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नाभिकीय संलयन क्या है , परिभाषा , नाभिकीय संलयन की खोज किसने की , उपयोग , उदाहरण (nuclear fusion in hindi)
(nuclear fusion in hindi) नाभिकीय संलयन क्या है , परिभाषा , नाभिकीय संलयन की खोज किसने की , उपयोग , उदाहरण : जब दो या दो से अधिक छोटे छोटे नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक बड़े नाभिक का निर्माण करते है तो इस प्रकार की प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते है , यह प्रक्रिया नाभिकीय विखण्डन प्रक्रिया के बिल्कुल विपरीत होती है।
यह एक ऐसी अभिक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक परमाणु के नाभिक आपस में संयुक्त होते है और फलस्वरूप एक बड़े नाभिक की रचना करते है इस प्रक्रिया के फलस्वरूप बड़े नाभिक के साथ उप – परमाण्विक कण अर्थात न्यूट्रॉन या प्रोटॉन बनते है।
नाभिकीय संलयन के बाद जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान , मूल छोटे छोटे द्रव्यमानों से कम प्राप्त होता है , द्रव्यमान में आई इस कमी या क्षति को ऊर्जा के रूप में प्राप्त किया जाता है। अर्थात द्रव्यमान में जो कमी हो जाती है वह ऊर्जा के रूप में परिवर्तित हो जाती है। ऊर्जा का यह मान अलग अलग परमाणु नाभिकों के लिए अलग होता है इसका कारण नाभिकीय बल होता है।
ऊर्जा के मान को ज्ञात करने के लिए आइन्स्टाइन के समीकरण का उपयोग किया जा सकता है जो निम्न है –
E = mc2
नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया तारों में हमेशा होती रहती है।
उदाहरण : चार हाइड्रोजन परमाणु के नाभिकों के संलयन से दो हीलियम परमाणु के बड़े नाभिक , पोजीट्रान और ऊर्जा का निर्माण होता है जैसा यहाँ प्रदर्शित है –
41H1 → 2He4 + 2 पोजिट्रान + ऊर्जा
इसे निम्न प्रकार विस्तार से समझा जा सकता है –
दो ड्यूट्रॉन को जब संलयनित किया जाता है तो एक ट्राइट्रॉन बनता है , एक प्रोटोन बनता है और ऊर्जा मुक्त होती है , अभिक्रिया निम्न है –
1H2 + 1H2 → 1H3 +1H1 + 4 MeV
इस अभिक्रिया में प्राप्त ट्राइट्रॉन का जब पुन: जब तीसरे ड्यूट्रॉन के साथ संलयन होता है तो हीलियम परमाणु का नाभिक बनता है साथ में एक न्यूट्रॉन बनता है और ऊर्जा उत्सर्जित होती है –
1H3 + 1H2 → 2He4 + 0n1 + 17.6 MeV
दोनों अभिक्रियाओं को जब संयुक्त किया जाता है तो हम देखते है कुल 21.6 MeV ऊर्जा मुक्त हुई है साथ में एक प्रोटॉन (1H1) तथा एक न्यूट्रॉन (0n1) बनता है।
नाभिकीय संलयन के उपयोग ?
इसका प्रयोग करके हाइड्रोजन बम बनाये जाते है अर्थात हाइड्रोजन बम में उपयोग की जानी वाली सिद्धांत प्रणाली नाभिकीय संलयन होती है। याद रखे कि नाभिकीय संलयन प्रक्रिया संपन्न करने के लिए उच्च दाब और उच्च ताप की आवश्यकता होती है और इतना उच्च ताप नाभिकीय विखण्डन द्वारा प्राप्त की जा सकती है अत: हम कह सकते है कि नाभिकीय संलयन के लिए विखंडन भी आवश्यक है।
सूर्य की असीमित ऊर्जा के पीछे कारण नाभिकीय संलयन ही है , चूँकि तारों और सूर्य में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया लगातार होती रहती है और फलस्वरूप अत्यंत ऊर्जा मुक्त होती है जो सूर्य और तारों की असिमित ऊर्जा होती है , इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सूर्य जितनी ऊर्जा नाभिकीय संलयन द्वारा धरती पर भी प्राप्त की जा सकती है अर्थात एक ऐसी शक्ति या ऊर्जा जो कभी खत्म नहीं होगी।
लेकिन यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे आसानी से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है , अगर ऐसा संभव हुआ कि नाभिकीय संलयन प्रकिया को नियंत्रित किया जा सके अर्थात नियंत्रित तरीके से संपन्न किया जा सके जो असिमित ऊर्जा पृथ्वी पर भी बनाई जा सकती है। नाभिकीय संलयन प्रक्रिया को नियंत्रित रूप से संपन्न करने के लिए वैज्ञानिक शोध कर रहे है।
यह एक ऐसी अभिक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक परमाणु के नाभिक आपस में संयुक्त होते है और फलस्वरूप एक बड़े नाभिक की रचना करते है इस प्रक्रिया के फलस्वरूप बड़े नाभिक के साथ उप – परमाण्विक कण अर्थात न्यूट्रॉन या प्रोटॉन बनते है।
नाभिकीय संलयन के बाद जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान , मूल छोटे छोटे द्रव्यमानों से कम प्राप्त होता है , द्रव्यमान में आई इस कमी या क्षति को ऊर्जा के रूप में प्राप्त किया जाता है। अर्थात द्रव्यमान में जो कमी हो जाती है वह ऊर्जा के रूप में परिवर्तित हो जाती है। ऊर्जा का यह मान अलग अलग परमाणु नाभिकों के लिए अलग होता है इसका कारण नाभिकीय बल होता है।
ऊर्जा के मान को ज्ञात करने के लिए आइन्स्टाइन के समीकरण का उपयोग किया जा सकता है जो निम्न है –
E = mc2
नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया तारों में हमेशा होती रहती है।
उदाहरण : चार हाइड्रोजन परमाणु के नाभिकों के संलयन से दो हीलियम परमाणु के बड़े नाभिक , पोजीट्रान और ऊर्जा का निर्माण होता है जैसा यहाँ प्रदर्शित है –
41H1 → 2He4 + 2 पोजिट्रान + ऊर्जा
इसे निम्न प्रकार विस्तार से समझा जा सकता है –
दो ड्यूट्रॉन को जब संलयनित किया जाता है तो एक ट्राइट्रॉन बनता है , एक प्रोटोन बनता है और ऊर्जा मुक्त होती है , अभिक्रिया निम्न है –
1H2 + 1H2 → 1H3 +1H1 + 4 MeV
इस अभिक्रिया में प्राप्त ट्राइट्रॉन का जब पुन: जब तीसरे ड्यूट्रॉन के साथ संलयन होता है तो हीलियम परमाणु का नाभिक बनता है साथ में एक न्यूट्रॉन बनता है और ऊर्जा उत्सर्जित होती है –
1H3 + 1H2 → 2He4 + 0n1 + 17.6 MeV
दोनों अभिक्रियाओं को जब संयुक्त किया जाता है तो हम देखते है कुल 21.6 MeV ऊर्जा मुक्त हुई है साथ में एक प्रोटॉन (1H1) तथा एक न्यूट्रॉन (0n1) बनता है।
नाभिकीय संलयन के उपयोग ?
इसका प्रयोग करके हाइड्रोजन बम बनाये जाते है अर्थात हाइड्रोजन बम में उपयोग की जानी वाली सिद्धांत प्रणाली नाभिकीय संलयन होती है। याद रखे कि नाभिकीय संलयन प्रक्रिया संपन्न करने के लिए उच्च दाब और उच्च ताप की आवश्यकता होती है और इतना उच्च ताप नाभिकीय विखण्डन द्वारा प्राप्त की जा सकती है अत: हम कह सकते है कि नाभिकीय संलयन के लिए विखंडन भी आवश्यक है।
सूर्य की असीमित ऊर्जा के पीछे कारण नाभिकीय संलयन ही है , चूँकि तारों और सूर्य में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया लगातार होती रहती है और फलस्वरूप अत्यंत ऊर्जा मुक्त होती है जो सूर्य और तारों की असिमित ऊर्जा होती है , इसलिए ऐसा कहा जाता है कि सूर्य जितनी ऊर्जा नाभिकीय संलयन द्वारा धरती पर भी प्राप्त की जा सकती है अर्थात एक ऐसी शक्ति या ऊर्जा जो कभी खत्म नहीं होगी।
लेकिन यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे आसानी से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है , अगर ऐसा संभव हुआ कि नाभिकीय संलयन प्रकिया को नियंत्रित किया जा सके अर्थात नियंत्रित तरीके से संपन्न किया जा सके जो असिमित ऊर्जा पृथ्वी पर भी बनाई जा सकती है। नाभिकीय संलयन प्रक्रिया को नियंत्रित रूप से संपन्न करने के लिए वैज्ञानिक शोध कर रहे है।
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