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Oscillatory Motion in Arbitrary Potential Well in hindi स्वैच्छिक विभव कूप में दोलन गति क्या है
Oscillatory Motion in Arbitrary Potential Well in hindi स्वैच्छिक विभव कूप में दोलन गति क्या है
स्वैन्छिक विभव कूप में दोलनी गति
(Oscillatory Motion in Arbitrary Potential Well)
सभी संरक्षी बल क्षेत्र में कण की स्थितिज ऊर्जा स्थिति का सतत् फलन (continuous function) होता है अर्थात्
U =U(x, y,z) …………………………………..(1)
और यह कण पर कार्यरत बल से निम्न समीकरण द्वारा सम्बंधित होती है।
F = – U = – (I δU/ δX +j δU/ δY + k δU/δZ) ……………………….(2)
यदि कण केवल X-अक्ष के अनुदिश गतिशील है तो कण पर कार्यरत बल
FX = – δU/δX
माना किसी कण या पिण्ड के विस्थापन से हुए स्थितिज ऊर्जा के परिवर्तन को आरेख (1) द्वारा व्यक्त किया गया है।। आरेख पर स्थित किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा की प्रवणता (slope) ΔU/ΔX उस बिन्दु पर लग रहे बल के परिमाण को प्रदर्शित करती है। अतः स्थितिज ऊर्जा वक्र के उच्चिष्ठ या निम्निष्ठ बिन्दुओं P, Q, R, S पर खींची गई स्पर्श रेखा X-अक्ष के समान्तर होने के कारण
इन बिन्दुओं पर δ/U/Δx या बल F का मान शून्य होगा। कण की इन स्थितियों को सन्तुलन स्थिति (equilibrium position) कहते हैं।
यदि उच्च स्थितिज ऊर्जा वाले बिन्दुओं Q तथा S की स्थितियों से कण को थोड़ा विस्थापित कर दें तो कण की स्थितिज ऊर्जा उच्चतम स्थितिज ऊर्जा से कम हो जायेगी और कण एक बल अनुभव करेगा जो कण को इन स्थितियों से दूर ले जायेगा। अतः अधिकतम स्थितिज ऊर्जा वाली स्थितियाँ अस्थायी सन्तुलन (unstable equibrium) की स्थितियाँ होती हैं।
अब यदि न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा P या R स्थिति से कण को थोड़ा विस्थापित कर दें तो कण की स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा से कुछ अधिक हो जायेगी। यदि विस्थापन से x का मान बढ़ता है तो विस्थापित स्थिति में U-x वक्र की प्रवणता δUδX धनात्मक होगी जिससे कण पर बल F=- δU/δX ऋणात्मक अर्थात् –x दिशा में होगा जो कण को प्रारम्भिक अवस्था में लाने का प्रयत्न करेगा। इसी प्रकार P से ऋणात्मक x दिशा में विस्थापन होने से δU/δX ऋणात्मक होगा जिससे बल F धनात्मक x दिशा में कार्य करेगा। इस प्रकार निम्निष्ठ स्थितिज ऊर्जा वाली सन्तुलन स्थिति से विस्थापित होने पर कण पर सदैव एक बल (प्रत्यानयन बल) कार्य करता जो उसे संतुलन अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है। माना कोई विस्थापित स्थिति B पर कण की गतिज ऊर्जा शून्य के बराबर है। अतः B पर कण की सम्पूर्ण ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा के रूप में होगी। B पर कण की गतिज ऊर्जा शून्य के बराबर होने के कारण उसका वेग भी शून्य के बराबर होता है। इस स्थिति में प्रत्यानयन बल F=- δU/δX लगने के कारण कण वापस P की ओर गति करेगा जिससे इसकी स्थितिज ऊर्जा घटती है और गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है। स्पष्टतः P पर कण की गतिज ऊर्जा अधिकतम तथा स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होगी। इस गतिज ऊर्जा के कारण कण बिन्द को पार कर दूसरी ओर बढ़ने लगता है और A पर स्थिति B के समान परिस्थिति पर पहुँच जाता है। इस प्रकार कण न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा वाली स्थिति P के इधर-उधर A व B के बीच दोलन करने लगता है। यह न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा वाली स्थिति स्थायी सन्तुलन (stable equilibrium) की स्थिति कहलाती है। अतः गतिशील कण की स्थितिज ऊर्जा-विस्थापन वक्र आरेख में न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा वाली सन्तुलन स्थिति के इधर-उधर A व B के मध्य परिबद्ध क्षेत्र को विभव (potential well) कहते हैं। विभव कूप के उच्चतम तथा न्यूनतम स्थितिज ऊर्जाओं के अन्तर को निका कूप की बंधन ऊर्जा (binding energy) कहते हैं। कण की ऊर्जा बंधन ऊर्जा से कम होने पर कण विभ कूप में ही रहता है। कण की यह अवस्था बद्ध अवस्था (bound state) कहलाती है।
गणितीय रूप से दोलनी गति का समीकरण ज्ञात करने के लिए कण की न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा U(x0) वाली स्थिति P(x = x0) से थोड़ी दूर स्थित किसी बिन्दु x पर ऊर्जा फलन U(x) को टेलर श्रेणी विस्तारण प्रमेय (Tayler’s series expansion theorem) द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
x पर स्थितिज ऊर्जा
U(x) = U(x0) +(δU /Δx)xo (x – x0) + (δ2U/Δx2)xo (x – xo)2/2 + (δ3U/Δx3)x0 ……………………(4)
U(xo). (δU /Δx)xo . (δ2U/δx2)xo आदि के मान x = xo पर प्रयुक्त करते हैं।
स्थायी सन्तुलन बिन्दु P के लिए आवश्यक है कि P पर स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम तथा स्थितिज ऊर्जा-विस्थापन के आरेख की वक्रता त्रिज्या अर्थात् (δ2U/δx2)xo का मान धनात्मक हो।
अतः U(xo) = न्यूनतम
(δU/δX)xo = 0
तथा (δ2U/δx2)xo =धनात्मक =k (माना)
इसी प्रकार (δ3U/δx3 )xo = K1 ….. आदि।
उपरोक्त मान समीकरण (4) में रखने पर,
U(x)= (xO) + 1/2 k(x-x0)2 + 1/6 k1 (x-x0)3 + …
यदि सन्तुलन बिन्दु P को मूल बिन्दु पर स्थानान्तरित कर दें और न्यूनतम स्थितिज ऊर्जा का मान शून्य मान लें तो
x = x0 U(x)=0
समीकरण (5) से
U(x) = 1/2 k x2 + 1/2 k1 x3 + ……….. ………………..(6)
कण पर लगा बल
F = – δU/δx = – kx – 1/2 k1x2 ……………………………(7)
यदि कण का विस्थापन अल्प हो तो x के उच्च घात के पदों को उपेक्षणीय माना जा सकता है।
(Ux) = 1/2 kx2 ………………(8)
तथा F(x) =- kx ……(9)
इस स्थिति में U तथा X में खींचा गया आरेख परवलयिक (parabolic) आकति का होता है और कण पर कार्यरत बल विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है। परवलयिक विभव कप में कण की दोलनी गति सरल आवर्त गति होती है इसलिए हम यह कह सकते हैं कि विभव कप में लघु विस्थापनों के लिए कण की दोलनी गति को सरल आवर्त गति माना जा सकता है चाहे विभव कूप की आकृति कैसी भी हो।
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