाता है तो यह वायु में तेजी के साथ आग को पकड़ने लगता है अर्थात शीघ्रता के साथ जलने लगता है।
फास्फीन की संरचना चित्र
यह एक त्रिकोणीय पिरामिड आकृति का होता है , इसमें फास्फोरस और हाइड्रोजन परमाणुओं के मध्य (P-H) बंध लम्बाई का मान लगभग 1.42 एनग्सटर्म होता है और H-P-H के मध्य बंध कोण लगभग 93.5 डिग्री का होता है , फास्फीन की संरचना चित्र में को दर्शाया गया है –
इसकी संरचना ठीक वैसी ही होती है जैसी कि NH3 होती है। इसमें संकरण अवस्था SP3 होती है। फास्फीन (PH3) में P परमाणु पर एकांकी इलेक्ट्रॉन युग्म होने के कारण यह क्षारीय प्रवृत्ति को दर्शाता है।
फास्फीन के उपयोग
- अर्द्धचालक उद्योग में इसका उपयोग डोपिंग के लिए अल्प मात्रा में किया जाता है।
- इसको होल्मे का संकेत के रूप में किया जाता है अर्थात जहाँ आग जैसा सिग्नल देने की आवश्यकता होती है जैसे दूर जहाज में , फौजी ऑपरेशन में वे आग के जलने के सिग्नल देते है इसके लिए वे फास्फिन का उपयोग करते है क्यूंकि यह हवा के संपर्क में आने से तेजी से जलने लगती है।
- इसका उपयोग धूम्रपट बनाने के लिए भी किया जाता है।
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