हिंदी माध्यम नोट्स
ओड़िसी नृत्य शैली के इतिहास क्या है ? ओडिसी नृत्य का परिचय odissi dance history in hindi
odissi dance history in hindi ओड़िसी नृत्य शैली के इतिहास क्या है ? ओडिसी नृत्य का परिचय ?
ओड़ीसी
उड़ीसा की प्राचीन नृत्य कला “ओडीसी” का इतिहास बडा सजीव और विविधतापूर्ण है। प्राचीन काल में उड़ीसा का नाम कलिंग देश था। मध्य युग के दौरान उडीसा हिंदू धर्म और कला का प्रमख स्थान बन गया और मंदिरों के प्रदेश के रूप में ख्याति प्राप्त की। लेकिन भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क का सूर्य मंदिर विश्व विख्यात हैं। हिंदू चित्रकला, स्थापत्य और शिल्प को उन्नति के लिए उडीसा में बड़ा अनुकूल वातावरण मिला।
गंग सम्राट छोड़ गंगदेव (1077-1147) ने जब पुरी में जगन्नाथ मंदिर बनवाया, तो उस समय तक ओडिसी नृत्य शैलियां परिपक्व हो चुकी थीं। लेकिन वैष्णव मत की उन्नति के साथ, इस नृत्य को अभी और बढ़ावा मिलने वाला था क्योंकि पुरी इस मत का प्रमुख केंद्र बन गया था। छोड़गंगदेव के उत्तराधिकारियों ने मुख्य मंदिर के साथ ही एक भव्य नृत्य कक्ष या नट मंदिर बनवाया। यहां नए विषयों पर नए रूपों में नृत्य होते थे। पुरी के धार्मिक जीवन को, महान विद्वान जयदेव ने अपना जो योगदान दिया, उसने नृत्य और संगीत को इतना भावनात्मक बल प्रदान किया, कि आगे चलकर जयदेव का गीत-गोबिन्द मंदिरों के भक्ति संगीत का आवश्यक और स्थायी अंग बन गया। 13वीं शताब्दी के मध्य तक नरसिंह देव द्वारा कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण किए जाने के समय तक यह नृत्य शैली परिपूर्णता को प्राप्त हो चुकी थी।
मध्य युग में उड़ीसा के ह्ररा और उसकी स्वाधीनता समाप्त हो जाने पर वहां पहले मुसलमानों, फिर मराठों और उसके बाद अंग्रेजों का शासन आया। केवल पुरी ही एक स्थान था जहां संस्कृति की दीपशिखा जैसे-तैसे जल रही थी और वह भी केवल जगन्नाथ मंदिर की चारदीवारी के अंदर।
स्वाधीनता के बाद ओडीसी का पुनरूत्थान अद्भुत ढंग से हुआ। इसका श्रेय आधुनिक उड़ीसा के नाटक, नृत्य और संगीत के प्रणेताओं में से एक श्कविचन्द्र कालीचरण पटनायकश् को है। केलुचरण महापात्रा, देवप्रसाद दास और पंकज चरण दास जैसे योग्य और अनुभवी गुरूओं ने कई शिष्यों को अपने प्रशिक्षण केंद्रों में आकृष्ट किया और उन्हें नृत्य कार्यक्रमों के लिए तैयार किया। देवप्रसाद की एक विख्यात शिष्या हैं इन्द्राणी रहमान, जो ओडीसी नृत्य को उड़ीसा की सीमाओं से बाहर ले गई. और सारे भारत तथा विदेशों में इसकी कलात्मकता के महत्व को स्थापित किया। जिन अन्य कलाकारों ने भारत के अंदर और अन्य देशों में ओडीसी नृत्यों से ख्याति प्राप्त की है उनमें उल्लेखनीय हैं-सोनाल मानसिंह, मिनातीदास, प्रियंवाद मोहंती, संयुक्ता पाणिग्रही, यामिनी कृष्ण मूर्ति, रीता देवी और कुमकुमदास।
ओडीसी नृत्य शैली की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें शरीर के चित्ता-कर्षक हाव-भावों, कलात्मक ढंग से बल खाने और सरताल पर थिरकने के माध्यम से नृत्य का पवित्र और सहज रूप प्रस्तुत किया जाता है। इनका वर्णन करते हए कला समालोचक चार्ल्स फैवरी ने मत व्यक्ति किया, श्नृत्य में विशुद्ध सौंदर्य और प्रत्यक्ष आकर्षण को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। आज का ओडीसी नृत्य, जैसा यह राज्य के भित्तिचित्रों में दिखाया गया है, अत्यंत मनमोहक और लभावना हैः वास्तव में यह नृत्य एक उपासना विधि था। सारा ओडसी नृत्य ही शास्त्रों के नियमों द्वारा संचालित है। इनमें श्भरत मुनि का नाट्यशास्त्रश् और बादं के अन्य शास्त्र ‘अभिनय दर्पणश् और श्अभिनय चंद्रिकाश् भी हैं।
शास्त्रीय नत्य के मुख्य सिद्धांतों-भाव, राग और ताल की सीमाओं में रह कर ओडीसी नर्तक अथवा नर्तकी को नाट्य प्रस्तत करना होता है जिसमें नृत्य और अभिनय दोनों होते हैं। नृत्य का आरंभ भूमि-प्रणाम से होता है ओडीसी संगीतज्ञ श्लोक की लय में बोल गाता है, जिसके साथ ही नृत्यांगना आकर्षक भक्तिभाव के साथ नृत्य की प्रारंभिक गतिविधि शुरू करती है। इसके बाद विनरज पूजा आरंभ होती है, जिसमें श्लोक गाया जाता है और कलाकार नृत्य शुरू कर देता है। इसके बाद का अंश श्बाटू नृत्यश् कहलाता है, जिसमें नृत्य का विशुद्ध रूप होता है, और साथ ही अभिनय किया जाता है. जिसके माध्यम से संकेत मुद्राओं में भाव व्यक्त किए जाते हैं। नृत्य का यह अंश भगवान शिव की स्तुति में होता है। 16 प्रकार की अंजलियां भेंट की जाती हैं, जिनमें अंतिम पांच होती हैं-पुष्प, धूप, दीप, अन्न और प्रणाम। नृत्य से इस कठिन अंश में संगीत वाद्यों की सहायता ली जाती है जिनमें प्रमुख वाद्य है श्मरडलश्। नृत्य गतिविधियों में बलिष्ठे और विनम्र रूप. अर्थात श्लास्य श् और श्तांडवश् दोनों का प्रदर्शन होता है। कलाकार के मंथर हाव-भाव और गति को वाद्यों की ताल से मिलाया जाता है। नृत्य का अगला अंश होता है श्इष्टदेव वंदनाश्, जिसमें भक्तिगीत या श्लोक गाया जाता है और कलाकार इसके भावों को चेहरे, आंखों और भावों से व्यक्त करता है। इसके बाद आता है श्स्वर पल्लवीश्। यह नृत्य का संगीतमय अंश है। संगीत और लय का इसमें प्राधान्य होता है। कलाकार गीत के भाव को कलात्मक मुद्राओं और आंखों से व्यक्त करता है और फिर विशुद्ध नृत्य प्रस्तुत करता है। अगला अंश है श्अभिनय नृत्य श् या श्गीत अभिनय श्, जिसमें न अपने चरम पर पहुंचता है। कृष्ण और राधा की प्रेमलीला को नृत्य और भावाभिव्यक्ति से बड़े कौशलपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है। कठिन नृत्य कौशल से, और द्रत लय में अंग संचालन करते हुए कलाकार नृत्य के अंतिम चरण आनंद नृत्य में पहुंच कर अपने सुखं और आनंद भाव को प्रस्तुत करता है। इस चरण में ओडीसी नृत्य शैली की कुछ अत्यंत चित्ताकर्षक और मनोहरी मुद्राएं होती हैं। जब नृत्य समाप्ति पर पहंचता है तो कलाकार पूर्ण भक्तिभाव से भूमि, देवताओं और गुरू को अंतिम बार प्रणाम करता है। आरंभ से अंत तक ओडीसी नृत्य का धार्मिक क्रिया-स्वरूप बना रहता है। भड़कीले रंगों वाली रेशम की पट्ट साडी. गहरे रंग की कशीदे वाली कंचुल या चोली, सिर, गर्दन, बांहों और पैरों के लिए सुंदर आभूषण आदि इस नृत्य की वेशभषा हैं। नृत्यांगानाओं के केशविन्यास की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है। माथे पर सुरूचिपूर्ण ढंग से सिंदूर की बिंदिया भी आवश्यक है।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…