हिंदी माध्यम नोट्स
लेनिन की नई आर्थिक नीति क्या थी , NEP new economic policy of lenin in hindi
पढ़िए लेनिन की नई आर्थिक नीति क्या थी , NEP new economic policy of lenin in hindi ?
प्रश्न: लेनिन की नई आर्थिक नीति – NEP (New Economic Policy)
उत्तर: मार्च, 1921 को नई आर्थिक नीति के अंतर्गत लेनिन ने समाजवाद एवं पूंजीवाद के बीच समझौता किया। इसे लेनिन का अस्थायी पीछे हटना
(Temporary Retreat) कहते है। इसके तहत ।
(i) रूस में समृद्ध (सम्पन्न) किसानों कुलक्स (Kulaks) को निजी, कृषि फार्म स्थापित करने की अनुमति दे दी गई। खाद्यान्नों पर लेवी
समाप्त कर दी गई। सरप्लस धान को बेचने को अनुमति दे दी गई। सीमित निजी व्यापार को अनुमति दे दी गई।
(ii) छोटे उद्योग पुनः उद्योग मालिकों को सौंप दिये गये। बड़े उद्योगों पर राज्य NEP के परिणामस्वरूप रूस में आर्थिक विकास हुआ।
विदेशी निवेशकों को रूस आमंत्रित किया गया। विदेशी देशों के साथ व्यापारिक संधियां की गई। इस कारण से रूस में लोहा, कोयला
व तेल का उत्पादन कई गुना बढ़ गया। किसानों के सामूहिक सहकारिता संघ स्थापित किये गये। इससे किसानों को आर्थिक लाभ
मिला। छम्च् के कारण बोल्शेविक सरकार को स्थिरता प्राप्त हुई।
प्रश्न: लेनिन की नयी आर्थिक नीतिश् (New Economic Policy – NEP 1921) क्या थी? क्या वह इस नीति के जरिए अपने उद्देश्य प्राप्त करने में सफल रहा ?
उत्तर: लेनिन की साम्यवादी सरकार की नीति-किसानों से जबरदस्ती अनाज लेना, उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना आदि से जन विद्रोह, कृषक
विद्रोह हुए। जिन्हें 1920-21 में क्रूरता से दबा तो दिया पर स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए इन असंतोष के कारणों का निराकरण
किया। लेनिन ने कहा ष्हम ऐसी दरिद्रता तथा ऐसे विनाश की अवस्था में पहुंच गये हैं और हमारे किसानों व मजदूरों की उत्पादक शक्ति
का इतना हास हो गया है कि हमें उत्पादन बढाने के लिए सभी सिद्धान्तों को अलग रख देना है। उसने साम्यवादी व्यवस्था में परिवर्तन
करने और पूंजीवादी व्यवस्था की ओर वापस लौटने का निश्चय किया – इसके लिए नयी आर्थिक नीति बनायी। इसके अनुसार हमें
एक कमद पीछे हटना होगा, जिससे कि हम दो कदम आगे बढ़ सके। अर्थात साम्यवाद को बचाने के लिए थोडा सा पूँजीवाद अपनाना
होगा। इसके तहत निम्न कार्यक्रम शुरू किए गए – .
i. कृषि का पुनरूद्धार : कृषक की अतिरिक्त उपज की अनिवार्य वसूली बन्द करके कृषि उत्पादन पर कर लिया जाने लगा। विदेशी व्यापार से प्रतिबंध हुआ लिया, फुटकर व्यापार शुरू किया गया। अनाज के स्थान पर रूबल म कर लिया जाने लगा।
ii. कृषि का राष्ट्रीयकरण : सरकारी फार्म खोलने का मुख्य उद्देश्य तो विस्तृत वीरान या ऊसर भूमि को खेती योग्य बनाना तथा प्रबंध सरकार की ओर से किया जाना था। सामूहिक फार्मों का निर्माण कई किसानों को मिलाकर करना था। यह कार्य बड़ी तीव्र गति से हुआ, जमींदारों से उनके भूमि, कृषि औजार, पशु आदि छीन लिए गये।
iii. सामूहिकीकरण रू छोटे-छोटे किसानों पर दबाव डालकर सामूहिक फार्मों में सम्मिलित किए गए।
i. पहले वे फार्म जिनमें किसान अपनी भूमि सम्मिलित करके सामूहिक खेती करते और पैदावार को आपस में बाट लत अर्थात् जमीन तो सबकी शामिल थी पर कृषि औजार, पशु निजी थे।
ii. आर्टल (Artel) : जिनमें भूमि और श्रम के साथ-साथ पूँजी का भी सामूहिकीकरण हुआ।
iii. कम्यून : जिनमें सभी वस्तुओं का सामूहिकीकरण कर दिया। किसानों की कोई निजी वस्तु नहीं थी। उन्हें सम्मिलित भण्डार से अपनी
आवश्यकता को वस्तु प्राप्त हो जाती थी। अब सोवियत संघ बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन वाला देश बन चुका था।
iv. उद्योगों का राष्ट्रीयकरण : बोल्शेविक सरकार ने भूमिपतियों की तरह बिना मआवजे के व्यवसायियों व पूँजीपात से उद्योग छीनकर
मजदूरों की समिति को सौंपा और उन्हें व्यापक अधिकार दिए पर मामला चला नहीं। नई आ नीति के तहत 20 से कम मजदूरों वाले
उद्योगों का निजीकरण कर दिया तथा माल-विक्रय का अधिकार दिया गया
635 अब अलग उद्योगों के लिए अलग-अलग सिंडीकेट बनाये तथा सिंडीकेटों में सरकारी आदमी बिठाये गये। सिण्डीकेट की ओर से मिल को सूचित किया जाता कि कितना कच्चा माल दिया जायेगा. क्या कीमत होगी. मजदूरों को कितनी मजदूरी दी जायेगी और उसे क्या तैयार माल करना है। जैसे कपडा, लोहा, इस्पात, कागज, चीनी आदि सभी सिण्डीकेटों को मिलाकर एक केन्द्रीय व्यवसाय संस्थान की रचना की गई। ताकि विविध व्यवसाय आपसी सहयोग से अपना विकास कर सके। इस नीति के परिणामस्वरूप रूस के उद्योग धंधों का कायाकल्प हो गया।
अ. मुद्रा सधार एवं व्यवस्था रू गृह युद्ध से रूबल का पूरी तरह अवमूल्यन हो चुका था। अतः 1922 में शासकीय बैंक को श्चेवोनल्सश् (10
स्वर्ण रूबल में बराबर) बैंक नोट जारी करने के लिए प्राधिकृत किया गया। 1924 में रूबल की विनिमय दर स्थिर कर दी।
व्यवसाय के लिए व्यवस्था
i. मुनाफे में जो रकम डाली जाती उसे व्यवसाय उन्नति के लिए काम में ले सकता था।
ii. सरकारी बैंक से कर्ज कारखानों को दिया जा सकता था।
iii. राज्य की ओर से सहायता अनुदान।
कारखाने के लाभ का एक निश्चित भाग सरकार को मिलता, एक भाग कारखाने के रिर्जव फण्ड में डाला जाता तथा, शेष भाग मजदूरों की शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य भलाई के लिए व्यय किया जाता।
iv. श्रम और मजदूर संघ नीति रू इस नीति के तहत श्रमिकों को सुविधाओं के अलावा, कुछ नगद मुद्रा भी दी जाने लगी जिससे निजी व्यापार बढ़ गया। इस व्यवस्था में मजदूरों का महत्वपूर्ण स्थान हो गया। उद्योगों पर त्रिकोणात्मक नियंत्रण स्थापित किया गया। एक प्रबंधक काम का संचालन करता, एक पार्टी की समिति जिसमें कम्यूनिष्ट दल के साथ होते, एक फैक्ट्री कमेटी जो ट्रेड यूनियन का प्रतिनिधित्व करती। बोल्शेविक पार्टी ने औपचारिक तौर पर लेनिन की इस नई आर्थिक नीति का 1929 में परित्याग कर दिया।
प्राचीन काल में शिक्षा
गुप्तोतर काल
हर्ष के काल में कला एवं शिक्षा ने एक नई उड़ान भरी। उसने सभी स्तरों पर शिक्षा को प्रोत्साहित किया। शिक्षा मंदिरों एवं विहारों में तथा उच्च शिक्षा तक्षशिला, उज्जैन, गया एवं नालंदा के विश्वविद्यालयों में दी जाती थी। नालंदा में, द्वेनसांग ने बौद्ध मूर्तिकला के अध्ययन में कई वर्ष व्यतीत किए। शीलभद्र नामक विख्यात विद्वान इस विश्वविद्यालय का प्रमुख था।
सातवीं और आठवीं शताब्दियों में मंदिरों से सम्बद्ध ‘घटिका’ या काॅलेज अधिगम के नवीन केंद्र के तौर पर उदित हुए। ‘घटिकाओं’ ने ब्राह्मण या वैदिक शिक्षा प्रदान की। शिक्षा का माध्यम संस्कृत था। इन मंदिर रूपी काॅलेजों में केवल उच्च जातियों या द्विज को ही प्रवेश मिलता था। संस्कृत के शिक्षा के माध्यम होने से शिक्षा आमजन से दूर होती चली गई। शिक्षा समाज के कुलीन वर्गें का विशेषाधिकार बन गई। प्राचीनकाल में शिक्षा वैयक्तिक चिंतन का विषय था। शिक्षा का उद्देश्य छात्र के समग्र व्यक्तित्व का विकास करना था। शिक्षा के इस दृष्टिकोण के अनुरूप यह किसी के आंतरिक विकास व आत्म संतोष की एक प्रक्रिया है जिसमें तकनीकियांए नियम एवं पद्धतियां शामिल होती हैं। यह समझा जाता था कि एक व्यक्ति के विकास के लिए, प्राथमिक तौर पर उसके मस्तिष्क को ज्ञान हासिल करने के लिए तैयार करना जरूरी है। यह ज्ञान उसकी सृजनात्मक क्षमता में वृद्धि करेगा। ‘मनन शक्ति’ को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता था। इस प्रकार, शिक्षा का प्राथमिक विषय मस्तिष्क का विकास करना था।
प्राचीन भारत के लोग धातुकर्म, भट्टा ईंट, क्षेत्रफल मापन जैसे अनुप्रयोगात्मक विज्ञान से परिचित थे। औषधि का वैज्ञानिक तंत्र वैदिक युग के पश्चात् हुआ। तक्षशिला एवं वाराणसी जैसे शिक्षा के केंद्रों पर औषधि अध्ययन का एक विषय बन गया। औषधि पर ‘चरक संहिता’ और शल्य चिकित्सा पर ‘सुश्रुत संहिता’ इस क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण कार्य थे।
प्राचीन गिजी.शिक्षक व्यवस्था और बौद्ध विहार संगठन ने मिलकर हिंदुओं के तीन विभिन्न प्रकार के शैक्षिक संस्थानों के विकास को प्रोत्साहित किया। ये तीन संस्थान थे (i) गुरुकुल स्कूल; (ii) मंदिर काॅलेज; (iii) अग्रहार ग्राम संस्थान।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…