JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: physics

पैलीमॉन में श्वसनांग या श्वसन तन्त्र के बारे में जानकारी दीजिये | palaemon respiratory system in hindi

palaemon respiratory system in hindi पैलीमॉन में श्वसनांग या श्वसन तन्त्र के बारे में जानकारी दीजिये |

पैलीमॉन निम्न श्वसनांग पाये जाते

  1. गिल (Gills)

पेलिमॉन के पार्श्व में केरापेस के नीचे गिल कक्ष पाया जाता है। प्रत्येक गिल कक्ष (branchial chamber) केवल पृष्ठ सतह की तरफ से ढका रहता है शेष सभी तरफ से खुला रहता है। प्रत्येक गिल कक्ष (branchial chamber) में आठ गिल पाये जाते हैं, परन्तु गिल आवरण को हटाने पर केवल सात गिल ही दिखाई देते हैं क्योंकि एक गिल दूसरे गिल के पृष्ठ भाग के नीचे छिपा रहता है। सभी गिल लगभग अर्द्ध चन्द्राकार या हंसियाकार होते हैं जो अगले क्रम से पिछले क्रम की तरफ आकार में बड़े होते चले जाते हैं। इस तरह प्रथम गिल सबसे छोटा होता है तथा आठवाँ गिल सबसे बड़ा होता है।

उद्भव एवं स्थिति के अनुसार गिल तीन प्रकार के हो सकते हैं

  • पादगिल या पोडोब्रेन्क (Podobranch)

(ii) सन्धिगिल या आथ्रोबेन्क (Arthrobranch)

(iii) पार्श्वगिल या प्लूरोबॅन्क (Pleurobranch)

(i) पादगिल (Podobranch)

जो गिल उपांग के आधारीय पदखण्ड (podomere), कॉक्सा या कक्षांग (coxa) से जुड़ा रहता है. वह पाद गिल (podobranch) कहलाता है। प्रथम गिल द्वितीयक जम्भिका पाद (second maxillaepede) के कॉक्सा से जुड़ा रहता है अत: यही पादगिल होता है।

(ii) सन्धिगिल (Arthrobranch)

जो गिल उपांगों को देह के साथ जोड़ने वाली सन्धिकला (arthroidial membrane) से जुड़े रहते हैं उन्हें सन्धिगिल कहते हैं। दूसरा व तीसरा गिल तीसरे जम्भिका पाद (third pair of maxillaepede) के साथ जुड़े रहते हैं। अतः ये सन्धि गिल कहलाते हैं।

(iii) पार्श्वगिल (Pleurobranch)

यदि गिल उस खण्ड की पार्श्व भित्ति से जुड़ा हो, जिससे कि उपांग जुड़ा रहता हो, तो ऐसे गिल को पार्श्व गिल (pleurobranch) कहते हैं। चौथे से आठवें तक सभी गिल पार्श्व गिल कहलाते हैं। यदि हम आगे से पीछे की तरफ देखें तो प्रथम जम्भिकापाद पर कोई गिल नहीं पाया जाता है। दूसरे जम्भिका पाद के कॉक्सा (caxa) से जुड़ा पाद गिल पाद होता है, तीसरे जम्भिका पाद की सन्धि उपकला (arthrodial membrane) से जड़े दो सन्धि गिल पाये जाते हैं, तथा पांच वक्षीय खण्डों की पार्श्व भित्ति से जडे पाँच पार्श्व गिल पाये जाते हैं।

गिल सूत्र (Branchial formula)

प्रत्येक गिल कक्ष में पाये जाने वाले श्वसन अंगों जैसे-अधिपादांश (epipodite) तथा गिल (gills) की संख्या तथा स्थिति को निम्न तालिका द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। यही इसका गिल सूत्र कहलाता है।

गिल की संरचना (Structure of gill)

जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि प्रत्येक गिल अर्द्ध चन्द्राकार (crescent shaped) या हसियाकार होता है। प्रत्येक गिल अपने से पूर्ववर्ती गिल की अपेक्षा बड़ा होता है। प्रत्येक गिल अपनी लम्बाई के मध्य स्थान पर गिल-मूल (gill root) द्वारा वक्ष भित्ति से जुड़ा रहता है। इसी गिल-मूल में होकर तन्त्रिकाएँ तथा रक्त वाहिकाएँ गिल के भीतर जाती है तथा बाहर आती है।

पेलीमॉन का प्रत्येक गिल पर्ण गिल (phyllobranch) कहलाता है क्योंकि इससे पत्ती जैसी आकृति की आयताकार गिल प्लेटें पायी जाती है। प्रत्येक गिल में गिल प्लेटों की दो पंक्तियाँ पायी जाती हैं, जो पुस्तक के पन्नों की तरह व्यवस्थित रहती है। गिल प्लेटें गिलों के आधार अथवा अक्ष के समकोण पर स्थित होती है। गिल प्लेट गिल के मध्य में सबसे बड़ी तथा दोनों सिरों की तरफ क्रमश: छोटी होती रहती है। गिल प्लेटों की दोनों पंक्तियों के मध्य एक गहरी अनुदैर्घ्य खाँच पाई जाती है।

गिल की औतिकी संरचना (Histological structure of gill)

गिल की औतिकी संरचना का अधययन करने के लिए गिल के अनुप्रस्थ काट का अध्ययन करना होगा। गिल का अनुप्रस्थ काट देखने से पता चलता है कि गिल का आधार अथवा अक्ष लगभग त्रिभुजाकार होता है। गिल आधार संयोजी ऊतक का बना होता है जो एपिडर्मिस की इकहरी परत से ढका रहता है। सबसे बाहर की तरफ क्यूटिकल का स्तर पाया जाता है। प्रत्येक गिल प्लेट कोशिकाओं की इकहरी परत से बनी होती है तथा बाहर की तरफ पतली क्यूटिकल के स्तर द्वारा ढकी रहती है। गिल प्लेट में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं (i) वर्णक (pigmented) तथा (2) पारदर्शी कोशिकाएँ (transparent cells)। ये कोशिकाएँ एकान्तर क्रम में पायी जाती हैं।

गिलों में रक्त परिसंचरण (Blood circulation in gills)

प्रत्येक गिल में रुधिर परिसंचरण के लिए तीन अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिनियां पायी जाती हैं। इनमें से एक मध्य अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिका (median longitudinal blood channel) तथा दो पाव अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिकाएँ (lateral longitudinal blood channels) होती है। ये रुधिर वाहिनियां गिल के अक्ष में सम्पूर्ण लम्बाई में फैली रहती है। पार्श्व अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिकायें आधार के दोनों पार्श्व किनारों पर एक-एक चलती है जबकि मध्य अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिका गिल की मध्य खाँच के नीचे गिल आधार के शिखाग्र में चलती है। दोनों पार्श्व अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिकायें अनेक छोटी-छोटी अनुप्रस्थ संयोजिकाओं (transverse connectives) द्वारा आपस में जुड़ी रहती है जो एक सीढ़ीनुमा स्वरूप प्रदान करती है। प्रत्येक पार्श्व अनुदैर्घ्य वाहिका से एक पतली सीमान्तीय वाहिका (marginal channel) निकलती है जो गिल प्लेट के समस्त सीमान्त किनारों के सहारे-सहारे चलती है तथा मध्य अनुदैर्घ्य वाहिका में आकर खुलती है। (देखें चित्र)।

शरीर के विभिन्न भागों से एकत्र किया गया रक्त शुद्ध होने के लिए गिलों में आता है। यह अशुद्ध रक्त अभिवाही गिल वाहिकाओं (aferent branchial channels) द्वारा गिल में आता है। यह वाहिका गिल-मूल में होकर गिल में प्रवेश करती है तथा इसके सम्मुख पड़ने वाली अनुप्रस्थ संयोजी वाहिका में खुल जाती है। यह अशुद्ध रक्त दोनों पार्श्व में अनुदैर्घ्य वाहिकाओं में बहता हुआ सीमान्त वाहिकाओं (marginal channels) में चला जाता है। यहाँ यह जल से ऑक्सीजन ग्रहण करता है। तथा CO2 जल में मुक्त करता है। इस तरह रक्त शुद्ध होता है। यह शुद्ध रक्त इन सीमान्त वाहिकाओं से मध्य अनुदैर्घ्य वाहिका में चला जाता है। मध्य अनुदैर्घ्य वाहिका में शुद्ध रक्त बहता है तथा एक अपवाही गिल वाहिका द्वारा (efferent branchial channel), जो गिल मूल में होकर बाहर निकल जाती है, परिहद साइनस में पहुंचा दिया जाता है।

(2) अधिपादांश (Epipodites)

पेलिमॉन में मुख्य श्वसनांग गिलों के अलावा अन्य सहायक श्वसनांग भी पाये जाते हैं। इनमें अधिपादांश (epipodites) भी आते हैं। पैलिमॉन में तीन जोडी अधिपादांश पाये जाते हैं। ये साधारण पत्ती समान, अत्यन्त परिसंचारी, अध्यावरणी प्रवर्ध होते हैं। ये प्रत्येक जम्भिका पाद (maxillaepede) के कक्षांग (coxa) से निकले रहते हैं। अधिपादांश गिल कक्ष में आगे की ओर स्केफोग्नैथाइट (scaphoganthite) के नीचे स्थित होते हैं। ये पतले तथा अत्यन्त परिसंचारी होते होने के कारण श्वसन अंग की तरह कार्य करते हैं।

(3) गिलावरक व क्लोमावरक (Branchiostegite) ।

पेलिमॉन का गिलावरक भी श्वसन अंग की तरह कार्य करता है। इसका भीतर तल एक अत्यधिक संवहनीय पतली झिल्ली द्वारा आस्तरित रहता है। जिसमें अनेक रुधिर अवकाश (blood lacunae) पाये जाते हैं यह स्तर सदैव स्वच्छ जल के सम्पर्क में रहता है, अत: श्वसन सतह का कार्य करता है। जल में घुली ऑक्सीजन विसरित होकर रक्त में चली जाती है तथा CO2  बाहर निकल आती है।

श्वसन की क्रिया विधि (Mechanism of respiration)

सभी श्वसन सतहों जैसे गिल, अधिपादांश व गिलावरक में गैसों का विनिमय विसरण विधि द्वारा होता है। स्वच्छ जल से आक्सीजन ग्रहण की जाती है तथा CO2  जल में विसरित की जाती है। इस क्रिया के लिए गिल प्रकोष्ठ (branchial chamber), जिसमें श्वसनांग होते हैं, में निरन्तर  जल प्रवाह बनाये रखा जाता है ताकि ऑक्सीजन युक्त जल गिल प्रकोष्ठ में प्रवेश कर सके तथा Co2  युक्त जल गिल प्रकोष्ठ से बाहर निकल सके। यह कार्य मैक्सिला (maxilla) का व स्केफोग्नैथाइट (scaphoognathite) करता है। इस कार्य में जम्भिकापादों के बहिदांश (exopodite) भी सहायता करते हैं। स्केफोग्नैथाइट तथा जम्भिकापादों के बहिर्पादांशों के निरन्तर कम्पन द्वारा गिल कक्ष में निरन्तर जल धारा बनी रहती है। यह जल गिलों के ऊपर से गुजरता हुआ गिल कक्ष से बाहर निकल जाता है। इस तरह सभी श्वसनांग निरन्तर स्वच्छ जल के सम्पर्क में आते हैं तथा विसरण द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण कर जल में CO2  मुक्त करते रहते हैं।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

12 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now