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पेट्रो रसायन उद्योग किसे कहते हैं | भारत में पेट्रो रसायन उद्योग की परिभाषा क्या है petrochemical industry in hindi
petrochemical industry in hindi meaning definition पेट्रो रसायन उद्योग किसे कहते हैं | भारत में पेट्रो रसायन उद्योग की परिभाषा क्या है ?
पेट्रो रसायन उद्योग
पेट्रोरसायन उद्योग को कच्चा माल पेट्रोलियम उत्पादों से प्राप्त होता है। पेट्रोरसायन की अपनी उत्कृष्ट विशेषता है जिसके कारण यह तेजी से अनेक परम्परागत कच्चे मालों, जैसे लकड़ी, काँच और धातु का स्थान ले रहा है। इन सामग्रियों का उपयोग घरेलू, औद्योगिक और कृषि प्रयोजनों के लिए होता है । प्लास्टिक सबसे महत्त्वपूर्ण पेट्रोरसायन है। इसने विश्व में विभिन्न क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया है। उर्वरक एक अन्य उदाहरण है।
पेट्रोरसायन उद्योग को मुख्य रूप से प्लास्टिक (पॉलीथीन, पी वी सी, पॉलिस्टीरीन, पॉलिप्रोपिलीन), सिन्थेटिक फाइबर (पॉलिएस्टर, नायलोन और एक्रिलिक), सिन्थेटिक रबर (स्टीरीन, बूटाडाइन)
और प्लास्टिक, सिन्थेटिक फाइबर, रंजक द्रव्यों, कीटनाशक, सिन्थेटिक डिटर्जंेट और फार्मास्यूटिकल्स के लिए कच्चे माल के रूप में सिन्थेटिक ऑर्गेनिक रसायनों के समूह में रखा जा सकता है।
भारत में पेट्रोरसायन उद्योग ट्रॉम्बे और मुम्बई के निकट थाणा-बेलापुर क्षेत्र में अवस्थित है। पश्चिम बंगाल में हल्दिया में भी एक पेट्रोरसायन परिसर अवस्थित है। अब नए संयंत्रों की स्थापना मुख्य रूप से तेल शोधकों के निकट की जा रही है क्योंकि वे पेट्रो उप-उत्पाद उपलब्ध कराते हैं।
पेट्रोरसायन उद्योग को कम मूल्य वाले आयातित मालों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। विश्व के दूसरे भागों, जैसे एशिया प्रशान्त क्षेत्र में यह उद्योग बड़ी मात्रा में उत्पादन के कारण मंदी की मार झेल रहा है। इस उद्योग के विस्तार और विकेन्द्रीकरण की योजनाओं को टाला जा रहा है। लाभ का स्तर कम होने के कारण संसाधनों का सृजन भी कम हो रहा है।
उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ भारत में औद्योगिकरण की बदलती हुई संरचना को समझ सकेंगे;
ऽ भारत की औद्योगिक व्यवस्था में विभिन्न उद्योगों का सापेक्षिक महत्त्व जान सकेंगे;
ऽ भारत में स्वतंत्रता पश्चात् विभिन्न प्रकार के बृहत् उद्योगों के विकास की गति का अनुमान
लगा सकेंगे;
ऽ बृहत् उद्योगों के सामने आने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं की व्याख्या कर सकेंगे; और
ऽ भारत में विभिन्न बृहत् उद्योगों के प्रति सरकार के दृष्टिकोण के संबंध में धारणा बना सकेंगे।
प्रस्तावना
जैसा कि आप पहले (खंड 3 इकाई 7) पढ़ चुके हैं कि भारत को अंग्रेजों से विरासत में एक अत्यन्त ही दुर्बल औद्योगिक आधार मिला जबकि उस समय विश्व के बड़े भाग में उद्योग धंधे फलफूल रहे थे और ग्रेट ब्रिटेन समेत कई देशों में औद्योगिक क्रांति हो चुकी थी। इस तथ्य के बावजूद ऐसा हुआ। स्वतंत्र भारत अपने इस इतिहास को पीछे छोड़ देने के लिए तत्पर था। इसने तीव्र औद्योगिकरण और आर्थिक विकास का मार्ग चुना।
स्वतंत्रता के समय भारत में दो बृहत् उद्योग उल्लेखनीय थे, सूती वस्त्र, इस्पात और कुछ हद तक जूट उद्योग। औद्योगिकरण का मुख्य आधार, अर्थात् पूँजीगत वस्तु उद्योग का अस्तित्त्व नहीं के बराबर था। आर्थिक आयोजना के आरम्भ के साथ (पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 को शुरू हुई थी), हम उस दिशा में बढ़े जिसका मुख्य उद्देश्य पूर्व की विकृतियों को दूर करना था।
आरम्भ में, जैसा कि आप पहले खंड 3, इकाई 10 में पढ़ चुके हैं कि भारी उद्योगों के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी (भारी उद्योग- वे उद्योग हैं जो मूल पूँजीगत वस्तुओं, अर्थात् , उन पूँजीगत वस्तुओं जो अन्य उत्पादक वस्तुओं के उत्पादन में सहायक होती हैं का उत्पादन करती हैं)।
आर्थिक नियोजन के पहले चार दशकों में कई बृहत् उद्योगों जैसे लौह और इस्पात, इंजीनियरी, सीमेंट, उर्वरक, इत्यादि में उत्पादन क्षमता में तीव्र विस्तार हुआ। उनके बाद में, महत्त्वपूर्ण आदानों जैसे लौह और इस्पात, और विद्युत की आसानी से उपलब्धता के परिणामस्वरूप भारत में व्हाइट गुड्स उद्योगों का असाधारण रूप से विकास हुआ है।
हम संक्षेप में, भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण बृहत् उद्योगों की प्रमुख विशेषताओं की समीक्षा करेंगे।
कुछ उपयोगी पुस्तकें एवं संदर्भ
दि हिन्दू, सर्वे ऑफ इंडियन इण्डस्ट्री (वार्षिक), नई दिल्ली।
भारत सरकार, आर्थिक सर्वेक्षण (वार्षिक)।
भारतीय रिजर्व बैंक, रिपोर्ट ऑन करेन्सी एण्ड फाइनेन्स (वार्षिक) भारत सरकार, नई दिल्ली।
योजना आयोग, पंचवर्षीय योजनाएँ (पहली योजना से प्रारूप दसवीं योजना तक) भारत सरकार, नई दिल्ली।
फिक्की, वार्षिक प्रतिवेदन, सी. आई. आई., नई दिल्ली।
सी आई आई, वार्षिक प्रतिवेदन, फिक्की, नई दिल्ली।
एसोचेम, वार्षिक प्रतिवेदन, नई दिल्ली।।
आई सी आर ए, मॉमग्राफ्स एण्ड रिपोर्ट्स ऑन स्टील एण्ड सीमेन्ट इण्डस्ट्रीज, नई दिल्ली।
बाला, एम., (2003). सीमेण्ट इण्डस्ट्री इन इंडियाः पॉलिसी, स्ट्रकचर एण्ड पोमेन्स, शिप्रा पब्लिकेशन्स, दिल्ली।
आई. सी. धींगरा, (2001). दि इंडियन इकनॉमी, एनवायरनमेंट एण्ड पॉलिसी, सुल्तान चंद, नई दिल्ली।
सारांश
हमारा ‘‘नियति के साथ वायदा‘‘ की शुरुआत अर्थव्यवस्था के प्रचुर औद्योगिकरण पर बल के रूप में हुआ था। आर्थिक आयोजना की शुरुआत के समय भारत में उपभोक्ता वस्तु उद्योगों का नाममात्र अस्तित्त्व था; यह बड़े पैमाने पर कृषि निर्गत जैसे कपास और जूट की उपलब्धता के अनुरूप था किंतु पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता के माध्यम के रूप में आत्म निर्भरता का लक्ष्य प्राप्त करने का इच्छुक राष्ट्र उपभोक्ता वस्तु उद्योगों के कमजोर आधार पर आत्म-धारणीय विकास की आशा नहीं कर सकता है। और इसलिए हमारी योजनाओं में ऐसे ही उद्योगों जैसे भारी इंजीनियरी, लौह और इस्पात, सीमेन्ट, मशीन टूल्स और अन्य पूँजीगत वस्तुओं के विकास पर मुख्य रूप से जोर दिया गया। प्रौद्योगिकीय प्रगति ने पेट्रोरसायन उद्योग को उभरते हुए देखाय भारत इस क्षेत्र में भी पीछे नहीं रह सकता था। हाल के वर्षों में पेट्रोरसायन उद्योग ने तीव्र प्रगति किया है।
उद्योगों के प्रत्येक समूह की अपनी अन्तर्निहित संभावना है और इसी प्रकार प्रत्येक उद्योग को आम रूप से अर्थव्यवस्था द्वारा और विशेष रूप से उस उद्योग द्वारा सामना की जा रही विभिन्न समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।
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