हिंदी माध्यम नोट्स
गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत क्या है परिभाषा कौन कौन से है गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत का महत्व non conventional energy sources in india in hindi
non conventional energy sources in india in hindi गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत क्या है परिभाषा कौन कौन से है गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत का महत्व ?
गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत
ऊर्जा की बढ़ती हुई मांग तथा परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के तेजी से ह्रास के कारण गैर-परपरागत ऊर्जा-स्रोतों का महत्व दिन-प्रति -दिन बढ़ता ही जाता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास, ज्वारीय ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा और यहां तक कि अपशिष्ट पदार्थों से प्राप्त की गई ऊर्जा का महत्व बढ़ रहा है। गैर-परपंरागत ऊर्जा पर्याप्त तथा पुनरुपयोगी है और पर्यावरण का प्रदूषण नहीं करती। इस ऊर्जा का महत्व 1970 के दशक से महसूस किया जाने लगा। इस समय भारत गैर-परंपरागत ऊर्जा के बड़े कार्यक्रम चलाने वाले देशों में से एक है।
सौर ऊर्जा: पृथ्वी पर हर प्रकार की ऊर्जा का मूल स्रोत सूर्य है। भारत उष्ण-कटिबन्धीय देश है, जिस कारण से वर्षा ऋतु को छोड़कर वर्ष की शेष अवधि में पर्याप्त सौर ऊर्जा प्राप्त होती है। इसे खाना पकाने, पानी गर्म करने, कृषि उपजों को सुखाने, घरों एवं गलियों को प्रकाशित करने, भूमि से जल निकालने तथा अन्य अनेकों कार्यों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। भारत में प्रतिवर्ष 5,000 खरब किलोवाट घंटा सौर ऊर्जा प्राप्त होती है, जो कि देश की कुल ऊर्जा खपत से अधिक है। सबसे अधिक सौर ऊर्जा राजस्थान के मरुस्थल में प्राप्त होती है। काठियावाड़ प्रायद्वीप, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा पंजाब में भी सौर ऊर्जा के उत्पादन तथा उपयोग की बड़ी संभावनाएं हैं। इसे ताप तथा फोटोवोल्टेइक रूप में प्रयोग किया जाता है। सौर तापीय ऊर्जा को हीटर, सौर कुकर, डिस्टिलेशन के माध्यम से प्रयोग किया जाता है। सौर फोटोवोल्टेइक प्रौद्योगिकी के सौर ऊर्जा को सीधे ही बिजली में परिवर्तित किया जाता है। इससे सड़कों पर प्रकाश करने, जल निकालने तथा दूर-संचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इस से दूर तथा अगम्य इलाकों में स्थित बस्तियों, अस्पतालों, पर्वतीय एवं वन्य क्षेत्रों, मरुस्थलों एवं द्वीपों की आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं।
पवन ऊर्जा: भारत में पवन ऊर्जा की बड़ी सम्भावनाएं हैं। गैर-परपंरागत ऊर्जा स्रोतों के मन्त्रालय द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार भारत में 45,000 मेगावाट पवन ऊर्जा पैदा करने की क्षमता है। पवन ऊर्जा की दृष्टि से भारत, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमेरिका, डेनमार्क तथा स्पेन के बाद विश्व में पांचवें स्थान पर है। भारत का पहला पवन फार्म तमिलनाडु के तटीय प्रदेश में 1986 में स्थापित किया गया था। पवन ऊर्जा की दृष्टि से गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल में बड़ी सम्भावनाएं हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी पवन ऊर्जा के उपयोग की सम्भावनाओं की खोज की जा रही है। देश का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा संयंत्र तमिलनाडु में कन्याकुमारी के निकट स्थापित किया गया है। इसकी कुल क्षमता 425 मेगावाट है और संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफोर्निया के बाद विश्व का दूसरा बड़ा संयंत्र है। तमिलनाडु का दूसरा संयंत्र क्याटर नामक स्थान पर स्थापित किया गया है। महाराष्ट्र के सतारा जिले में 200 मेगावाट का संयत्र लगाया गया है। गुजरात में 5000 मेगावाट ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। यहाँ पर पवन निरंतर 20 किमी. प्रति घंटा की गति से प्रवाहित होती है। राजस्थान में सम्भाव्य पवन ऊर्जा 5400 मेगावाट है।
बायोगैसः यह गोबर पर आधारित ऊर्जा है जिसे मुख्यतः ग्रामीण इलाकों में प्रयोग किया जाता है। बायोगैस संयंत्रों से प्राप्त होने वाली गैस में 55 से 65 प्रतिशत मीथेन, 35 से 40 प्रतिशत कार्बन डाई-ऑक्साइड तथा अन्य गैसों की कुछ मात्रा होती है। इस ऊर्जा का उपयोग ग्रामीण इलाकों में खाना पकाने तथा प्रकाश ज्वलित करने के लिए किया जाता है। गोबर की बची हुई स्लरी उत्तम खाद का काम करती है। गोबर गैस की ताप दक्षता 60ः होती है, जबकि गोबर की ताप दक्षता केवल 11ः ही है। भारत में बायोगैस का भविष्य बड़ा उज्ज्वल है। देश में 10 से 15 लाख टन प्रतिवर्ष गोबर उपलब्ध है। यदि इसका दो-तिहाई भाग भी बायोगैस बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है तो इससे 22.425 मिलियन घन मीटर बायोगैस प्राप्त हो सकती है, जिससे 33,904 मिलियन लीटर मिट्टी के तेल की बचत हो सकती है। इसके अतिरिक्त इससे 14 मिलियन टन नाइटोजन, 13 मिलियन टन फास्फेट तथा 0.9 मिलियन टन पोटाश के बराबर खाद प्राप्त हो सकती है। यद्यपि भारत में बायोगैस का चलन 1940 के दशक में ही शुरू हो गया था। वास्तविक प्रगति 1980 के दशक में ही शुरू हुई थी। पारिवारिक बायोगैस प्लांट के अतिरिक्त सामूहिक बायोगैस प्लांटों को भी प्रोत्साहन दिया जाता है।
बायोमास ऊर्जा: लकड़ी, फसल तथा कृषि उद्योग के अपशिष्ट पदार्थों को ऊष्मा रासायनिक क्रिया द्वारा जलाकर प्राप्त होने वाली ऊर्जा को बायोमास ऊर्जा कहते हैं। इसका मुख्य लाभ यह है कि ठोस अपशिष्ट पदार्थों को अधिक सुविधाजनक गैसीय ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। 2005-06 में लगभग 160 मेगावाट की अतिरिक्त क्षमता का सृजन बायोमास ऊर्जा चीनी मिलों में गन्ने की खोई से ऊर्जा प्राप्त करने की प्रौद्योगिकी के माध्यम से किया गया। इन दो प्रकार की टेक्नोलॉजियों से 700 मेगावाट से अधिक बिजली मिल रही है। गन्ने की खोई वाली विधि से 63 चीनी मिलें 526 मेगावाट अतिरिक्त बिजली का उत्पादन कर ग्रिड को उपलब्ध करा रही हैं। 386 मेगावाट की कुल क्षमता वाली 67 बायोमास विद्युत परियोजनाएं बहुत से लोगों को रोजगार उपलब्ध कराती हैं। देश में बायोमास से विद्युत उत्पादन की अनुमानित क्षमता 19,500 मेगावाट है। इसमें चीनी मिलों में गन्ने की खोई पर आधारित 3500 मेगावाट उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता भी सम्मिलित है। अब तक देश में 9.2 मेगावाट की बायोमास आधारित परियोजनाओं की स्थापना की जा चुकी है और 1180 मेगावाट क्षमता की बायोमास परियोजना को स्थापित करने पर काम जारी है।
लघु पनबिजली: छोटे आकार के बांधों से बिजली बनाने में कम खर्च होता है, पर्यावरण का प्रदूषण कम होता है और यह ऊर्जा का चक्रीय संसाधन है। इनसे अगम्य पहाड़ी इलाकों को बिजली प्रदान कराई जाती है जहां ग्रिड बिजली बहुत महंगी पड़ती है। कभी-कभी तो ऐसे दुर्गम क्षेत्र होते हैं जहां ग्रिड बिजली पहुंचना लगभग असंभव हो जाता है। यद्यपि यह टेक्नोलॉजी सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है, फिर भी यह पिछले कुछ वर्षों में ही अधिक लोकप्रिय हुई है। भारत में 15,000 मेगावाट लघु पनबिजली पैदा करने की क्षमता है। 31 मार्च, 2006 तक कुल 1826 मेगावाट की लघु जल विद्युत परियोजनाएं स्थापित हो चुकी थीं। इसके अतिरिक्त 468 मेगावाट की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। 13 राज्यों ने लघु पनबिजली संयंत्र लगाने की नीति की घोषणा की है। इन राज्यों के नाम हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र तथा राजस्थान हैं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में लघु पनबिजली को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
भूतापीय ऊर्जा: भारत में भतापीय ऊर्जा की बड़ी सम्भावनाए हैं। लगभग 340 गर्म चशमो की स्थितिया निर्धारित की जा चुकी है, जिनमे से कुछ का तापमान 80 से 100 संें है। जम्मू कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड, झारखंड तथा छत्तीसगढ़ में भूतापीय ऊर्जा का मूल्याकंन जारी है। कुछ स्थानों पर यह कार्य अभी चल रहा है, और कुछ अन्य स्थानों पर यह कार्य पूरा हो गया है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में मणिकर्ण नामक स्थान पर पांच किलोवाट का संयंत्र स्थापित किया जा चुका है। जम्मू कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में स्थित पुगा घाटी में 4-5 मेगावाट ऊर्जा का अनुमान लगाया गया है। छत्तीसगढ़ के तातापानी में भी संयंत्र लगाने की अनुमति प्राप्त हो चुकी है।
ज्वारीय ऊर्जा: भारत में 8000-9000 मेगावाट ज्वारीय ऊर्जा होने का अनुमान है। खम्भात की खाड़ी सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है जहां पर सम्भावित क्षमता 7000 मेगावाट है। इसके बाद कच्छ की खाडी (1000 मेगावाट) तथा सुन्दरवन (100 मेगावाट) प्रमुख है।
लहरीय ऊर्जा: समुद्र में लहरें उठती हैं, जिनसे भारत को 40,000 मेगावाट बिजली मिलने की सम्भावना है। इससे तटीय भागों को विशेष लाभ होगा। 150 किलोवाट क्षमता का संयंत्र केरल में तिरुवनंतपुरम के निकट स्थापित किया गया है। एक अन्य संयंत्र अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में लगाया जा रहा है।
कचरे से ऊर्जा: मानवीय क्रियाओं द्वारा कचरा बनना स्वाभाविक ही है। किसी सीमा तक मानव तथा पशुओं द्वारा पैदा किया गया कचरा पौधों के लिए खाद का काम कर सकता है और पर्यावरण का प्रदूषण भी नहीं होता। परन्तु यदि कचरा अधिक मात्रा में पैदा होने लगे तो उसके निपटान की समस्या गंभीर हो जाती है। भारत के बड़े नगरों तथा कुछ उद्योगों द्वारा उत्पादित कचरे से 2700 मेगावाट ऊर्जा पैदा की जा सकती है। मार्च 2007 तक 41.34 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए परियोजनाएं स्थापित की जा चुकी थीं। सन् 2006 तक ठोस कचरे से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए हैदराबाद, विजयवाडा तथा लखनऊ में 17.5 मेगावाट की क्षमता वाली तीन परियोजनाएं स्थापित की गई।
अन्य शहरी कचरा परियोजना में हेबोवाल, लुधियाना में पशुओं के अपशिष्ट पर आधारित परियोजना, सूरत में गंदे पानी की सफाई संयंत्र मे बायोगैस से ऊर्जा उत्पादन तथा विजयवाड़ा में बूचड़खाने और सब्जी बाजार के कचरे से 150 किलोवाट का संयंत्र प्रमुख हैं। सब्जी बाजार के कचरे पर आधारित 250 किलोवाट की एक परियोजना चेन्नई में स्थापित की जा रही है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…