तंत्रिका तंत्र की परिभाषा क्या है , nervous system in hindi मानव तंत्रिका तंत्र प्रकार , संरचना चित्र , कार्य

nervous system in hindi तंत्रिका तंत्र की परिभाषा क्या है , मानव तंत्रिका तंत्र प्रकार , संरचना चित्र , कार्य किसे कहते है , ह्युमन नर्वस सिस्टम क्या होता है , अंगो के नाम कौन कौन से है ?

परिचय : शरीर को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी व उसके अनुसार प्रतिक्रिया करने के लिए तंत्रिका तंत्र की आवश्यक होती है | तन्त्रिका तंत्र की क्रियाएँ तीव्र होती है , तंत्रिका तन्त्र भ्रूणीय परिवर्तन के दौरान बनने वाला प्रथम तंत्र होता है , तंत्रिका तंत्र का उद्भव एक्टोडर्म के द्वारा होता है , मनुष्य में तंत्रिका तंत्र को तीन भागों में बाँटा गया है –

  1. केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र (CNS)
  2. परिधीय तंत्रिका तंत्र (PNS)
  3. स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (ANS)
  4. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) : इसके द्वारा प्राप्त संवेदनाओ का विश्लेषण किया जाता है –
  • मस्तिष्क (Brain) : यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का महत्वपूर्ण भाग होता है , इसका भार 1.4Kg होता है , यह कपाल द्वारा घिरा रहता है , मस्तिष्क के चारो ओर संयोजी ऊत्तक से निर्मित मस्तिष्क आवरण पाया जाता है जो मस्तिष्क को चोट , दुर्घटना एवं बाहरी आघातों से सुरक्षा करता है तथा पोषण प्रदान करता है | मस्तिष्क आवरण निम्न तीन झिल्लियों का बना होता है –
  • दृढतानिका (ड्यूरामेटर) : यह मस्तिष्क की सबसे बाहरी झिल्ली होती है , यह मोटी व दृढ होती है , इस परत में कोलेजन तन्तु पाये जाते है इसमें अनेक रक्त पात्र होते है | दृढतानिका व जाल तानिका के मध्य ड्यूरल अवकाश पाया जाता है जिसमे सिरमी द्रव भरा होता है जो दोनों परतो को नम व चिकना बनाएँ रखता है |
  • जालतानिका (एरेकनॉइड) : यह मध्य मस्तिष्क आवरण है , इसमें रुधिर केशिकाओं का जाल पाया जाता है , जाल तानिका व मृदुतानिका के मध्य अद्योजालतानिका अवकाश पाया जाता है जिसमें प्रमस्तिष्क मेरुद्रव भरा होता है |
  • मृदु तानिका (पायामेटर) : यह सबसे भीतरी मस्तिष्क आवरण है , यह मस्तिष्क व मेरुराज्जू से चिपकी रहती है , इस परत में भी रूधिर कोशिकाओ का जाल पाया जाता है जिससे मेरुरज्जु व मस्तिष्क को पोषण व ऑक्सीजन प्राप्त होती रहती है |

प्रमस्तिष्क मेरुद्रव : यह द्रव क्षारीय प्रकृति का होता है , इसकी मात्रा 150ml होती है , इसमें प्रोटीन , ग्लूकोज , यूरिया Cl, K+ , Na+ , Ca++ , CO3 , SO4 , PO4 , क्रिएटिन व यूरिक अम्ल पाये जाते है |

कार्य

  • यह मस्तिष्क व मेरुरज्जु को सुरक्षित व नम बनाए रखता है |
  • यह मस्तिष्क व रक्त के मध्य पोषक पदार्थो CO2 व O2 का आदान प्रदान करता है |
  • यह मस्तिष्क व मेरुरज्जू की रोगाणुओं से सुरक्षा भी करता है |

मस्तिष्क की संरचना

मस्तिष्क निलय : मस्तिष्क में खोखली व अनियमित निलय पायी जाती है जिनमें मेरुद्रव भरा होता है , ये चार प्रकार की होती है –

  • दाँया व बाँया निलय : ये दोनों निलय प्रमस्तिष्क में स्थित होते है , ये मोनरो के छिद्र द्वारा तृतीय निलय से जुड़े होते है |
  • तृतीय निलय : यह थैलेमान के मध्य डायएनसेफेलोन में स्थित होता है , यह प्रमस्तिष्क जल सेतु द्वारा चतुर्थ निलय से जुड़ा होता है |
  • चतुर्थ निलय : यह अनुमस्तिष्क के नीचे स्थित होता है , इसकी छत के पिछले भाग में 3 छिद्र होते है , मध्य का छिद्र मेगेंडी का छिद्र तथा पाशर्व के छिद्र लुस्का के छिद्र कहलाते है |

मस्तिष्क के तीन भाग होते है –

  1. अग्रमस्तिष्क (fore brain)
  • प्रमस्तिष्क (cerebrelle) : यह पूरे मस्तिष्क का 80% भाग होता है , यह अनुलम्ब विदर से दो भागों में बाँटा होता है | जिन्हें दायाँ व बायाँ प्रमस्तिष्क गोलार्द कहते है , दोनों गोलार्द कोर्पस केलोसन नामक संयोजी तन्तु से आपस में जुड़े होते है , प्रत्येक प्रमस्तिष्क गोलार्द को तीन दरारें , चारपालियो या पिण्डो में बांटती है |
  • अग्र लाट पाली (frantal lobe) : यह सबसे आगे व सबसे बड़ी पाली होती है , यह बोलने की क्रिया को सम्पादित करती है |
  • भित्तिय पालि (Parietal lobe) : यह अग्रलाट पालि के पीछे स्थित होती है , इसे पाशर्व कपालखण्ड भी कहते है , इसमें संवेदी व प्रेरक केन्द्र होते है |
  • शंख पालि (Temporal lobe) : यह भित्तिय पाली के नीचे स्थित होती है , इसमें श्रवण व प्राण संवेदी केन्द्र होते है |
  • अनुकपाल पालि (oxipital lobe) : यह सबसे छोटी व सबसे पीछे की ओर स्थित होती है , इसमें दृष्टि संवेदी केंद्र होते है |

प्रमस्तिष्क के कार्य

  • यह शरीर के विभिन्न भागों से स्पर्श , दर्द , चूमन आदि संवेदी उत्तेजनाओ को ग्रहण करता है |
  • श्रवण संवेदी क्षेत्र शंखपालि में दृष्टि संवेदी केन्द्र अनुकपाल पालि में , घ्राण संवेदी क्षेत्र शंख पालि में तथा वाणि संवेदी केन्द्र अग्रलाट पालि में पाये जाते है |
  • प्रमस्तिष्क मानव मस्तिष्क का सर्वाधिक विकसित भाग होता है | यह बुद्धिमता , चेतना , अनुमत , विश्लेषण क्षमता , तर्कशक्ति , वाणि आदि उच्च मानसिक क्रियाकलापों का केन्द्र है |
  • यह संवेदी प्रेरक तथा समन्वय का केंद्र भी कहते है |
  • डायएनसेफेलॉन (अग्रमस्तिष्क पश्च) : यह अग्र मस्तिष्क का पश्च भाग है , इसे थैलमैनसेफेलॉन भी कहते है , इसके तीन भाग होते है –
  • एपिथैलेमस / अधिचेतन : यह तृतीय गुहा की छत के रूप में होता है , इसमें रक्तक जाल होता है , इसकी मध्य रेखा पर पीनियल ग्रन्थि व दोनों पाशर्व में थैलेमिक केन्द्र होते है |
  • थैलेमस / चेतन : यह अण्डाकार एवं दो मोटे पिण्डको के रूप में होता है , यह पूरे डायऐनसेफेलॉन का 80% होता है , इसके पिण्डक मेरुरज्जू व मस्तिष्क के विभिन्न भागों में संवेदी व प्रेरक आवेगों को ले जाने के लिए प्रसारण केन्द्र का कार्य करते है , ये संवेदी सूचनाएं जैसे – दृष्टि , स्वाद , स्पर्श , ताप , दाब कम्पन्न , पीड़ा आदि सूचनाओ का प्रसारण करते है | यह स्पर्श , दाब , पीडा , ताप , हर्ष , विषाद (दुःख) आदि की संवेदना की व्याख्या करने में समर्थ है |
  • हाइपोथैलेमस / अद्यचेतन : यह डायऐनसेफेलॉन की पाशर्व दीवारों का नीचला भाग तथा तृतीय निलय का फर्श बनाता है | इससे तंत्रिका कोशिकाओ के लगभग एक दर्जन बड़े बड़े केन्द्रक होते है , यह तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्त: स्त्रावी तंत्र में सम्बन्ध स्थापित करता है | इसमें स्वायत्त तंत्रिका के उच्च केन्द्र होते है , यह शरीर के ताप तथा समस्थापन का नियंत्रण करता है , इसके द्वारा मोचक व निरोधी न्यूरो हार्मोन स्त्रवित होते है |

(2) मध्यमस्तिष्क (mid brain / mesencephalon) : यह मस्तिष्क का सबसे छोटा भाग है , प्रमस्तिष्क के नीचे व पश्च मस्तिष्क के ऊपर स्थित होता है , मध्य मस्तिष्क की गुहा सकरी होती है , इसे इटर कहते है | मध्य मस्तिष्क को दो भागों में बाँटा गया है |

(क) क्रूरा सेरिब्राई : यह एक जोड़ी डंडलनुमा वृन्त है , यह प्रमस्तिष्क को पश्च मस्तिष्क व मेरुरज्जू से जोड़ाता है |

(ख) कॉर्पोरा क्वादड्रीजेमिना : यह चार गोल उभारो का बना होता है , प्रत्येक उभार को कीलिकुलस कहते है , इसमें कई केन्द्रक होते है |

मध्य मस्तिष्क के कार्य

  • यह पेशियों गतियो का समन्वय करता है |
  • इसके कोलिकुलान दृष्टि व श्रवण सम्बन्धी क्रियाओं का प्रतिवृत्तो की तरह कार्य करते है |

(3) पश्च मस्तिष्क (Hind brain or rhombencephalon) : इसके तीन भाग होते है –

(A) अनुमस्तिष्क (cerebrum) : यह स्तनधारियों में अत्यधिक विकसित होता है , यह पाँच पिण्डको द्वारा निर्मित होता है | 1 वर्मिस पिण्डक 2 पाशर्व पिण्ड और 2 प्लोक्यूलस होते है , वर्मिस सबसे बड़ा पिण्ड होता है , इसकी सतह पर अनेक वलन पाये जाते है |

कार्य

  • यह प्रमस्तिष्क द्वारा प्रेरित ऐच्छिक गतियो के लिए पेशियों का समन्वय करता है |
  • यह कंकाल पेशियो के समुचित संकुचन द्वारा चलने फिरने , दौड़ने , लिखने आदि क्रियाओं को सुगम बनाता है |
  • यह शरीर का संतुलन व साम्यावस्था बनाए रखने में सहायक होता है |
  • पोन्स वेरोलाई (pons varalli) : यह मेडुला ऑव्लागेंटा के ऊपर व प्रमस्तिष्क वृतको के नीचे स्थित होता है , यह अनुमस्तिष्क की पालियो को जोड़ने का कार्य करता है |

कार्य

  • यह चर्वण क्रिया , लार स्त्रवण , अश्रुपात तथा नेत्रों की गतिशीलता का नियंत्रण करता है |
  • इसमें श्वसन नियन्त्रण केन्द्र पाये जाते है |
  • मेडुला ऑवलागेटा : यह मस्तिष्क का सबसे अन्तिम व नीचला भाग होता है , इसकी गुहा को चतुर्थ निलय कहते है | मस्तिष्क व मेरुरज्जु के मध्य थैले सभी संवेदी व प्रेरक तंत्रिका क्षेत्र मेडुला में ही विद्यमान होते है |

कार्य

मेडुला ऑवलागेटा सभी अनैच्छिक क्रियाओ जैसे श्वसन , आहारनाल के क्रमांकुचन , ह्रदय स्पंदन आदि क्रियाओ पर नियंत्रण करता है , मेडुला में निगलना , वमन , छिकने व खासने की क्रियाओ के केंद्र होते है |

  1. मेरुरज्जू (spinal cord) : यह मेडुला का ही खोपड़ी के महारन्ध्र के नीचे विस्तार है , यह तंत्रिका नाल में स्थित होता है , यह प्रथम कशेरुकी से अन्तिम कशेरुक तक फैली रहती है , मनुष्य में यह 45cm लम्बी , खोखली व बेलनाकार संरचना होती है , यह अग्र व पश्च भाग में फूलकर क्रमशः बाहुउत्फुलन व कटि उत्फुलन बनाती है | इसका अन्तिम पतला सिरा अन्तय सूत्र कहलाता है , मस्तिष्क के समान इस पर तीन झिल्लियाँ पायी जाती है | इसमें धूसर द्रव व श्वेत द्रव भरे होते है |

कार्य

  • यह प्रतिवर्ती क्रियाओ का मुख्य केन्द्र होता है |
  • यह शरीर के विभिन्न भागों व मस्तिष्क के मध्य सम्बन्ध बनाए रखने का कार्य करता है |

परिधीय तंत्रिका तंत्र (peripheral nervous system)

परिधीय तन्त्रिका तन्त्र में कपालीय तंत्रिकाएँ व मेरु तंत्रिकाएं शामिल है , मनुष्य में 12 जोड़ी जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएँ पायी जाती है |

  • घ्राण तंत्रिकाएँ
  • दृक तंत्रिकाएँ
  • अक्षि चालक तंत्रिकाएं
  • चक्रक तंत्रिकाएँ
  • ट्राइजेमिनल तंत्रिकाएँ
  • अपचालक तंत्रिकाएं
  • आननी तंत्रिकाएँ
  • श्रवण तंत्रिकाएं
  • जिह्वा ग्रसनी तंत्रिकाएँ
  • वेगस तंत्रिकाएं
  • सुषुम्नीय तंत्रिकाएँ
  • जिव्हा अद्योग्रसनी तंत्रिकाएँ

मनुष्य में 31 जोड़ी मेरुतंत्रिकाएँ होती है जो मेरुरज्जु से निकलती है , ये मिश्रित प्रकृति की होती है |

  • ग्रीवा तंत्रिकाएँ – 8 जोड़ी
  • वक्षीय – 12 जोड़ी
  • कटि तंत्रिकाएँ – 5 जोड़ी
  • त्रिक तंत्रिकाएँ – 5 जोड़ी
  • पुच्छीय तंत्रिकाएं – 1 जोड़ी

स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (autonomic nervous system)

शरीर की अनैच्छिक क्रियाओ का नियंत्रण व नियमन स्वायत तंत्रिका तंत्र द्वारा किया जाता है , इस तंत्र की खोज लेंग्ले द्वारा की गई | यह केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से सम्बन्धित होता है , यह संरचनात्मक व क्रियात्मक आधार पर दो प्रकार का होता है |

अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (sympathetic nervous system) : अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र की गुच्छिकाएं मेरुरज्जू व कटि के धूसर द्रव से निकलती है अत: इसे वक्षीय कटि तंत्र भी कहते है |

परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र (Ansympathetic nervous system) : यह शरीर की सभी सामान्य क्रियाओ का नियमन व नियंत्रण करता है , शरीर की आन्तरिक वातावरण की अखंडता को बनाए रखने में सहायक है | अनुकम्पी व परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र एक दूसरे के विपरीत कार्य करते है |

आंतरागो के नाम अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र
1.       आइरिस पुतली का फैलना पुतली का सुकड़ना
2.       अश्रु ग्रंथियाँ उत्तेजन संदमन
3.       लार ग्रंथियां संदमन उत्तेजन
4.       ह्रदय स्पन्दन ह्रदय स्पंदन बढाता है कम करता है
5.       फेफड़े फैलाव करता है सिकुडन करता है
6.       रुधिर वाहिकाएँ संकिर्णन करता है विस्तारण करता है
7.       आहारनाल क्रमांकुचन में कमी करता है क्रमांकुचन में वृद्धि करता है
8.       अधिवृक्क ग्रन्थि उत्तेजन संदमन
9.       बालों की पेशियाँ बालों को खड़ा करता है बालों को शिथिल करता है
10.    स्वेद ग्रंथियां उत्तेजन संदमन
11.    मूत्राशय मूत्राशय को शिथिल करता है मूत्राशय को सिकोड़ता है

मानव तंत्रिका तंत्र (human nervous system in hindi)

तंत्रिका तंत्र संवेदी अंगों, तंत्रिकाओं, मस्तिष्पा, मेरुरज्जु एवं तांत्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य मुख्यतया मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु के द्वारा किया जाता है। समस्त तंत्रिका तंत्र अनेक तंत्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। एक तंत्रिका कोशिका दूसरी से एक अत्यन्त सूक्ष्म अंदार द्वारा अलग होती है। यह तंत्र विभिन्न अंगों के बीच समन्वय तथा बाह्य वातावरण के प्रति प्राणी की उत्तेजनशीलता के लिए उत्तरदायी होता है।

ऽ तंत्रिका तंत्र मनुष्य में सर्वाधिक विकसित होता है। मनुष्य में इसके दो भाग हैंः

1. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र

2. परिधीय तंत्रिका तंत्र

ऽ केन्द्रीय तंत्रिका तंत्रः केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क व मेरूरज्जू से मिलकर बना होता है। समस्त वातावरण से आधी संवेदनाएं फैन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में पहुंचती है। यहीं से किसी भी प्रतिक्रिया के लिए आदेश दिए जाते हैं।

ऽ परिधीय तंत्रिका तंत्रः यह तंत्र मस्तिष्क एवं मेरुरज से निकलने वाली तंत्रिकाओं से बना होता है, जिन्हें क्रमशः कपालीय तंत्रिकाएं एवं मेरुरज्जु तंत्रिकाएं कहते हैं। मनुष्य में 12 जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएं एवं 31 जोड़ी मेरुरज्जु तंत्रिकाएं होती हैं।

ऽ परिधीय तत्रिका तंत्र को भी दो भागों में बाटा जा सकता हैः

ऽ कायिक तंत्रिका तंत्रः इस तंत्र में अपवाही एवं अभिवाही दोनों प्रकार की तंत्रिकाए पायी जाती है। इसका कार्य प्राणी को बाहा परिवेश के प्रति समायोजित करना है।

ऽ स्वायत्त तंत्रिका तंत्रः यह तांत्र का मस्तिष्क एवं कुछ मेरूरजु तंत्रिकाओं का बना होता है। यह शरीर के सभी आंतरिक अंगों एवं रक्त वाहनियों को तंत्रिकाओं की आपूर्ति करता है।

तंत्रिका तंत्र के कार्य

1. तंत्रिका तंत्र विभिन्न अंगों की भिन्न-भिन्न क्रियाओं को संचालित एवं नियंत्रित करता है।

2. यह समस्त मानसिक कार्यों को नियंत्रित करता है।

3. यह मनुष्य को बाहरी वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया करने में मदद करता है।

4. यह विभिन्न ग्रन्थियों एवं ऊतकों के प्रकार्यों में समन्वय बनाकर शरीर के आन्तरिक पर्यावरण का नियमन करता है।

केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र

मस्तिष्कः मस्तिष्क मानव शरीर का केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण अंग है और यह आदेश व नियंत्रण तंत्र की तरह कार्य करता है। मस्तिष्क केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के तहत कार्य करता है।

* मानव का मस्तिष्क मस्तिष्क-कोश क्रेनियम के अंदर अच्छी तरह सुरक्षित रहता है। क्रेनियम मस्तिष्क को बाहरी आघातों से बचाता है। इसके चारों ओर मेनिनजेज नामक एक आवरण पाया जाता है जिसकी तीन सतह होती हैं रू डयरामेटर, अरेकनॉइड और पायामेटर।

* मेनिनजेज कोमल मस्तिष्क को बाहरी आघातों तथा दबाव से बचाता है। मेनिनजेज तथा मस्तिष्क के बीच सेरीब्रोस्पाइनल द्रव भरा रहता है। मस्तिष्क की गुहा भी इसी द्रव्य से भरी रहती है। सेरोब्रोस्पाइनल द्रव मस्तिष्क को बाहरी आघातों से सुरक्षित रखने में मदद करता है। यह मस्तिष्क को नम बनाए रखता है।

ऽ मानव मस्तिष्क को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता हैः

1. अग्रमस्तिष्क

2. मध्यमस्तिष्क तथा

3. पश्च मस्तिष्क

अग्रमस्तिष्कः यह दो भागों में बंटा होता हैः प्रमस्तिष्क और डाइएनसेफलॉन

प्रमस्तिष्कः यह मस्तिष्क के शीर्ष, पार्श्व तथा पश्च भागों को ढंके रहता है। यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है।

ऽ प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध तंत्रिका ऊतकों से कॉर्पस कैलोसम नामक रचना के द्वारा जुड़ा रहता है।

कॉर्टेक्स सेरीब्रम का बाहरी मोटा धूसर आवरण है, जिस पर अलग-अलग निर्दिष्ट केन्द्र होते हैं जो विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन करते हैं । यह मस्तिष्क का अत्यन्त महत्वपूर्ण भाग है। इसे बुद्धि और चतुराई का केन्द्र भी कहा जाता है।

ऽ जिस व्यक्ति में सेरीब्रम औसत से छोटा होता है। तथ गाइरस एवं सल्कस कम विकसित होते हैं, वह व्यक्ति मन्दबुद्धि का होता है।

ऽ डाइनसेफलॉनः यह अधिक या कम ताप के आभास तथा दर्द व रोने जैसी क्रियाओं को नियंत्रित करता है।

मध्य मस्तिष्कः यह भाग मस्तिष्क के मध्य में स्थित होता है जो मस्तिष्क स्टेम का ऊपरी भाग है। इसमें अनेक तंत्रिका कोशिकाएं कई समूहों में मौजूद होती हैं। मध्य मस्तिष्क में संतुलन एवं आंख की पेशियों को नियंत्रित करने के केन्द्र होते हैं।

ऽ मध्य मस्तिष्क दो भागों का बना होता है। ये हैंः कार्पोराक्वाड्रीजेमीन एवं सेरीब्रल पेडन्कल।

पश्चमस्तिष्कः यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है जो अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम एवं मस्तिष्क स्टेम का बना होता है।

(ए) अनुमस्तिष्कः इसे मेटेनसिफेलॉन भी कहते हैं। इसका मुख्य कार्य शरीर का संतुलन बनाए रखना है। यह शरीर की ऐच्छिक पेशियों के संकुचन पर नियंत्रण रखता है। यह आन्तरिक कान के संतुलन भाग से संवेदनाएं ग्रहण करता है।

(बी)मस्तिष्क स्टेमः इसके अन्तर्गत पॉन्स वैरोलाई एवं मेडुला ऑब्लांगेटा आते हैं।

ऽ पॉन्स वैरालाईः तंत्रिका तंतुओं से निर्मित पॉन्स वैरोलाई मेडुला के अग्रभाग में स्थित होता है। यह श्वसन को नियंत्रित करता है। मेडुला ऑब्लांगेटाः यह एक बेलनाकार रचना होती है जो पीछे की ओर स्पाइनल कॉर्ड या मेरुरज्जु के रूप में पाया जाता है। मेडुला द्वारा आवेगों का चालन मस्तिष्क और मेरुरज्जु के बीच होता है। मेडुला में अनेक तंत्रिका केंद्र होते हैं, जो हृदय स्पन्दन, रक्त चाप और श्वांस गति की दर का नियंत्रण करते हैं। मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा विभिन्न प्रतिवर्ती क्रियाएं होती हैं।

ऽ प्रतिवर्ती क्रियाएंः इन्हें स्पाइनल प्रतिक्षेप भी कहते हैं। बाह्य उद्दीपनों के प्रति होने वाली यंत्रवत, तत्काल एवं अविवेचित अनुक्रिया जिसमें मस्तिष्क की कोई भूमिका नहीं होती है, प्रतिवर्ती क्रियाएं कहलाती हैं। इन क्रियाओं पर विचारों का कोई नियंत्रण नहीं होता है। जैसे – खांसना, छींकना, उल्टी करना, पाचक रसों के स्राव इत्यादि का नियंत्रण होता है।

मानव मेरुरज्जु

मेडुला ऑब्लांगेटा का पिछला भाग मेरुरज्जु बनाता है। मेरुरज्जु के चारों ओर भी ड्यूरोमेटर, ऑक्नायड और पॉयमेटर का बना आवरण पाया जाता है। मेरुरज्जु के मध्य एक संकरी नली पायी जाती है जिसे केन्द्रीय नाल कहते हैं। केन्द्रीय नाल में सेरिब्रोस्पाइनल द्रव भरा रहता है। भीतरी स्तर को धूसर पदार्थ तथा बाहरी स्तर को श्वेत पदार्थ कहते हैं।

ऽ धूसर पदार्थ तंत्रिका कोशिकाओं के डेन्ड्रान्स तथा न्यूरोम्लिया प्रबों का बना होता है। जबकि श्वेत पदार्थ मेड्युलेटेड तंत्रिका तन्तुओं और न्यूरोम्लिया प्रवों का बना होता है।

ऽ मेरुरज्जु के कार्यः मेरुरज्जु के दो प्रमुख कार्य हैंः

1. यह प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वयन करती है।

2. यह मस्तिष्क से संचारित उद्दीपनों का संवहन करती है।

ऽ स्वायत्त या स्वचालित तंत्रिका तंत्र शरीर के सभी आंतरिक अंगों व रक्त वाहिनियों को तंत्रिकाओं की आपूर्ति करता है।

ऽ स्वचालित तंत्रिका तंत्र के दो भाग होते हैंः अनुकम्पी और परानुकम्पी

मस्तिष्क और मन में संबंध

ऽ मस्तिष्क एक हजार अरब स्नायु कोशाओं या न्यूरॉन्स से बना होता है। न्यूरॉन स्नायु तंत्र की संरचना एवं कार्य की मौलिक इकाई होती है।

ऽ हर न्यूरॉन दूसरे न्यूरॉन्स से एक हजार से लेकर दस हजार सम्पर्क बिन्दु कायम करता है। ये सम्पर्क बिन्दु सिनैप्स कहलाते हैं। यहीं पर सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ करता है।

ऽ मस्तिष्क की क्रिया या मस्तिष्क की अवस्थाओं की संख्या ब्रह्माण्ड में उपस्थित मौलिक कणों की कुल संख्या से अधिक होती है। ये क्षुद्र कण (न्यूरॉन्स) ही हमारे मानसिक जीवन और भवनात्मक जगत, हमारे विचारों की विविधता व समृद्धि के निर्धारक होते हैं।

ऽ मस्तिष्क की संरचना दो गोलार्डों के रूप में होती है। हर गोलार्द्ध में एक ऑक्सिपिटल लोब, एक पैराइटल लोब, एक टेम्पोरल लोब और एक फ्रॉण्टल लोब होता है।

ऽ मस्तिष्क के पिछले भाग में अवस्थित ऑक्सिपिटल लोब दृष्टि से सम्बन्धित होता है। उसमें क्षति होने से अंधापन हो सकता है।

ऽ अन्त में फ्रॉण्टल लोब होता है, जो सर्वाधिक रहस्यमय होता है। नैतिक संवेदनाएं, प्रज्ञा, महत्वकांक्षाएं और मनुष्य के मन व आचरण के उन गूढ़ क्रियाकलापों से इसका संबंध होता है।

ऽ फ्यूजिफॉर्म गायरसः पहचानने की प्रक्रिया मस्तिष्क के एक छोटे से क्षेत्र में होती है, जिसे ‘फ्यूजिफॉर्म गायरस’ का नाम दिया गया है। प्रोसोपॉग्नॉसिस अथवा अंधापन के मरीजों में मस्तिष्क का यही हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ रहता है। रोगी लोगों के चेहरे को पहचानने में असमर्थ हो जाता है। ऐसा मरीज अंधा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वह किताब पढ़ सकता है और वह मनोरोगी भी नहीं होता है। वह बस किसी को उसके चेहरे भर से नहीं पहचान सकता।

ऽ अन्त में विम्ब की पहचान होते ही, ऐमायग्लैडा नाम की संरचना को संदेश प्रसारित कर दिया जाता है। यह संरचना मनोभावों से सम्बन्धित प्रणाली का सिंहद्वार होती है। यह व्यक्ति को देखी जा रही वस्तु के भावनात्मक महत्व की माप करने की समझ प्रदान करता है।

ऽ कॉगनिटिव सांइस साइकोलॉजी, न्यूरो साइंस, फिलॉस्फी, कंप्यूटर साइंस, एन्थ्रोपोलॉजी, लिंग्विस्टिक तथा फिजिक्स के मूल-सिद्धांतों पर विज्ञान की एक विशेष शाखा है।

तंत्रिका विकार

ऽ पार्किंसन रोगः यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं।

मिर्गीः यह एक तंत्रिकातंत्रीय विकार है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते हैं और दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है जिससे उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है।

अल्जाइमर रोगः यह ‘भूलने का रोग’ है। अल्जाइमर से दिमाग की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवन शैली और सिर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है।