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गैरिक मृदभांड संस्कृति (ओसीपी) , ताम्र भंडार संस्कृति का अर्थ क्या है ? ochre coloured pottery culture in hindi
ochre coloured pottery culture in hindi गैरिक मृदभांड संस्कृति (ओसीपी) , ताम्र भंडार संस्कृति का अर्थ क्या है ?
गैरिक मृदभांड संस्कृति (ओसीपी), ताम्र भंडार संस्कृति
वर्ष 1950 में, उत्तर प्रदेश के बिसौली (बदायूं जिला) तथा राजापुर परसु (बिजनौर जिला) में खुदाई के दौरान नए प्रकार के मृदभांडों की खोज हुई जिन्हें बाद में गैरिक मृदभांड संस्कृति (OCP Culture) नाम दिया गया। ये दोनों स्थल ताम्र भंडार संस्कृति के भी स्थल रहे हैं। अधपकी मध्यम दानेदार मिट्टी से बने ये मृदभांड नारंगी से लाल रंग लिए हुए हैं।
गैरिक मृदभांड स्थल सामान्यतः नदी के तटों पर स्थित हैं। इन स्थलों के छोटे आकार तथा टीलों की कम ऊंचाई से प्रतीत होता है कि इन बस्तियों की समयावधि कम होगी। कुछ ओसीपी स्थलों (उदाहरणतः अंबखेड़ी, बहेरिया, बहादराबाद, झिंजाना, लाल किला, अतरंजीखेड़ा, सपाई आदि) के उत्खनन में नियमित बस्ती के कोई चिन्ह नहीं मिले। हस्तिनापुर तथा अहिछत्र में ओसीपी संस्कृति तथा उसकी उत्तरवर्ती चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति के बीच की कालावधि में बस्तियों में एक विराम आ जाता है। अतरंजिखेड़ा में ओसीपी संस्कृति काल के पश्चात् काले व लाल मृदभांड (BRW) आते हैं। मृदभांडों के काल निर्धारण हेतु थर्माेल्यूमिनिसेन्स के आधार पर, ओसीपी संस्कृति को 2000 ई.पू. से 1500 ई.पू. के बीच रखा गया है। ओसीपी स्थलों से ताम्र भंडारों के पाए जाने से उन्हें ओसीपी संस्कृति से जोड़ने में हमें मदद मिलती है। अतः ताम्र भंडारों की कालावधि को भी 2000 ई.पू. से 1500 ई.पू. का माना जा सकता है।
काले तथा लाल मृदभांड संस्कृति (BRW) की कालावधि 2400 ई.पू. से ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों तक है। ‘काले लाल मृदभांडश् (BRW) तथा श्लाल पर काले मृदभांड (Black on Red) को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। लाल पर काले मृदभांड हड़प्पा की विशेषता है जिसमें पात्र का आंतरिक एवं बाह्य धरातल लाल रंग का, एवं डिजाइन काले रंग से चित्रित होते हैं। कुछ क्षेत्रगत भिन्नता के साथ, BRW एक बृहद क्षेत्र में प्राप्त हुए हैं-ये क्षेत्र उत्तर में रोपड़ से लेकर दक्षिण में अदिचनल्लुर तक, तथा पश्चिम में आमरा व लखाभवल से लेकर पूर्व में पांडु-राजर-धिबि तक फैला है।
भारतीय उपमहाद्वीप में काले तथा लाल मृदभांड संस्कृति, चित्रित धूसर
मृदभांड संस्कृति तथा उत्तरी काले चमकदार मृदभांड संस्कृति
काले तथा लाल मृदभांड भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक भागों में कई अलग-अलग सांस्कृतिक संदर्भाे में विद्यमान हैं। उदाहरणार्थ, नवपाषाण स्थलों (चिरांद, पिकलिहल, आदि), हड़प्पा पूर्व लोथल, गुजरात के हड़प्पा स्थलों (जैसे-लोथल, सुरकोतडा, रोजड़ी, रंगपुर, तथा देसलपुर), मध्य तथा निम्न गंगा घाटी के ताम्रपाषाण स्थल (चिरांद, पांडू राजर धिबि इत्यादि), अहार/बनास संस्कृति के स्थल (अहार, गिलुंड), मालवा संस्कृति (नविदातोली, इनामगांव), कयाथा संस्कृति (कयाथा), तथा जोरवे संस्कृति (चंदोली), चित्रित धूसर मृदभांड (च्ळॅ) स्थल (अतरंजिखेड़ा, हस्तिनापुर, आदि) दक्षिण भारत के वृहपाषाण स्थल (ब्रह्मगिरि, नागार्जुनकोंडा, आदि), तथा पूरे उपमहाद्वीप में प्रारम्भिक ऐतिहासिक स्थलों में पाए जाते हैं।
काले तथा लाल मृदभांडों की विशिष्टता है कि पात्रों का अंदर एवं गर्दन का भाग काला तथा शेष भाग लाल रंग का होता है। यह रंग-संयोजन, ऐसा माना जाता है कि, उल्टे जलावन अर्थात् इनवर्टिड फायरिंग द्वारा उत्पन्न होता है। अधिकांश मृदभांड चाक पर निर्मित हैं यद्यपि कुछ हाथों द्वारा भी बने हुए हैं। ये पात्र उत्कृष्ट मिट्टी से बने थे। राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल में चित्रित मृदभांड मिले हैं जबकि दोआब क्षेत्र के काले व लाल संस्कृति के मृदभांडों में चित्रकारी नहीं मिलती।
चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति (PGW) को कालक्रमानुसार 1100 ई.पू. से 500/400 ई.पू. के बीच रखा जा सकता है। उत्तर पश्चिम के स्थल गंगा घाटी के स्थलों की तुलना में और अधिक पुराने हैं। इनके वृहद् भौगोलिक वितरण एवं कालानुक्रमिक फैलाव के चलते यह चैंकाने वाला तथ्य नहीं है कि इन मृदभांडों व उनसे संबंधित अवशेषों में क्षेत्रीय विभिन्नता पाई जाती है। PGW संस्कृति के साक्ष्य हस्तिनापुर, आलमगीरपुर, अहिछत्र, अल्लाहपुर, मथुरा, । काम्पिली, नोह, जोधपुर, भगवानपुरा, जारवेरा, कौशाम्बी तथा श्रावस्ती के उत्खनन स्थलों से प्राप्त होते हैं। इस संस्कृति के विशिष्ट मृदभांड – अच्छी तरह से अवशोषित मिट्टी से चाक निर्मित तथा पतली गुंथी। हुई चिकनी सतह द्वारा बने हैं। इनका रंग धूसर अथवा राख के 5 रंग जैसा है, जिसके बाह्य तथा साथ ही साथ आंतरिक सतह पर न काला रंग व कभी-कभी गहरा चाकलेटी रंग किया होता है।
गंगा घाटी के पुरातात्विक क्रम में, उत्तरी काले चमकदार मृदभांड (NBPW), चरण चित्रित धूसर मृदभांड (PGW) चरण का उत्तरवर्ती था परंतु कुछ स्थलों में छठच्ॅ, काली व लाल मृदभांड (BRW) की उत्तरवर्ती थी। NBPW के बाद की अवस्था लाल स्लिप मृदभांड (RSW) अवस्था थी। उत्तरी काले चमकदार मृदभांड संस्कृति के विशिष्ट मृदभांडों की खोज सर्वप्रथम 1930 में तक्षशिला में हुई तथा इनके काले रंग की विशेष चमक के कारण खोजकर्ताओं ने इसे ‘ग्रीक काले मृदभांड‘ के रूप में लिया। इन मृदभांडों का वितरण उत्तर-पश्चिम में तक्षशिला व उद्ग्राम से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल के तामलुक तक तथा दक्षिण में आंध्र प्रदेश के अमरावती तक पाया गया है। प्रमुख NBPW स्थल हैं-रोपड़ (पंजाब), राजा कर्ण का किला (हरियाणा), नोह (राजस्थान), अहिछत्र, हस्तिनापुर, अतरंजिखेड़ा, कौशाम्बी तथा उत्तर प्रदेश में श्रावस्ती; बिहार में वैशाली, पाटलिपुत्र तथा सोनपुर।
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