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निकोल प्रिज्म क्या है , निकॉल प्रिज्म ,संरचना , सिद्धांत ,कार्यविधि (nicol prism in hindi , working , structure)
(nicol prism in hindi , working , structure) निकोल प्रिज्म क्या है , निकॉल प्रिज्म : निकोल प्रिज्म एक प्रकार की प्रकाशिक युक्ति है जिसका उपयोग कर प्रकाश को समान तीव्रता के दो लम्बवत और ध्रुवित प्रकाश पुंज के रूप में विभक्त करती है।
निकोल प्रिज्म केलसाइट क्रिस्टल का बना हुआ होता है , इसकी सहायता से E-किरण तथा O-किरण को आपस में पृथक किया जाता है।
निकोल प्रिज्म केलसाइट क्रिस्टल का बना हुआ होता है , इसकी सहायता से E-किरण तथा O-किरण को आपस में पृथक किया जाता है।
निकोल प्रिज्म का सिद्धांत (principle of nicol prism)
यह द्वि-अपवर्तन द्वारा प्रकाश के ध्रुवण के सिद्धान्त पर कार्य करता है , इस सिद्धांत के अनुसार जब किसी सामान्य प्रकाश या अध्रुवित प्रकाश को किसी विशेष प्रकार के क्रिस्टल जैसे केलसाइट , क्वार्टज़ या टूरमैलीन आदि में से गुजारा जाता है तो प्रकाश समान तीव्रता के के दो लम्बवत और ध्रुवित प्रकाश पुंजों में बंट जाता है।
अर्थात अध्रुवित प्रकाश O-किरण और E-किरण के ध्रुवित प्रकाश में विभक्त हो जाता है।
O-किरण (ordinary ray) , साधारण प्रकाश किरण होती है और यह स्नेल के नियम का पालन करती है।
E-किरण (extraordinary ray) को असाधारण प्रकाश किरण कहते है और यह स्नेल का नियम की पालना नहीं करती है।
O-किरण के लिए अपवर्तनांक का मान 1.688 होता है।
E-किरण के लिए अपवर्तनांक का मान 1.486 होता है।
दोनों के अपवर्तनांक अलग होते है अर्थात दोनों के कम्पन्न की दिशा अलग अलग होती है , लेकिन इससे निकलने के बाद वे समान्तर मार्ग अनुसरण करती है भले ही उनके तल लम्बवत हो।
निकोल प्रिज्म की संरचना (Construction of Nicol Prism)
यह केलसाइट क्रिस्टल की बनी होती है , इसकी लम्बाई का मान इसकी चौड़ाई से लगभग तीन गुना रखा जाता है।
इसके किनारों को इस प्रकार काटा जाता है की वो 68° और 112° हो जाए।
अब चित्रानुसार इनकी सतहों को तिरछा काट दिया जाता है , अब इन दोनों तिरछी काटी हुई सतहों को केनेडा बालसम नामक पदार्थ से पोलिश कर दी जाती है , केनेडा बालसम पदार्थ का अपवर्तनांक 1.55 होती है जो O-किरण और E-किरण के अपवर्तनांक के मध्य होती है।
निकोल प्रिज्म की कार्यविधि (Working of Nicol Prism)
जब कोई सामान्य प्रकाश को इस पर आपतित किया जाता है तो यह दो भागों में बंट जाता है O-किरण और E-किरण।
आगे के सिरे पर केनेडा बालसम के पदार्थ का लेप किया हुआ है जिसका अपवर्तनांक O-किरण और E-किरण के मध्य में होता है अर्थात इसका अपवर्तनांक E-किरण से अधिक होता है और O-किरण से कम होता है।
अत: स्पष्ट है कि केनेडा बालसम पदार्थ O-किरण के लिए विरल माध्यम की तरह व्यवहार करता है और E किरण के लिए सघन माध्यम की तरह व्यवहार करता है।
जब O-किरण केनेडा बालसम की परत में प्रवेश करती है तो प्रकाश सघन से विरल माध्यम में प्रवेश कर रहा है और जब आपतन कोण का मान क्रांतिक कोण से अधिक रखा जाए तो O-किरण का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन हो जाता है।
केवल E-किरण ही प्रिज्म से बाहर निकलती है जैसा चित्र में दर्शाया है।
इस प्रकार दोनों प्रकार की किरण अलग अलग प्राप्त होती है अर्थात सामान्य प्रकाश E-किरण और O-किरण के रूप में प्राप्त होता है।
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