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oxidation state of second and third transition series in hindi , द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रृंखला के संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था

    1. द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रृंखला के संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था oxidation state of second and third transition series in hindi
    2. ऑक्सीकरण अवस्था– द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रृंखला के संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाएं सारणी 2.5 में दी गई हैं।

    प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं ( सारणी 1.4 ) से उपर्युक्त सारणी की तुलना करने पर हम पाते हैं कि भारी संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं का भी हल्के संक्रमण तत्वों जैसा ही क्रमण पाया जाता है। इनकी मुख्य समानताएं निम्न प्रकार है :

    1. श्रृंखलाओं के आरम्भ तथा अन्त में आने वाले तत्वों की कम ऑक्सीकरण अवस्थाएं ज्ञात हैं | I B वर्ग के Y तथा La अपने पूर्ववर्ती तत्व Sc की भांति केवल +3 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। तीनों संयोजी इलेक्ट्रॉन खोकर ये तत्व d° विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार, Ag तथा Au के लिए + ! अवस्था सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था है। इस अवस्था के स्थायित्व को 10 विन्यास के स्थायित्व के साथ जोड़ा जाता है।
    2. श्रृंखला के मध्य में स्थित तत्व बहुत सी ऑक्सीकरण अवस्थाएं प्रदर्शित करते हैं। ये अवस्थाए तत्वों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ बढ़ते हैं तथा VIIIB के लिए अधिकतम पहुंचने के पश्चात् धीरे-धीरे घटने लगती है।

    प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्वों तथा इन तत्वों में मुख्य अन्तर यह पाया जाता है कि इन तत्वों में उच्च ऑक्सीकरण अवस्था प्राप्त करने की अत्यधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। यह देखा जा सकता है कि जहां प्रथम संक्रमण श्रृंखला के लिए + 2 ऑक्सीकरण अवस्था सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था है (SC के अतिरिक्त सभी तत्वों के लिए यह अवस्था ज्ञात है एवं स्थाई है), भारी तत्वों के लिए यह अति असामान्य अवस्था है— केवल Pd(II) तथा Pt(II) प्रमुख द्विधनीय प्रजातियां हैं। स्थायित्व की दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि एक संक्रमण वर्ग में ऊपर से नीचे उतरने पर निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्था का अस्थायित्व तथा उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। इस कारण, मध्यवर्ती तत्वों के लिए निम्नतर तथा उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्थाएं लगभग समान रूप से स्थाई हैं। जबकि प्रथम तथा तृतीय तत्व परस्पर विपरीत आचरण दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए कोबाल्ट के लिए दोनों Co(II) तथा Co(III) ज्ञात हैं, इस वर्ग के भारी तत्व Rh तथा Ir + 3 या इससे उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार, क्रोमियम के लिए Cr(III) अवस्था सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मॉलिब्डेनम तथा टंगस्टेन दोनों ही इस अवस्था में प्रबल अपचायक होते हैं। इससे अतिरिक्त, +6 अवस्था इन तत्वों के लिए सामान्य तथा स्थाई अवस्था है जबकि इस अवस्था में Cr (VI) एक प्रबल ऑक्सीकारक हैं।

    तत्वों की स्थाई ऑक्सीकरण अवस्थाओं का विस्तृत विवरण इस अध्याय में आगे दिया गया है।

    1. उपसहसंयोजन यौगिक बनाने की प्रवृत्ति– भारी संक्रमण तत्वों में भी उपसहसंयोजन यौगिक बनाने की प्रवृत्ति पाई जाती है, यद्यपि यह प्रथम श्रंखला के तत्वों की तुलना में कम होती है। इस प्रकार के आचरण का सम्बन्ध अन्तराल में d-कक्षकों के फैलाव से जोड़ा जाता है। 3d – कक्षक सघन (Compact ) हैं जबकि 4d तथा 5d कक्षक अन्तराल में दूर तक फैले रहते हैं अर्थात् विसरित ( diffused) होते हैं। बड़े आकार के कारण भारी संक्रमण तत्व सामान्य रूप से 6 समन्वय संख्या प्रदर्शित करते हैं, यद्यपि उच्च समन्वय संख्या वाले भी बहुत से यौगिक ज्ञात है। दूसरी और हल्के समवर्गीय तत्वों के लिए निम्नतर समन्वय संख्या भी अतिसामान्य पाई गई है। आगे तुलनात्मक अध्ययन में इस बिन्दु को भी अधिक विस्तार से बताया गया है।

     3d अनुरूपी तत्वों से तुलना (Cimparison with 3d analogues )

    सामान्यतः एक वर्ग में जैसे-जैसे हम नीचे उतरते हैं, तत्वों के गुण लगभग नियमित रूप से परिवर्तित होते चले जाते हैं। एक तत्व अपने हल्के समवर्गीय तत्व से जितना भिन्न होता है लगभग उतनी ही उसकी भिन्नता भारी तत्व से पाई जाती है। तथापि, संक्रमण धातुओं के गुणों में इस प्रकार का नियमित परिवर्तन नहीं पाया जाता है। आवर्त सारणी के त-खण्ड वर्गों में तीन तत्व होते हैं। जिनमें इलेक्ट्रॉन 3d. 4d तथा 5d कक्षकों में प्रवेश करते हैं। लगभग सभी वर्गों में यह देखने को मिलता है कि दूसरे तथा तीसरे तत्व गुणों में काफी समानता प्रदर्शित करते हैं तथा ये दोनों तत्व अपने सबसे हल्के समवर्गीय तत्व से काफी भिन्न होते हैं, जबकि तीनों तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लगभग समान होते हैं। किसी संक्रमण वर्ग के सदस्यों के गुणों में मुख्य अन्तर उनकी त्रिज्या तथा ऑक्सीकरण अवस्थाओं के स्थायित्व में पाया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक संक्रमण वर्ग को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- सबसे हल्का तत्व जिसकी अपनी अलग रसायन होती है तथा शेष दोनों तत्वों का युग्म जिसकी रसायन में काफी समानता पाई जाती है।

    हमारा यह तात्पर्य नहीं हैं कि तीनों संक्रमण श्रेणियों के गुणों में आपस में कोई समानता नहीं पाई जाती है। सभी संक्रमण तत्व उन अधिकांश विशिष्ट गुणों को प्रदर्शित करते हैं जो उनसे अपेक्षित है तथा संक्रमण वर्ग के तीनों तत्वों के गुणों में काफी समानता पाई जाती है। एक वर्ग के सभी तत्व एक सी ऑक्सीकरण अवस्थाएं प्रदर्शित करते हैं। लेकिन ऑक्सीकरण अवस्थाओं के आपेक्षिक स्थायित्व में अन्तर पाया जता है। इसी प्रकार सभी तत्व रंगीन यौगिक बनाते हैं लेकिन आयनों के रंग में अन्तर पाया जाता है। सभी तत्वों उपसहसंयोजक यौगिक ज्ञात हैं लेकिन उनकी प्रकृति, स्थायित्व तथा चुम्बकी भिन्न-भिन्न होते हैं। भारी तत्वों की प्रमुख विशेषताओं का विवेचन ऊपर किया गया है तथा प्रथम संक्रमण श्रृंखला के विशिष्ट गुणों के बारे में प्रथम अध्याय में बताया गया है, आगामी पृष्ठों में इनका तुलनात्मक विवेचन किया गया है।

    1. आयनिक त्रिज्या (Ionic radii)- यह पूर्व में बताया जा चुका है कि 4d तथा 5d ऊर्जा स्तरों के मध्य 4∫कक्षक पड़ते हैं जिनमें इलेक्ट्रॉन लैन्थेनम के पश्चात् भरना आरम्भ हो जाते हैं। इन 4/ इलेक्ट्रॉनों के आंशिक परिरक्षण (Shielding) के कारण ज्यों-ज्यों ये स्तर भरते जाते हैं लैन्थेनम से ल्यूटेशियम तक परिमाणु तथा आयनिक त्रिज्याएं त्यों त्यों कम होती जाती है तथा सभी लैन्थेनाइडों के आकार में जो कुल कमी आती है, वह लगभग उतनी ही होती है जितनी एक वर्ग में पांचवें आवर्त के तत्व के आकार में वृद्धि अपेक्षित है। इस प्रकार लैन्थेनाइड श्रृंखला का प्रथम तत्व सीरियम सबसे बड़ा तथा अन्तिम सदस्य ल्यूटेशियम सबसे छोटा होता है। इन दोनों तत्वों की त्रिज्याओं का अन्तर लैन्थेनाइड संकुचन (Lanthanide contraction) कहलाता है जिसके बारे में अध्याय 4 में बताया गया है। चूंकि लैन्थेनाइड संकुचन तथा पांचवें आवर्त से छठे आवर्त के तत्वों के लिए अपेक्षित वृद्धि समान है, लैन्थेनाइडों के बाद आने वाले तत्वों में ये दोनों प्रभाव परस्पर निरस्त करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप तीसरी संक्रमण श्रृंखला के सदस्य आकार में द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के समान होते हैं यद्यपि लैन्थेनाइडों के पूर्व आने वाले 5- खण्ड तत्व समवर्गीय हल्के तत्व की तुलना में बड़े होते हैं। तुलना के लिए, चौथे, पांचवे तथा छठे आवर्तों के s तथाd खण्ड तत्वों की त्रिज्याएं सारणी 2.6 में दी गई हैं जिन्हें देखने से स्पष्ट पता चलता है कि द्वितीय संक्रमण श्रृंखला के सदस्य 3d तत्वों की तुलना में लगभग 0.2 A बड़े हैं लेकिन 4d तथा Sd तत्व लगभग समान आकार के हैं:

    IIA वर्ग के तत्व, क्षारीय मृदा धातुएं, संक्रमण तत्व नहीं हैं। यहां ये केवल लैन्थेनाइड संकुचन का प्रभाव दिखने के लिए शामिल किये गये हैं ।

    चूंकि लैन्थेनाइड संकुचन के कारण अन्तिम तत्व सिकुड़ जाते हैं, उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि प्रभाव आरम्भिक तत्वों के लिए अधिकतम होता है जो दायीं ओर चलने पर हल्का पड़ता जाता है तथा संक्रमण श्रृंखला के अन्त तक पहुंचते पहुंचते लगभग समाप्त हो जाता है। यही कारण है कि आरम्भ में अन्तिम तत्वों की आयनिक एवं परमाणु त्रिज्याएं लगभग समान रहती है, प्लेटीनम धातुओं में आकार में विचारणीय अन्तर पाया जाता है जबकि कॉपर समूह में Ag तथा Au के मध्य एवं जिंक समूह में Cd तथा Hg के मध्य समानता के बहुत कम पायी जाती हैं।

    1. ऑक्सीकरण अवस्थाएं- प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्वों की तुलना में भारी संक्रमण तत्वों के लिए उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएं अपेक्षाकृत अधिक स्थायी होती है । उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाओं के स्थायित्व का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि हल्के संक्रमण तत्वों के उच्च ऑक्सीकरण अवस्था वाले यौगिक आसानी से अपचयित हो जाते हैं, जबकि भारी तत्वों में इन ऑक्सीकरण अवस्थाओं से अपचयित होने की बहुत कम प्रवृत्ति पाई जाती है। वास्तव में, भारी तत्वों के उच्च ऑक्सीकरण अवस्था से इतने अधिक यौगिक ज्ञात हैं कि ये अवस्थाएँ इन तत्वों के लिए सामान्य अवस्थाएँ प्रतीत होती हैं। संक्रमण तत्वों की सर्वाधिक स्थाई ऑक्सीकरण अवस्थाएँ निम्न सारणी में दी गई हैं:

    यह देखा जा सकता है कि ऊपर दिये गये ऑक्सीकरण अवस्था के स्थायित्व की रूपरेखा जटिल है तथा यदि हम इसे सामान्य नियम का रूप देना चाहें तो हमें उसके अपवाद अवश्य मिल जायेंगे। तथापि, भारी संक्रमण तत्वों के लिए उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ सामान्य एवं स्थायी है जबकि हल्के समवर्गीय तत्वों के लिए निम्नतर अवस्थाएँ सामान्य एवं स्थायी हैं। इसके अतिरिक्त, प्रारम्भिक तत्वों की रसायन में सभी d तथा इलेक्ट्रॉन योगदान करते हैं जिससे वर्ग संख्या जितनी ऑक्सीकरण अवस्था ही सर्वाधिक स्थाई ऑक्सीकरण अवस्था होती है। लेकिन श्रृंखला में जब एक बार d’ विन्यास प्राप्त हो जाता है। (VII B वर्ग में) तो उसके बाद में आने वाले तत्वों में सभी इलेक्ट्रॉन बंधन में भाग नहीं लेते। इसका परिणाम यह होता है कि उच्च ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करने वाले तत्व d-खण्ड में करते हैं। भारी संक्रमण श्रृंखलाओं में अधिकतम स्थायी अवस्था दांयी ओर बढ़ने पर बढ़ती है तथा 4- बायीं ओर स्थित होते हैं जबकि दायें छोर पर स्थित संक्रमण निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित खण्ड के मध्य में स्थित VII B वर्ग तत्व Tc तथा Re के लिए अधिकतम +7 हो जाती है। द्वितीय तथा तृतीय संक्रमण श्रृंखलाओं के दायीं ओर स्थित तत्वों की क्रियाशीलता कम हो जाती है तथा उनमें धालिका अवस्था में अपचयित होने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। यही कारण है कि प्लेटीनम धातुएँ. स्वर्ण तथा कर मात्रा में रजत प्रकृति में स्वतन्त्र अवस्था में पाये जाते हैं

    उपर्युक्त विवेचन के पक्ष में बहुत से प्रमाण हैं। Cr (III) के बहुत बड़ी संख्या में सामान्य तथा संकुल यौगिक ज्ञात हैं, जबकि इसी वर्ग के भारी तत्व Mo तथा W के लिए +3 अवस्था अभिक्रिया की किन्हीं भी शर्तों (Conditions) में स्थाई नहीं पाई गई हैं। इस ऑक्सीकरण अवस्था से जो यौगिक निर्मित होते हैं। उनमें से किसी का भी उल्लेखनीय स्थायित्व नहीं होता। पुनः Cr (VI) की बहुत कम रसायन ज्ञात है क्योंकि इस अवस्था वाले यौगिक इतने प्रबल ऑक्सीकारक हैं कि वे अति दुर्बल अपचायकों से भी अपचयित हो जाते हैं जबकि Mo (VI) तथा W (VI) अत्यधिक स्थाई है, लेकिन Tc तथा Re के +2 ऑक्सीकरण अवस्था से मात्र कुछ संकुल ज्ञात है। दूसरी ओर, +7 ऑक्सीकरण अवस्था वाले TCO4  तथा ReO4  ऑक्सी आयन क्षारीय माध्यम में स्थायी है, जबकि MnO4 का बहुत आसानी से अपचयन हो जाता है। यद्यपि Co(II) एक बहुत बड़ी संख्या में चतुष्फलकीय तथा वर्गाकार समतलीय यौगिक बनाता है तथा सामान्य जलीय रसायन में यह ऑक्सीकरण अवस्था इसकी विशिष्ट ऑक्सीकरण अवस्था भी है. Rh(II) तथा Ir (II) दुर्लभ हैं तथा अपेक्षाकृत महत्वहीन अवस्थाएँ हैं ।

    सभी संक्रमण वर्गों की विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं का संक्षेप में विवेचन नीचे किया गया है :-

    III B वर्ग- Sc, Y, La तथा Ac की रसायनों का अध्ययन करने से पता चलता है कि इनकी +3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रमुख ऑक्सीकरण अवस्था है जिससे ये तत्व आयनिक यौगिक बनाते हैं। इन तत्वों के लिए अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ अज्ञात हैं।

    IV B वर्ग- Ti, Zr तथा Hf के लिए वर्ग ऑक्सीकरण अवस्था +4 सर्वाधिक स्थाई तथा प्रमुखतम ऑक्सीकरण अवस्था है। IV B वर्ग के तत्वों के लिए दूसरी महत्वपूर्ण ऑक्सीकरण अवस्था + 3 है | Ti के लिए कुछ अन्य निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी ज्ञात हैं। तथापि, निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्थाओं से सभी यौगिक तीव्रता से +4 ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत हो जाते हैं।

    VB वर्ग- यहां भी वर्ग में नीचे उतरने पर निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्था का स्थायित्व कम होने लगता है। फलतः यद्यपि V, Nb तथा Ta + 5 से 1 तक सभी ऑक्सीकरण अवस्थाएं प्रदर्शित करते हैं, लेकिन सामान्य स्थिति में वैनेडियम की सर्वाधिक स्थाई ऑक्सीकरण अवस्था +4 जबकि Nb तथा Ta की सबसे अधिक स्थाई ऑक्सीकरण अवस्था +5 है। निम्नतर ऑक्सीरकण अवस्थाएं प्रबल अपचायकहैं। + 4 अवस्था से Nb तथा Ta के जो यौगिक ज्ञात हैं उनमें इनके हैलाइड प्रमुख हैं जबकि वैनेडियम के लिए VO2+ (वैनेडायल) आयन विशिष्ट रूप से स्थाई हैं।

    VIB वर्ग- इस वर्ग में भी दोनों भारी तत्व (Mo तथा W) एक दूसरे से अत्यधिक समानता प्रदर्शित करते हैं तथा सबसे हल्के तत्व Cr से काफी भिन्न हैं। यह तथ्य इन तत्वों की विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं के आपेक्षिक स्थायित्व के अध्ययन से भी प्रतिबिम्बित होता है – इनकी +6 से – 2 ऑक्सीकरण अवस्थाएँ ज्ञात हैं।

    जैसा कि ऊपर बताया गया है, + 6 ऑक्सीकरण अवस्था Mo तथा W के लिए विशेष रूप से स्थाई है। +5 व + 4 अवस्थाओं से ये तत्व, मुख्य रूप से जलीय माध्यम में, बहुत से यौगिकों का निर्माण करते हैं जबकि Cr के लिए ये अवस्थाएँ अत्यधिक अस्थाई कुछ मध्यवर्ती (intermediate ) यौगिकों के लिए ही ज्ञात हैं। क्रोमियम के लिए + 3 ऑक्सीकरण अवस्था सबसे अधिक स्थाई हैं लेकिन Mo तथा W के इस ऑक्सीकरण अवस्था से नगण्य स्थाई यौगिक ज्ञात हैं। Cr (II) प्रबल अपचायक है तथा आयनिक रूप में इसके बहुत से यौगिक बनाये जा चुके हैं जबकि Mo (II) तथा W (II) स्थाई यौगिकों का निर्माण धातु-धातु बंध बनाकर करते हैं- सामान्य यौगिकों का अस्तित्व नहीं के बराबर है।

    VII B वर्ग- हम जानते हैं कि टैक्नीशियम प्रकृति में नही पाया जाता तथा कृत्रिम रूप से ही बनाया जाता है। कम मात्रा में उपलब्ध होने तथा रेडियोसक्रिय प्रकृति के कारण Tc का बहुत कम सीमा तक अध्ययन किया जा सका है । अतः तीनों तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं के आपेक्षिक स्थायित्व का अध्ययन अधिकांशतः सम्भव नहीं हो पाता है। तथापि, जिस प्रकार की समानताएं तथा विषमताएँ अन्य वर्गों में पाई गई हैं, और इस कारण से इस वर्ग में भी अपेक्षित हैं, VII B वर्ग में पाई जाती है।

    मैंगनीज की + 2 ऑक्सीकरण अवस्था सर्वाधिक स्थाई अवस्था है। इस अवस्था में Mn (II) धनायन उच्च चक्रण अवस्था में होता है तथा इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास अर्धपूर्ण as होता है। भारी तत्वों के लिए यह अवस्था महत्वहीन है। इस वर्ग में अन्य विषमता +7 ऑक्सीकरण अवस्था के लिए देखने को मिलती है- Mn (VII) अवस्था से यौगिक, उदाहरण के लिए परमैंगनेट आयन, MnO4, अति प्रबल ऑक्सीकारक हैं जबकि TcO तथा मैंगनीज की तुलना में दोनों भारी तत्वों के लिए अधिक स्थायी होती हैं। इस वर्ग में सर्वाधिक इलेक्ट्रॉन (7) बंधन के लिए उपलब्ध हैं, अतः ऑक्सीकरण अवस्थाओं का सबसे बड़ा परिसर (Range) इन तत्वों के लिए देखने को मिलता है।

    VIII B वर्ग (i) आयरन, रूथेनियम तथा आस्मियम – आयरन के लिए सर्वोच्च ऑक्सीकरण अवस्था +6 ऑक्सीऋणायन में ज्ञात है जो बड़ी आसानी से अपचयित हो जाता है। दूसरी ओर Ru तथा Os के लिए + 8 ऑक्सीकरण अवस्था भी ज्ञात है । अन्तिम दोनों श्रृंखलाओं के लिए ज्ञात उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था परमाणु संख्या बढ़ने के साथ बढ़ती हुई इन दोनों भारी तत्वों के लिए अधिकतम हो जाती हैं और इस प्रकार अन्य किसी तत्व के लिए इतनी उच्च ऑक्सीकरण अवस्था नहीं पाई जाती | Ru (VIII) निश्चित रूप से Os(VIII) की तुलना में कम स्थायी है। इन दोनों तत्वों के गुणों में भी काफी समानता पाई जाती है लेकिन यह समानता इतनी अधिक नहीं होती जितनी पूर्ववर्ती वर्गों के अन्तिम तत्वों के लिए पाई जाती है। इन तत्वों के लिए अति सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ इस प्रकार हैं: Fe के लिए +2 तथा + 3, Ru के लिए +3 तथा Os के लिए +4 इसके अतिरिक्त, निम्नतर ऑक्सीकरण अवस्थाओं से जहां Fe की विस्तृत (तथा Ru के लिए इससे कम) जलीय धनायनिक रसायन ज्ञात है Os के लिए ऐसी रसायन लगभग अज्ञात है।

    (ii) कोबाल्ट, रोडियम तथा इरीडियम- इन तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था की असाधारण विशेषता यह है कि ऑक्सीकरण अवस्था का परिसर (range) पिछले त्रिक पर सबसे बड़ा होने के बाद अब घटने लगता है। यह (n-1) d इलेक्ट्रॉनों के बढ़ते स्थायित्व को प्रदर्शित करता है क्योंकि अब d इलेक्ट्रॉनों के लिए नाभिक का स्थायित्व इतना अधिक बढ़ जाता है कि सभी संयोजी इलेक्ट्रॉन बंधन में भाग लेने में असमर्थ होते हैं । परिणामस्वरूप Rh तथा Ir के लिए +6 से अधिक तथा Co के लिए +5 से अधिक कोई ऑक्सीकरण अवस्था ज्ञात नहीं है। वास्तव में Co के लिए +4 व +5 अवस्था से तथा Rh व Ir से +5 व +6 अवस्था से बहुत कम यौगिक ज्ञात है । कोबाल्ट के लिए + 2 तथा +3 सर्वाधिक सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएं हैं। जलीय विलयनों में Co (III) भी अपेक्षा Co (II) अधिक स्थाई है लेकिन + अवस्था से यह तत्व अपेक्षाकृत अधिक स्थाई संकुल बनता है । Rh तथा Ir दोनों तत्वों के लिए +3 ऑक्सीकरण अवस्था सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । -ग्राही लिगन्डों के साथ के दोनों तत्व + 1 अवस्था से भी स्थाई यौगिक बनाते है। तथापि, यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि पूर्ववर्ती वर्गों की तुलना में आवर्त सारणी के इस स्तम्भ में भारी तत्वों के मध्य समानता कम पाई जाती है तथा, यद्यपि Co की तुलना में Rh तथा Ir के मध्य अधिक समानता पाई जाती है, तथापि इन दोनों भारी तत्वों के आचरण में महत्वपूर्ण असमानताएँ भी पाई जाती है।

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