JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Uncategorized

राष्ट्रीय दल किसे कहते हैं | राष्ट्रीय दलों की परिभाषा क्या है , नाम बताइए national political parties in india in hindi

national political parties in india in hindi राष्ट्रीय दल किसे कहते हैं | राष्ट्रीय दलों की परिभाषा क्या है , नाम बताइए ?

राष्ट्रीय दल
बहुसंख्य राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व के कारण साठ का दशकोपरांत काल भारत की दलीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण रहा है। पूर्व दशक एक-दलीय प्रभुत्व के चरण के रूप में जाने जाते थे, यथा, कांग्रेस का प्रभुत्व । इस इकाई में आप कुछ राष्ट्रीय दलों का अध्ययन करेंगे – कांग्रेस (इं.), भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), और बहुजन समाज पार्टी । आप मुख्य क्षेत्रीय दलों का भी अध्ययन करेंगे – नैशनल कांफ्रेन्स, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, ऑल इण्डिया अन्ना द्रमुक मुनेत्र कड़गम, अकाली दल, असम गण परिषद्, झारखण्ड पार्टी, और तेलुगु देशम् पार्टी।

 कांग्रेस (इं.)
कांग्रेस (इं.) उस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से उदित हुई है जिसका जन्म 1885 में बम्बई में हुआ। यह भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाने में सफल रही थी। शुरू में कांग्रेस एक संभ्रांतवर्ग संगठन था फिर गाँधीवादी नेतृत्व के तत्त्वावधान में यह एक जन संगठन बन गया। स्वतंत्रतापूर्ण काल में, कांग्रेस पार्टी के इतिहास में असहयोग नागरिक अवज्ञा और भारत छोड़ो आन्दोलन महत्त्वपूर्ण मील-पत्थर थे। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत प्रान्तीय स्वायत्तता के प्रावधान ने 1937-39 के बीच प्रशासन चलाने की कला में कुछ प्रशिक्षण प्राप्त करने का कांग्रेस पार्टी को एक अवसर प्रदान किया।

स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ पार्टी बन गई क्योंकि ब्रिटिशों ने सत्ता इसी दल को हस्तांरित की। 1947-67 के बीच कांग्रेस पार्टी भारत के राजनीतिक मंच पर छायी रही। 1967 में कराये गए चैथे आम चुनाव के परिणाम ने कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व को अत्यधिक क्षति पहुँचायी। कांग्रेस पार्टी आठ राज्यों में सत्ता से बाहर हो गई। केन्द्र में भी, यह लोकसभा में एक अल्पमत ही सुनिश्चित कर सकी। वर्ष 1969 में कांग्रेस पार्टी पहली बार दो धड़ों में विभाजित हुई – इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली एक नई कांग्रेस और एस. निजलिंगप्पा के नेतृत्व वाली एक पुरानी कांग्रेस। इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस ने 1971 के संसदीय चुनाव और अधिकांश राज्य में 1972 के विधानसभा चुनाव आसानी से जीत लिए। 1977 में छठे आम चुनाव कांग्रेस पार्टी की हार और जनता पार्टी के लिए आसान से बहमत में परिणत हुए। कांग्रेस पार्टी की हार को राजनीति के इंदिरा गाँधी-शैली के अस्वीकरण के रूप में देखा गया। 1977 के चुनाव हारने के बाद कांग्रेस पार्टी में एक और विभाजन हुआ। दो कांग्रेसों उभर कर आयीं – एक इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली, और दूसरी स्वर्ण सिंह के नेतृत्व वाली। ऐसे ही हुआ 1978 में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली अथवा कांग्रेस (इंदिरा) अथवा कांग्रेस (इं./आई.) का जन्म । सामान्य तौर पर कांग्रेस (इ.) और कांग्रेस समानार्थक रूप से प्रयोग किए जाते हैं। मुख्यतः नेताओं के बीच व्यक्तित्व संघर्ष और दल संबंधी झगड़ों के चलते दो वर्षों के भीतर ही केन्द्र में ‘जनता‘ प्रयोग असफल हो गया। 1980 में, कांग्रेस (इं.) लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत के साथ कांग्रेस के वर्चस्व को पुनर्णाप्त करते हुए सत्ता में लौटी। 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने। 1985 के आम चुनाव में उनके नेतृत्व में पार्टी ने अभूतपूर्व विजय हासिल की। कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ चार सौ पंद्रह लोकसभा सीटें जीतीं। नौवें आम चुनाव में, विपक्षी दलों के एक संयोजन, राष्ट्रीय मोर्चा और ऑल इण्डिया अन्ना द्रमुक मुनेत्र कड़गम तथा नैशनल कांफ्रेन्स के साथ गठबंधन वाली कांग्रेस (इं.) के बीच एक कड़ा मुकाबला देखा गया। राष्ट्रीय मोर्चा ने दोनों वामपंथी दलों और भारतीय जनता पार्टी के साथ उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में सीटों का समंजन कर लिया। इससे अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में सीधी लडाई ठन गई। 197 सीटें प्राप्त कर कांग्रेस पार्टी एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। कोई भी दल लोकसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर सका। 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस (इं.), जनता दल-राष्ट्रीय मोर्चा गठजोड़ और भा.ज.पा. के बीच एक त्रिकोणीय मुकाबला था। कांग्रेस (इं.) ने 232 सीटें जीतीं। राजीव गाँधी चुनाव-अभियान के दौरान मारे गए। पी.वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस (इं.) द्वारा जीती गई सीटों की संख्या घटकर क्रमशः 140 और 141 रह गई। 1999 में, लोकसभा में कांग्रेस (इं.) द्वारा जीती गई सीटों की संख्या घटकर 114 ही रह गई।

विचारधारा
कांग्रेस पार्टी समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के प्रति वचनबद्ध रही है। इसी ने लोकतांत्रिक समाजवाद के विचार का अनुमोदन किया तभी कांग्रेस पार्टी की आर्थिक नीति ने मूल उद्योगों, बैंकिंग और बीमा जैसी अर्थव्यवस्था की प्रभावशाली ऊँचाइयों का राजकीय नियंत्रण लागू किया। पार्टी ग्रामीण व शहरी भू-सीमांकन के लिए खड़ी हुई। यह एकाधिकारों के विरुद्ध और मध्यम व लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दिए जाने के पक्ष में थी। 1956 में, अवाड़ी सत्र में कांग्रेस ने समाज के समाजवादी पैटर्न के प्रति अपनी वचनबद्धता घोषित की। 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ‘ का नारा दिया। आपात्काल के दौरान बीस सूत्रीय कार्यक्रम भी एक सशक्त समाजवादी घटक रखता था। अस्सी के दशक में कांग्रेस दक्षिण-पंथ की ओर खिसक गई। 1984 के घोषणा-पत्र में समाजवाद अथवा एकाधिकारों पर रोक की आवश्यकता का जिक्र नहीं था। 1989 के चुनाव घोषणा-पत्र में पंचायती राज के माध्यम से लोगों को अधिकार दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया था। 1991 में, कांग्रेस के चुनाव घोषण-पत्र में विश्व पूँजीवादी व्यवस्था से जुड़ी एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता की वकालत की गई थी। इसने रक्षा क्षेत्रों में छोड़कर सभी सार्वजनिक एकाधिकारों के उन्मूलन, और निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिए जाने का भी समर्थन किया। 1999 में, पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में धर्मनिरपेक्षता और पंचायती राज संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण के प्रति उसकी वचनबद्धता की पुनर्पुष्टि की गई थी। इसने दरिद्रता उपशमन पर व्यय दो गुना किए जाने का भी वायदा किया। विदेश नीति में पार्टी ने गुटनिरपेक्षता का अनुपालन किया है।

सामाजिक आधार
पार्टी शिक्षित शहरी मध्यवर्ग के एक संभ्रांत संगठन के रूप में शुरू हुई थी। बीस के दशक में इसने एक व्यापक आधार प्राप्त कर लिया। एक व्यापक आधार होते हुए भी कांग्रेस का नेतृत्व उच्च जाति के बड़े भू-स्वामियों, शहरी बुद्धिजीवी वर्ग और व्यापारियों के हाथ में था। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस . पार्टी ने बिना किसी खास चुनौती के तीन आम चुनाव जीते। यह उस समर्थन की वजह से था जो उसे लगभग पूरे देश में ग्रामीण व शहरी, शिक्षित व अशिक्षित, उच्च जाति व निम्न जाति, धनी व निर्धन के बीच प्राप्त था। यह, खासकर साठ के दशक के उत्तरार्ध से, मध्यजाति के वोट कांग्रेस से दूर खिसकना ही था जिससे वह अनेक राज्यों में चुनाव हार गई। कांग्रेस के मुख्य समर्थनाधार रहे हैं – उच्च जाति विशेषतः ब्राह्मण, अनुसूचित जातियाँ और मुसलमान। 1991 में कांग्रेस गंगाई कटिबन्ध – उत्तर प्रदेश तथा बिहार से कार्यतः साफ ही हो गई। उत्तर प्रदेश में ब.स.पा. और समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से अनुसूचित जाति तथा मुसलमानों के वोट छीन लिए। इसी प्रकार, बिहार में मुस्लिम तथा निम्न जातियों के वोट राष्ट्रीय जनता दल को चले गए। जबकि इन दोनों राज्यों में उच्च जातियों के वोट भा.ज.पा. को चले गए।

संगठन
कांग्रेस पार्टी का संघटन एक विस्तृत संगठनात्मक नेटवर्क प्रस्तुत करता है। पार्टी का अध्यक्ष पार्टी के संगठनात्मक ढाँचे का मुखिया होता है। अध्यक्ष की मदद के लिए एक कार्य समिति होती है। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति, जो एक मंत्रणात्मक निकाय है, उनके प्रकार्यों को बढ़ाकर पूरा करती है। पार्टी का केन्द्रीय कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है। केन्द्रीय कार्यालय प्रदेश कांग्रेस समितियों, जिला कांग्रेस समितियों और ब्लॉक कांग्रेस समितियों के प्रकार्यों का पर्यवेक्षण करता है। जिला कांग्रेस समितियाँ हिसाब-किताब रखती हैं, चंदा उगाहती हैं और प्रत्याशियों का अनुमोदन करती हैं।

 भारतीय जनता पार्टी
भारतीय जनता पार्टी 1980 में दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर जनता पार्टी में विभाजन के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आयी। यह मुद्दा था – क्या जनता पार्टी के वे सदस्य जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) के भी सदस्य हैं, एक साथ इन दोनों संगठनों की सदस्यता कायम रख सकते हैं अथवा नहीं। इस मुद्दे पर विवाद जनता पार्टी से भारतीय जन संघ घटक अथवा आर. एस.एस. सदस्यों के निष्कासन में परिणत हुआ। जनता पार्टी छोड़ने के बाद भारतीय जनसंघ घटक ने भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) का प्रवर्तन किया। भा.ज.पा. को सटीक रूप से भारतीय जनसंघ के पुनर्जन्म के रूप में देखा जाता है। भारतीय जनसंघ की स्थापना 1951 में यामाप्रसाद मुखर्जी ने की थी। 1925 में केशव बलीराम हेडगेवार द्वारा स्थापित आर.एस.एस. पहले भारतीय जन संघ और फिर भारतीय जनता पार्टी के लिए संगठनात्मक अवलम्ब रही है। अपने जन्म के बाद प्रथम लोकसभा चुनाव, 1984 में भा.ज.पा. ने मात्र दो सीटें हासिल की परन्तु 1989 में इसने 88 सीटें प्राप्त कर लीं। 1991 के चुनाव में इस दल ने. 120 सीटें सुनिश्चित की और संसद में दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरा। राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। यह सरकार मात्र तेरह दिन चली क्योंकि बहुमत के अभाव में यह संसद में टिक नहीं सकी। 1998 के लोकसभा चुनाव में भा.ज.पा. ने क्षेत्रीय दलों के साथ युक्तिपूर्ण गठजोड़ किए और 180 सीटें सुनिश्चित की। भा.ज.पा. ने सरकार बनाई परन्तु यह सरकार ज्यादा नहीं चली। 1999 में एक और चुनाव हुआ। भा.ज.पा. ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (रा.लो.ग. – एन.डी. ए.) के सहयोगी के रूप में यह चुनाव लड़ा।

विचारधारा
प्रारम्भ में भा.ज.पा. ने भारतीय जन संघ से एक भिन्न छवि प्रक्षिप्त करने का प्रयास किया। बम्बई में हुए पार्टी के प्रथम अधिवेशन में भा.ज.पा. के प्रथम अध्यक्ष, अटल बिहारी वाजपेयी ने भा.ज.पा. के उदय को एक गौरवमय भारत के जयप्रकाश नारायण के स्वप्न से जोड़ा था। भा.ज.पा. को 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित हिन्दू राष्ट्रवादी दल, पूर्व भारतीय जन संघ के पुनर्जन्म के रूप में भी देखा गया। जन संघ ने धार्मिक नीतिवचनों के अनुसार एक आधुनिक लोकतांत्रिक समाज के रूप में भारत का पुनर्निर्माण करने को लक्ष्य बनाया। वैचारिक रूप से भा.ज.पा. पाँच सिद्धांतों के प्रति वचनबद्ध है – राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रीय अखण्डता, लोकतंत्र, सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता, गाँधीवादी समाजवाद और मूल्याधारित राजनीति । भा.ज.पा. ने इन नीतियों को विकास रणनीति का सारतत्त्व बनाने और उनके चारों ओर राष्ट्रीय सहमति तैयार किए जाने की उद्घोषणा की। पार्टी पूँजीवाद और समाजवाद, दोनों को अस्वीकार करती है क्योंकि वे या तो निजी व्यक्तियों अथवा राजकीय अधिकारियों के हाथों में, आर्थिक शक्तियों के संकेन्द्रण को बढ़ावा देते हैं। 1984 में पार्टी ने कृषि व उद्योग, दोनों के विकास पर जोर दिया। उसने करों की कटौती और रोजगार गारण्टी कार्यक्रम तथा काम के अधिकार को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दिए जाने पर भी बल दिया। 1996 में भा.ज.पा. स्वदेशी अर्थव्यवस्था के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहराती रही परन्तु वस्तुतः उसने उदारीकरण का कांग्रेस (इं.) वाला नारा ही अपनाया। 1993 में भारतीय उद्योग महासंघ को सम्बोधित करते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि यदि भा.ज.पा. सत्ता में आयी तो आर्थिक नीति की मूल दिशा अपरिवर्तित रहेगी। रा.लो.ग. सरकार में वरिष्ठ गठबंधन रहयोगी के रूप में भा.ज.पा. की नीतियों ने उदारीकरण की नीतियों को अपनी स्वीकृति का स्पष्ट संकेत दिया। 1999 में भा ज.पा. ने अपनी चेन्नई में हुई सभा में आक्रामक हिन्दूवाद और स्वदेशी की कार्यसूची को पीछे छोड़ देने का स्पष्ट संकेत दिया। भा.ज.पा. ने जाति पद्धति पर आरक्षण के प्रति सहमत होकर सभी के लिए न्याय के सिद्धांत को स्वीकार किया है। संसद व राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के 33ः आरक्षण का उसका वायदा है।

सामाजिक आधार
भा.ज.पा. का अपने पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ की ही भाँति हिन्दी कटिबंध में समर्थनाधार प्राप्त हुआ है। इसका गुजरात व महाराष्ट्र में भी सशक्त अस्तित्व है। 1989 से पार्टी दक्षिण भारत में घुसने का प्रयास कर रही है। भा.ज.पा. का पारम्परिक समर्थनाधार उच्च जातियाँ, छोटे व मंझले व्यापारियों तथा दुकानदारों के बीच था। अल्पसंख्यकों में भा.ज.पा. वोट काफी हद तक सिखों से प्राप्त करती है। इसको मुख्यतः एक हिन्दू पार्टी के रूप में देखा जाता है। नब्बे के दशक से इसका आधार ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों, और बड़ी संख्या में सामाजिक समूहों के बीच विस्तीर्ण हुआ है।

संगठन
राष्ट्रीय स्तर पर भा.ज.पा. में एक पार्टी अध्यक्ष और राष्ट्रीय परिषद् तथा पार्टी पूर्णाधिवेशन अथवा विशेष सत्र होते हैं। राज्य स्तर पर पार्टी में एक परिषद् तथा राज्य कार्यकारिणी होती है जिसके बाद होती हैं- क्षेत्रीय समितियाँ, जिला समितियाँ और ब्लॉक समितियाँ । भा.ज.पा में मोर्चा संगठन भी हैं जैसे – भारतीय जनता युवा मोर्चा और भारतीय जनता महिला मोर्चा । ये संगठन राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करते हैं।

 कम्यूनिस्ट पार्टियाँ
भारत में अस्तित्ववान प्रमुख कम्यूनिस्ट पार्टियाँ हैं – भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (भा.क.पा.- सी. पी.आई.), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) अथवा मा.क.पा. (सी.पी.आई.-एम.), तथा अनेक नक्सलवादीगुट । भा.क.पा. की स्थापना 1925 में कानपुर में हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से दो राजनीतिक धाराएँ फूटी जो भारतीय राज्य की प्रकृति, स्वतंत्रता संगम तथा माक्र्सवाद और लेनिनवाद के सिद्धांतों के अनुसार भारत में क्रांति कैसे लायी जाए के प्रश्न और भविष्य की कार्य-प्रक्रिया को लेकर थीं। भा.क.पा. के तत्कालीन सचिव, पी.सी. जोशी द्वारा विचित एक धारा स्वाधीनता को वस्तुतः देखती थी और इसीलिए चाहती थी कि कम्युनिस्ट पार्टी नेहरू को समर्थन दे । बी.टी. रणदीवे और गौतम अधिकारी वाली दूसरी धारा यह मानती थी कि यह सच्ची स्वतंत्रता नहीं है। सच्ची स्वतंत्रता केवल भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में प्राप्त की जा सकती है। इसलिए उनके विचार से पार्टी को कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध लड़ना चाहिए। पचास के दशकारम्भ में नेहरू और कांग्रेस सरकार के प्रति सोवियत संघ के रुझान में एक परिवर्तन देखा जा सकता था। यह परिवर्तन भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के रुझान में भी प्रकट हुआ। भा.क.पा. के एक प्रारूप पार्टी प्रोयाम में कामगार वर्ग के नेतृत्व में राष्ट्रवादी बुर्जुआवर्ग को शामिल कर एक विशाल सामन्त-विरोधी और साम्राज्यवाद-विरोधी मोर्चा बनाए जाने का आह्वान था। 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण के साथ ही ये दो धाराएँ पार्टी के भीतर से निकलकर पुनः उभरी। पार्टी के भीतर एक गुट ने तो भारत पर चीनी आक्रमण की निंदा करने से ही इंकार कर दिया जबकि दूसरे गुट ने भारत सरकार के निर्णय का समर्थन किया। अन्ततः 1964 में भा.क.पा. भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)-मा.क.पा. में विभाजित हो गई। 1964 के बाद भा.क.पा. को रूसी कम्यूनिस्ट पार्टी के और मा.क.पा. को चीन कम्यूनिस्ट पार्टी के अधिक करीब देखा गया। मा.क.पा. के भीतर एक गुट सशस्त्र क्रांति के मार्ग को स्वीकृति देता हुआ 1968 में मा.क.पा. से अलग हो गया। इनको नक्सलवादी पुकारा गया क्योंकि उन्होंने सशस्त्र क्रांति के माध्यम से सत्ता हथियाने के अपने प्रयोग की शुरुआत बंगाल में नक्सलबाड़ी नामक स्थान से की। नक्सलवादियों ने चारू मजूमदार के नेत त्व में एक अन्य कम्यूनिस्ट पार्टी बना ली – भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के नाम से। सभी नक्सलवादी गुट इस पार्टी में शामिल नहीं हुए।

भा.क.पा. ने 1952 में कराये गए प्रथम चुनाव से ही चुनावों में भाग लेना शुरू कर दिया था। आम चुनावों में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी 9ः के आसपास वोट हासिल करती रही। 1964 के विभाजन के बाद भी ये दो कम्यूनिस्ट दल एक साथ इसी प्रतिशतता के आसपास मत प्राप्त करते रहे । मा. क.पा. ने 1989 तथा 1991 के चुनावों में क्रमशः 33 तथा 35 सीटें सुनिश्चित की। भा.क.पा. ने इन दोनों चुनावों में से प्रत्येक में 12 सीटें जीतीं। 1996 के चुनावों में मा.क.पा. ने 33 सीटें सुनिश्चित की जबकि भा.क.पा. को मात्र 13 मिलीं। 1999 में कराये गए पिछले लोकसभा चुनाव में मा.क.पा. ने 32 सीटें सुनिश्चित की और भा.क.पा. ने मात्र पाँच । जहाँ तक राज्य विधानसभा चुनावों का संबंध है इन वाम दलों ने केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा, तीन राज्यों में सफलता हासिल की है। 1957 के चुनाव के बाद केरल में भा.क.पा. सत्ता में आयी। मा.क.पा. के नेतृत्व में वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल में लगभग बीस वर्ष से शासन कर रहा है।

विचारधारा
भारत के कम्यूनिस्ट दल यह मानते हैं कि केवल मार्क्सवाद और लेनिनवाद के क्रांतिकारी सिद्धांतों के अनुसार की गई समाजवादी समाज की स्थापना से ही देश पिछड़ेपन, असमानता, अनभिज्ञता और गरीबी की समस्याओं से उबरने में सक्षम होगा। यह लक्ष्य प्राप्त हो सकता है यदि कामगार वर्ग राजनीतिक सत्ता को बल या कौशल से ले ले। उनका मानना था कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को एक साम्राज्यवाद-विरोधी तथा सामन्त-विरोधी लोकतांत्रिक क्रांति की आवश्यकता है। इस विचार के आलोक में ही भा.क.पा. ने नेहरू सरकार का मूल्य आँका और आपात्काल में भी इंदिरा गाँधी सरकार को समर्थन दिया। 1977 के चुनाव में निर्वाचकीय पराजय ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को भारतीय राजनीति में उसकी भूमिका और कांग्रेस पार्टी के प्रति उसके रुझान का पुनर्मुल्यांकन करा दिया। 1977-पश्चात् चरण में कांग्रेसवाद-विरोध भा.क.पा. की नीति का एक अहम हिस्सा बन गया। राष्ट्रीय लोकतंत्र के अपने लक्ष्य की दिशा में भा.क.पा. 1996 में केन्द्र में गठबन्धन सरकार में भी शामिल हुई । मा.क.पा. भारतीय राज्य के पूर्ण विध्वंस और जन लोकतंत्र (पीपल्स डिमोक्रेसी) की स्थापना में विश्वास करती है। इसके अनुसार कामगार वर्ग के नेतृत्व वाले एक मोर्चे की स्थापना से ही इस उद्देश्य की प्राप्ति हो सकती है। इरा गोर्चे में कृषि श्रमिक, गरीब किसान और मध्यम किसान भी शामिल हैं। 1982 में मा.क.पा. ने अपनी विजयवाड़ा कांग्रेस में भा. ज.पा. तक को शामिल कर एक सत्तावादी-विरोधी मोर्चे के लिए काम करने का निर्णय लिया। पार्टी ने सम्प्रदायवाद द्वारा उत्पन्न खतरे का भी ध्यान रखा है। उसने विश्व बैंक अथवा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के चंगुल से मुक्त, एक भारतीय स्वावलम्बी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता पर जोर दिया है। मार्च 2002 में हैदराबाद में हुई मा.क.पा. की 17वीं कांग्रेस में, पार्टी ने केन्द्र में रा.लो.ग. के एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में जनमोर्चा (पीपल्स फ्रंट) बनाने हेतु आह्वान किया। मा. क.पा. ने बिना कोई गठजोड़ किए कांग्रेस पार्टी से सहयोग करने का निर्णय का निर्णय किया है। पार्टी की यह भी धारणा है कि अल्पसंख्यक मूलतत्त्ववाद बहुसंख्यक मूलतत्त्ववाद का सटीक प्रत्युत्तर नहीं है।

सामाजिक आधार
केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में अपनी मजबूत पकड़ के अलावा कम्यूनिस्ट दलों के बिहार, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र व तमिलनाडु जैसे कुछ अन्य राज्यों में भी लघु क्षेत्र हैं। कम्यूनिस्ट दल अधिकांशतः कामगार वर्ग, मध्यम वर्ग, कृषि श्रमिक और छोटे किसानों से समर्थन पाते हैं।

संगठन
अखिल भारतीय पार्टी कांग्रेस भा.क.पा. और मा.क.पा. के लिए सर्वोच्च अवयव दल है। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के मामले में यह राष्ट्रीय परिषद् द्वारा संयोजित की जाती है और मा.क.पा. के मामले में यह केन्द्रीय समिति द्वारा संयोजित की जाती है। पार्टी कांग्रेस भा.क.पा. के मामले में राष्ट्रीय परिषद् और मा.क.पा. के मामले में केन्द्रीय समिति की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करती है और कार्यवाही करती है। पार्टी कांग्रेस पार्टी धारा को भी निर्धारित करती है। पार्टी कांग्रेसों के बीच राष्ट्रीय परिषद् और केन्द्रीय समिति क्रमशः भा.क.पा. और मा.क.पा. के लिए उच्चतम कायकारी निकाय हैं। केन्द्रीय समिति के दो सत्रों के बीच काम करने के लिए यह अपने सदस्यों में से एक पोलित ब्यूरो चुनती है। इसी प्रकार भा.क.पा. की राष्ट्रीय परिषद् अपने दो सत्रों के बीच राष्ट्रीय परिषद् के कार्य-निष्पादन के लिए एक केन्द्रीय कार्यकारिणी चुनती है। भा.क.पा. की राष्ट्रीय परिषद् और मा.क.पा. की केन्द्रीय समिति इन दो कम्यूनिस्ट दलों में से प्रत्येक के लिए एक सचिव चुनती है।

 बहुजन समाज पार्टी
14 अप्रैल, 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी (ब.स.पा.) की स्थापना की। पार्टी अपने को बहुसंख्यक वर्ग अथवा बहुजन समाज का दल होने का दावा करती है। इस दावे के पीछे धारणा यह है कि अनुसूचित जातियाँ, अनुसूचित जनजातियाँ, पिछड़ी जातियाँ और अल्पसंख्यक भारत की 85ः जनसंख्या का निर्माण करते हैं। वे भारत के बहुसंख्यकों अथवा बहुजन समाज का निर्माण करते हैं। ब.स.पा. वा तर्क है कि अल्पसंख्यक उच्च जातियाँ बहुजन समाज पर शासन करने के लिए उन्हीं के वोटों का प्रयोग करती रही हैं। चूंकि लोकतंत्र में बहुमत को शासन करना चाहिए, ब.स.पा. की लड़ाई बहुजन समाज की शासन-प्रणाली स्थापित करने के लिए है। वास्तविक रूप से एक दल का आकार लेने से पहले, ब.स.पा. बामसेफ (ठ।डब्म्थ्) अखिल भारतीय पिछडे व अल्पसंख्यक कर्मचारी संघ) तक डी.एस-4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) जैसे सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों के रूप में विद्यमान थी। ब.स.पा. ने 1985 में चुनाव तब लड़ा था जब उसकी प्रत्याशी मायावती ने उत्तर प्रदेश में बिजनौर लोकसभा क्षेत्र से एक उप-चुनाव लड़ा। यह ब.स.पा. प्रत्याशी कांग्रेस व जनता दल प्रत्याशियों के बाद तीसरे स्थान पर आयी। परन्तु ब.स.पा. प्रत्याशियों का प्रदर्शन नितान्त उत्साहवर्धक था। उसने कांग्रेस प्रत्याशी के 1.28 लाख और जनता दल प्रत्याशी के 1.22 लाख के मुकाबले 61,504 मत ही प्राप्त किए। उस वर्ष उत्तरप्रदेश विधानसभा में ब.स. पा. ने कोई भी सीट नहीं जीती परन्तु उसे जनमत के चार प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। 1989 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में ब.स.पा. ने मात्र 13 सीटें जीतीं परन्तु उसे जनमत के 9.33ः वोट प्राप्त हुए। धीरे-धीरे ब.स.पा. सामान्यतः देश के राजनीतिक जीवन में और खासकर उत्तरप्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, पंजाब व राजस्थान जैसे राज्यों की राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी बन गई है। 1996 के लोकसभा चुनाव में इस दल ने उत्तरप्रदेश में 20ः वोट, मध्यप्रदेश में 8ः वोट और राजस्थान में 3ः वोट पक्के किए। 1998 के लोकसभा चुनाव में इस दल ने उत्तरप्रदेश से पाँच लोकसभा सीटें और हरियाणा से एक सीट जीती। 1999 के लोकसभा चुनाव में ब.स.पा. ने उत्तरप्रदेश से 14 सीटें जीतीं। यह दल न सिर्फ दलितों को बल्कि पिछड़े मुसलमानों और ऊँची जातियों को भी टिकट देकर अपना आधार विस्तृत करता रहा है। 2002 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में ब.स.पा. के इस रणकौशल ने भरपूर लाभांश चुकाया है। पार्टी ने 403 विधानसभा सीटों में से 98 सीटें सुनिश्चित की हैं।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

18 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

18 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now