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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय कहां स्थित है नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा किस शहर में स्थित है एनएसडी NSD in hindi
NSD in hindi National School Of Drama राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय कहां स्थित है नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा किस शहर में स्थित है एनएसडी ?
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय – नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) रंगमंच का प्रशिक्षण देने वाली विश्व की श्रेष्ठतम संस्थाओं में से एक है तथा भारत में यह अपनी तरह का एकमात्र संस्थान है। संगीत नाटक अकादमी ने 1959 में इसकी स्थापना की थी। इसे 1975 में स्वायत्त संस्था का दर्जा दिया गया। इसका पूरा खर्च संस्कृति विभाग वहन करता है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का उद्देश्य रंगमंच के इतिहास, प्रस्तुतीकरण, दृश्य डिजाइन, वेशभूषा, प्रकाश व्यवस्था और रूप-सज्जा सहित रंगमंच के सभी पहलुओं का प्रशिक्षण देना है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के डिप्लोमा को भारतीय विद्यालय संघ की ओर से एम.ए. की डिग्री के बराबर मान्यता प्राप्त है और इसके आधार पर वे महाविद्यालयों/विश्वविद्यालयों में शिक्षक के रूप में नियुक्ति पा सकते हैं अथवा पीएचडी (डॉक्टरेट) उपाधि के लिए पंजीकरण करा सकते हैं।
इस विद्यालय के मंचन विभाग ‘रेपर्टरि कंपनी‘ की स्थापना व्यावसायिक रंगमंच उपलब्ध कराने और लगातार नए प्रयोग जारी करने के उद्देश्य से की गई थी। बाल रंगमंच को बढ़ावा देने की दिशा में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान है। 1989 में ‘थिएटर इन एजूकेशन‘ की स्थापना की गई। बाद में इसका नाम बदल कर ‘संस्कार रंग टोली‘ कर दिया गया। 1998 से ही यह विद्यालय बच्चों के लिए राष्ट्रीय रंगमंच महोत्सव का आयोजन कर रहा है। यह महोत्सव हर वर्ष ‘जश्ने बचपन‘ के नाम से आयोजित किया जाता है। ‘भारत रंग महोत्सव‘ अब हर वर्ष मनाया जाता है।‘
विभिन्न राज्यों में अनेक भाषाएं बोलने वाले और विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले हजारों रंगमंच कलाकारों को विद्यालय के नियमित प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का लाभ देने के लिए 1978 में ‘विस्तार कार्यक्रम‘ नामक एक अल्पावधि शिक्षण एक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था।
विद्यालय की एक अन्य महत्वपूर्ण गतिविधि है रंगमंच के बारे में पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन करना तथा रंगमंच से जुड़ विषयों पर महत्वपूर्ण अंग्रेजी पुस्तकों का हिंदी अनुवाद करना।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्तशासी संस्था है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के तहत अध्ययन के विभिन्न क्षेत्र आते हैं जैसे- रचनात्मक और आलोचनात्मक साहित्य (लिखित और मौखिक), दृश्य कला, वास्तुशिल्प, मूर्तिकला, पेंटिंग और ग्राफिक्स, फोटोग्राफी एवं फिल्म। केंद्र का उद्देश्य, कला संबंधी क्षेत्रों में भारत और विश्व समुदायों के बीच अध्ययन और संवाद कायम करना है। यह केन्द्र राष्टीय-अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार, सम्मेलन, प्रदर्शनियां और भाषण श्रृंखलाएं आयोजित करता है।
क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र
क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों (जेडसीसी) का असल उद्देश्य स्थानीय संस्कृतियों के प्रति गहन जागरुकता पैदा करना और यह दिखाना है कि ये संस्कृतियां किस प्रकार की इस प्रकार क्षेत्रीय पहचान से घुल-मिल जाती हैं तथा अंततः भारत की समृद्ध विविधतापूर्ण संस्कृति में समाहित हो जाती हैं। ये केंद्र समचे देश में संस्कृति को बढ़ावा देने उसका संरक्षण और विस्तार करने वाली अग्रणी संस्था का दजा अजित कर चुके हैं। ये मंचन कलाओं को प्रोत्साहित देने के साथ-साथ साहित्य तथा दृश्य कलाओं के संबद्ध क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान कर रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 1985-86 में पटियाला, कोलकाता, तंजावुर, उदयपुर, इलाहाबाद, दीमापुर और नागपर में सात क्षेत्रीय सांस्कतिक केंद्र स्थापित किए गए थे। इन क्षेत्रीय केंद्रो की संरचना की खास विशेषता यह है कि राज्य अपने सांस्कतिक जडाव के अनसार एक से ज्यादा केंद्रो में शामिल हो सकते हैं। क्षेत्रीय संस्कृति केंद्र के लिए एक अलग कोष (कॉर्पस) स्थापित किया गया था जिसमें केंद्र सरकार और सबद्ध राज्य सरकारें अंशदान करती हैं। ये क्षेत्रीय संस्कृति केंद्र 1993 से हर वर्ष गणतंत्र दिवस पर होने वाले लोकनृत्य समारोह में भाग लेने के लिए अपने लोक कलाकारों को भेजते हैं। इस समारोह के माध्यम से लोक कलाकारों को राष्ट्रीय मंच पर अपनी कला प्रदर्शित करने का दुर्लभ अवसर प्राप्त होता है।
ये क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र विभिन्न लोक व जनजातीय कलाओं तथा खासतौर पर दुर्लभ एवं लुप्त होती कला-विधाओं के प्रलेख तैयार करने पर विशेष ध्यान देते हैं। राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के अंतर्गत देश के विभिन्न क्षेत्रों के कलाकारों, संगीतकारों और विद्वानों का आदान-प्रदान किया जाता है। इससे देश के विभिन्न भागों में जनजातीय तथा लोक-विधाओं के प्रति जागरुकता बढ़ाने में बहुत ज्यादा मदद, मिली है और इस प्रकार विविधता में एकता की हमारी भावना और मजबूत हुई है। रंगमंच के कलाकारों, विद्यार्थियों, कलाकारों, निर्देशकों और लेखकों को साझे मंच पर काम करने और परस्पर एक-दूसरे को देखने-समझने का अवसर जुटाने के उद्देश्य से भी थिएटर रिजुविनेशन (रंगमंच पनर्जीवन) नामक एक योजना चलाई जा रही है। नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए ‘गुरु-शिष्य परंपरा‘ योजना भी प्रारंभ की गयी है। अपने शिल्पग्रामों के माध्यम से ये केंद्र हस्तशिल्पियों को बढावा देते हैं। क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र अपने-अपने क्षेत्र में मंच से जुड़े मंचध्लोक कलाकारों का पता लगाते हैं और हर क्षेत्र में एक या एक से अधिक कलाकारों का चुनाव करते हैं।
मूर्त सांस्कृतिक विरासत
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की स्थापना 1861 में हुई थी। यह पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत संस्कृति विभाग के संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है। इस विभाग के प्रमुख महानिदेशक होते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैंः
1. पुरातात्विक अवशेषों तथा उत्खनन कार्यों का सर्वेक्षण
2. केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षित स्मारकों, स्थलों और अवशेषों का रख-रखाव और परिरक्षण
3. स्मारकों और भग्नवाशेषों का रासायनिक परिरक्षण
4. स्मारकों का पुरातात्विक सर्वेक्षण
5. शिलालेख संबंधी अनुसंधान का विकास और मुद्राशास्त्र का अध्ययन
6. स्थल संग्रहालयों की स्थापना और पुनर्गठन
7. विदेशों में अभियान
8. पुरातत्व विज्ञान में प्रशिक्षण और
9. तकनीकी रिपोर्ट और अनुसंधान कार्यों का प्रकाशन।
24 मंडलों और पांच क्षेत्रीय निदेशालयों के जरिये भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अपने संरक्षण वाले स्मारकों का बचाव और संरक्षण करता है।
प्राचीन स्मारक और परातत्व स्थल तथा अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने देश में 3,675 स्मारकों/स्थलों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया है जिनमें 21 स्मारक यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं।
राष्ट्रीय संग्रहालय
राष्ट्रीय संग्रहालय 1960 के बाद से संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्य कर रहा है। इसमें प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक की दो लाख साठ हजार से ज्यादा वस्तुएं सग्रहीत है। इसका मुख्य गतिविधिया है:- प्रदर्शनियां लगाना, कला वीथियों का पुनर्गठन एवं आधुनिकीकरण, शैक्षिक गतिविधियां तथा लोकसंपर्क (आउटरीच) कार्यक्रम, जनसंपर्क प्रकाशन फोटो प्रलेखन, ग्रीष्मावकाश कार्यक्रम, स्मारक भाषणमालाएं, संग्रहालय कॉर्नर, फोटो यूनिट, माडलिंग यूनिट, पुस्तकालय संरक्षण प्रयोगशाला और कार्यशालाएं।
राष्ट्रीय आधुनिक कला वीथिका: राष्ट्रीय आधुनिक कला वीथिका (एनजीएमए) नई दिल्ली में स्थित है और इसकी स्थापना 1954 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य समसामयिक भारतीय कला को प्रोत्साहन देना और उसका विकास करना है।
राष्ट्रीय कला इतिहास परिरक्षण एवं संगीतशास्त्र का संग्रहालय संस्थान: संस्कृति मंत्रालय द्वारा पूर्ण रूपेण वित्तपोषित इस स्वायत्तशासी संगठन की स्थापना 1989 में एक डीम्ड विश्वविद्यालय के रूपद में की गयी थी। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय की प्रथम मंजिल से काम कर रहा यह देश का एकमात्र संग्रहालय विश्वविद्यालय है। इसके मेमोरेन्टर ऑफ एसोसियेशन के अनुसार, महानिदेशक ही विश्वविद्यालय का पदेन कुलपति होता है।
मुख्य उददेश्य: (क) कला इतिहास, परिरक्षण और संगीतशास्त्र की विशिष्ट विधायों में एम.ए, और पीएच.डी. की उपाधि प्रदान करने के लिये शिक्षण एवं प्रशिक्षण। (ख) भारतीय संस्कृति को लोकप्रिय बनाने हेतु ‘भारतीय कला एवं संस्कृति‘ ‘कला समीक्षा और भारतीय कलानिधि‘ (हिंदी माध्यम) में कुछ संक्षिप्त अवधि के पाठ्यक्रम संचालित किये जाते हैं। संग्रहालय शिक्षा, कला एवं संस्कृति पर संगोष्ठी, कार्यशालायें, सम्मेलन और विशेष व्याख्यानों का आयोजन।
साहित्य पुरस्कार भारतीय
ज्ञानपीठ पुरस्कार
ज्ञानपीठ पुरस्कार की स्थापना 1961 में हुयी और यह पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रदान किया जाता है जिसकी स्थापना साहू शांति प्रसाद जैन परिवार द्वारा की गई। वर्ष 1965 में साहू शांति प्रसाद जैन द्वारा प्रारंभ किया गया ज्ञानपीठ पुरस्कार भारत का प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार है। यह पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ नामक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था (नई दिल्ली) खास प्रतिवर्ष दिया जाता है। इसके अंतर्गत संस्था संविधान की आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट (22) भारतीय भाषाओं में से किसी एक भाषा के साहित्यकार को उच्च कोटि के सृजनात्मक कृतित्व के लिए प्रतिवर्ष सम्मानित करती रही है। ज्ञानपीठ पुरस्कार के तहत वाग्देवी की प्रतिमा के साथ अब 11 लाख रुपये की राशि पुरस्कृत साहित्यकारों को प्रदान की जाती है।
साहित्य अकादमी पुरस्कार
भारत के विद्वानों के राष्ट्रीय अकादमी ‘साहित्य अकादमी‘ द्वारा 1954 में स्थापित ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार‘ भारत की 22 भाषाओं में प्रतिष्ठित साहित्यिक रचना को प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के अंतर्गत ₹ 1-1 लाख नकद और उत्कीर्ण ताम्र फलक प्रदान किया जाता है।
बिहारी पुरस्कार
फाउंडेशन द्वारा महाकवि बिहारी के नाम पर 1991 स्थापित यह पुरस्कार राजस्थान में सात वर्ष से रह रहे लेखक या देश में कहीं भी रह रहे राजस्थान के मूल निवासी लेखक को दिया जाता है। यह पुरस्कार विगत 10 वर्षों में राजस्थान के किसी लेखक को हिंदी या राजस्थानी में प्रकाशित किसी कृति के लिए दिया जाता है। यदि कोई लेखक विगत सात वर्षों से राजस्थान में रह रहा हो, तो उसे राजस्थानी माना जाता है। इस पुरस्कार के तहत प्रशस्ति पत्र व प्रतीक चिह्न के साथ ₹ 1 लाख की राशि भेंट की जाती है।
व्यास सम्मान
के.के. बिड़ला फाउंडेशन द्वारा यह पुरस्कार सम्मान दिये जाने वाले वर्ष से ठीक पहले की 10 वर्ष की अवधि में प्रकाशित किसी भारतीय नागरिक की हिन्दी भाषा की उत्कृष्ट साहित्यिक कृति को दिया जाता है। इस पुरस्कार में 2.5 लाख की नकद राशि प्रदान की जाती है। व्यास सम्मान की शुरूआत वर्ष 1991 से की गई थी।
सरस्वती सम्मान
सरस्वती सम्मान प्रतिवर्ष किसी भारतीय नागरिक को एक ऐसी उत्कृष्ट साहित्यिक कृति के लिए दिया जाता है, जो भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में हो तथा सम्मान दिये जाने वाले वर्ष से पहले 10 वर्ष की अवधि में प्रकाशित हुई हो। इस पुरस्कार की स्थापना के.के. बिड़ला फाउंडेशन द्वारा 1991 में की गई थी। इस पुरस्कार के तहत ₹5 लाख की राशि प्रदान की जाती है।
मूर्ति देवी पुरस्कार
मूर्तिदेवी पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ समिति के द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित साहित्य सम्मान है। पुरस्कार में एक लाख रूपए, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न और वाग्देवी की प्रतिमा दी जाती है। महला मूर्तिदेवी पुरस्कार 1983 में सी.के. नागराज राय (कन्नड़) को प्रदान किया गया।
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