JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

पचमढ़ी का इतिहास क्या है | बड़ादेव की गुफा के चित्र एक विशद लेख pachmarhi hill station in hindi

pachmarhi hill station in hindi पचमढ़ी का इतिहास क्या है | बड़ादेव की गुफा के चित्र एक विशद लेख ?

पंचमढ़ी
यह स्थान महादेव पर्वत श्रृंखला में अवस्थित है। पंचमढ़ी के आसपास कोई 5 मील के घेरे में 50 के करीब दरियाँ (गुहाएं) हैं। इन सभी में महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक चित्र उपलब्ध हुये हैं।
पंचमढी क्षेत्र के चित्रों को प्रकाश में लाने का श्रेय ’डी.एच. गॉर्डन’ नामक विद्वान को है, जिन्होंने सन् 1936 ई. में यहां के चित्रों के संबंध में रेखाचित्रों तथा फलक चित्रों सहित ’एक विशद लेख’ प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने 15 से अधिक शिलाश्रयों एवं गुफाओं की खोजबीन की। यही पर महादेव पर्वत के चारों ओर अवस्थित ’इमली खोह’ में सांभर के आखेट का दृश्य, ’भाडादेव गुफा’ की छत पर शेर के आखेट का दृश्य और ’महादेव बाजार’ में विशालकाय बकरी का चित्र प्राप्त हुआ है।

खंड ब: भारतीय इतिहास एवं संस्कृति
1. भारतीय धरोहर : सिंधु सभ्यता से लेकर ब्रिटिश काल तक के भारत की ललित कलाएं, प्रदर्शन कलाएं, वास्तु परम्परा एवं साहित्य।
ऽ इकाई – प्रथम: सिंधु सभ्यता से लेकर ब्रिटिश काल तक के भारत की ललित कलाएं
प्राचीन भारतीय चित्रकला
मध्यकालीन भारतीय चित्रकला
आधुनिक भारतीय चित्रकला
संगीत एवं प्रदर्शन कला
प्राचीन भारतीय संगीत एवं प्रदर्शन कला
मध्यकालीन भारतीय संगीत एवं प्रदर्शन कला
आधुनिक भारतीय संगीत एवं प्रदर्शन कला
ऽ इकाई – द्वितीय : सिंधु सभ्यता से लेकर ब्रिटिश काल तक के भारत की वास्तु परम्परा
प्राचीन भारतीय वास्तुकला
मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला
आधुनिक भारतीय वास्तुकला
ऽ इकाई – चतुर्थ : सिंधु सभ्यता से लेकर ब्रिटिश काल तक के भारत की साहित्यिक परम्परा
प्राचीन भारतीय साहित्यिक परम्परा
मध्यकालीन भारतीय साहित्यिक परम्परा
आधुनिक भारतीय साहित्यिक परम्परा
2. प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत के धार्मिक आंदोलन और धर्म दर्शन।
ऽ इकाई – प्रथम: प्राचीन भारत के धार्मिक आंदोलन और धर्म दर्शन।
ऽ इकाई – द्वितीय: मध्यकालीन भारत के धार्मिक आंदोलन और धर्म दर्शन।
3. 19वीं शताब्दी के प्रारंभ से 1965 ईसवी तक आधुनिक भारत का इतिहास: महत्वपूर्ण घटनाक्रम, व्यक्तित्व और मुद्दे।
4. भारत का राष्ट्रीय आंदोलन: इसके विभिन्न चरण व धाराएं, प्रमुख योगदानकर्ता और देश के भिन्न-भिन्न भागों से योगदान।
5. 19वीं-20वीं शताब्दी में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन।
6. स्वातंत्र्र्योत्तर सुदृढ़ीकरण और पुनर्गठन-देशी रियासतों का विलय तथा राज्यों का भाषायी आधार पर पुनर्गठन।

1.
इकाई – प्रथम
सिंधु सभ्यता से लेकर ब्रिटिश काल तक के भारत की ललित कलाएं
1. चित्रकला
प्राचीन भारतीय चित्रकला
प्रश्न : गुहा-चित्रांकन (Cave Painting)
उत्तर: पुरापाषाणिक मानव द्वारा उत्कीर्ण गुफाचित्र- गुहा चित्रांकन
प्रश्न: प्रागैतिहासिक पाषाण चित्रकला (इससे संबंधित स्थलों से 15 व 50 शब्दों के प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनका वर्णन एक साथ नीचे किया जा रहा है।)
उत्तर: प्रागैतिहासिक युग के पाषाण चित्रों का पता ’तमिलनाडु’, ’आंध्रप्रदेश’, ’छोटा नागपुर’, ’उड़ीसा’, ’उत्तरप्रदेश’ और ’नर्मदा उपत्यका’ आदि स्थानों से भी चला है।
पहाड़गढ़
ग्वालियर से 150 किलोमीटर दूर ’मोरेना जिले’ में पहाड़गढ़ के निकट असान नदी के तट पर एक घाटी में लगभग 10000 ई.पू. से लेकर 100 वर्ष पूर्व के मध्य की गुफाएं व शैलचित्र प्राप्त हुये हैं। मानवाकृतियां घोड़ों, हाथी पर सवार, तीरों, भालों व धनुषों से युक्त हैं।
रायगढ़
इसी के पास ’बौतालदा’ की विशाल गुफा में हिरण, छिपकली व जंगली भैसों का अंकन है।
भीमबेटका इसकी खोज का श्रेय उज्जैन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ’वाकणकर’ को है। ये गुफाएं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में किलोमीटर दक्षिण में ‘भीमबेटका’ नामक पहाड़ी पर स्थित है। इनमें जो प्रस्तर सामग्री प्राप्त हुई है, वह 30,000 ई. पू. से 10.000 ई. पूर्व की है। पहाड़ी पर लगभग 600 प्राचीन गुफाएं प्राप्त हुई हैं। जहां करीब 275 गुफाओं में चित्रों के अवशेष प्राप्त हए हैं। यहां एक विशिष्ट चित्रसंसार रचा गया है। ऐसी विस्मयपूर्ण प्रागैतिहासिक चित्रशालाएं अन्यत्र नहीं मिलती। यहां चित्रों के दो स्तर मिले हैं। पहले स्तर के चित्रों में ’शिकार नृत्य’ हिरण, बारहसिंगा, सुअर, रीछ, जंगली भैंसे, घोडे़ हाथी एवं अस्त्रधारी घुड़सवार हैं। दूसरे स्तर पर मानवों को जानवरों के साथ अंतरंग मित्र के रूप में दिखाया है।
मन्दसौर
मन्दसौर जिले में ’मोरी’ स्थान पर बने गुहा चित्र भी प्रसिद्ध हैं। यहां 30 पहाड़ी खोहे हैं।
होशंगाबाद
होशंगाबाद नगर (मध्यप्रदेश) नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। ’आदमगढ़ पहाड़ी’ पर बने एक दर्जन से अधिक शिलाश्रय हैं, जहां आदिमानव द्वारा मनोहारी चित्रांकन हुआ है।
आदमगढ़
आदमगढ़ की एक गुफा में एक हाथी पर चढे आखेटकों को जंगली भैंसे का आखेट करते हुए चित्रित किया है। मध्यप्रदेश में उपयुक्त स्थानों के अतिरिक्त ’रायसेन’, ’रीवा’, ’पन्ना’, ’छतरपुर’, ’कटनी’, ’सागर’, ’नरसिंहपुर’, ’बस्तर’, ’ग्वालियर’ व ’चम्बल घाटी’ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सैकडों दरियों में आदिम मानव के दैनिक जीवन की कहानी रेखाओं व रंगों में चित्रित हैं।
’भोपाल क्षेत्र’ में ’धरमपुरी गुहा मंदिर’, ’शिमलारिल’, ’बरखेड़ा सांची’, ’सेक्रैटरियेट’, ’उदयगिरी’ आदि में आदिम चित्रकला के उदाहरण प्राप्त हैं। ’ग्वालियर क्षेत्र’ में ’शिवपुरी’ के पास भी आदिम चित्र प्राप्त हुये हैं।
बिहार के प्रागैतिहासिककालीन पाषाण चित्रकला के प्रमुख क्षेत्र
इस प्रदेश में ’चक्रधरपुर’, ’सिंघनपुर’, ’शाहाबाद’ आदि स्थानों पर चित्रों में ’लेटी और शिकार करती मानवाकृतियों’ को दर्शाया है, जो शिकार की विजय पर गर्वोन्नत प्रतीत हो रही हैं। उनकी फैली भुजाएं इस भाव को सशक्त रूप से व्यक्त कर रही हैं।
सिंघनपुर
सिंघनपुर के चित्रों की खोज सन् 1910 में ’डब्ल्यू. एण्डर्सन’ ने की। तत्पश्चात् ’अमरनाथ’ व ’पर्सी ब्राऊन’ ने चित्रों का परिचय दिया। सिंघनपुर ग्राम में ’पचास’ चित्रित शिलाश्रय एवं गुफाएं मिली हैं। इसके द्वार पर ’असंयत कंगारू’ के चित्र चित्रित हैं। यही एक गुफा की दीवार पर ’जंगली सांड को पकड़ते हुये, बर्छी से छेदते हुए आखेटकों’ का मनोहारी दृश्य है व कुछ चारों ओर से उसे घेरते हुये चित्रित हैं। इसी दीवार पर एक अन्य चित्र में ’घायल भैंसा बुरी तरह तीरों से बिंधा हुआ दम तोड़ रहा है। उसके चारों ओर भाले लिये शिकारियों का दल है। इसी क्षेत्र में ’कबरा पर्वत’, ’करमागढ़’, ’खैरपुर’ तथा ’बोतालदा’ में अनेक शिलाश्रय गुफाएं प्राप्त हुई हैं।
दक्षिण भारत के प्रागैतिहासिककालीन पाषाण चित्रकला के प्रमुख क्षेत्र
दक्षिण भारत के प्रमुख स्थानों में ’रायचूर’, ’कुप्पगल्लू’ (बेलारी) तथा ’वसनवगुडी’ (बंगलौर) स्थानों पर भव्य शैलचित्र तथा कर्षण चित्र मिलते हैं।
राजस्थान के प्रागैतिहासिककालीन पाषाण चित्रकला के प्रमुख क्षेत्र
राजस्थान के चम्बल क्षेत्र में अनेक ऐसे स्थान हैं, जहां प्राचीन शैल चित्र पाये जाते हैं। कोटा नगर ’अलनिया’ नदी घाटी में शैलाश्रयों में चित्र प्राप्त हुये हैं। ये चित्र ईसा से 5,000 वर्ष पूर्व के हैं, जो गेरू रंग में चित्रित हैं। यहां ’हिरण’, ’शेर’, ’भालू’, ’बकरी’, ’गाय’, ’जंगली सांड़’ के शिकार का दृश्य व मानवाकृतियों के चित्रों की भरमार है। राजस्थान के ’झालावाड़’, ’दरा’, ’भरतपुर’ और ’गागरोन’ क्षेत्र में भी शैल चित्र पाये गये हैं।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

1 month ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

1 month ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

3 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

3 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now