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नाट्यशास्त्र के रचयिता कौन हैं natya shastra was written by whom in hindi natya shastra ke rachyita kaun hai
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1. ‘नाट्यशास्त्र‘ के रचयिता का नाम है-
(अ) मम्मट (ब) भरतमुनि
(स) जयदेव (द) विश्वनाथ
उत्तर-(ब) भरतमुनि
ज्ञान-नाट्यशास्त्र के रचयिता हैं- आचार्य भरतमुनि, मम्मट के ग्रंथ का नाम काव्य प्रकाश, जयदेव – चंद्रालोक, विश्वनाथ – साहित्य दर्पण के रचयिता हैं।
रस, छन्द, अलंकार के विवेचक
रसों का विवेचन, श्रृंगार रस का पूर्ण विवेचन
सर्वांग निरूपक आचार्य जिन्होंने काव्यागों के सभी पक्ष- रस, अलंकार,
दोष, शब्द शक्ति, छंद का विवेचन किया है।
अलंकारों, रस का विवेचन किया।
कवित्व एवं आचार्यत्व का समन्वय अलंकारों से सम्बन्धित भ्रम का निवारण
अलंकार ग्रन्थ
निबंध-ग्रन्थ परन्तु इसमें काव्यशास्त्रीय सिद्धान्तों का कहीं-कहीं
समावेश हो गया है।
हिन्दी काव्यशास्त्रीय ग्रंथ
रस का विवेचक हिन्दी ग्रंथ
हिन्दी काव्यशास्त्रीय ग्रंथ
भारतीय काव्यशास्त्र के प्रमुख ग्रन्थ और उनके रचयिता
संस्कृत काव्य-शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थ
रचयिता ग्रन्थ का नाम विशेष
1. भरतमुनि (200 ई.पू.
के आसपास)
2. भामह (6वीं शती)
3. दण्डी (7वीं शती)
4. उद्भट (6वीं शती)
5. आचार्य वामन
6. आनन्दवर्धन
7. अभिनवगुप्त
8. राजशेखर
9. धनंजय
10. भट्टनायक
11. आचार्य कुन्तक (10वीं शती)
12. महिमभट्ट (11वीं शती)
13. क्षेमेन्द्र (11वीं शती)
14. भोजराज (11वीं शती)
15. मम्मट (12वीं शती)
16. जयदेव (12वीं शती)
17. आचार्य विश्वनाथ
(14वीं शती)
18. पण्डितराज जगन्नाथ
(17वीं शती)
नाट्यशास्त्र
काव्यालंकार
काव्यादर्श
काव्यालंकार सार संग्रह
काव्यालंकार सूत्रवृत्ति
ध्वन्यालोक
ध्वन्यालोक लोचन, अभिनव भारती
काव्य-मीमांसा
दशरूपक
हृदय दर्पण
वक्रोक्ति जीवित
व्यक्ति विवेक
औचित्य विचार चर्चा
सरस्वती कण्ठाभरण, श्रृंगार प्रकाश
काव्य प्रकाश
चन्द्रालोक
साहित्य दर्पण
रस गंगाधर
विशेष विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगात् रस निष्पत्तिः ।
शब्दार्थों सहितौ काव्यम्, सैषा सर्वत्र वक्रोक्तिः कोऽलंकारो अनया बिना।
काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते ।
रीतिरात्मा काव्यस्य, सौन्दर्यम्ऽलंकारः, रस को कान्ति नामक गुण में समाहित किया।
काव्यस्यआत्मा ध्वनिरितिः
रस सूत्र के चैथे व्याख्याता, इनका मत अभिव्यक्तिवाद कहा जाता है। ये रस-ध्वनि को काव्य की आत्मा मानते हैं। इनके अनुसार रस व्यंग्य होता है।
18 अभिकरणों में विभक्त ग्रन्थ था, जिसका केवल एक अभिकरण कवि रहस्य ही प्राप्त होता है।
नाटक पर लिखा ग्रन्थ।
अभिनव भारती में इस ग्रन्थ का उल्लेख है। वे साधारणीकरण सिद्धान्त के आविष्कारक थे। भावकत्वं साधारणीकरणं तेन हि व्यापारेण विभावदय स्थायी च साधारणी क्रियन्ते । ये रस सूत्र के तीसरे व्याख्याता है द्य इनका मत ‘भुक्तिवाद‘ कहलाता है।
वक्रोक्ति सम्प्रदाय के प्रवर्तक, इनका कथन है-वैदग्ध्यभंगीभणिति वक्रोक्तिः। वक्रोक्ति के 6 भेद उन्होंने किये हैं।
ध्वनि सिद्धान्त के आलोचक ।
औचित्य सम्प्रदाय के प्रवर्तक, औचित्य को काव्यात्मा पद पर प्रतिष्ठित किया।
श्रृंगार को रसराज मानते हैं।
1. ध्वनि संस्थापन परमाचार्य ।
2. तद्दोषौ शब्दार्थो सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि ।
3. अलंकार को काव्य का अनिवार्य तत्व नहीं मानते।
4. ये रसवादी आचार्य हैं।
5. इन्होंने छह काव्य प्रयोजन बताये हैं और आत्म-शान्ति को सकल मौलिभूत काव्य प्रयोजन माना है।
मम्मट के अनलंकृति शब्द की तीखी आलोचना की । ये अलंकारवादी आचार्य थे।
1. वाक्यं रसात्मकं काव्यं ।
2. महाकाव्य के लक्षणों के निरूपक
3. रसवादी आचार्य
4. वैदर्भी, गौड़ी, पांचाली तीन रीतियाँ मानते हैं।
रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम् द्य अलंकारों, रसों, काव्य हेतुओं के विवेचक।
हिन्दी काव्य-शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थ
रचयिता ग्रन्थ का नाम विशेष
1. कृपाराम
2. आचार्य केशवदास (1560-1617 ई.)
3. चिन्तामणि (1600-1680 ई.)
4. मतिराम (1604-1710 ई.)
5. भिखारीदास (1725-1760 ई.)
6. सोमनाथ
7. देव (1673-1733 ई.)
8. पद्माकर (1753-1833 ई.)
9. ग्वाल कवि (1791-1868 ई.)
10. जसवंत सिंह
11. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
12. बाबू गुलाबराय
13. डॉ. नगेन्द्र
14. गोविंद त्रिगुणायत हित तरंगिणी
कवि प्रिया, रसिक प्रिया, छन्दमाला
कवि कुल कल्पतरु, काव्य विवके
रस विलास, श्रृंगार मंजरी
रसराज, ललित ललाम, अलंकार
पंचाशिका, वृत्त कौमुदी
काव्य निर्णय, छन्दो वर्ण पिंगल
रस पीयूष निधि, श्रृंगार विलास
भाव विलास, भवानी विलास, काव्य
रसायन, शब्द रसायन, रस विलास
पद्माभरण, जगद्विनोद
रसिकानन्द, अलंकार भ्रम भंजन
रसरंग, कवि दर्पण
भाषा-भूषण
चिन्तामणि, रस-मीमांसा
काव्य के रूप, सिद्धान्त और अध्ययन
रस सिद्धान्त
शास्त्रीय समीक्षा के सिद्धान्त भक्तिकालीन रीतिग्रंथ
1. भूषण बिनु न विराजई कविता बनिता मित्त ।
2. अलंकारवादी आचार्य
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