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प्रकाशीय संचार , प्रकाशिक संचार (Optical communication in hindi)
प्रकाशीय संचार , प्रकाशिक संचार (Optical communication in hindi) : संचार की वह विधि जिसमें सूचना को एक स्थान से दुसरे स्थान तक भेजने के लिए विद्युत सिग्नल के बजाय प्रकाशीय तरंगें उपयोग में लायी जाती है , इसे प्रकाशीय संचार कहते है।
अर्थात वह संचार जिसमें सूचना या सिग्नल को एक स्थान से दुसरे स्थान तक भेजने के लिए प्रकाश तरंगों का उपयोग किया जाता है उसे प्रकाशीय संचार या प्रकाशिक संचार कहते है।
प्रकाश संचार में एक स्थान से दुसरे स्थान तक सिग्नल को भेजने के लिए प्रकाशिक तंतु का इस्तेमाल किया जाता है।
इस संचार व्यवस्था के भाग निम्न है –
एक मॉड्यूलेटर / डिमोडुलेटर, एक ट्रांसमीटर / रिसीवर , प्रकाशिक सिग्नल , एक माध्यम आदि।
इस संचार व्यवस्था के बहुत अधिक फायदे है इसलिए आजकल कई क्षेत्रों में प्रकाशीय संचार को अधिक बढ़ावा मिला है और हमें कॉपर के तार वाले संचार से मुक्ति मिली है।
क्यूंकि प्रकाशिक संचार में डाटा या सिग्नल को बहुत कम नुकसान या हानि के साथ एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजा जा सकता है तथा एक साथ बहुत अधिक डाटा भेजा जा सकता है इसलिए आजकल मोबाइल टेक्नोलॉजी तथा इन्टरनेट के हर क्षेत्र में प्रकाशीय संचार का उपयोग ही किया जाता है।
लगभग 1970 के दशक से कम हानि के उद्देश्य से निजात किया गया यह संचार व्यवस्था सबसे अधिक जल्दी प्रचलित हो गयी , इन संचार व्यवस्था के निम्न 3 भाग होते है –
1. ट्रांसमीटर
2. रिसीवर
3. प्रकाशित तंतु
1. ट्रांसमीटर : संचार का यह भाग इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल को प्रकाशीय सिग्नल में परिवर्तित कर देता है , ट्रांसमीटर के रूप में अर्धचालक युक्तियाँ काम में ली जाती है और इनमें सबसे अधिक काम में ली जाने वाली युक्ति LED और लेजर डायोड है। जब सिग्नल कम दूरी तक भेजना होत्ता है तब LED डायोड काम में लिए जाते है और सिग्नल को अधिक दूरी तक संचरण के लिए लेजर डायोड काम में लिए जाते है।
2. रिसीवर : संचार के ग्राही भाग की तरफ एक फोटो संसूचक लगा रहता है अर्थात एक ऐसा उपकरण जो प्रकाशीय सिग्नल को विद्युत सिग्नल में परिवर्तित कर देता है , इस उपकरण में प्रकाश विद्युत प्रभाव का सिद्धांत काम में लिया जाता है जो प्रकाश को विद्युत में बदल देता है। इस उपकरण के रूप में अर्धचालक युक्ति फोटो डायोड काम में लिया जाता है।
3. प्रकाशित तंतु : यह प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धांत पर आधारित रहता है , यह एक ऐसी युक्ति होती है जो प्रकाशीय सिग्नल को एक स्थान से दुसरे स्थान तक भेजने के काम में लिया जाता है।
प्रकाशीय संचार या प्रकाशिक संचार का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसमें सिग्नल की हानि बहुत कम होती है और न इसमें विद्युत चुम्बकीय व्यतिकरण जैसी समस्या होती है , साथ ही एक साथ अधिक डाटा या सिग्नल का आदान प्रदान कर सकते है। इस संचार व्यवस्था में खराबी भी जल्दी नही उत्पन्न होती है और न कि इसका ज्यादा खर्चा आता है इसलिए यह वर्तमान समय में बहुत अधिक उपयोग में लायी जाने वाली संचार व्यवस्था है।
अर्थात वह संचार जिसमें सूचना या सिग्नल को एक स्थान से दुसरे स्थान तक भेजने के लिए प्रकाश तरंगों का उपयोग किया जाता है उसे प्रकाशीय संचार या प्रकाशिक संचार कहते है।
प्रकाश संचार में एक स्थान से दुसरे स्थान तक सिग्नल को भेजने के लिए प्रकाशिक तंतु का इस्तेमाल किया जाता है।
इस संचार व्यवस्था के भाग निम्न है –
एक मॉड्यूलेटर / डिमोडुलेटर, एक ट्रांसमीटर / रिसीवर , प्रकाशिक सिग्नल , एक माध्यम आदि।
इस संचार व्यवस्था के बहुत अधिक फायदे है इसलिए आजकल कई क्षेत्रों में प्रकाशीय संचार को अधिक बढ़ावा मिला है और हमें कॉपर के तार वाले संचार से मुक्ति मिली है।
क्यूंकि प्रकाशिक संचार में डाटा या सिग्नल को बहुत कम नुकसान या हानि के साथ एक स्थान से दुसरे स्थान पर भेजा जा सकता है तथा एक साथ बहुत अधिक डाटा भेजा जा सकता है इसलिए आजकल मोबाइल टेक्नोलॉजी तथा इन्टरनेट के हर क्षेत्र में प्रकाशीय संचार का उपयोग ही किया जाता है।
लगभग 1970 के दशक से कम हानि के उद्देश्य से निजात किया गया यह संचार व्यवस्था सबसे अधिक जल्दी प्रचलित हो गयी , इन संचार व्यवस्था के निम्न 3 भाग होते है –
1. ट्रांसमीटर
2. रिसीवर
3. प्रकाशित तंतु
1. ट्रांसमीटर : संचार का यह भाग इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल को प्रकाशीय सिग्नल में परिवर्तित कर देता है , ट्रांसमीटर के रूप में अर्धचालक युक्तियाँ काम में ली जाती है और इनमें सबसे अधिक काम में ली जाने वाली युक्ति LED और लेजर डायोड है। जब सिग्नल कम दूरी तक भेजना होत्ता है तब LED डायोड काम में लिए जाते है और सिग्नल को अधिक दूरी तक संचरण के लिए लेजर डायोड काम में लिए जाते है।
2. रिसीवर : संचार के ग्राही भाग की तरफ एक फोटो संसूचक लगा रहता है अर्थात एक ऐसा उपकरण जो प्रकाशीय सिग्नल को विद्युत सिग्नल में परिवर्तित कर देता है , इस उपकरण में प्रकाश विद्युत प्रभाव का सिद्धांत काम में लिया जाता है जो प्रकाश को विद्युत में बदल देता है। इस उपकरण के रूप में अर्धचालक युक्ति फोटो डायोड काम में लिया जाता है।
3. प्रकाशित तंतु : यह प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धांत पर आधारित रहता है , यह एक ऐसी युक्ति होती है जो प्रकाशीय सिग्नल को एक स्थान से दुसरे स्थान तक भेजने के काम में लिया जाता है।
प्रकाशीय संचार या प्रकाशिक संचार का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसमें सिग्नल की हानि बहुत कम होती है और न इसमें विद्युत चुम्बकीय व्यतिकरण जैसी समस्या होती है , साथ ही एक साथ अधिक डाटा या सिग्नल का आदान प्रदान कर सकते है। इस संचार व्यवस्था में खराबी भी जल्दी नही उत्पन्न होती है और न कि इसका ज्यादा खर्चा आता है इसलिए यह वर्तमान समय में बहुत अधिक उपयोग में लायी जाने वाली संचार व्यवस्था है।
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