JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Uncategorized

अन्य पिछड़ा वर्ग किसे कहते हैं ओबीसी में कौन-कौन सी जाति आती है Other Backward Class in hindi

Other Backward Class in hindi OBC castes list name अन्य पिछड़ा वर्ग किसे कहते हैं ओबीसी में कौन-कौन सी जाति आती है ?

प्रस्तावना
अन्य पिछड़ा वर्ग या जातियां एक संवैधानिक श्रेणी है जिसमें मुख्यतः सामाजिक रूप से पिछड़ी शूद्र जातियां आती हैं। पारंपरिक स्तरीकरण व्यवस्था के मध्यक्रम में स्थित जातियां इसकी घटक हैं। इस प्रकार यह द्विज और अछूत जातियों के बीच की मध्यवर्ती सामाजिक परत है। दूसरे शब्दों में यह गैर-अछूत हिन्दू जातियों का एक स्तर है, जो पारंपरिक सामाजिक स्तरीकरण में निम्न क्रम में स्थित हैं। यह एक विषम श्रेणी है जिसमें ऐसी अनेक प्रभावी जातियां शामिल हैं, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से अनुसूचित जातियों/जनजातियों के समान वंचित हैं।

भारतीय समाज के ये तबके शिक्षा और व्यवसाय के क्षेत्र में पारंपरिक रूप से विशेषाधिकार प्राप्त जातियों या अगड़ों से पीछे हैं। हालांकि इन जातियों को अछूतों की तरह छुआछूत और सामाजिक पार्थक्य जैसी समस्याओं से कभी नहीं जूझना पड़ा है, लेकिन सवर्णों के सामने उनकी हीनता को परंपरागत रूप से विधिसम्मत माना जाता रहा है। प्रस्थिति जन्य अशक्तताएं इन्हें जन्म से मिलती थी, जो उनकी उन्नति और समृद्धि में बाधक बनी रहीं। गिने-चुने मामलों में कुछ अ-हिन्दू समुदाय भी इस श्रेणी में शामिल कर लिए गए हैं। मार्क गैलेंटर के अनुसार इस श्रेणी का स्वरूप हर राज्य में अलग-अलग है।

अन्य पिछड़ी जातियों में आंतरिक भेद
यह स्पष्ट है कि ‘अन्य पिछड़ा वर्ग‘ की परिभाषा में जिन तबकों को शामिल किया गया है, वे समरूप नहीं है। उनमें स्पष्ट भेद कर पाना कठिन है। सवर्णों और अनुसूचित जातियों के बीच का होने के कारण समाज के इन तबकों में विविध सामाजिक-आर्थिक समुदाय शामिल हैं। इस विविधता के कारण इस तरह की सामाजिक संरचना बड़ी ढीली-ढाली होती है। इस श्रेणी की जातियां स्तरीकरण व्यवस्था में अलग-अलग स्थित रहती हैं और आर्थिक दृष्टि से भी वे विषम पाई जाती हैं। इनमें से कुछ चुनिंदा जातियां ही भूस्वामी हैं। इन तबकों में भूमि वितरण चुनिंदा जातियों के पक्ष में अधिक है, जिसके चलते इनमें अधिकांश जातियों के लोग गरीब और वंचित हैं। उनमें भी हाशिए के लोगों की वंचना उन्हें अन्य लोगों के लिए बटाईदारी करने, खेतिहर मजदूर बनने और पारंपरिक प्रकार्यात्मक सेवाएं प्रदान करने के लिए बाध्य करती है। डी.एल. सेठ के अनुसार इस श्रेणी में ऐसे वंचित समूह भी शामिल हैं जिनकी दशा कभी-कभी अनुसूचित जातियों से भी बदतर दिखाई देती है। इसमें उपरी स्तर भूधर कृषकों का है। उनके नीचे भूमिहीन, बटाईदार किसान, कारीगर और सेवादार जातियां आती हैं जो भूधर जातियों के आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण में रहती हैं। इन अन्य पिछड़ी जातियों में हाशिए की ये जातियां अतीत में उन लोगों के लिए बेगार, बंधुआ मजदूरी, घरेलू नौकर और कहार का काम करती रही हैं, जिन पर वे अपने जीवन-निर्वाह के लिए आश्रित थीं। तीज-त्योहारों पर जमींदार उनसे नजराने के रूप में नकदी इत्यादि वसूला करते थे।

 राज्यवार वितरण
अन्य पिछड़े वर्गों के लिए गठित किए गए पहले आयोग के अनुसार अन्य पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 3.8 प्रतिशत थी। पर दूसरे आयोग जिसे हम मंडल आयोग के नाम से जानते हैं, उसके अनुसार उनकी कुल जनसंख्या 52 प्रतिशत है। देश के विभिन्न राज्यों में पिछड़ी जातियों की संख्या इस प्रकार हैः
क्र. सं. राज्य संख्या
1. आंध्र प्रदेश 292
2. आसाम 135
3. बिहार 168
4. गुजरात 105
5. हरियाणा 76
6. हिमाचल प्रदेश 57
7. जम्मू और कश्मीर 63
8. कर्नाटक 333
9. केरल 208
10 मध्य प्रदेश 279
11. महाराष्ट्र 272
12. मणिपुर 49
13. मेघालय 37
14. नागालैंड 0
15. उड़ीसा 224
16. पंजाब 83
17. राजस्थान 140
18. सिक्किम 10
19. तमिलनाडू 288
20. त्रिपुरा 136
21. उत्तर प्रदेश 116
22. पश्चिम बंगाल 117
23. अंदमान और निकोबार द्वीपसमूह 17
24. अरुणाचल प्रदेश 90
25. चंडीगढ़ 93
26. दादरा नगर हवेली 10
27. दिल्ली 82
28. गोआ दमण और दिऊ 18
29. लक्षद्वीप 0
30. मिजोरम 5
31. पांडेचेरी 260
स्रोतः पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट (दूसरा भाग), 1980

इन समूहों को वर्ग के रूप में लेना उचित नहीं होगा। असल में ये संवृत प्रस्थिति समूहों का समुच्चय हैं। प्रस्थिति या हैसियत इनमें विरासत में मिलती है, न कि उसे अर्जित किया जाता है। इस श्रेणी में एक ओर समृद्ध और दबंग जातियां तो दूसरी ओर गरीब और वंचित तबके भी शामिल हैं, क्योंकि पारंपरिक स्तरीकरण व्यवस्था में ये जातियां एक दूसरे के निकट हैं।

बोध प्रश्न 1
1) अन्य पिछड़ा वर्ग किसे कहते हैं, पांच पंक्तियों में बताइए।
2) सही या गलत बताइएः
अन्य पिछड़ी जातियों में शामिल समूह समरूप हैंः
सही  गलत 
3) ओबीसी की श्रेणी में सबसे ज्यादा जातियां किस राज्य में शामिल हैं?
 कर्नाटक  हरियाणा केरल

बोध प्रश्न 1
1) अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) एक संवैधानिक श्रेणी हैं, जिनमें सामाजिक रूप से वंचित शूद्र जातियां शामिल हैं। वे असल में द्विज और अछूतों के बीच की मध्यवर्ती सामाजिक परत हैं।
2) गलत
3) कर्नाटक

 संस्कृतीकरण और सामाजिक गतिशीलता
स्तरीकरण व्यवस्था के मध्यक्रम में स्थित जातियां ऊंची जातियों के आचरण, उनकी विचारधारा और कर्मकांड़ों को अपनाकर गतिशीलता अर्जित करने में प्रयासरत रही हैं। मौजूदा स्तरीकरण व्यवस्था में अपना स्थान या दर्जा ऊंचा करने के लिए इन जातियों को अपनी हीनता के पारंपरिक चिन्हों, विशेषकर ऐसे चलनों को त्यागना पड़ता था, जिन्हें दूषक या गंदा माना जाता था। इस प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता ‘महान परंपरा‘ के ढांचे को पुष्ट करती थी। जाति क्रम-परंपरा में निम्न श्रेणी की जाति ऊर्ध्व गतिशीलता के प्रयास में ऊंची जातियों की जीवन-शैली और उनके आचरण की नकल करती है। पारंपरिक रूप से विधिसम्मत आरोपित या प्रदत्त सामाजिक क्रम में सांस्कृतिक और सामाजिक गतिशीलता की यह रणनीति संस्कृतीकरण कहलाती है। एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक छोटी जाति पारंपरिक जाति क्रम-परंपरा में ऊंचा दर्जा प्राप्त करने के लिए ऊंची जाति की जीवनशैली का अनुकरण करती है। यह जाति क्रम-परंपरा के भीतर एक दर्जा हासिल करने के लिए दावा भर है। उसके ढांचे को बदलने या उसे तोड़ने की चुनौती नहीं।

यह प्रक्रिया समूहों के ऊंचा दर्जा या हैसियत हासिल करने की आकांक्षा और व्यवहार की दृष्टि से उसके लिए तैयार रहने के उनके प्रयास को दर्शाता है। इस तरह के दावे को पुष्ट करने के लिए ऐसी आविष्कृत गाथाओं, किंवंदतियों का सहारा लिया जाता है, जो यह दर्शा सकें कि अतीत में इन तबकों को समाज में ऊंचा दर्जा हासिल था। अध्ययनों से पता चलता है कि प्रस्थिति उन्नयन के लिए एक रणनीति के रूप में संस्कृतीकरण का चलन देश के विभिन्न भागों में पाई जाने वाली तमाम मध्यवर्ती जातियों में खूब हुआ। महाराष्ट्र की मराठा और ढांगर, बिहार की कुर्मी और यादव, गुजरात की कोली, पश्चिम बंगाल की कईबर्ता, कर्नाटक में लिंगायत और उड़ीसा में तेली जैसी जातियों ने प्रस्थिति उन्नयन या समाज में ऊंचा दर्जा पाने के लिए संस्कृतीकरण का मार्ग अपनाया।

सामाजिक बदलाव का यह देशज और संस्कृति विशिष्ट तरीका मध्यवर्ती जातियों में भी आर्थिक रूप से समृद्ध और राजनैतिक, रूप से जागरूक तबकों ने खूब अपनाया। आर्थिक दशा में सधार आने और राजनीतिक प्रभाव बढ़ने से छोटी जातियों ने जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी आनुपातिक उन्नयन की दिशा में प्रयास करने की प्रेरणा ली। श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतीकरण के मार्ग पर चलने से पहले उस जाति समूह की आर्थिक दशा और राजनीतिक शक्ति में सुधार होना जरूरी है जो अपनी प्रस्थिति को ऊंचा उठाने की दावेदार हो। इस तरह की आकांक्षा हिन्दुत्व की महान परंपरा से घनिष्ठता की उपज है। क्रम-परंपरा में अपने आपको ऊंचा उठाने के लिए निम्न जाति के लोगों के लिए जरूरी था कि वे आर्थिक रूप से संपन्न, राजनीतिक रूप से दबंग और दृढ़ हों। यहां यह बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि संस्कृतीकरण वर्ण-व्यवस्था में स्थान संबंधी परिवर्तन को सुगम बनाता है। यह उसमें ढांचागत बदलाव ओर नहीं ले जाता। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘‘प्रतिष्ठा के पारंपरिक प्रतीकों‘‘ को हथियाने का प्रयास जब उन लोगों ने किया जो इसके अधिकारी नहीं थे, तो उसका विरोध उन लोगों ने किया अनुकरण के लिए जो इन जातियों के संदर्भ आदर्श थे। पर संस्कृतीकरण जब सापेक्षिक वंचना को कम नहीं कर पाया तो इसकी चमक फीकी पड़ गई। द्विजों की प्रस्थिति का अनुकरण करने और उनका दर्जा पाने की आकांक्षा रखने वाली जातियों के बीच असमानता को कम करने के लिए यह युक्ति अप्रासंगिक हो गई। जो लोग अवसर के मौजूदा ढांचे में महत्वपूर्ण स्थान हासिल करना चाहते थे उनके लिए तुष्टि के प्रतीकों का कोई अर्थ नहीं रह गया। उनकी शांतिप्रद और मैत्री-पूर्ण काररवाइयों ने ऊंची जातियों के वर्चस्व को कोई चुनौती नहीं दी।

पिछड़े वर्ग के आंदोलन और उनका राजनैतिक-आर्थिक उदय
सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले समाज सुधारकों के नेतृत्व में अ-ब्राह्मण जातियों का उदय एक महत्वपूर्ण घटना थी। ये समाज सुधारक मुख्यतःमध्यवर्ती जातियों के थे। यह एक ऐसी असमानता के चलन के खिलाफ दृढ़-निश्चयी प्रतिरोध का द्योतक था, जिसे न्यायोचित ठहराने की परंपरा बनी हुई है। सबसे पहले ज्योतिराव गोविंदराव फुले ने . महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए बहुजन समाज की स्थापना की, जहां चंद ब्राह्मण राज्य के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक जीवन पर हावी थे। फुले स्वयं शूद्र थे। उन्होंने औपनिवेशिक शासन में ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती दी। वर्ण-व्यवस्था के विरुद्ध उनके आंदोलन ने सत्य, विवेक और समानता पर आधारित एक नई सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने अ-ब्राह्मण लोगों के धार्मिक संस्कारों में ब्राह्मणों की सेवाओं के बहिष्कार का अभियान छेड़ा। वे ब्राह्मणों को जन साधारण और ईश्वर के बीच अवांछित बिचैलिया मानते थे।

फुले द्वारा स्थापित सत्य शोधक समाज ने ब्राह्मण विरोधी आंदोलन को अपने कार्यक्रमों के माध्यम से संस्थागत रूप दिया। वे ब्राह्मणवाद को धूर्त और स्वार्थी मानते थे, जिसकी भर्त्सना उन्होंने एक ऐसे असहाय अधिरोपण के रूप में की जिससे जाति क्रम-परंपरा में ऊंची जातियों का वर्चस्व बना रहे। इस आंदोलन की रीढ़ मुख्यतः दबंग किसान जातियां थीं जो कांग्रेस की समर्थक थीं। मगर निम्न जातियों के शोषण की जो व्याख्या महात्मा फुले ने दी, उसमें उन्होंने उसके आर्थिक और राजनैतिक पहलू को छोड़ दिया। इस शोषण की व्याख्या उन्होंने मुख्यतः संस्कृति और जातीयता के धरातल पर की। इसीलिए उन्होंने ब्राह्मणवाद से पहले प्रचलित धार्मिक परंपरा को फिर से अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने भारतीय किसानों और दिहाड़ी मजदूरों के शोषण का विरोध किया। उनके अनुसार संगठन और शिक्षा इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जरूरी थे। इस तरह के विद्रोही स्वर देश के अन्य भागों में भी उठे।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now