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P ब्लॉक के तत्व (p block elements) , NH3 (अमोनिया का विरचन) , HNO3 का विरचन , H2SO4 ,
P ब्लॉक के तत्व (p block elements) : ऐसे तत्व जिनमे अंतिम इलेक्ट्रॉन P- उपकोश में भरा जाता हो , P block के तत्व कहलाते है।
P ब्लॉक में 13 से लेकर 18 तक वर्ग आते है।
P ब्लाक में धातु , अधातु , उपधातु का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
हीलियम (He) को छोड़कर P block के तत्वों का अंतिम सामान्य इलेक्ट्रॉन विन्यास nS2 nP1-6 होता है।
इस ब्लॉक में प्रत्येक वर्ग का प्रथम सदस्य अपने वर्ग से भिन्न व्यवहार दर्शाता है , इसके निम्न कारण है –
(i) आकार छोटा
(ii) आयनन एन्थैल्पी उच्च
(iii) विद्युत ऋणता अधिक
(iv) d कक्षक अनुपस्थित।
15 वें वर्ग सदस्य : निक्कोजन तत्व (दम घोटने वाले तत्व)
16 वें वर्ग के सदस्य : चैल्कोजन तत्व (अयस्क बनाने वाले तत्व)
17 वें वर्ग के सदस्य : हैलोजन तत्व (लवण बनाने वाले तत्व)
18 वें वर्ग के सदस्य : एरोजन तत्व (गैसीय तत्व)
औद्योगिक विधियाँ (विरचन)
(i) NH3 (अमोनिया का विरचन) : उद्योगों में अमोनिया का निर्माण हाबर प्रक्रम द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रम में N2 (नाइट्रोजन) व H2 (हाइड्रोजन) गैसों की क्रिया आपस में करवाकर अमोनिया बनाई जाती है।
N2 + 3H2 ⇌ 2NH3
यह अभिक्रिया उत्क्रमणीय होती है इस अभिक्रिया में चार मोल अभिकारक से दो मोल उत्पाद बनते है अत: अभिक्रिया में दाब का उच्च रखना आवश्यक है।
अब हाबर प्रक्रम में NH3 की लब्धि बढ़ाने की आवश्यक परिस्थितियां निम्न है –
उत्प्रेरक : K2O व Al2O3 युक्त आयरन ऑक्साइड।
ताप : 700 k (लगभग)
दाब : 200 atm या 200 x 105 Pa
(2) HNO3 का विरचन : औद्योगिक स्तर पर HNO3 का निर्माण ओस्टवाल्ड प्रक्रम द्वारा किया जाता है।
यह प्रक्रम तीन चरणों में संपन्न होता है।
चरण – 1st : इस चरण में अमोनिया की क्रिया प्लेटिनम (Pt) या रेडियम उत्प्रेरक की उपस्थिति में वायुमण्डलीय ऑक्सीजन से करवाई जाती है , इससे NO गैस बनती है।
4NH3 + 5O2 → 4NO + 6H2O
चरण – 2nd : इस चरण में प्रथम चरण से प्राप्त NO गैस ऑक्सीजन से क्रिया करके NO2 गैस बनाती है।
2NO + O2 → 2NO2
चरण – 3rd : द्वितीय चरण से प्राप्त NO2 गैस जल से क्रिया करके HNO3 का निर्माण करती है तथा इसके साथ NO भी बनती है। यह NO पुनर्चक्रित हो जाती है।
3NO2 + H2O → 2HNO3 + NO
इस प्रक्रम से प्राप्त HNO3 को प्रभाजी आसवन द्वारा 68% तक सांद्रित कर सकते है। इससे अधिक सांद्रता का HNO3 प्राप्त करने के लिए इसका H2SO4 द्वारा निर्जलीकरण करवाया जाता है। इससे 98% सांद्रता का HNO3 प्राप्त होता है।
ओस्टवाल्ड प्रक्रम में HNO3 की लब्धि बढ़ाने के लिए आवश्यक परिस्थितियां निम्न है –
उत्प्रेरक : Pt या Rh
ताप : 500k
दाब : 9 bar
(3) H2SO4 का विरचन : आद्योगिक स्तर पर H2SO4 का निर्माण सम्पर्क विधि संस्पर्स प्रक्रम द्वारा किया जाता है।
यह प्रक्रम चार चरणों में संपन्न होता है।
चरण I : इस चरण में ठोस सल्फर को ऑक्सीजन की उपस्थिति में सल्फर बर्नर में जलाया जाता है। इससे SO2 गैस बनती है।
S + O2 → SO2
यह SO2 गैस अशुद्ध होती है , इसे शुद्ध करने के लिए विभिन्न कक्षों से गुजारा जाता है अत: इसमें उपस्थित धुल की अशुद्धियाँ जल में विलेय अशुद्धियाँ एवं आर्सेनिक की अशुद्धियाँ दूर हो जाती है तथा शुद्ध SO2 प्राप्त होती है।
चरण II : इस चरण में प्रथम से प्राप्त शुद्ध SO2 गैस ,V2O5 उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऑक्सीजन से क्रिया करके SO2 गैस बनाती है। यह क्रिया सम्पर्क कक्ष में होती है।
2SO2 + O2 → 2SO3
चरण III : द्वितीय चरण से प्राप्त SO3 गैस को अवशोषण कक्ष में H2SO4 द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
इससे ओलियम (ollium) का निर्माण होता है।
SO3 + H2SO4 → H2S2O7
चरण IV : तृतीय चरण से प्राप्त ओलियम को तनु कक्ष में जल द्वारा तनु किया जाता है तथा वांछित सांद्रता का H2SO4 बना लेते है।
H2S2O7 + H2O → 2H2SO4
सम्पर्क प्रक्रम में H2SO4 की लब्धि बढ़ाने के लिए आवश्यक परिस्थतियाँ निम्न है –
उत्प्रेरक : V2O5
ताप : 720 k
दाब : 2 bar
इस प्रक्रम में निम्न कक्ष होते है –
(1) सल्फर बर्नर (sulpher burner) :
S + O2 → SO2
(2) धुल कक्ष (dust filter chamber) : इस कक्ष में SO2 गैस में उपस्थित धुल की अशुद्दियां दूर हो जाती है।
(3) धावन मीनार (washing tower) : इस कक्ष में ऊपर से जल की फुहार गिराई जाती है अत: यहाँ SO2 गैस में उपस्थित जल में विलेयशील अशुद्धियाँ दूर हो जाती है।
(4) शुष्कन मीनार (drying tower) : इस कक्ष में ऊपर से सान्द्र H2SO4 गिराया जाता है , यह आद्रता ग्राही होता है अत: यह SO2 गैस में उपस्थित नमी को अवशोषित कर लेता है। इस प्रकार इस कक्ष से शुष्क SO2 प्राप्त होती है।
(5) शोधन कक्ष (purifier chamber) : इस कक्ष में जिलेटिनी Fe(OH)3 भरा होता है जो SO2 गैस में उपस्थित आर्सेनिक की अशुद्धियो को दूर कर देता है।
यदि आर्सेनिक की अशुद्धियाँ दूर नहीं होती है तो यह आगे चलकर V2O5 के लिए उत्प्रेरक विष का कार्य करती है। इस कारण H2SO4 का निर्माण मंद गति से होता है।
शोधन कक्ष से SO2 गैस को परिरक्षण कक्ष में भेजा जाता है। यहाँ टिंडल प्रभाव के कारण गैस में उपस्थित अशुद्धि के कण चमकते हुए दिखाई देते है अत: यदि गैस में अशुद्धि उपस्थित होती है तो शोधन पुनः दोहराते है।
(6) पूर्व तापक कक्ष (preheater chamber) : इस कक्ष में SO2 का ताप बढ़ाकर अभिक्रिया के अनुकूल किया जाता है।
(7) सम्पर्क कक्ष (contact chamber) :
2SO2 + O2 → 2SO3
(8) अवशोषण कक्ष (absorbtion chamber) :
SO3 + H2SO4 → H2S2O7
(9) तनु कक्ष (Dilution chamber) :
H2S2O7 + H2O → 2H2SO4
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