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नई औद्योगिक नीति की घोषणा कब हुई | नई औद्योगिक नीति कब लागू हुई अपनाई गई new industrial policy was announced in which year in hindi

new industrial policy was announced in which year in hindi नई औद्योगिक नीति की घोषणा कब हुई | नई औद्योगिक नीति कब लागू हुई अपनाई गई नई आर्थिक नीति की आवश्यकता क्यों पड़ी विवेचना कीजिए ?

इस नीति के साध्य और साधन
नई औद्योगिक नीति ने स्वयं के लिए दो मुख्य उद्देश्य रखे। पहला उन्नतिशील अर्थव्यवस्था के लिए वातावरण तैयार करना था। दूसरा, औद्योगिक वृद्धि की घोषणा के लिए बाजार का उपयोग करना था। अब हम इन उद्देश्यों पर संक्षेप में चर्चा करेंगे।

इस नीति का कुल मिलाकर उद्देश्य इस प्रकार का विकास हासिल करना रहा है जो उद्योगों को उनके विकास में गतिशील बनाता है और जो जनता को न्याय प्रदान करता है। नीति वक्तव्य के अनुसार, इसका लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जिसमें भारत विश्व अर्थव्यवस्था के अंग के रूप में और न कि पृथक रूप से विकास करे। ठोस आर्थिक कार्यों और कार्यक्रमों की दृष्टि से, नीति ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को लक्षित किया। उद्यमियों की देशी क्षमताओं का पूरा-पूरा उपयोग करना, देशी प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए अनुसंधान और विकास प्रयासों का पोषण करना, निवेश में वृद्धि करना, कौशल और उत्पादकता में सुधार करना, एकाधिकारवादी व्यवहारों पर अंकुश लगाना, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लिए सम्यक् क्षेत्रों को निर्दिष्ट करना और कर्मकारों का कल्याण तथा प्रौद्योगिकीय परिवर्तन की अनिवार्यता से निबटने में श्रमिकों को समर्थ बनाने हेतु कौशल और सुविधाएँ सुनिश्चित करना। बाहरी क्षेत्र के संबंध में, जहाँ नीति में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की निरंतरता बनी रही वहीं स्वयं विदेशी मुद्रा अर्जित करके अपने आयातों के लिए भुगतान करने की क्षमता के निर्माण पर भी काफी जोर दिया गया।

विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने में, यह नीति बाजार का व्यापक रूप से उपयोग करने पर विशेष दृष्टि से विचार करती है। इसका आशय प्रतिबन्धातमक और विनियामक व्यवस्था को समाप्त करना और उसके द्वारा औद्योगिक अर्थव्यवस्था को अनावश्यक नौकरशाही नियंत्रण के मकड़ जाल से मुक्त करना है। उद्योगों के बीच उद्योगों के प्रकार, उनके पैमानों के आकार और उत्पादों के स्वरूप के मामले में संसाधनों का आबंटन बाजार मूल्यों द्वारा निर्धारित किया जाएगा। यह स्वतंत्रता उद्यमियों के बीच प्रतिस्पर्धा का भी पोषण करेगा। पूँजी बाजार का विकास करना भी इसका अभिप्राय है ताकि उद्यमियों के लिए वित्तीय संसाधन का साधन उपलब्ध कराया जा सके। इसमें विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों जैसे ऋण, शेयर, डिबेंचर इत्यादि का अभिर्भाव सम्मिलित है। इस नीति में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (अर्थात् इक्विटी पूँजी) और प्रौद्योगिकी के सरल प्रवेश का प्रावधान है। यहाँ तक कि विदेशी निजी ट्रेडिंग हाउसों को भी भारत के निर्यात के विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है। तथापि, सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका उद्योग के कुछ अनिवार्य क्षेत्रों तक ही सीमित है। इन सभी उपायों का सार यह है कि औद्योगिक विकास बाजार और निजी उद्यमियों द्वारा शासित होगा न कि नौकरशाह द्वारा और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, हालाँकि अप्रत्यक्ष रूप से ही, सहायता करेंगे।

बोध प्रश्न 1
1) सही उत्तर पर ( ) निशान लगाइए।
क) औद्योगिक नीति संकल्प जो आज तक औद्योगिक नीति की आधारशिला रही है की
घोषणा की गई थी।
प) 1947
पप) 1948
पपप) 1956
ख) नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गई।
प) जुलाई 1990
पप) जून 1991
पपप) जुलाई 1991

2) नई औद्योगिक नीति के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
(एक वाक्य में उत्तर दीजिए)

बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) (क) पपप (ख) पपप
2) भाग 9.2 पढ़िए।

उददेश्य
वर्ष 1991 से लागू नई औद्योगिक नीति (एन आई पी) पुरानी नीतियों में भारी बदलाव की सूचक है। इसमें औद्योगिक परिदृश्य में जिन परिवर्तनों की बात की गई है उससे संपूर्ण आर्थिक जनजीवन में भारी बदलाव आने की संभावना है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ इस नीति की विभिन्न विशेषताओं के बारे में चर्चा कर सकेंगे;
ऽ देश के औद्योगिक विकास के लिए उनका निहितार्थ समझ सकेंगे; और
ऽ भारत द्वारा सामने की जा रही अनेक गंभीर समस्याओं के समाधान में इस नीति के योगदान की
दृष्टि से इसका मूल्यांकन कर सकेंगे।

 प्रस्तावना
इससे पहले की इकाई में आपने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अस्सी के दशक तक अपनाई गई औद्योगिक नीति संकल्पों के बारे में पढ़ा। नब्बे के दशक में पुरानी नीति में भारी बदलाव आया। नई नीति की घोषणा दो भागों में की गईं पहला भाग, जिसकी घोषणा 24 जुलाई, 1991 को की गई बड़े उद्योगों और मध्यम आकार के उद्योगों से संबंधित था। दूसरा भाग, जिसकी घोषणा 6 अगस्त, 1991 को की गई, लघु उद्योगों से संबंधित था। इस नीति से पहले, अनेक नीति वक्तव्य उद्योगों के कृत्यों को शासित करते थे। तथापि, जैसा कि पहले की इकाई में चर्चा की गई है सबसे महत्त्वपूर्ण नीति निरूपण, जो कि पूरी व्यवस्था की आधारशिला रही है, वह 1956 में घोषित नीति वक्तव्य थी। इससे पहले स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक बाद 1948 में पहले नीति वक्तव्य की घोषणा की गई थी। परवर्ती घोषणाएँ मोटे तौर पर 1956 की ही नीति के एक अथवा अन्य भाग या भागों में छोटे-छोटे परिवर्तनों के रूप में थीं जो तत्कालीन समस्याओं के समाधान के लिए की गई थी। इस तरह की नीति वक्तव्य सबसे पहले 1973 में और उसके बाद 1977, 1980, 1985 और 1986 में दिए गए। इन सभी नीति वक्तव्यों के परिणामस्वरूप 1956 की नीति में कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए। किंतु 1956 की नीति की मूल भावना को अक्षुण्ण बनाए रखा गया। तथापि, अपनाई गई नीतियों की कटु आलोचना की गईं यह तर्क दिया गया कि इन औद्योगिक नीतियों ने अकुशलता, क्षमताओं के कम उपयोग, कुप्रबन्धन, लालफीताशाही इत्यादि को जन्म दिया और औद्योगिक नीति में परिवर्तन पर विचार किया जाने लगा। परिणामस्वरूप 1991 में एक नई औद्योगिक नीति आई। यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है कि न सिर्फ आलोचना के कारण अपितु चारों ओर व्याप्त अन्तरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय वातावरण के कारण भी उदारीकरण की दिशा में नीति में बदलाव किया गया।

वास्तव में, भारतीय अर्थव्यवस्था इतने दबाव में कभी नहीं रही जितना कि यह 1990-91 के दौरान थी। अन्तरराष्ट्रीय कारकों जैसे खाड़ी युद्ध, यू एस एस आर का बिखर जाना हो और केन्द्र में अनिश्चित राजनीतिक स्थिति के कारण भारत की विश्व वित्त बाजार में ऋण सुपात्रता (ब्तमकपज ॅवतजीपदमेे) की रेटिंग में भारी गिरावट आई जिसके परिणामस्वरूप देश में भुगतान-संतुलन स्थिति अत्यन्त गंभीर हो गईं जुलाई 1990 और जून 1991 के बीच विदेशी मुद्रा भण्डार घट कर अत्यन्त ही खतरनाक स्तर तक पहुँच गया और घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था के अंदर कई परेशान करने वाले कारक जैसे दो अंकों में मुद्रा-स्फीति, मध्यकालिक समायोजन पैकेज के कार्यान्वयन में विलम्ब तथा राजनीतिक अस्थायित्व ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव को और भी बढ़ा दिया। भारतीय अर्थव्यवस्था की इस तरह की निराशाजनक तस्वीर के मद्देनजर सरकार ने तत्कालीन आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के प्रयास में एक के बाद एक कई उपाय किए तथा कतिपय नीतिगत फैसलों की घोषणा की। इनमें नई औद्योगिक नीति, एक्जिम नीति, एक्जिम स्क्रिप्स, लघु और कुटीर उद्योगों के लिए एक नीति, रुपए का अवमूल्यन इत्यादि-इत्यादि सम्मिलित थे। यह सभी नीतियों नीतिगत सुधार के पूरे पैकेज को निरूपित करती हैं जिसका लक्ष्य भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रेरक शक्ति को तत्काल पुनरुज्जीवित करना था।

इन नीतियों में, जिसका उद्देश्य पूरी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण करना था, नई औद्योगिक नीति का स्थान सबसे आगे है, और इसका लक्ष्य औद्योगिक कुशलता को अन्तरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाना और मुख्य रूप से इसके माध्यम से औद्योगिक वृद्धि को त्वरित करना था। 24 जुलाई, 1991 को संसद के समक्ष प्रस्तुत नई औद्योगिक नीति वक्तव्य निम्नलिखित क्षेत्रों से संबंधित था: औद्योगिक लाइसेन्सिंग नीति, विदेशी निवेश, विदेशी प्रौद्योगिकी समझौता, सार्वजनिक क्षेत्र नीति और एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापारिक व्यवहार (एम आर टी पी) अधिनियम। इन नीतियों का मूल उद्देश्य कुशलता बढ़ाना और औद्योगिक वृद्धि को त्वरित करना था।

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