अनिषेकफलन क्या है , parthenogenesis in hindi की परिभाषा , असंगाजनन एवं बहुभूणता किसे कहते है

असंगाजनन एवं बहुभूणता ,  अनिषेकफलन (parthenogenesis definition in hindi) की परिभाषा , असंगाजनन एवं बहुभूणता किसे कहते है :-

बिना निषेचन के अण्डाशय के फलों में बदलने की क्रिया अनिषेक कहलाती है। इस प्रकार के फलों का अनिषेकफल कहते है। उदाहरण:-कैला।

 असंगाजनन एवं बहुभूणता:-

बिना निषेचन के बीज के निर्माण की क्रिया के असंगाजनन कहते है। कोई अण्डकोशिका बिना अर्द्धसूत्री विभाजनके बनती है तथा यह सिधे ही भू्रण का निर्माण करती है। उदाहरण:-ऐस्ट्रेसिया, घास

 महत्व:-

1-असंगजनन की क्रिया में अर्द्धसूत्री विभाजन नहीं होता है अतः जीव विनिभय की क्रिया के अभाव के कारण संतति में नये लक्षण नहीं आते है। अतः इस प्रकार बनी संतति को एक पूर्वज संतति (क्लोन) कह सकते है।

2- असंगजन से बनी संतति में नये लक्षण नहीं आते है। यदि किसान संमहित संकर बीजों का प्रयोग करता है तो संतति में लक्षण बदल सकते है। जबकि असंगजनन द्वारा प्राप्त बीजों से उत्तम लक्षण नहीं बदलते है अतः किसान इनका प्रयोग प्रतिवर्ष कर सकता है तथा उसे प्रतिवर्ष संकर बीजों के खरीदने की आवश्यकता नहीं होती है। एक से अधिक भूणों की उपस्थिति बहुभूणता कहलाती है। बीजाण्डकाय की कोई कोशिका सीधे ही भूण में बदल जाती है।

उदाहरण:-नीबू, संतरा।

अनिषेकफलन (parthenocarpy in hindi) : सामान्यतया आवृतबीजी पौधों में फल का निर्माण और विकास परागण के पश्चात् होता है परन्तु कुछ पौधों में फल का विकास परागण अथवा निषेचन या अन्य किसी ऐसे ही उद्दीपन के अभाव में हो जाता है। यह प्रक्रिया अनिषेकफलन कहलाती है। दूसरे शब्दों में बिना निषेचन के फल बनाने की क्रिया अनिषेकफलन कहलाती है। यहाँ फल से वैज्ञानिक अर्थों में हमारा तात्पर्य परिपक्व और निषेचित अंडाशय से है। जब पौधों में निषेचन के पश्चात् फल बनना प्रारंभ होता है तो अंडाशय में अनेक कार्यिकी प्रक्रियाएँ संचालित होने लगती है , जिनके परिणामस्वरूप अंडाशय फल में परिवर्तित हो जाता है। अत: फल बनने की वह प्रक्रिया जिसके अंतर्गत बीजाण्ड में तो निषेचन नहीं होता लेकिन अंडाशय फल में परिवर्तित हो जाता है , अनिषेकफलन कहलाती है।

यहाँ यह उल्लेख कर देना भी तर्कसंगत है कि जब बीजाण्ड में निषेचन नहीं होता तो बीज का निर्माण आवश्यक रूप से नहीं होता लेकिन जैसा कि हम जानते है कुछ आवृतबीजी पौधों में प्राकृतिक रूप से अथवा कृत्रिम संसाधनों द्वारा बीजाण्ड को उद्दीप्त करके बीज प्राप्त कर लिए जाते है , यह परिघटना अनिषेकजनन कहलाती है। अत: अनिषेकजनन और अनिषेकफलन दोनों अलग अलग और सर्वथा भिन्न परिघटनाएं है , एक में बीज का निर्माण होता है , जबकि दूसरी में बीज का निर्माण नहीं होता और बीजरहित फल बनते है , बीज या तो रुद्रवृद्धि (abortive) वाले अविकसित या पूर्णतया अनुपस्थित होते है।
विन्कलर (1908) के अनुसार – बीज रहित फलों की उत्पत्ति को अनिषेकफलन कहते है।
आर्थिक महत्व के अनेक फलों जैसे – केला , संतरा , अंगूर और अनानास में , अनिषेकफलन अथवा बीजरहित फलों का पाया जाना एक सामान्य परिघटना है। विभिन्न पौधों में अनिषेकफलन के सामान्य कारणों में परागण की अनुपस्थिति , निषेचन की असफलता और युग्मनज की बंध्यता आदि उल्लेखनीय है।

अनिषेकफलन का वर्गीकरण (classification of parthenocarpy)

निट्स (1963) के अनुसार उत्पत्ति मूलक कारकों के आधार पर अनिषेकफलन को तीन निम्नलिखित श्रेणियों में विभेदित किया जा सकता है –
1. पर्यावरण अनिषेकफलन (environmental parthenocarpy)
2. आनुवांशिकीय अनिषेकफलन (genetical parthenocarpy)
3. रासायनिक अनिषेकफलन (chemically induced parthenocarpy)
1. पर्यावरण अनिषेकफलन (environmental parthenocarpy) : विभिन्न प्रकार के जलवायु कारक , जैसे कोहरा , धुंध और तापमान में अत्यधिक कमी और ओलावृष्टि ये कुछ ऐसी परिस्थितियाँ है जो पुष्पों की जनन संरचनाओं के सामान्य कार्यकलाप में बाधक होती है और इनसे पौधों में अनिषेकफलन अभिप्रेरित होता है। अत: पर्यावरण कारकों के प्रभाव के कारण उत्पन्न बीजरहित फल बनने की प्रक्रिया को पर्यावरण अनिषेकफलन कहते है। इसके कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित प्रकार से है –
(i) स्मिथ और कोक्रेन (smith and cochran 1935) के अनुसार टमाटर के पौधे में 10 डिग्री सेल्सियस पर परागकण का अंकुरण और परागनलिका की वृद्धि बहुत धीमी होती है। परिणामस्वरूप पराग नलिका बीजाण्ड तक नहीं पहुँच पाती और बीजरहित फल बनते है।
(ii) कोक्रेन (cochran 1936) के अनुसार मिर्च अथवा केप्सीकम के पौधों को पराग परिवर्धन के समय यदि अपेक्षाकृत कम तापमान में रखा जाए तो बीजरहित फल बनते है।
(iii) ल्यूइस (lewis 1942) द्वारा किये गए प्रयोगों में यह देखा गया है कि यदि नाशपाती के पुष्पों को 3 से 19 घंटे तक गलनांक अथवा हिमकारी ताप में रखा जाए तो इनमें अनिषेकफलन होता है।
इसके अतिरिक्त परागण निरोधी पर्यावरण अवस्थाएँ भी अनिषेक फलन को प्रोत्साहित करती है।
2. आनुवांशिकीय अनिषेकफलन (genetic parthenocarpy) : सामान्य परिस्थितियों में यह देखा गया है कि पौधों में कुछ आनुवांशिकीय अनियमितताओ जैसे उत्परिवर्तन , असामान्य अर्धसूत्री विभाजन , बहुगुणिता अथवा संकरण ऐसी परिस्थितियाँ है जो अनिषेकफलन को प्रोत्साहित करती है। फलोत्पादक पौधों में बीजयुक्त और बीजरहित दोनों प्रकार की किस्में पायी जाती है , उदाहरणतया नारंगी में प्रसिद्ध बीजरहित फल की नस्ल , एक बीजयुक्त पौधे की शाखा के उत्परिवर्तन से प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त , ककड़ी , केला , जामुन , अंगूर और निम्बू की अनेक किस्मों में भी आनुवांशिक अनिषेकफलन पाया जाता है परन्तु गुस्ताफसन (1939) ने कुछ प्रयोगों के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास किया है कि साइट्रस वंश की कुछ किस्मों में ऑक्सीन्स की बहुलता के कारण अनिषेकफलन होता है।
3. रासायनिक अनिषेकफलन (chemically induced parthenocarpy) : कुछ रासायनिक पदार्थो के उपचार द्वारा अनेक पौधों में बीजरहित फल प्राप्त किये जा सकते है , इस प्रक्रिया को रासायनिक अनिषेकफलन कहते है। कुछ हार्मोन्स अथवा संश्लिष्ट रासायनिक पदार्थ जैसे – 3-IBA (3 indole butyric acid) , 2-NAA (2-naphthalene acetic acid) आदि के उपचार से अनेक पौधों में अनिषेकफलन को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
थीमेन (1934) ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष प्राप्त किया कि अनेक पादप प्रजातियों के परागकणों में ऑक्सिन्स और अन्य वृद्धि हार्मोन्स पाए जाते है। इसके बाद अनेक वैज्ञानिकों ने इन्डोल एसिटिक अम्ल (IAA) और नेफ्थलीन एसिटिक एसिड (NAA) , जिबरेलिक एसिड और फिनाइल एसिटिक एसिड आदि वृद्धि हारमोंस के 0.5 से 1 प्रतिशत घोल पौधों के वर्तिकाग्र पर छिद्रक कर बीज रहित फल प्राप्त किये .बालासुब्रह्यण्यम और रंगास्वामी (1959) ने अमरूद की विशेष नस्ल “इलाहाबाद गोल” के परागकणों के जलीय निष्कर्षण को विपुंसित पुष्पों के वर्तिकाग्र पर छिडक कर बीजरहित फल प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। अन्य स्वादिष्ट फलोत्पादक पौधों में बीजयुक्त किस्मों का परागण अवरुद्ध करके अथवा विभिन्न रसायनों द्वारा वर्तिकाग्र पर उपस्थित परागकणों को निष्क्रिय करके अनिषेक फल प्राप्त करने का प्रयास किया गया है।
यासुदा (1939) ने प्रेरित अनिषेकफलन के बारे में निम्नलिखित विशेष तथ्य प्रस्तुत किये ही –
1. आवश्यक उद्दीपन के लिए यदि परागनलिका को केवल वर्तिका के आधारीय भाग तक पहुँचने दिया जाए तो बीजरहित फल प्राप्त किया जा सकते है।
2. परागनलिका से विशेष प्रकार के रसायन का स्त्राव होता है जो अंडाशय के ऊतकों में पहुँचकर फल के विकास को अभिप्रेरित करता है।
3. प्रौढ़ परागकणों से (जो कि निषेचन के लिए सर्वथा अनुपयोगी होते है ) वर्तिकाग्र को परागित करवाकर अथवा परागकणों के घोल को वर्तिकाग्र पर छिडकाव करके भी बीजरहित फल प्राप्त किये जा सकते है। यासुदा के अनुसार पराग कणों में वृद्धिकारी हार्मोन्स अथवा ऑक्सिन होते है जो अनिषेकफलन को प्रोत्साहित करते है।

अनिषेकफलन का महत्व (significance of parthenocarpy)

इस प्रक्रिया का विशेष महत्व विभिन्न खाद्योपयोगी फलों जैसे अंगूर , चेरी , सेब , नाशपाती आदि की स्वादिष्ट और बीजरहित उत्तम गुणवत्ता की किस्में प्राप्त करने में है।
कृत्रिम अनिषेकफलन की सहायता से फलों में उत्पन्न विभिन्न प्रकार की विकृतियों की रोकथाम भी की जा सकती है।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : अनिषेकजनन होता है –
(अ) अंडकोशिका से
(ब) अंडाशय से
(स) बीजाण्ड से
(द) निभाग से
उत्तर : (अ) अंडकोशिका से
प्रश्न 2 : अनिषेकजनन में अंडाशय से फल बनने की प्रक्रिया –
(अ) अपबिजाणुता
(ब) अनिषेक फलन
(स) अपयुग्मन
(द) संयुग्मन
उत्तर : (ब) अनिषेक फलन
प्रश्न 3 : संवर्धन प्रयोगों की पूर्व निर्धारित आवश्यकता है –
(अ) स्वस्थ पुष्प
(ब) स्वस्थ पादप
(स) उचित पोषण माध्यम
(द) परागण
उत्तर : (स) उचित पोषण माध्यम
प्रश्न 4 : पर्यावरणीय कारकों द्वारा बीज रहित फल बनने की प्रक्रिया कहलाती है –
(अ) बाह्य फलन
(ब) अन्त: फलन
(स) अनिषेकजनन
(द) पर्यावरणीय अनिषेक फलन
उत्तर : (द) पर्यावरणीय अनिषेक फलन