हिंदी माध्यम नोट्स
न्यायपालिका किसे कहते हैं | न्यायपालिका की परिभाषा क्या होती है | के कार्य का काम संरचना nyaypalika in hindi pdf
nyaypalika in hindi pdf न्यायपालिका किसे कहते हैं | न्यायपालिका की परिभाषा क्या होती है | के कार्य का काम संरचना बताइये ?
न्यायपालिका
बहत सीधे-सादे शब्दों में कहें तो न्यायपालिका की परिभाषा, जिसे सरकार का नियमों का फैसला करने वाला विभाग भी कहा जाता है, सरकार के उस तीसरे अंग के रूप में की जा सकती है जिसका काम न्याय करना है। यह कानूनों की व्याख्या करती है तथा कानूनों के हनन पर दंड देती है। व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना किसी राजनीतिक व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य होता है, और यह काम सरकार का न्यायिक अंग करता है।
न्यायपालिका के कार्य
न्यायाधीश राज्य के प्रमुख द्वारा नामजद हो सकते हैं या एक चयन-प्रक्रिया के द्वारा नियुक्त हो सकते या फिर साथ के न्यायाधीशों द्वारा निर्वाचित या सहयोजित (को-आप्टेड) हो सकते हैं।
अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्थाओं में न्यायपालिका के कार्य अलग-अलग होते हैं, पर आम तौर पर ये कार्य इस प्रकार होते हैं।
न्याय प्रदान करना न्यायालयों का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। न्यायालय दीवानी, फौजदारी और संविधानिक प्रकृति के सभी मामलों की सुनवाई और फैसला करते हैं। लिखित संविधान वाले देशों में न्यायालयों को संविधान की व्याख्या की शक्ति भी प्राप्त होती है। वे संविधान के रक्षक के काम करते हैं।
दूसरी बात, वैसे तो कानून बनाना विधायिकाओं का काम है, पर एक भिन्न ढंग से न्यायालय भी कानून बनाते हैं। जहाँ कोई कानून खामोश या अस्पष्ट हो वहाँ अदालतें तय करती हैं कि कानून क्या है और कैसे लागू होना चाहिए।
तीसरी बात, एक संघीय शासन प्रणाली में अदालतें केन्द्रीय व क्षेत्रीय सरकारों के बीच एक स्वतंत्र और निष्पक्ष अंपायर की भूमिका भी निभाती हैं।
चौथी बात, न्यायालय सरकार के कार्यों को वैधता देने वाले महत्वपूर्ण संगठन हैं। न्यायालयों से आशा की जाती है कि वे खुद को जनता की बढ़ती आकांक्षाओं से बाखबर रखेंगे और मौजूदा स्थिति की रौशनी में कानून के अर्थ की गतिशील ढंग से व्याख्या करेंगे। उन्हें यह देखना होगा कि कोई कानून या कार्यपालिका का कोई काम जनता के विभिन्न अधिकारों का हनन न करे।
पाँचवी बात, न्यायालयों को विद्यमान राजनीतिक व्यवस्था को स्थायी बनाना और अवलंब देना भी होता है। न्यायालयों का व्यवहार बाधामूलक या विनाशकारी नहीं होना चाहिए कि वहीं राजनीतिक संगठन का सुचारु संचालन समस्या न बन जाए।
न्यायालयों का सबसे विवादास्पद कार्य उनका न्यायिक समीक्षा का अधिकार है जिसके अंतर्गत उन्हें किसी विधायी या प्रशासनिक कदम की वैधता की छानबीन की और फिर उसे अंशतः या पूर्णतः संविधान के प्रतिकूल घोषित करने की क्षमता प्राप्त होती है। इस शक्ति का जन्म अमेरिका में हुआ और वहीं यह अपने सर्वोत्तम रूप में दिखाई भी पड़ती है। इसका दूसरा सर्वोत्तम उदाहरण भारत में देखने को मिलता है। इटली, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे कुछ अन्य देशों में इसे कुछ मद्धम रूपों में देखा जा सकता है।
जैसा कि कहा गया है, न्यायालयों के कार्य अलग-अलग देशों में अलग-अलग होते हैं। फिर भी, जैसा कि ऊपर बतलाया गया है, इनमें से अधिकांश कार्य साझे हैं तथा ये ही कार्यपालिकाध् विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों में अंतर की रेखा खींचते हैं।
न्यायिक समीक्षा और न्यायिक सक्रियता
इनसाइक्लोपेडिया ब्रिटानिका ने न्यायिक समीक्षा की परिभाषा इस प्रकार की हैरू श्किसी देश के न्यायालयों की यह शक्ति कि सरकार के विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक अंगों के कार्यों की जाँच-परख करके वे यह सुनिश्चित करें कि ये कार्य राष्ट्र के संविधान के प्रावधानों से मेल खाते हैं। कयूंसन और मैकहेनर ने न्यायिक समीक्षा की यह परिभाषा की हैः “किसी न्यायालय की यह शक्ति कि वह किसी कानून या शासकीय कार्य को असंविधानिक ठहरा सके जो उसे बुनियादी कानून या संविधान से टकराता हुआ दिखाई दे।‘ इस तरह न्यायिक समीक्षा न्यायालयों की यह शक्ति है कि वे किसी विधायी या प्रशासनिक कदम की संविधानिक वैधता की छानबीन करके उसके संविधान के अनुकूल या प्रतिकूल होने संबंधी निर्णय दे सकते हैं।
न्यायिक समीक्षा का अध्ययन दुनिया के मुख्यतः दो ही लोकतांत्रिक देशों को लेकर किया जाता है। ये हैं अमेरिका और भारत दोनों के पास लिखित संविधान और संघीय शासन प्रणालियाँ हैं। अमेरिका और भारत, दोनों के सर्वोच्च न्यायालय न्यायपालिका की सर्वोच्चता को मान्यता देते हैं। अमेरिका में अगर कोई कानून श्समुचित वैधानिक प्रक्रियाश् की आवश्यकताओं को पूरा न करे तो अमेरिकी न्यायापालिका उसे असंविधानिक भी घोषित कर सकता है। “समुचित प्रक्रिया‘ की धारा और ‘न्यायपालिका की सर्वोच्चता‘ ने अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रकार की सर्वोच्च विधायिका बना दिया है। कम्युनिस्ट देशों में न्यायिक समीक्षा की कोई संभावना नहीं है। वहाँ न्यायाधीश विधायिकाओं द्वारा निर्वाचित होते हैं तथा उनहें ‘जनता की इच्छा‘ का सम्मान करना पड़ता है। ब्रिटेन में भी न्यायालय प्रभुता संपन्न संसद द्वारा पारित किसी विधेयक की संविधानिक वैधता की जाँच-परख नहीं कर सकते। लेकिन वे प्रत्यायोजित विधि-निर्माण (डेलीगेटेड लेजिस्लेशन) के बारे में न्यायिक समीक्षा की शक्ति का व्यवहार कर सकते हैं। अगर कार्यपालिका का कोई काम शाब्दिक या तात्विक अर्थ में संसद के किसी कानून का हनन करता है तो न्यायालय उसे रद्द कर सकते हैं। स्विट्जरलैण्ड में फेडरल ट्रिब्यूनल को न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है जिसका व्यवहार वह केवल कैंटन की विधायिकाओं के बनाए कानूनों पर कर सकता है। जापानी संविधान की धारा 81 भी सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा का अधिकार देती है।
न्यायालयों की न्यायिक समीक्षा की शक्ति ने उस चीज को जन्म दिया है जिसे इधर न्यायिक, सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) कहा गया है। हाल के वर्षों में कभी-कभी कार्यपालिका में एक शून्य पैदा होता रहा है और अनेक अवसरों पर इस शून्य को न्यायपालिका ने भरा है। भारत में इस दिशा में पहला कदम आपातकाल के बाद उठाया गया जब सर्वोच्च न्यायालय ने सुविधाहीन और सीमांत वर्गों को न्याय सुनिश्चित करने के साधन के रूप में जनहित याचिकाओं (पी.आई.एल.) को मान्यता दी। भारत में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के हाल के कुछ आदेश न्यायिक सक्रियता के कुछ उदाहरण हैं, जैसे दो पहिया वाहनों में ड्राइवरों के लिए हेलमेट का अनिवार्य प्रयोग, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध, 15 या 20 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों पर प्रतिबंध, और देहली में सड़क किनारे होर्डिंग लगाने पर प्रतिबंध। अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय का गर्भपात पर प्रतिबंध संबंधी फैसला भी यही दिखाता है कि इन देशों में न्यायपालिका कितनी सक्रिय बन चुकी है।
कहा जाता है कि न्यायिक समीक्षा अधिकाधिक न्यायिक बहसों का दरवाजा खोलती है और वकीलों के लिए एक ‘स्वर्ग‘ पैदा करती है। यह कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव को जन्म देती है। यह अदालतों को ‘तीसरा सदन‘ या ‘विधायिका का सर्वोच्च सदन‘ जैसा बना देती है। इस तरह न्यायपालिका का राजनीतिकरण होता है जो जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों की शक्ति को कम करता है। दूसरी ओर न्यायपालिका ठीक इसी शक्ति के सहारे कार्यपालिका या विधायिका की निरंकुशता से जनता की रक्षा कर सकती है। इस तरह सही तौर पर कहा गया है कि ‘न्यायालय राजनीतिक प्रक्रिया के अंग हैं तथा हमें सहयोग को टकराव जितना ही महत्व देना चाहिए। वे राजनीतिक व्यवस्था के दूसरे अंगों के साथ अंतःक्रिया करते हैं – अवैध अजनबियों के रूप में नहीं बल्कि स्थायी शासन के राजनीतिक गठजोड़ के अंग के रूप में।‘
न्यायपालिका की स्वतंत्रता
न्यायपालिका की बेपनाह शक्तियों और कार्यों के कारण पूरे राष्ट्र का कल्याण और उसके अधिकारों का संरक्षण न्यायालयों का दायित्व बन जाता है। इसलिए इन कार्यों को सुचारु ढंग से संपन्न करने के लिए उसका स्वतंत्र और निष्पक्ष होना आवश्यक है। भले ही (स्विट्जरलैण्ड और अमेरिका जैसे) कुछ देशों में न्यायाधीश निर्वाचित होते हों, पर दूसरे अधिकांश देशों में वे कार्यपालिका द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। लेकिन एक बार नियुक्त होने के बाद उनको आसानी से नहीं हटाया जा सकता जब तक कि दुराचरण या अयोग्यता के आरोपों में उन पर महाभियोग न चलाया जाए। उनके वेतन व सेवा की दशाओं पर कार्यपालिका या विधायिका का कोई नियंत्रण नहीं होता। एक न्यायाधीश को नियुक्त करते समय राष्ट्रपति दलगत हितों से नहीं बल्कि संबंधित व्यक्तियों की योग्यता और क्षमता से संचालित होता है। न्यायाधीशों के वेतन व भत्तों को कार्यपालिका या विधायिका के नियंत्रण से इसलिए बाहर रखा जाता है क्योंकि वे न्यायाधीशों के हितों के विरुद्ध बदले न जा सकें। भारत जैसे अनेक देशों में न्यायाधीशों को एक शपथ दिलाई जाती है ताकि वे भय, लोभ, राग-द्वेष से मुक्त रहकर यथासंभव अपनी योग्यता के अनुसार अपना कर्त्तव्य निभा सकें।
श्री अय्यर के शब्दों में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को ‘दुनिया के किसी भी दूसरे सर्वोच्च न्यायालय से अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।‘ भारत व अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालयों की तुलना से पता चलता है कि पहले वाले को निचली अदालतों के फैसलों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई का अधिक अधिकार प्राप्त है। दूसरी तरफ अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय पर मौलिक न्याय-क्षेत्र संबंधी श्रेष्ठता प्राप्त है। संघ की इकाइयों के आपसी विवादों के समाधान के अलावा राजदूतों, वकीलों, मंत्रियों, संधियों, नौसेना और समुद्र संबंधी विषयों की सुनवाई भी इस मौलिक न्याय-क्षेत्र में आ जाती है। अपील पक्ष में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को उसके अमेरिकी समकक्ष से अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं जो संविधानिक मामलों को छोड़ दीवानी और फौजदारी के मुकद्दमों में अपीलों की सुनवाई नहीं करता। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का एक काम परामर्श देना भी है जो अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय का नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय एक रिकार्ड रखनेवाला न्यायालय भी है। अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय को ये विशेषधिकार प्राप्त नहीं हैं।
इस तरह एक देश की राजनीतिक प्रक्रिया में न्यायालयों की एक बहत महत्त्वपर्ण भमिका होती है हालांकि राजनीतिक व्यवस्था की प्रकृति व जनता की संस्कृति के अनुसार उनकी भूमिका अलगअलग हो सकती है। वास्तविक प्रशासकों और ईमानदार न्यायकर्ताओं के बीच सहयोग व टकराव साथ-साथ चलने चाहिए ताकि राजनीतिक व्यवस्था का आगे विकास हो और उसका क्षय न हो। सही तौर पर कहा गया है कि ‘न्यायालय राजनीतिक प्रक्रिया के अंग हैं और हमें सहयोग को टकराव जितना ही महत्व देना चाहिए। वे राजनीतिक व्यवस्था के दूसरे अंगों के साथ अंतःक्रिया करते हैं – अवैध अजनबियों के रूप में नहीं बल्कि स्थायी शासन के राजनीतिक गठजोड़ के रूप में।‘
बोध प्रश्न 3
नोटः क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) एक न्यायपालिका के मुख्य कार्य क्या-क्या हैं?
2) अमेरिका का हवाला देते हुए न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
3) किसी न्यायपालिका की स्वतंत्रता कैसे सुनिश्चित की जाती है?
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 3
1) न्याय करना, विवादों को निपटाना और अपराधियों को दंड देना। एक संघीय प्रणाली में केन्द्र- राज्य विवादों का निपटारा सर्वोच्च न्यायालय करता है, जैसे अमेरिका और भारत में। ऊँची अदालतें संविधान की रक्षा करती हैं और उसका हनन करनेवाले कानूनों को रद्द कर सकती हैं। अदालतें जनता के अधिकारों की रक्षा करती हैं तथा इसके लिए अकसर ऊँची अदालतें समादेश (रिट) जारी करती हैं।
2) न्यायपालिका को अधिकार होता है कि वह कानूनों व कार्यपालिका के आदेशों की समीक्षा व छानबीन करके देखें कि ये संविधान के अनुरूप हैं या नहीं। जो कानून पूर्णतः या अंशतः कानन का हनन करते हैं, न्यायपालिका उन्हें निरस्त या असंविधानिक करार देती है। किसी कानन या सरकारी आदेश को अवैध तथा संविधान के प्रतिकूल घोषित करने की शक्ति का आरंभ अमेरिका में 1803 में मैरबरी बनाम मैडिसन मुकद्दमें में हुआ। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय भी अनेकों बार इस शक्ति का उपयोग करता है।
3) न्यायाधीश कार्यपालिका व विधायिका के नियंत्रण से मुक्त होने चाहिए। वे राज्य के प्रमुख द्वारा योग्यता के आधार पर नियुक्त होने चाहिएय उनका निश्चित व लंबा कार्यकाल होना चाहिएरू आवश्यक यह है कि उन्हें आसानी से हटाया न जा सकें तथा उन्हें अच्छे वेतन और भत्ते मिलने चाहिए। भारत अमेरिका व अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में न्यायपालिका को स्वतंत्रता प्राप्त है। वह संविधान के तथा जनता के अधिकारों व स्वतंत्रताओं के रक्षक का काम करती है।
बोध प्रश्न 4
1) पाश्चात्य शिक्षा के विस्तार, तथा उसके फलस्वरूप स्थानीय लोगों के प्रशासन में प्रवेश से उन्हें यह अनुभव हुआ कि वे स्वयं अपने भाग्य के विधाता हो सकते थे। इससे राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ। (कृपया विस्तृत विवरण के लिए भाग 17.5 देखें।)
2) प्रत्येक देश के राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रयोग किए गए साधन एक दूसरे से अलग थे। भारत में सामान्यतया शांतिपूर्वक, अहिंसात्मक विरोध किया गया। उधर इन्डोनेशिया (डच), तथा फ्रांसीसी हिन्द चीन में हिंसा पर आधारित साधनों का प्रयोग किया गया। (कृपया विस्तृत विवरण के लिए भाग 17.4 देखें)
साराश
किसी देश का शासन चलाने के लिए कानून बनाना, उन्हें लागू करना और उनकी व्याख्या करना आवश्यक होता है। ये काम क्रमशः विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के हैं।
कार्यपालिका में राजनीतिक कार्यपालिका और नौकरशाही शामिल हैं। यह कानूनों को लागू करती और प्रशासन चलाती है। संसदीय लोकतंत्रों में यही विधि-निर्माण की प्रक्रिया भी शुरू करती है। इन दिनों कार्यपालिका की भूमिका बहुत अधिक बढ़ चुकी है।
लोकतंत्र में विधायिका जनता द्वारा चुनी जाती व उनका प्रतिनिधित्व करती है। वह जनता की प्रभुसत्ता का प्रतिनिधित्व करने की दावेदार होती है। विधायिकाएँ एक सदन वाली या दो सदनों वाली हो सकती हैं। दो सदनों वाली विधायिकाएँ बेहतर होती हैं क्योंकि उनमें विशेष हितों का प्रतिनिधित्व करने की, मनमाने कानूनों के निर्माण पर रोक लगाने की और संघीय राज्यों में संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करने की अपेक्षा की जाती है। विधायिकाएँ सिर्फ कानून नहीं बनातीं। वे प्रशासन पर नियंत्रण भी रखती हैं और न्यायिक प्रकृति के कुछ काम भी अंजाम देती हैं। लेकिन हाल में दलगत टकराव, कार्यपालिका के प्रभुत्व तथा दूसरे कारणों से विधायिकाओं की भूमिका कम हुई है।
न्यायपालिका विवादों का निपटारा करती है तथा कानूनों और संविधान की व्याख्या करती है। यह व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करती है और कानूनों व संविधान की संरक्षक होती है। उसे न्यायिक समीक्षा की शक्ति भी प्राप्त है जिसने हाल के वर्षों में न्यायिक सक्रियता को जन्म दिया है। इन सबके लिए उसका स्वतंत्र और निष्पक्ष होना आवश्यक है।
इस तरह शासन के इन सभी अंगों की अपनी-अपनी निश्चित भूमिकाएँ हैं। साथ ही वे एक दूसरे से जुड़े भी हैं। कोई राजनीतिक व्यवस्था उनके सामंजस्यपूर्ण कार्यकलाप से ही स्थायित्व और जीवनशक्ति प्राप्त करती है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
आल्मंड, जी. ए. और पावेल, सी. बी. (1975) : कंपेरेटिव पालिटिक्सः ए डवलपमेंट एप्रोच, नई दिल्लीः एमेरिंड पब्लिशिंग कंपनी।
एवस्टाइन, हैरी और ऐप्टर, डेविड (ज्प) (1963) : कंपेरेटिव पालिटिक्स, न्यूयार्कः द फ्री प्रेस।
क्रिक, बी. (1964) : इन डिफेंस ऑफ पालिटिक्स, हार्मड्सवर्थः पेंग्विन।
डायट्श, के (1980) : पालिटिक्स एंड गवर्नमेंट, न्यूयार्कः हफ्टन मिफ्लिन।
ब्लम, डब्ल्यू टी. (1971) : थ्योरिज ऑफ द पोलिटिकल सिस्टम, इंगिलवुड क्लिफ्सः प्रेटिस हाल।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…