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Categories: physics

स्प्रिंग के दोलन , oscillation in spring in hindi , स्प्रिंगों का श्रेणीक्रम , समान्तर क्रम में संयोजन combination of springs

combination of springs in series and parallel in hindi , स्प्रिंग के दोलन , oscillation in spring in hindi , स्प्रिंगों का श्रेणीक्रम , समान्तर क्रम में संयोजन :-

माध्य गतिज ऊर्जा (Mean kinetic energy) : सरल आवर्त गति में गतिज ऊर्जा भिन्न भिन्न स्थितियों में भिन्न भिन्न होती है। इसका मान 0 से mw2a2/2 के बीच परिवर्तित होता है।

T आवर्त काल में औसत गतिज ऊर्जा –

K = ka2/4

यहाँ k = mw2

माध्य स्थितिज ऊर्जा (Mean potential energy) : सरल आवर्त गति कर रहे कण की विभिन्न स्थितिओं में स्थितिज ऊर्जा का मान भिन्न भिन्न होता है , इसका मान भी  0 से mw2a2/2 तक परिवर्तित होता है।

1 आवर्तकाल में आवर्त औसत ऊर्जा –

U = mw2a2/4

सरल आवर्त गति में ऊर्जा संरक्षण :  माना किसी कण का द्रव्यमान m है। यह सरल आवर्त गति कर रहा है।  कण का आयाम a है और कोणीय आवर्ती w है।

स्थिति 1 : जब कण माध्य स्थिति से y विस्थापन पर है।

K = mw2[a2 – y2]/2

चूँकि y = a

K = mw2[a2 – a2]/2

K = 0

स्थितिज ऊर्जा : U = mw2y2/2

चूँकि y = a

U = mw2a2/2

कुल ऊर्जा E = K + U

E = 0 + mw2a2/2

E = mw2a2/2

स्थिति 2 : Y = 0

K = mw2[a2-02]/2

K = mw2a2/2

U = 0

E = K + U

E = mw2a2/2स्थिति 2 : जब कण साम्यावस्था के दूसरी तरफ अधिकतम विस्थापन की स्थिति में हो –

y = a

K = mw2[a2-a2]/2

K = 0

U = mw2y2/2

E = K + U

E = 0 + mw2y2/2

E =  mw2y2/2

E =  mw2a2/2

भारित स्प्रिंग के दोलन या स्प्रिंग से संलग्न द्रव्यमान के दोलन :

माना एक हल्की स्प्रिंग का एक सिरा किसी एक दृढ आधार से लटका है। जब स्प्रिंग के दूसरे सिरे पर m द्रव्यमान का पिण्ड लटकाया जाता है तो माना स्प्रिंग में y विस्थापन उत्पन्न होता है।

यहाँ m = वस्तु का किलोग्राम में भार।

T = दोलन का आवर्तकाल

‘स्प्रिंग नियतांक (न्यूटन/मीटर)

अर्थात स्प्रिंग का आवर्तकाल गुरुत्वीय त्वरण पर निर्भर नहीं करता। यदि स्प्रिंग लोलक को किसी उपग्रह या चन्द्रमा पर ले जाए तो उसके दोलन काल या आवर्तकाल में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

स्प्रिंगों का श्रेणीक्रम संयोजन (series combination of spring)

माना दो स्प्रिंगो के बल नियतांक K1 व K2 है। यह आपस में श्रेणीक्रम में जुड़े है। जब इनसे m द्रव्यमान का पिण्ड लटकाया जाता है तो दोनों स्प्रिंगो पर समान बल कार्य करता है परन्तु उनमे विस्थापन का मान अलग अलग होता है।

प्रथम स्प्रिंग में विस्थापन –

X1 = -F/K समीकरण-1

द्वितीय स्प्रिंग में विस्थापन –

X2 = -F/K समीकरण-2

परिणामी विस्थापन

x = X1 + X2

x = (-F/K1 )  + (-F/K)

स्प्रिंगों का समान्तर क्रम में संयोजन (parallel combination of spring)

माना दो स्प्रिंगो के बल नियतांक K1 व K2 है। यह समान्तर क्रम में जुडी है। जब इस संयोजन से m द्रव्यमान का पिण्ड लटकाते है तो दोनों स्प्रिंगों में समान विस्थापन उत्पन्न होता है परन्तु इन पर कार्यरत बल भिन्न भिन्न होता है। प्रथम स्प्रिंग में विस्थापन –

F1 = -K1X  समीकरण-1

F2 = -K2X  समीकरण-2

परिणामी बल F = F1 + F2

F = (-K1X) + (-K2X )

F = -X [K1 + K2]

यदि m द्रव्यमान के पिण्ड को दोनों स्प्रिंगो के मध्य चित्रानुसार जोड़ दिया जाए :

इस स्थिति में दोनों स्प्रिंगो को चित्रानुसार दृढ आधारों से जोड़ दिया जाता है और दोनों स्प्रिंगों के मध्य m द्रव्यमान का पिण्ड बाँध दिया जाता है। जब इस पिण्ड को साम्य स्थिति से थोडा विस्थापित कर छोड़ा जाता है तो यह स्प्रिंग ऊपर नीचे दोलन करने लगता है जिससे एक स्प्रिंग की लम्बाई में वृद्धि दूसरी स्प्रिंग की लम्बाई में कमी होती है।

अत: प्रथम स्प्रिंग पर बल F1 = -K1X

दूसरी स्प्रिंग पर बल F2 = -K2X

F = F1 + F2

F = (-K1X) + (-K2X )

F = -X [K1 + K2]

F = -KX

-KX = -X [K1 + K2]

K =  [K1 + K2]

सरल लोलक (simple pendulum) : ऐसा समायोजन जिसमे एक बिन्दुवत द्रव्यमान को एक भारहीन और लम्बाई में न बनने वाली डोरी के एक सिरे से बाँधकर किसी एक दृढ आधार से लटका दिया जाए तो इस समायोजन को सरल लोलक कहते है।

धातु के गोले को दोलन कहते है। S एक लटकन बिंदु है। l सरल लोलक की प्रभावी लम्बाई है। जब इसे साम्यावस्था से y दूरी तक विस्थापित करते है तो इस पर निम्न बल कार्य करते है –

  1. गुरुत्वीय बल mg
  2. धागे में तनाव बल T

बल mg को घटक mg और mgsinθ मे वियोजित करते है। तनाव बल T और mgcosθ का परिणामी बल दोलन को वृत्ताकार पथ में गति प्रदान करने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्रीय बल प्रदान करता है।

T – mgcosθ = mv2/l   समीकरण-1

घटक mgsinθ साम्यावस्था की ओर कार्य करता है इसलिए इसे प्रत्यानयन बल भी कहते है।

F = -mgsinθ समीकरण-2

यदि कोण बहुत छोटा हो तो –

sinθ = θ

F = -mgθ

चूँकि कोण = चाप/त्रिज्या

F = -mgy/l

-mw2y = -mgy/l

W = √y/l

2π/T = √y/l

T = 2π√l/g

n = 1/T = 1/2π [√g/l]

U नली में द्रव का दोलन

माना एक U नली के अनुपृष्ठ काट का क्षेत्रफल A है। इसमें h ऊँचाई तक द्रव भरा है। प्रारंभ में दोनों भुजाओ में द्रव का तल B व C समान है। जब तल y दूरी तक विस्थापित किया जाता है तो दूसरी भुजा में द्रव का तल E बिंदु तक ऊपर उठ जाता है। दूसरी भुजा में इस अतिरिक्त द्रव स्तम्भ D’E के कारण प्रत्यानयन बल कार्य करता है। इस कारण द्रव U नली में दोलन करने लगता है।

माना नली की एकांक लम्बाई में द्रव का द्रव्यमान m है तो

प्रत्यानयन बल = एकांक लम्बाई का द्रव्यमान x द्रव स्तंभ में अंतर

F = -(m x 2y)g

F = ma

त्वरण a = प्रत्यानयन बल/सम्पूर्ण द्रव स्तम्भ का द्रव्यमान

a = F/m2h

a = -m2gy/m2h

a = -gy/h

-w2y = -gy/h

W = √g/h

2π/T = √g/h

T = 2π√g/h

n = 1/T = आवृति

 

तैरते हुए लकड़ी के आयताकार ब्लॉक के दोलन : माना एक लकड़ी के ब्लॉक का द्रव्यमान m है। यह जल की सतह पर स्थित है। जल का घनत्व d है तथा ब्लॉक की डूबी हुई सतह का क्षेत्रफल A है। जब ब्लॉक को दबाकर छोड़ देते है तो यह उर्ध्वाधर तल में दोलन करने लगता है और दोलन के लिए प्रत्यानयन बल , उत्प्लावन बल द्वारा प्राप्त होता है।

अर्थात प्रत्यानयन बल = उत्पलावन बल

ब्लॉक का दोलन का सूत्र T = 2π √m/Adg

अवमंदित दोलन

वास्तव में सभी दोलन वायु में होते है , वायु के घर्षण के कारण दोलन कराने में दी गयी ऊर्जा का हास (हानि) होता रहता है। जिससे वस्तु के दोलनों का आयाम समय के साथ घटता जाता है और कुछ समय पश्चात् दोलन बंद हो जाते है।

इस प्रकार के दोलन जिनमे माध्यम का घर्षण बल कार्य करता है , अवमंदित दोलन कहलाते है।

पोषित दोलन : अवमंदित दोलनो में ऊर्जा की कमी होती है , यदि दोलन को ऊर्जा उसी दर से सप्लाई कर दी जाए। जिस दर से दोलक की ऊर्जा में कमी होती है तो दोलनों का आयाम नियत बना रहता है। इसी प्रकार के दोलनो को पोषित दोलन कहते है।

जैसे : घडी के पेंडुलम को सेल के द्वारा ऊर्जा दी जाती है जिससे पेंडुलम का आयाम नियत बना रहता है।

प्रणोदित दोलन : जब किसी दोलन कर रही वस्तु पर एक बाह्य आवर्त बल लगाया जाता है तो प्रारंभ में वस्तु अपनी स्वभाविक आवृति से दोलन करने का प्रयास करती है परन्तु कुछ समय पश्चात् वस्तु की स्वभाविक आवृति के दोलन समाप्त हो जाते है और वस्तु बाह्य आवर्त बल की आवर्ती से दोलन करने लगती है।

अनुनाद : जब वस्तु पर एक बाह्य आवर्त बल कार्य करता है तो वस्तु के स्वभाविक आवृत्ति के दोलन समाप्त हो जाते है और वस्तु बाह्य आवर्त बल की आवृति से दोलन करने लगती है। परन्तु इन दोलनों का आयाम बहुत छोटा होता है। इन दोलनों को प्रणोदित दोलन भी कहते है। अब यदि बाह्य बल की आवृति वस्तु की स्वभाविक आवृत्ति के बराबर या इससे अधिक कर दी जाए तो प्रणोदित दोलनों का आयाम बहुत बढ़ जाता है। इस प्रकार के दोलन को अनुनादी दोलन कहते है तथा इस घटना को अनुनाद कहते है।

अनुनाद की तीक्ष्णता का अवमंदन : प्रत्येक वस्तु के दोलनों में घर्षण इत्यादि के कारण कुछ न कुछ अवमंदन अवश्य होता है। अनुनादी दोलनों में अनुनाद की तीक्ष्णता अवमंदन पर निर्भर करती है।

जब वस्तु की स्वभाविक आवृति बाह्य बल की आवृति से काफी कम है तो दोलनो का आयाम बहुत कम होता है जैसे जैसे वस्तु की स्वभाविक आवृति आवर्तबल की आवृत्ति के लगभग बराबर हो जाती है तो आयाम अधिकतम होता है।

अनुनादी आवृत्ति की स्थिति से वस्तु की आवृत्ति में थोडा सा परिवर्तन करने पर भी आयाम के मान में बहुत तेजी से परिवर्तन होता है , इसे अनुनाद तीक्ष्णता भी कहते है।

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