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Categories: sociology

विन्यास प्रकारांतर (pattern variables in hindi meaning definition by talcott parsons) पैटर्न चर

पैटर्न चर विन्यास प्रकारांतर (pattern variables in hindi meaning definition by talcott parsons) क्या है टैल्कॉट पार्सन्स के अनुसार अर्थ बताइये समाजशास्त्र ?

विन्यास प्रकारांतर (pattern variables)
सभी क्रिया प्रणालियों की विशेषताओं को प्रतिबिम्बित करने वाली अवधारणाओं के विकास के लिए पार्सन्स ने अवधारणाओं के ऐसे समुच्चय का प्रतिपादन किया, जो इन प्रणालियों की परिवर्तनशील प्रकारांतर विशेषताओं को प्रदर्शित कर सकें। इन अवधारणाओं को विन्यास प्रकारांतर कहा गया।

भूमिका सामाजिक प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, इसके निष्पादन से तनाव (बल) पैदा होते हैं। तनाव की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि भूमिका-अपेक्षाओं को समाज में किस प्रकार संस्थागत किया गया है और यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि सामाजिक व्यक्तियों (पात्रों) द्वारा किस हद तक भूमिका-अपेक्षाओं के मूल्यों को आत्मसात् किया गया है। अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता और मूल्यपरक उन्मुखता के संबंध में अपनी भूमिकाओं के निष्पादन में हर व्यक्ति को कई दुविधाओं का सामना करना पड़ता है। ये दुविधाएं आवश्यकताओं और मूल्यों से संबंधित उन्मुखताओं के क्षेत्र में व्यक्ति की पसंद या अभिरुचि से होने वाले तनावों से पैदा होती है। यद्यपि इन दुविधाओं को द्विभाजित रूप में देखा जाता है। वास्तव में, उन्हें अविच्छिन्न रूप से रखा जाता है। लेकिन यहां सरलता को ध्यान में रखते हुए हमने यह माना है कि इन दुविधाओं का स्वरूप द्विभाजित यानी दो भागों में बंटा हुआ है। इससे पहले कि पात्र (व्यक्ति) स्थिति के संबंध में आगे कार्य करे, उसे दो विकल्पों में से एक को चुनना होता है। उदाहरण के लिए, ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति को सार्वभौम मूल्यों और विशिष्ट मूल्यों में से चुनाव करना हो तो व्यक्ति इनमें से किसी एक को ही चुन सकता है। हमारे पास कुल पांच विन्यास प्रकारांतर हैं। इनमें से प्रत्येक विन्यास प्रकारांतर दूसरे का पूरी तरह से उलटा है। ये विन्यास प्रकारांतर हैं:

I) भावात्मकता बनाम भावात्मक तटस्थता,

II) आत्म उन्मुखता बनाम सामूहिक उन्मुखता,

III) सार्वभौमवाद बनाम विशिष्टतावाद,

IV) प्रदत्त बनाम अर्जित,

V) विनिर्दिष्टता बनाम प्रसरणता।

आइए, अब हम इनमें से प्रत्येक के बारे में विस्तार से विचार करें।

भावात्मकता (affectivity) बनाम भावात्मक तटस्थता (affective neutrality)
भावात्मकता बनाम भावात्मक तटस्थता का संबंध भूमिका-निष्पादन में होने वाली दुविधा से है, जहां किसी विशिष्ट स्थिति के विषय में मूल्यांकन की अपेक्षा होती है। संवेगात्मक दृष्टि से या कुछ हद तक संवेगात्मक तटस्थता से स्थिति का किस सीमा तक मूल्यांकन किया जाए? समाज में जिन अधिकांश भूमिकाओं को करने की हमसे अपेक्षा की जाती है, इनमें चुनाव की हमारे सामने कठिन समस्या पैदा होती है। उदाहरण के लिए, आप बच्चे और मां के संबंधों को लें। इसमें अत्यधिक भावात्मक उन्मुखता होती है लेकिन इसके साथ अनुशासन भी जरूरी है। इस प्रकार बहुत से अवसरों पर अपने बच्चे के समाजीकरण के संदर्भ में मां को भावात्मक-तटस्थता की भूमिका निभानी पड़ती है। लेकिन, मां और बच्चे के संबंध में अनिवार्य रूप से भावात्मकता भूमिका प्रधान है। इसकी तुलना में डॉक्टर और रोगी के संबंधों में भावात्मक-तटस्थता दिखाई देती है। इसमें डॉक्टर की भूमिका की विशेषता है। सही डॉक्टरी उपचार के लिए भावात्मक-तटस्थता आवश्यक है। यह बात विशेष रूप से वहां और भी जरूरी है जहां शल्य क्रिया (चीर-फाड़) की जरूरत होती है। परंतु पार्सन्स के अनुसार भूमिका-निष्पादन की सभी स्थितियों में चुनाव की दुविधा और इसकी अभिव्यक्ति या वचनबद्धता की मात्रा रहती है।

 आत्म उन्मुखता (self&orientation) बनाव सामूहिक उन्मुखता (collective orientation)
इसी तरह आत्म उन्मुखता बनाम सामूहिक उन्मुखता विन्यास प्रकारांतर में मूल्यांकन प्रक्रिया में मुख्य बात नैतिक मानक की है। नैतिक मानक का प्रश्न इस बात से उठता है कि पात्र या व्यक्ति को सामूहिकता यानी व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए अपने स्वार्थ की पूर्ति या अपने स्वार्थ का परित्याग में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है। इसमें किसी न किसी रूप में परोपकार या त्याग की भावना निहित होती है। ऐसी विन्यास प्रकारांतर की दुविधा की स्थिति आदिम आर्थिक पद्धति और तत्कालीन समाज से आधुनिक सभ्यता के काल तक मानव जीवन में सदैव बनी रहती है। हमारे सामने समाजवादी समाज और समाजवादी चेतना की धारणा एक अच्छा उदाहरण है, जहां समग्र सामाजिक प्रणाली और इसकी संस्थाओं के विन्यास सामूहिकता उन्मुखता के अनुकूल महत्वपूर्ण चयन पर आधारित है। लेकिन जैसा कि पार्सन्स ने सही संकेत किया है कि ऐसे मूल्यों का संस्थागत होना सदैव क्षणिक होता है। इसका कारण यह है कि पात्र की स्थिति की तरफ प्रतिक्रिया हमेशा ही दुविधा के रूप में होती है।

सार्वभौमवाद (universalism) बनाम विशिष्टतावाद (particularism)
सार्वभौमवाद बनाम विशिष्टतावाद एक विन्यास प्रकारांतर है, जो उस भूमिका-स्थिति को निरूपित करता है जहां व्यक्ति की दुविधा संज्ञानात्मक बनाम संवेगात्मक मानकों के मूल्यांकन के संबंध में होती है। मानव व्यवहार के सार्वभौमवादी मानकों के पालन की भूमिका का एक बहुत अच्छा उदाहरण भूमिका-निष्पादनों का है, जो पूरी तरह से कानुन सममत मानदंडों और कानूनी स्वीकृति के अनुसार है। अगर कोई व्यक्ति व्यक्तिगत, रिश्तेदारी या मित्रता के संबंधों पर ध्यान दिए बिना कानून के नियमों का पालन करे तो वह सार्वभौमवादी भूमिका-निष्पादन-प्रणाली का उदाहरण कहा जाएगा। अगर कोई व्यक्ति केवल इसलिए कानूनी मानदंडों का उल्लंघन करे कि संबंद्ध व्यक्ति उसका रिश्तेदार या दोस्त है तो यह कहा जाएगा कि उस समय विशिष्टतावादी तर्क कार्यरत थे। पार्सन्स का कहना है कि ऐसे समाजों में जहां नौकरशाही, औपचारिक संगठनों और आधुनिक संस्थाओं की व्यापक भूमिका है, वहां सार्वभौमवाद और विशिष्टतावाद के बीच दुविधा की स्थिति रोजमर्रा के जीवन में चुनाव के विषय बन गए है।

 प्रदत्त (ascription) बनाम अर्जित (achievement)
प्रदत्त बनाम अर्जित विन्यास प्रकारांतर में व्यक्ति की दुविधा इस बात पर आधारित है कि क्या व्यक्ति अपनी भूमिका के विषय को गुणवत्ता (quality) या निष्पादन (performance) की दृष्टि से निरूपित करता है। भारत में इस विन्यास प्रकारांतर का बहत अच्छा उदाहरण जाति व्यवस्था द्वारा नियंत्रित भूमिका निष्पादन है। जाति व्यवस्था के अंतर्गत व्यक्तियों की प्रतिष्ठा का निर्धारण उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि या व्यक्तिगत कौशल या ज्ञान के आधार पर न होकर उनके जन्म के आधार पर होता है। प्रदत्त का आधार किसी व्यक्ति में जन्म या आय या लिंग या नातेदारी अथवा जाति के आधार पर उस पर योग्यता आरोपित करना है। उपलब्धि का आधार व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत प्रयास से कौशल अर्जित करके समाज में एक विशेष स्तर तक कार्य-निष्पादन के योग्य बनना है।

 विनिर्दिष्टता (specificity) बनाम प्रसरणता (dffiuseness)
विनिर्दिष्टता बनाम प्रसरणता विन्यास प्रकारांतर का संबंध भूमिका निष्पादन के विषय-क्षेत्र से है। इस संदर्भ में क्षेत्र का मतलब सामाजिक अन्योन्य क्रिया की प्रकृति से है। डॉक्टर और रोगी के बीच या बाजार में ग्राहक और सामान-विक्रेता के बीच सामाजिक अन्योन्य क्रिया का एक बहुत ही विशिष्ट क्षेत्र है। इन अन्योन्य क्रियाओं की प्रकृति की व्याख्या अन्योन्य क्रियाओं के अत्यंत सीमित संदर्भ में की गई है। एक डॉक्टर को अपने रोगियों के इलाज के लिए तथा उन्हें दवा देने के लिए उनकी सामाजिक, वित्तीय या राजनीतिक पृष्ठभूमि समझने की जरूरत नहीं होती। डॉक्टर का कार्य बहुत विशिष्ट प्रकार का है और यही बात बाजार में सामान के विक्रेता की है, जिसे अपने ग्राहकों के जीवन की सामान्य बातें जानने की कतई आवश्यकता नहीं होती। पात्रों के बीच प्रतिक्रिया के मानकों की दृष्टि से इन भूमिकाओं की विशिष्ट भूमिकाएं कहा जाएगा।

इसके विपरीत, कुछ भूमिका संबंध बहुत सामान्य और व्यापक प्रकृति के हैं। ऐसी भूमिकाओं में अन्योन्य क्रिया के कई पहल होते हैं। इस प्रकार के भूमिका संबंधों के कुछ उदाहरण हैं – मित्रता संबंध, पति-पत्नी के बीच दाम्पत्य संबंध, विभिन्न स्तरों के रिश्तेदारों के बीच संबंध। ये सब संबंध ऐसे हैं जहां व्यक्ति किसी रिश्तेदार आदि के साथ किसी विशिष्ट संवर्ग में उस रूप में अंतःक्रिया नहीं करता अपितु वह विरासत रूप में दो घनिष्ठ मित्रों की तरह अंतःक्रिया करता है। यहां अन्योन्य क्रिया का क्षेत्र लचीला, खुला और व्यापक प्रकृति का है।

सोचिए और करिए 2
आप ध्यान से उस संगठन के बारे में सोचिए जो आपका कार्यालय है या उस स्थान के बारे में सोचें जो आपका अध्ययन केंद्र है। अब आप पार्सन्स द्वारा वर्णित विन्यास प्रकारांतर के अनुसार इस संस्था के साथ अंतःक्रिया के दो अभिलक्षण बताइए और यह निर्धारित कीजिए कि वे किस विन्यास प्रकारांतर में आते हैं। उदारहण के लिए, यदि आपका काम किसी मित्र या संबंधी की कंपनी में है तो इसके साथ आपकी अंतःक्रिया में सार्वभौमवाद और विशिष्टतावाद दोनों के गुण आ सकते हैं।

आप एक पृष्ठ की टिप्पणी लिखिए और यदि संभव हो तो अपनी टिप्पणी की तुलना अपने अध्ययन केंद्र के दूसरे छात्रों की टिप्पणी से कीजिए।

पार्सन्स के अनुसार विन्यास प्रकारांतर न केवल सामाजिक प्रणाली में भूमिका अंतःक्रिया और भूमिका-अपेक्षाओं को निरूपित करते हैं, बल्कि इसके साथ ही व्यापक निर्देश भी देते हैं जिसमें सामाजिक प्रणाली के अधिकांश सदस्य अपनी भूमिकाएं चुनते हैं। इससे हमें सामाजिक प्रणाली की प्रकृति की जानकारी भी मिलती है। उदाहरण के तौर पर सामाजिक प्रणाली के रूप में परिवार को ही लीजिए। एक परिवार में सदस्यों की भूमिका-अपेक्षाएं मोटे तौर पर सामूहिकता उन्मुखता, विशिष्टतावादी, प्रदत्त-परक और प्रसारणात्मक होंगी।

इसके विपरीत, यदि आप किसी चिकित्सा संघ, बार-संघ या छात्र संघ के सदस्य हों तो उसका उदाहरण लीजिए। यहां भूमिका-अपेक्षाएं और भूमिका-निष्पादन के मानक अधिकांश रूप से भावात्मक तटस्थता, आत्म-उन्मुखता(प्रतियोगिता के कारण), सार्वभौमिकता, उपलब्धि और विनिर्दिष्टता के विन्यास प्रकारांतर की ओर उन्मुख होंगे।

परंतु ये सब आतिवादी (extreme) उदाहरण है। वास्तविक जीवन में विन्यास प्रकारांतर की दृष्टि से चुनाव की दुविधा उपर्युक्त उदाहरणों की तुलना में कहीं अधिक अनिश्चित और तनावपूर्ण होती है।

अब तक आपने सामाजिक प्रणाली की विभिन्न विशेषताओं के बारे में पढ़ा। इससे अगले भाग में सामाजिक प्रणाली के उन पहलुओं पर विचार होगा, जिन्हें पार्सन्स सामाजिक प्रणाली को सुचारू रूप से कार्य करने लायक बनाने के लिए पूर्व आवश्यकता मानता है।

परंतु अगले भाग को शुरू करने से पहले क्यों न बोध प्रश्न 2 को पूरा कर लें?

बोध प्रश्न 2
प) विन्यास प्रकारांतर की परिभाषा लिखिए और विभिन्न विन्यास प्रकारांतरों को सूचीबद्ध कीजिए। इसका उत्तर दस पंक्तियों में लिखिए।
नीचे विभिन्न प्रकार के सामाजिक व्यवहार दिए गए हैं। हरेक वाक्य के नीचे दी हुई रेखा पर लिखें कि वे किस विन्यास प्रकारांतर से संबंधित हैं।
क) स्कूल का एक अध्यापक अपने बच्चे को अतिरिक्त अंक देता है।
ख) एक पुलिस का सिपाही, बैंक लूट कर भागते हुए अपने भाई को गोली मार देता है।
ग) किसी लखपति बाप का लड़का अपने पिता की कंपनी में क्लर्क (लिपिक) का काम कर रहा है।
घ) किसी लिपिक की लड़की किसी संस्था में अपनी योग्यता के आधार पर निदेशक के पद पर चुनी जाती है।
ड) कोई विक्रेता महिला ग्राहक को रूपयों की रेजगारी देती है।
च) दो दोस्तों के बीच नोट्स की अदला-बदली और गप्प-बाजी।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) विन्यास प्रकारांतर, उन्मुखताओं अभिप्रेरणात्मक उन्मुखता और मूल्यपरक उन्मुखता के क्षेत्र में द्विभाजन की ओर संकेत करते हैं। इसमें सामाजिक पात्र क्रिया करने से पहले एक पक्ष को चुन लेता है। भूमिकाओं के निष्पादन में भूमिका-अपेक्षाओं से संबंधित मूल्यों के गलत रूप में आत्मसात् करने के कारण पात्रों (व्यक्तियों) के सामने दुविधा की स्थिति पैदा हो जाती है। भूमिका निष्पादन में ये तनाव विन्यास प्रकारांतर के द्विभाजन में दिखाई देते हैं। ये विन्यास प्रकारांतर हैंः
प) भावात्मकता बनाम भावात्मक तटस्थता
पप) आत्म उन्मुखता बनाम सामूहिक उन्मुखता
पपप) सार्वभौमवाद बनाव विशिष्टतावाद
पअ) प्रदत्त बनाम अर्जित, और
अ) विनिर्दिष्टता बनाम विसरणता
पप) क) भावात्मकता
ख) सामूहिक उन्मुखता
ग) सार्वभौमवाद
घ) अर्जित
ड) विनिर्दिष्टता
च) प्रसरणता

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