हमारी app डाउनलोड करे और फ्री में पढाई करे
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now
Download our app now हमारी app डाउनलोड करे

पुष्पी पादपों की आकारिकी notes pdf anatomy of flowering plants class 11 notes pdf download in hindi

By   June 26, 2023

chapter 5 of flowering plants class 11 notes pdf download in hindi पुष्पी पादपों की आकारिकी morphology of flowering plants in hindi ?

पुष्पी पादपों की आकारिकी pdf download

सब्सक्राइब करे youtube चैनल

पुष्पी पादपों की आकारिकी विभिन्न प्रकार के पौधों में भिन्न होती है। पुष्पी पादपों की आकारिकी निम्नलिखित तत्वों पर निर्भर कर सकती है:

1. फूल का आकार: पुष्पों का आकार विभिन्न प्रकार के पौधों में अलग-अलग होता है। कुछ पौधों के फूल बहुत छोटे होते हैं, जबकि कुछ के फूल बहुत बड़े होते हैं। इनमें विविध आकारों, रंगों और ढालों की प्रायः असीमित संभावनाएं होती हैं।

2. पौधे का आकार: पुष्पी पौधों का आकार पौधे के रूप में भी विभिन्नता प्रदर्शित कर सकता है। कुछ पौधे छोटे होते हैं और कुछ बड़े होते हैं। यह पौधे छोटे पौधे से लेकर बड़े पेड़ों तक के आकार में हो सकते हैं।

3. पत्तों का आकार: पुष्पी पौधों के पत्ते भी अलग-अलग आकार और आकृति में होते हैं। कुछ पत्ते छोटे, छोटे, तीखे होते हैं, जबकि कुछ बड़े, गोल, वृत्ताकार या अर्धवृत्ताकार होते हैं। यह आकृति और आकार पर्यावरणीय और जेनेटिक तत्वों पर निर्भर करती है।

4. डिस्क और पेडुंकुलस का आकार: पुष्पी पादपों में डिस्क (गोलाकार स्तन) और पेडुंकुलस (फूल के बाईं और दाईं ओर होने वाले शाखाएं) की भी विभिन्नता होती है। इनका आकार और ढाल भी प्रकृति के अनुसार बदलता है।

पुष्पी पादपों की आकारिकी प्राकृतिक विविधता का एक प्रतीक है और इसका कारण वनस्पतियों के जीवनकाल, पर्यावरणीय परिस्थितियाँ, जेनेटिक विशेषताएं और वनस्पति संरचना हो सकता है।

मूलतंत्र

मूलतंत्र (Root system) एक पौधे का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है जो पौधे की नीचे की ओर पैदा होता है। यह पौधे को स्थिरता प्रदान करता है, पोषक तत्वों को संग्रह करने के लिए माटी से प्राप्त करता है और पानी और अन्य आवश्यक तत्वों को भी अवशोषित करता है।

मूलतंत्र में दो मुख्य भाग होते हैं: वितक और शाखाएं।

1. वितक: वितक एक जटिल जालीदार संरचना होती है जो माटी के अन्दर फैलती है। यह मूलतंत्र की मुख्य जड़ होती है और पौधे को संरक्षा और स्थिरता प्रदान करने में मदद करती है। वितक में कई छोटे-छोटे जड़ें होती हैं जिन्हें शीर्षक जड़ें कहा जाता है। इन शीर्षक जड़ों से छोटी-छोटी नसें (रूटलेट्स) निकलती हैं जो माटी के अंदर तारों की तरह फैलती हैं। यह वितक मूलतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग होता है और पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है।

2. शाखाएं: शाखाएं मूलतंत्र के वितक की बाहरी उगाही होती हैं जो पौधे की ऊपर की ओर फैलती हैं। इनमें छोटी जड़ें (रूट्लेट्स) होती हैं जो शाखाओं के माध्यम से पोषण प्राप्त करती हैं और पौधे की स्थिरता प्रदान करती हैं। शाखाओं के माध्यम से पौधे का प्रकोपन, विसंर्जन और पोषण होता है।

मूलतंत्र पौधे के विकास, संरक्षण और आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, यह पौधे को स्थायित्व और संरक्षा प्रदान करता है और उन्हें जल, पोषण और ऊर्जा संसाधित करने में सहायता करता है।

Fibrous Root System in hindi

फाइब्रस रूट प्रणाली (Fibrous Root System) पौधों के मूलतंत्र का एक प्रमुख प्रकार है जो कई छोटे-छोटे जड़ों (रूट्लेट्स) के संयोजन से बनता है। इस प्रणाली में मुख्य जड़ या शीर्षक जड़ नहीं होती है, बल्कि जड़ें बिखरी होती हैं और पौधे के निचले भाग के आसपास फैलती हैं।

फाइब्रस रूट प्रणाली के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं:
1. छोटी जड़ें: इस प्रणाली में रूटलेट्स कहलाने वाली छोटी जड़ें होती हैं जो माटी के अंदर घुसकर पोषण प्राप्त करती हैं। ये जड़ें न्यूनतम आकार की होती हैं और अन्य रूटलेट्स के संयोजन द्वारा एकजुट होती हैं।

2. संयोजन: फाइब्रस रूट प्रणाली में रूटलेट्स के संयोजन से एक घने जालीदार सांयुक्त रूट प्रणाली बनती है। इससे पौधे को अधिक स्थिरता मिलती है और माटी से पोषक तत्वों को प्राप्त करने में मदद मिलती है।

3. विसंर्जन: फाइब्रस रूट प्रणाली में रूटलेट्स भूमि के ऊपर तारों की तरह फैलती हैं। यह रूटलेट्स भूमि से पौधे के ऊर्जा और अन्य आवश्यक तत्वों को विसंर्जित करने में मदद करती हैं।

फाइब्रस रूट प्रणाली विशेष रूप से घासी पौधों, धान, गेहूँ, बांस आदि में पायी जाती है। यह प्रणाली पौधे को अधिक विकासशील भूमि में स्थिरता प्रदान करती है और अच्छी तरह से पोषित करती है।

Adventitious Root System in hindi

अपवाही मूल प्रणाली (Adventitious Root System) पौधों के मूलतंत्र का एक प्रकार है जो पौधे के अनाश्रित भागों से प्रारम्भिक या अतिरिक्त रूप से उत्पन्न होता है। ये मूल पौधे की नीचे की ओर नहीं होते हैं, बल्कि शाखा, पत्ती, छाल, या अन्य अनाश्रित भागों से उभरते हैं।

अपवाही मूल प्रणाली के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं:
1. अनाश्रित भागों से उत्पन्न: इस प्रणाली में मूल प्रारम्भिक या अतिरिक्त रूप से अनाश्रित भागों से उत्पन्न होते हैं। इन मूलों का प्राकृतिक उद्भव जगह या प्रकोपन स्थान हो सकता है। वे पात्र, छाल, पत्ती, या शाखा से निकल सकते हैं।

2. प्रतिरोध क्षमता: अपवाही मूल प्रणाली पौधे को विभिन्न प्रकोपन स्थानों पर अपेक्षाकृत स्थिरता प्रदान करती है। ये मूल पौधे अतिरिक्त संगठनिक समर्थन उत्पन्न करके पौधे को संकट से बचाने में मदद करते हैं।

3. पर्यायी पोषण स्रोत: अपवाही मूल प्रणाली पौधे के लिए पर्यायी पोषण स्रोत का कार्य करती है। इन

मूलों के माध्यम से पौधा प्रकोपन स्थान से पोषण प्राप्त कर सकता है जब उसे मूलतंत्र से पोषण मिलने में असमर्थता होती है।

अपवाही मूल प्रणाली को अनेक पौधों में देखा जा सकता है, जैसे कि बाँस, सब्जियाँ, जंगली फूल, आदि। यह प्रणाली पौधे की समर्थता, प्रकोपन और पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

जड़ो के सामान्य लक्षण

जड़ (Root) पौधे का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और उसके कई सामान्य लक्षण होते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण जड़ों के सामान्य लक्षण दिए गए हैं:

1. शाखाओं का मूड़ाना: जड़ पौधे के नीचे की ओर फैलती हैं और माटी में घुसती हैं। इसका प्रमुख कार्य पौधे को स्थायित्व प्रदान करना होता है। जड़ में वस्त्र कोशिकाएं होती हैं जो पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं और पानी और मिटटी से पोषण प्राप्त करती हैं।

2. रूटलेट्स: जड़ में छोटी जड़ें होती हैं, जिन्हें रूटलेट्स कहा जाता है। ये छोटी बाल-कीटकें होती हैं जो माटी में घुसकर पोषण प्राप्त करती हैं। रूटलेट्स मध्य भूमि से ज्यादा आराम से पोषक तत्वों को अवशोषित करती हैं।

3. फेलोजीन जड़: कुछ पौधों में जड़ में फेलोजीन जड़ होती है, जो पौधे के विकास को रोकती है। जब पौधा प्रकोपन के लिए उपयुक्त मौसम के आगमन पर यह जड़ सक्रिय होती है, तब नई शाखाएं और पत्तियाँ उगती हैं।

4. वृद्धि बन्धन: जड़ में वृद्धि बन्धन होता है जो पौधे को उच्चाकरण प्रदान करता है। इस बन्धन के कारण पौधा माटी में मजबूती से जड़ी रहता है और स्थिरता प्राप्त करता है।

5. फीका रंग: जड़ का रंग आमतौर पर हल्का पीला या हल्का सफेद होता है। यह रंग मूलतः अनुपातिक होता है क्योंकि जड़ में क्लोरोफिल नहीं होता है।

ये लक्षण प्रमुखतः सभी पौधों की जड़ों में पाए जा सकते हैं, हालांकि कुछ पौधों में थोड़ी अलग-अलगता हो सकती है। प्रकृति और पौधे के प्रकार पर आधारित होते हुए, जड़ों की आकृति, रंग, वस्त्र कोशिकाएं, और वृद्धि बन्धन विभिन्नता प्रदर्शित कर सकती हैं।