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गैर सदस्यता की अवधारणा क्या है ? non membership group in sociology in hindi परिभाषा

non membership group in sociology in hindi परिभाषा गैर-सदस्यता की अवधारणा
मर्टन ने कहा है कि इस तथ्य में कोई नई बात नहीं है कि लोग अपने ही समूह के अनुकूल आचरण करते हैं। किंतु संदर्भ समूह का अध्ययन इस कारण दिलचस्प बन जाता है कि “लोग अपने आचरण तथा मूल्यांकनों के निर्धारणों के लिए अक्सर अपने समूह से भिन्न अन्य समूहों के अनुकूल अपने को ढालते हैं।‘‘
इसी प्रसंग में मर्टन गैर-सदस्यता की गतिकी (कलदंउपबे) पर ध्यान देने का आग्रह करता है। वास्तव में गैर-सदस्य वे हैं जो सदस्यता की सक्रिय संपर्क तथा परिभाषा संबंधी कसौटियों पर खरे नहीं उतरते। परंतु जैसी कि मर्टन की मान्यता है, सभी गैर-सदस्य एक ही प्रकार के नहीं होते। मोटे तौर पर गैर-सदस्यों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
(प) कुछ लोग समूह की सदस्यता की कामना कर सकते हैं।
(पप) अन्य लोग इस प्रकार के संबंध के प्रति उदासीन हो सकते हैं।
(पपप) कुछ और ऐसे भी हो सकते हैं, जो समूह से असंबद्ध रहने को प्रेरित हों।

एक उदाहरण लें हैं। मान लीजिए एक व्यक्ति के पिता उद्योगपति हैं और उनका एक कारखाना है। स्वाभाविक है कि कारखाने में कामगारों के संदर्भ में वह व्यक्ति गैर-सदस्य है। उस समूह से उसका कोई नाता नहीं है। किंतु इसके बावजूद तीन संभावनाएं हैं।

मान लीजिए वह अत्यंत संवेदनशील है, उसने मार्क्स का अध्ययन किया है और उसका दृढ़ विश्वास है कि केवल श्रमिक वर्ग ही अन्याय तथा शोषण से मुक्त नई व्यवस्था को जन्म दे सकता है। मतलब यह है कि गैर-सदस्य होते हुए भी वह स्वयं को मजदूरों के साथ जोड़ना चाहता है, उनके अनुभव को जानना चाहता है और उसी के अनुरूप वह अपनी जीवन-शैली को बदलता है। मर्टन के अनुसार ऐसा होने पर गैर-सदस्यता समूह उसके लिए सकारात्मक संदर्भ बन जाता है।

एक संभावना और भी है। वह व्यक्ति अपनी मौजूदा स्थिति से संतुष्ट है और उसे किसी बात की परवाह नहीं है। इस प्रकार, उसके जीवन पर श्रमिकों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। भावार्थ यह है कि वह गैर-सदस्य बना रहता है और श्रमिकों के समूह के साथ जुड़ने की उसकी कोई इच्छा नहीं है।

अब, तीसरी संभावना पर विचार कर लिया जाए। गैर-सदस्य के रूप में उस व्यक्ति को मजदूरों से घृणा है और उसकी सोच है कि वे न तो योग्य हैं और न ही शिक्षित तथा उनकी संस्कृति में कोई अच्छी बात नहीं है। इसके फलस्वरूप श्रमिकों से अपनी दूरी बनाए रखने तथा अपनी प्रस्थिति बनाए रखने के लिए उनके विरोध में उसका आचरण होने लगता है। इस प्रकार मर्टन का मानना है कि वे श्रमिक उसके लिए नकारात्मक संदर्भ समूह के रूप में काम करते हैं।

आइए अब इस रोचक चर्चा के बाद बोध प्रश्न 1 को पूरा करें।

गैर सदस्यता समूहों का चयन
यह समझना आवश्यक है कि लोग क्यों और किन परिस्थितियों में गैर-सदस्यता समूहों का अपने संदर्भ समूह के रूप में चयन करते है। मर्टन के अनुसार, इसके लिए मुख्यतया तीन कारक उत्तरदायी हैं। पहला यह है कि संदर्भ समूह का चयन इस बात पर निर्भर करता है कि समूह की ष्समाज की एक संस्था की दृष्टि से प्रतिष्ठा प्रदान करने की क्षमताष् कितनी है। यह बात एकदम सीधी है। समाज में सभी समूहों की शक्ति और प्रतिष्ठा एक जैसी नहीं होती। उदाहरण के लिए ऐसा देखने में आता है कि हमारे यहां विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक अपने स्तर की तुलना अक्सर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) अधिकारियों से करते हैं। इस प्रकार प्राध्यापकों के लिए आई.ए.एस. अधिकारी संदर्भ समूह हैं। इसका कारण एकदम स्पष्ट है कि आधुनिक भारतीय समाज के संस्थागत स्वरूप में आई.ए.एस अधिकारियों को प्राध्यापकों की अपेक्षा अधिक प्रतिष्ठा तथा अधिकार प्राप्त हैं। जिस गैर-सदस्यता समूह को अधिक प्रतिष्ठा एवं अधिकार प्राप्त नहीं हैं, उसके संदर्भ समूह बनने की संभावना बहुत कम है।

दूसरा कारक यह है कि इस बात की जांच की जाए कि आमतौर पर किस प्रकार के लोग गैर-सदस्यता समूहों को अपने संदर्भ समूहों के रूप में अपनाते हैं। मर्टन का कहना है कि सामान्यतया किसी समूह में “अलग-थलग पड़ गए लोग‘‘ ही गैर-सदस्यता समूह के मूल्यों को “संदर्भ के प्रतिमानों‘‘ के रूप में अपनाते हैं। कारण स्पष्ट है कि अपनी विद्रोही प्रवृत्ति अथवा आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा के फलस्वरूप वे अपने समूह से असंतुष्ट रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनके लिए गैर-सदस्यता समूहों के मूल्यों को अपना लेने की संभावनाएं अधिक रहती हैं। इसके उदाहरण के रूप में मर्टन ने “अभिजन वर्ग के हताश व्यक्ति‘‘ का उल्लेख किया है जो उस वर्ग की राजनीतिक विचारधारा को अपना लेता है, जो उसके अपने वर्ग से कम शक्तिशाली होता है।

वह सामाजिक प्रणाली जिसमें सामाजिक गतिशीता की अपेक्षाकृत दर ज्यादा है उसमें गैर-सदस्यता समूह के सदस्यों को अपने समूह का सदस्य बनाने की संभावनाएं ज्यादा हो जाती हैं। यह स्वाभाविक ही है क्योंकि अधिक गतिशील प्रणालियों में लोग अपने से अलग समूहों से अवगत हो पाते हैं और उनमें अपनी स्थिति में निरंतर बदलाव लाने की इच्छा पैदा होती रहती है। इस रोचक विषय पर चर्चा करते हुए क्यों न सोचिए और करिए 2 को भी पूरा कर लें।

सोचिए और करिए 2
उन संभावित संदर्भ व्यक्तियों की सूची बनाइए, जिनका चयन आप अपने जीवन को नया अर्थ देने के लिए करना चाहेंगे/चाहेंगी। ये फिल्म कलाकार, राजनेता, क्रिकेट खिलाड़ी आदि हो सकते हैं। इस विषय पर एक पृष्ठ की टिप्पणी लिखिए और संभव हो तो अपनी टिप्पणी की अपने अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों की टिप्पणी से तुलना कीजिए।

 मूल्यों तथा प्रतिमानों को परिभाषित करने के लिए संदर्भ समूहों की भिन्नता
व्यक्ति किसी संदर्भ का चयन क्यों करे? इसके अनेक कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, गांधीवादियों को अपना संदर्भ समूह मानने का कारण हो सकता है कि गांधीवादी लोग समर्पित होते हैं और उनके राजनीतिक-आर्थिक सिद्धांतों से उसकी सहमति है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि गांधीवादियों के सभी कामों से वह सहमत हो। जीवन के प्रति उनके परंपरावादी दृष्टिकोण, ब्रह्मचर्य, निरामिष भोजन इत्यादि से उसकी असहमति हो सकती है। जीवन-शैली, खान-पान या यौन संबंधी नैतिक मूल्यों के मामले में उदारवादियों को उसके लिए अपना संदर्भ समूह मानना संभव है। मर्टन के अनुसार, यह नहीं समझा जाना चाहिए कि लोगों के लिए वही समूह आचरण के प्रत्येक क्षेत्र में समान रूप से संदर्भ समूह की भूमिका निभाते हैं। इसलिए संदर्भ समह का चयन अंततः उन मल्यों तथा प्रतिमानों के स्वरूप एवं स्तर पर निर्भर करता है जिन्हें व्यक्ति ने महत्व दिया है। जो समूह किसी के लिए राजनीतिक विचारधारा के मामले में संदर्भ समूह हैं, हो सकता है धार्मिक सिद्धांतों के मामले में वे एकदम असंगत हों। इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि साम्यवादी दलों को वोट देने वाले लोग रामकृष्ण मिशन जैसे धार्मिक संगठन के प्रति भी झुकाव रखें।

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