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Phenols notes in hindi फीनोल नोट्स हिंदी में कक्षा 12
फीनोल नोट्स हिंदी में कक्षा 12 Phenols notes in hindi ?
फीनोल (Phenols)
परिचय (Introduction)
ऐरोमेटिक यौगिकों में बेंजीन वलय के साथ एक या एक से अधिक हाइड्रॉक्सी समूहों की उपस्थिति होने पर प्राप्त यौगिकों को ऐरोमैटिक हाइड्रॉक्सी यौगिक कहते हैं। इन यौगिकों को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया जा सकता है।
(1) फीनोल (Phenols)– वे यौगिक जिनमें हाइड्रॉक्सी समूह सीधे ही बेंजीन वलय से जुड़े रहते हैं, फीनोल कहलाते हैं। एक, दो तीन, या अधिक संख्या में उपस्थित हाइड्रॉक्सी समूहों की संख्या के आधार पर इन्हें क्रमशः मोनो, डाइ, ट्राई या पॉली हाइड्रिक फीनोल में वर्गीकृत किया जाता सकता है। ये यौगिक दुर्बल अम्लीय प्रकृति के होते हैं।
फीनोल (मोनो हाइड्रिक )
(2) ऐरोमैटिक ऐल्कोहॉल ( Aromatic alcohols) – वे यौगिक जिनमें हाइड्रॉक्सी समूह बेंजीन वलय से बंधित किसी पार्श्व श्रृंखला ( side chain) में उपस्थित हों, ऐरोमैटिक ऐल्कोहॉल कहलाते हैं- उदाहरणार्थ- बेंजिल ऐल्कोहॉल। इन यौगिकों को प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक ऐल्कोहॉल में वर्गीकृत किया जा सकता है। ये उदासीन प्रकृति के होते हैं। उदाहरणार्थ-
फीनॉलों के नामकरण की पद्धति (Nomenclature of Phenols)
मोनो हाइड्रॉक्सी बेंजीन को फीनोल तथा मोनो हाइड्रॉक्सी टॉलूईन को क्रीसोल (cresols) कहते हैं। हाइड्रॉक्सी समूह के अतिरिक्त यदि अन्य समूह (NO2, CI, Br, I, NH2, आदि) बेंजीन वलय में उपस्थित होता है. उसकी स्थिति o, m या p से दर्शाते हैं अथवा उस कार्बन को नम्बर एक देते हुए जिस पर हाइड्रॉक्सी समूह उपस्थित है, अन्य कार्बनों के नम्बर इस प्रकार देते हैं कि उनका योग कम से कम आये। निम्नलिखित उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है।
मोनो हाइड्रिक फीनोल (Monohydric Phenols)-
डाइ हाइड्रिक फीनोल (Dihydric phenols) –
ट्राइ हाइड्रॉक्सी फीनोल (Tri hydroic phenols)
हाइड्रॉक्सी समूह के अतिरिक्त यदि अन्य क्रियात्मक समूह आदि समूह बेंजीन वलय में उपस्थित हों तो फीनोल का नाम
जैसे- कार्बोक्सिल, एस्टर या कार्बोनिल 5-ब्रोमो-2-क्लोरोफीनॉल हाइड्रॉक्सी व्युत्पन्न के अनुसार दिया जाता है तथा नम्बर एक उस कार्बन को दिया जाता है, जिस पर मुख्य क्रियात्मक समूह उपस्थित होता है एवं अन्य कार्बन का नम्बर उसी प्रकार दिया जाता है, जिसमें योग कम से कम आये।
उदाहरण-
फीनोल की संरचना एवं बंधन (Structure and Bonding in Phenol)
जैसा कि ऊपर बताया गया है फीनोल में हाइड्रॉक्सी समूह सीधे बेंजीन वलय के C- परमाणु से बंधित होते हैं। बेंजीन वलय के सभी C- परमाणुओं की sp2 संकरित अवस्था होती है और – OH समूह के ऑक्सीजन परमाणु sp3 संकरित अवस्था होती है। इस प्रकार से ऑक्सीजन परमाणु पर दो एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म उपस्थित होते हैं। फीनॉल समतलीय अणु है । इसमें C-O-H बंध कोण 109° है।
फीनोल में बेंजीन वलय इलेक्ट्रॉन आकर्षी है और OH समूह के ऑक्सीजन परमाणु पर उपस्थित एकाकी इलेक्ट्रॉन बेंजीन वलय के इलेक्ट्रॉनों के संयुग्मी हैं। अतः फीनोल में बेंजीन वलय पर ऑक्सीजन परमाणु के एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म का अस्थानीकरण हो जाता है। इसे – OH समूह का +R (अनुनाद ) प्रभाव कहते हैं। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित कर सकते हैं।
इस प्रकार अनुनाद द्वारा फीनोल अणु स्थायी रहता है।
फनोल में C-OH बंध में अनुनाद के कारण द्विबन्ध गुण आ जाता है। अतः यह एकल C-OH बन्ध से छोटा होता है।
फीनोल के विरचन की सामान्य विधियाँ (General Methods of Preparation of Phenols)
(1) कोलतार से (From Coaltar) – कोलतार के प्रभाजी आसवन पर 170°-230°C ताप के मध्य प्रभाज को “मध्य तेल अंश” (Middle oil fraction) कहते हैं। इसमें मुख्यतः फीनोल, क्रीसॉल, तथा नैफ्थलीन उपस्थित होते हैं। मध्य तेल को ठंडा करने पर लगभग 43% नैफ्थलीन क्रिस्टलीकृत हो जाता है। इसके क्रिस्टलों को पृथक कर लेते हैं। शेष बचे मातृ द्रव को सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन के साथ गर्म करने पर उसमें उपस्थित फीनोल तथा क्रीसॉल सोडियम लवण बनाकर अलग सतह बना लेते है। इस सतह को अलग करके गर्म करते हैं तथा इसमें वायु प्रवाहित करते हैं जिससे बचा हुआ नैफ्थलीन एवं पिरिडीन वाष्पित हो जाता है। इस द्रव को ठंडा करके इसमें कार्बन डाइऑक्साइड की धारा प्रवाहित करते हैं, जिससे सोडियम लवण तदनरूपी फीनोल एवं क्रीसोल तथा सोडियम कार्बोनेट में परिवर्तित हो जाते हैं। इस समूह को जल से धोने पर सोडियम कार्बोनेट जल के साथ निकल जाता है और बचे मिश्रण का प्रभाजी आसवन करने पर 182°C पर फीनोल, 190°-200°C पर क्रीसॉल तथा 211°-215 पर जाइलेनॉल आसुत हो जाते हैं।
C6H5ONa + CO2 + H2O – CH5OH + Na2CO3
(2) क्लोरो बेंजीन से (From chlorobenzene) –
(i) राशिंग प्रक्रम (Rasching Process) – बेंजीन को उत्प्रेरक Cu Fe की उपस्थिति में 300°C ताप पर HCl तथा वायु के साथ गर्म करने पर क्लोरो बेंजीन प्राप्त होती है।
इस प्रकार प्राप्त क्लोरो बेंजीन को उत्प्रेरक सिलिका की उपस्थिति में 425°C ताप पर भाप द्वारा जल अपघटित करने पर फीनोल बनता है।
(ii) डाउ प्रक्रम (Dow’s Process) – उपर्युक्त विधि से प्राप्त क्लोरो बेंजीन को CuCl2 की उपस्थिति में 200 वायुमण्डलीय दाब तथा 300°C ताप पर 10 प्रतिशत जलीय सोडियम हाइड्रॉक्साइड अथवा सोडियम कार्बोनेट विलयन से अपघटित करने पर फीनोल प्राप्त होता है।
क्लोरोबेंजीन का सोडियम हाइड्रॉक्साइड द्वारा फीनोल में परिवर्तन को बैन्जाइन क्रिया विधि द्वारा समझाया जा सकता है।
हैलोबेंजीन में o- तथा p-स्थिति पर इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले प्रबल समूह हों तो उपर्युक्त क्रिया आसानी से हो जाती है। जैसे-
(3) क्यूमीन से (From Cumene) – क्यूमीन से फीनोल प्राप्त करने की औद्योगिक विधि नवीनतम है। इस विधि में बेंजीन तथा प्रोपीन को आपस में निर्जल AICI, की उपस्थिति में अभिक्रिया द्वारा क्यूमीन प्राप्त करते हैं जो HBr उत्प्रेरक की उपस्थिति में 150°C ताप पर ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकृत होकर क्यूमीन हाइड्रोपरऑक्साइड बनाती है। यह हाइड्रोपरऑक्साइड तनु सल्फ्युरिक अम्ल से फीनॉल तथा ऐसीटोन में अपघटित हो जाता है।
उपर्युक्त सभी विधियाँ फीनोल को प्राप्त करने की औद्योगिक विधियाँ (Industrial methods) हैं। (4) ऐरिल सल्फोनिक अम्ल से (From aryl sulphonic acid)- ऐरिल सल्फोनिक अम्ल के सोडियम लवण को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ संगलित (Fuse) करने पर सोडियम फीनॉक्साइड तथा सोडियम सल्फाइट का मिश्रण प्राप्त होता है, जिसे अम्लीकृत करने पर फीनोल प्राप्त होता है।
(5) ऐरिल डाइऐजोनियम लवण से (From aryl diazonium salt)– ऐरिल डाइऐजोनियम लवण (सल्फेट या क्लोराइड) के जलीय विलयन को उबालने या वाष्प आसवन करने पर फीनोल प्राप्त होते हैं।
(6) सैलिसिलक अम्ल से (From salicylic acid) – फीनोलिक अम्लों को सोडालाइम के साथ गर्म करने पर सोडियम फीनोऑक्साइड बनते हैं जो अम्लीय जल अपघटन पर फीनोल देते हैं। उदाहरणार्थ,
(7) ग्रीन्यार अभिकर्मक से (From Grignard reagent )– ऐरिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड का ऑक्सीजन एवं प्रकाश की उपस्थिति में ऑक्सीकरण करने पर बने उत्पाद का जल अपघटन करने पर फीनॉल प्राप्त होते हैं।
डाइहाइड्रिक फीनोल बनाने की विधियाँ
(1) रिसॉर्सिनॉल के बनाने की विधि –
(i) इसे बेंजीन m-डाइसल्फोनिक अम्ल को कास्टिक सोडा के साथ 270°C ताप पर 8 घंटे तक गरम करके प्राप्त किया जाता है। यह औद्योगिक विधि है ।
(ii) रिसॉर्सिनॉल को बेंजीन p-डाइसल्फोनिक अम्ल अथवा o, m व p-क्लोरो या ब्रोमो बेंजीन सल्फोनिक अम्ल का कॉस्टिक सोडा के साथ संगलन (fusion) करने से प्राप्त किया जा सकता है।
(i) इसे हाइड्रोक्विनोन (Hydroquinone) भी कहते हैं। आर्क्यूटिन ग्लाइकोसाइड (arbutin glycoside) का जल अपघटन करने पर क्विनोल तथा ग्लूकोस का मिश्रण प्राप्त होता है।
(ii) ऐनिलीन का MnO2 तथा H2SO4 से ऑक्सीकरण कराने पर प्राप्त p-बेन्जोक्विनोन (p-Benzo quinone) का सल्फ्यूरस अम्ल या आयरन जल से अपचयन करने पर क्विनोल प्राप्त होता है।
(iii) इसे ऐसीटिलीन एवं कार्बन मोनोऑक्साइड की कोबाल्ट कार्बोनिल हाइड्राइड उत्प्रेरक की उपस्थिति में अभिक्रिया से भी प्राप्त किया जा सकता है।
ट्राइहाइड्रिक फीनोल बनाने की विधियाँ-
(1) पाइरोगेलोल या 1, 2, 3 – ट्राइहाइड्रॉक्सीबेंजीन
इसे ठोस गैलिक अम्ल को गर्म करके या गैलिक अम्ल के जलीय विलयन को 210°C पर उ दाब पर गर्म करके बनाया जा सकता है।
(2) हाइड्रॉक्सी क्विनॉल या 1, 2, 4- ट्राइहाइड्रॉक्सी बेंजीन-
(i) क्विनॉल को क्षार के साथ वायु की उपस्थिति में संगलित करके भी इसे बनाया जाता है।
(ii) p-बेंजोक्विनॉन से हाइड्रॉक्सी क्विनॉल को निम्न प्रकार भी बनाया जा सकता है।
(3) फ्लोरोग्लूसिनॉल या 1, 3, 5 ट्राइहाइड्रॉक्सीबेंजीन-
फ्लोरोग्लुसिनॉल को प्रयोगशाला में 2,4, 6- ट्राइनाइट्रो बेंज़ोइक अम्ल के अपचयन से प्राप्त ऐमीनो
व्युत्पन्न को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ गर्म करके बनाया जाता है।
इसे रिसॉर्सिनोल को सोडियम हाइड्रॉक्साइड के साथ वायु की उपस्थिति में संगलित करके भी बनाया जा सकता है।
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