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फॉस्फाजीन (phosphazene in hindi) , फास्फाजीन बनाने की विधियाँ , संरचना और बंध , गुण उपयोग

(phosphazene in hindi) फॉस्फाजीन क्या है ? फास्फाजीन बनाने की विधियाँ , संरचना और बंध , गुण उपयोग किसे कहते है ?

फॉस्फाजीन (phosphazene) : फॉस्फाजीन अर्थात फॉस्फ़ोरस और नाइट्रोजन के बहुलक यौगिक ; फॉस्फोरस और नाइट्रोजन दोनों तत्वों में श्रृंखलन का गुण अत्यंत सिमित होता है। फॉस्फोरस के अधिकतम दो परमाणु (P2H4) और नाइट्रोजन के अधिकतम तीन परमाणु (N3 अथवा ऐजाइड आयन ) में परस्पर एक दुसरे के साथ जुड़े रहते है। परन्तु यदि फॉस्फोरस और नाइट्रोजन दोनों परमाणु एक दुसरे के साथ जुड़ जाए तो विभिन्न प्रकार के फॉस्फाजीन बहुलकों या फॉस्फोनाइट्रिलिक यौगिकों का निर्माण होता है। इन यौगिकों में फॉस्फोरस ऑक्सीकरण अवस्था V में होता है। जबकि नाइट्रोजन III ऑक्सीकरण अवस्था में रहता है। अणु की विद्युत उदासीनता को बनाये रखने के लिए अधिकांशत: हैलाइड आयन होते है , इस फॉस्फोनाइट्रिलिक हैलाइड बनते है। ये चक्रीय और विवृत श्रृंखला दोनों प्रकार के होते है।

संश्लेषण (synthesis) :

इन यौगिकों को बनाने के लिए PCl5 और अमोनिया क्लोराइड को गर्म किया जाता है। इस क्रिया में PCl5 के अणु संघनित हो जाते है।

इस प्रकार N और P परमाणु परस्पर बंधते हुए कई प्रकार के चक्रीय और श्रृंखलायुक्त यौगिकों का निर्माण करते है –

nPCl5 + nNH4Cl → (NPCl2)n + Cl3P(NPCl2)nNPCl4

चक्रीय यौगिकों में n का मान 3 , 4 , 5 , 6 . . . . . .. . . . आदि हो सकता है तथा श्रृंखलायुक्त बहुलकों में यह मान 1, 2 , 3 , 4 . . . . .. .. 104 तक हो सकता है।

इन अभिक्रियाओं की क्रियाविधि के बारे में निश्चित रूप से कोई जानकारी नहीं है। वैज्ञानिकों के आधुनिक मतानुसार ध्रुवीय विलायकों में PCl5 आयनिक [PCl4]+[PCl6] रूप में होता है। पहले इसका धनायन अमोनिया के साथ क्रिया करता है।

[PCl4]+ + NH3  → Cl3P=NH + HCl + H+

 इस प्रकार बने HN=PCl3 अणु का [PCl4]+ आयन पर नाभिकस्नेही आक्रमण होता है तथा HCl के निष्कासन के साथ क्रिया संपन्न होती है।

Cl3P=NH + [PCl6] → [Cl3P=N-PCl3]+[PCl6]

अब धनायन की अमोनिया के साथ क्रिया होती है।

पुनः इसकी [PCl4]+ के साथ नाभिकस्नेही अभिक्रिया होगी तथा इस प्रकार क्रिया चलती रहेगी। उपर्युक्त अभिक्रियाओं में प्रोटोन मुक्त हो रहे है , वे  [PCl6] ऋणायन के साथ क्रिया करके PCl5 अणु बनाते जायेंगे जो अन्य PCl5 अणुओं को पुनः [PCl4]+  धनायनों में बदल देंगे तथा इस प्रकार अभिक्रिया को आगे बढ़ाते जायेंगे।

PCl6  + H+ → PCl5 + HCl

2PCl5 → [PCl4]+[PCl6]

उपर्युक्त प्रकार की अभिक्रियाओं से केवल श्रृंखला बहुलक बनते प्रतीत होते है जबकि अभिक्रिया में श्रृंखला बहुलक के साथ साथ चक्रीय बहुलक भी बनते है। इसको समझाने के लिए अंत:आण्विक विलोपन द्वारा चक्रीकरण की अवधारणा दी गयी है।

इस प्रकार विभिन्न परमाणुओं वाले श्रृंखला बहुलकों से अलग अलग आकार की वलयों वाले चक्रीय बहुलक प्राप्त होते है। इस अभिक्रिया में थोड़ी सी मात्रा संगलित वलयों वाले बहुचक्रीय यौगिक की भी बनती है।

संरचना और बंधन

चक्रीय बहुलकों में अधिकांशत: n = 3 और n = 4 वाले बहुलक बनते है जिनकी वलयों में क्रमशः 6 और 8 सदस्य होते है। छ: सदस्यों की वलयें बेंजीन की भांति चपटी अथवा समतलीय होती है जबकि 8 सदस्यों की वलयें साइक्लोहेक्सेन की तरह कुर्सी और नौका दो संरूपणों में पाई जाती है।

छ: सदस्यों युक्त संरचना में फास्फोरस परमाणु से जुड़े क्लोरिन चतुष्फलकीय व्यवस्था में वितरित होते है इसलिए ये वलय की सतह से ऊपर और निचे स्थित होते है।

श्रृंखला बहुलकों में श्रृंखला का एक सिरा NPCl3 होता है तथा दूसरा सिरा PCl4 , इस प्रकार श्रृंखला में कुल मिलाकर कम से कम तीन परमाणुओं का द्विलक , पांच परमाणुओं का त्रिलक , सात परमाणुओं का चतुष्फलक आदि बनेंगे। दोनों सिरों के NPCl3 और PCl4 के साथ मध्य में पुनरावृति करने वाली इकाइयां NPCl2 होती है। अत: श्रृंखला में एकलक जुड़ने का अर्थ है श्रृंखला के परमाणुओं में दो की वृद्धि होना।

P-N बंध की प्रकृति

संरचनाओं में हमने P-N बन्धो को एकांतर क्रम में क्रमशः एकल और द्विबंध के रूप में दर्शाया है , सहूलियत और संयोजकता के हिसाब से तो यह ठीक है परन्तु वस्तुतः P-N और P=N बन्धो में कोई अंतर नहीं होता एवं वे सब समान होते है। इन बन्धो की लम्बाई 1.56 से 1.59 A (एंग्स्ट्रम) के बराबर होती है जो कि P-N एकल बंध की लम्बाई 1.77 A से कम है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि  P-N बंध सामान्य एकल बंध तो नहीं है परन्तु यह संयुग्मित डाइईनों या बेंजीन की तरह विस्थानीकृत द्विबंध भी नहीं हो सकता क्योंकि फास्फोरस और नाइट्रोजन परमाणुओं में सामान्य pπ-pπ बंध की सम्भावना नहीं है।

इसे समझाने के लिए यह सुझाव दिया गया है कि नाइट्रोजन और फास्फोरस के मध्य एक उपसहसंयोजक बंध बनता है। नाइट्रोजन के भरे हुए Sp2 कक्षक और फास्फोरस के रिक्त 3dx2-y2 कक्षकों के अतिव्यापन से यह बंध बनता है। इसकी प्रकृति फास्फोरस ऑक्साइडो की  pπ-dπ बंध जैसी मानते है। बस केवल एक अंतर यह है कि फास्फाजीन यौगिकों में यह बंध पुरे अणु पर विस्थानीकृत होता है जबकि फास्फोरस ऑक्साइडो में ऐसा नहीं होता।

उपर्युक्त व्याख्या में कुछ वैज्ञानिक यह आपत्ति उठाते है कि नाइट्रोजन Sp2 और फास्फोरस के  3dx2-y2 कक्षकों के आकार और ऊर्जा में इतना अधिक अंतर है कि इस प्रकार का उपसहसंयोजक बंध बनने की संभावनाएं नगण्य है। वे यह सुझाव देते है कि नाइट्रोजन परमाणु के एक इलेक्ट्रॉन युक्त pz कक्षक और दोनों तरफ जुड़े हुए फास्फोरस परमाणुओं के dxz और dyz कक्षकों के साथ तीन केंद्र बंध बनाते है इस प्रकार P-N बन्धो की लम्बाई एकल बंध से कम हो जाती है।

गुण (properties)

हालाँकि ये यौगिक विवृत्त श्रृंखला या चक्रीय दोनों प्रकार के होते है परन्तु इनमे चक्रीय यौगिक ही अधिक स्थायी होते है तथा इनमे भी दो यौगिकों (NPCl2)3 और (NPCl2)4 इन दो ही यौगिकों का विस्तृत अध्ययन किया जा चूका है। (NPCl2)3 का गलनांक 114 डिग्री सेल्सियस और वायुमण्डलीय दाब पर इसका क्वथनांक 256 डिग्री सेल्सियस होता है। यह एक श्वेत क्रिस्टलीय यौगिक होता है जो बेंजीन , ईथर और CCl4 में विलयशील होता है। (NPCl2)4 का गलनांक 123.5 डिग्री सेल्सियस और क्वथनांक 328.5 डिग्री सेल्सियस होता है। यह भी एक क्रिस्टलीय ठोस होता है परन्तु त्रिलक की तुलना में इसकी C6H6 आदि अध्रुवीय विलायकों में विलेयता कम होती है।

ये जलन करने वाले और कुछ सीमा तक विषैले होते है। धीरे धीरे 250 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने पर ये बहुलकीकृत हो जाते है तथा कम से कम 20 हजार अणुभार वाले बहुलकों का निर्माण करते है। एवं 350 डिग्री सेल्सियस तक गरम करने पर ये बहुलक दोबारा टूट जाते है। बहुलकीकरण दोनों प्रक्रम ऑक्सीजन की उपस्थिति में ही संपन्न होते है। बहुलकीकरण के साथ इनकी विलेयता कम होती जाती है।

इन यौगिकों के क्लोरिन परमाणु अत्यंत क्रियाशील होते है एवं इन्हें एल्किल , ऐरिल , OH , OR , NCS या NR2 समूहों द्वारा प्रतिस्थापित करके विभिन्न प्रकार के यौगिक बनाये जा सकते है। इनका प्रतिस्थापन नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन माना जा सकता है तथा एक आंशिक या पूर्ण हो सकता है। एल्किल या एरिल समूहों को प्रवेशित कराने के लिए एल्किल अथवा एरिल लिथियम यौगिक या ग्रिन्यार अभिकर्मकों का उपयोग किया जा सकता है।

  1. जल अपघटन (hydrolysis) : (NPCl2)xपर्याप्त क्रियाशील यौगिक होते है तथा जल अपघटन द्वारा एक अथवा अधिक अथवा सारे क्लोरिन परमाणु हाइड्रोक्सी समूह द्वारा विस्थापित हो सकते है।

चक्रीय त्रिलक का जल अपघटन मंद गति से संपन्न होता है परन्तु जलीय ईथर के उपयोग से वह पूर्ण हो जाता है।

यदि इस त्रिलक का जल अपघटन अम्लीय विलयन में कराया जाए तो आर्थो फास्फोरिक अम्ल और अमोनिया बनते है।

चतुष्लक का उबलते हुए जल के साथ अपघटन तीव्र गति से संपन्न होता है तथा बना हुआ उत्पाद भी स्थायी होता है।

इस चतुष्लक का जल अपघटन भी अम्लीय विलयन में कराने पर ऑर्थोफास्फोरिक अम्ल और अमोनिया ही बनते है। त्रिलक और चतुष्लक दोनों के जल अपघटन से बने अम्ल सिल्वर आयनों के साथ सिल्वर लवण अवक्षेपित करते है।

  1. ऐमीनो अपघटन (ammonolysis): त्रिलक और चतुष्लक दोनों यौगिक अधिक मात्रा में अमोनिया के साथ अभिक्रिया करके धीरे धीरे करके समस्त हैलोजन परमाणुओं का एमिनों समूह के साथ प्रतिस्थापन कर देते है। बना हुआ यौगिक अमोनिया के तीन अणु खोकर फास्फैम का निर्माण करते है।
  2. फ्रिडल क्राफ्ट्स अभिक्रिया (Friedel crafts reaction): त्रिलक बेंजीन के साथ एलुमिनियम क्लोराइड की उपस्थिति में डाइफेनिल व्युत्पन्न बनाता है।
  3. ये प्राथमिक और द्वितीयक एमिनों के साथ अभिक्रिया करके आंशिक और पूर्ण प्रतिस्थापी व्युत्पन्न बनाते है , उदाहरण : [NP(NHC6H5)2]3, [NPCl(NMe2)]3आदि।
  4. ये फेनिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड के साथ भी 115 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने से आंशिक अथवा पूर्ण प्रतिस्थापी फेनिल व्युत्पन्न बनाते है।
  5. एल्कोहल और एल्कोक्साइड के साथ अभिक्रिया: एल्कोहल अथवा एल्कॉक्साइड के साथ अभिक्रिया कराने पर इनके हैलोजन परमाणु एल्कॉक्साइड समूहों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाते है। पूर्ण प्रतिस्थापित यौगिक 200 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने पर समावयवीकृत हो जाता है।
  6. इनके क्लोरिन  परमाणु थायोसायनेट मूलकों के साथ भी प्रतिस्थापित हो सकते है। अत:

(NPCl2)3 + 6KCNS → [NP(CNS)2]3 + 6KCl

  1. यदि त्रिलक को लैड फ्लुओराइड के साथ गर्म किया जाए तो क्लोरिन के कुछ परमाणुओं का फ्लुओरीन द्वारा विस्थापन हो जाता है तथा साथ ही चतुष्लक का निर्माण भी होता है।  अत:

(NPCl2)3 + PbF2 → (NPClF)3 + N4P4Cl2F6 + N4P4Cl4F4

  1. क्षारीय गुण: इन यौगिकों में अबंधी इलेक्ट्रॉन युग्म युक्त नाइट्रोजन परमाणु है जो किसी भी लुईस अम्ल को इलेक्ट्रॉन युग्म दे सकते है , इसके उपरान्त भी ये बहुत दुर्बल क्षारीय यौगिक है। यौगिक HClO4के साथ 1:1 और 1:2 योगोत्पाद बनाते है। अत:

N3P3Cl6 + HClO4 → N3P3Cl6HClO4

N3P3Cl6 + 2HClO4 → N3P3Cl6.2HClO4

N4P4Cl8 + 2HClO4 → N4P4Cl8.2HClO4

इसका SO3 के साथ भी योगोत्पाद बनता है।

N3P3Cl6 + 3SO3 → N3P3Cl63SO3

AlClके साथ  भी इसका योगोत्पाद बनता है परन्तु इसमें यह माना जाता है कि नाइट्रोजन के इलेक्ट्रॉन युग्म का नहीं बल्कि Cl आयन की AlCl3 से अंतर्क्रिया होकर [AlCl4] बनता है।

N3P3Cl6 + 2AlCl3 → N3P3Cl6.2AlCl3

  1. नाभिकस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ: वैसे तो जल अपघटन , एमिनो अपघटन आदि भी फास्फाजीनों की प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ ही है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य ऋण आयनों द्वारा भी क्लोरो फास्फाजीनों का क्लोरिन परमाणु प्रतिस्थापित हो सकता है।

उदाहरण :

(i) F द्वारा प्रतिस्थापन : सोडियम फ्लुओराइड या लैड फ्लुओराइड के साथ गर्म करने पर फास्फोनाइट्रिलिक क्लोराइड का फ्लुओराइड में परिवर्तन हो जाता है। अत:

(PNCl2)3 + 6FaF → (PNF2)3 + 6NaCl

(PNCl2)3 + 3PbF2 → (PNF2)3 + 3PbCl2

(ii) ऐल्कोक्साइड द्वारा प्रतिस्थापन : सोडियम एल्कोक्साइडो के साथ गर्म करने पर क्लोरिन परमाणु का OR द्वारा प्रतिस्थापन हो जाता है।

(PNCl2)3 + 6RONa → [PN(OR)2]3 + 6NaCl

[R = CH3 , C2H5]

उपयोग

इनका कई क्षेत्रों में उपयोग होता है। इनके कुछ मुख्य उपयोग निम्नलिखित है –

  1. औद्योगिक क्षेत्र में: कई उच्च आण्विक संहति वाले फास्फाजीन दृढ प्लास्टिक , विस्तृत फोम और रेशों के रूप में प्रयुक्त किये जाते है। ये जल से नहीं भीगते , अत: जलसह (वाटर प्रूफ) होते है एवं ये आग से भी प्रभावित नहीं होते है अत: अग्निसह (फायर प्रूफ) भी होते है। इसके अतिरिक्त ये पेट्रोल , तेल और अन्य विलायकों से भी प्रभावित नही होते। इन सब विशिष्ट गुणों के कारण इन बहुलकों से कई उद्योगों में विभिन्न उपयोगी वस्तुओं का निर्माण होता है।
  2. कम तापीय रसायन में: ये मुड़ने वाले प्लास्टिक भी बनाते है जो कम ताप पर भी अपनी प्रत्यास्थता बनाये रखते है। इनका उपयोग इंधन हौज और गैसकेट बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त नाभिकीय विभंदकों में भी प्रयुक्त होते है , क्योंकि ये कम ताप पर भी प्रत्यास्थ होते है जबकि सामान्य रबर कम ताप पर कठोर होकर अपनी प्रत्यास्थता खोने लगती है।
  3. चिकित्सा के क्षेत्र में: पॉली (एमिनोफास्फाजीन) की पतली परतों का उपयोग अस्पताल में अधिक जले हुए और अधिक विस्तृत घाव वाले रोगियों के उपचार में किया जाता है। जली हुई अथवा घायल त्वचा के ऊपर इनकी पतली परत को ढकने से शरीर का द्रव बाहर नहीं आता तथा बाहर के जीवाणु घाव पर संक्रमण नहीं कर सकते। इसके अतिरिक्त बहुलक [(EtoOC.CH2NH)2PN]nअत्यंत ही मंद गति से जल अपघटित हो जाता है अत: ऑपरेशन के बाद टाँके लगाने वाले धागे का निर्माण करने में प्रयुक्त होता है।
  4. कृत्रिम अंगो के निर्माण में: फ्लोरो एल्किल समूह द्वारा प्रतिस्थापित कुछ बहुलक , उदाहरण [(CF3.CH2)2PN]nअत्यधिक जल प्रतिकर्षी होते है तथा सजीव उत्तकों के साथ कोई अभिक्रिया भी नहीं करते है। अत: इनका उपयोग कृत्रिम रक्त वाहिनियों और कृत्रिम मानव अंगो के निर्माण में किया जाता है।
  5. नरम खिलौने उद्योग में: पोलीफास्फाजींस के फ्लुओरों व्युत्पन्न नर्म और अज्वलनशील होते है तथा इनके रेशे बनाकर उनसे नर्म खिलौनों का उत्पादन किया जाता है जो आजकल बच्चो के साथ साथ बड़ों में भी काफी लोकप्रिय है।
  6. विस्थापन अभिक्रियाओं में: त्रिलक (PNX2)3और चतुष्लक (PNX2)4 प्रकार के फास्जींस धातुओं के साथ प्रतिस्थापन करते है। इस अभिक्रिया का उपयोग नाभिकीय संयंत्रो से नाभिकीय कचरे को हटाने में किया जाता है। नाभिकीय कचरे में प्रमुख रूप से धातुएं होती है , जो हैलोजन से क्रिया करके विस्थापित उत्पाद बनाती है जिससे उनकी सक्रियता घट जाती है।

वैसे तो पोलीफास्फाजीन यौगिक अत्यन्त उपयोगी पदार्थ है तथा कार्बनिक बहुलकों के बाद अकार्बनिक बहुलकों में सिलिकनों के बाद इन्ही का विस्तृत उपयोग होता है। लेकिन फिर भी वर्तमान में अत्यंत महंगे होने के कारण इनका अधिक सामान्य उपयोग नहीं हो पाता।

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