JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: इतिहास

Nagarjunakonda Stupa in Hindi नागार्जुन स्तूप किसने बनवाया था नागार्जुन स्तूप का निर्माण किस युग में हुआ था

नागार्जुन स्तूप का निर्माण किस युग में हुआ था Nagarjunakonda Stupa in Hindi नागार्जुन स्तूप किसने बनवाया था in which age the stupa of nagarjuna was built in hindi ?

 सातवाहन कालीन बौद्ध कला के केन्द्र के रूप में नागार्जुनीकोण्डा स्तूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर: अमरावती से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में स्थित नागार्जुन पहाड़ी (कृष्णा नदी के तट पर) पर भी । शताब्दी ईसवी में स्तूपों
का निर्माण किया गया था जिसे श्नागार्जुनीकोण्ड स्तूपश् कहा जाता है। यहां ईक्ष्वाकुवंशी राण की राजधानी थी जो सातवाहनों के उत्तराधिकारी थे। नागार्जुनीकोण्ड का एक नाम विजयपुरी भी मिलता है। ईक्ष्वाकु ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे किन्तु उनकी रानियों की अनुरक्ति बौद्ध धर्म में थी। इन्हीं को प्रेरणा से यहां स्तूपों का निमार्ण करवाया गया। ईक्ष्वाकु नरेश मराठी पत्र वीरपरुष दत्त के शासनकाल में महास्तप का निर्माण एवं संवर्धन हुआ। उसका एक रानी बपिसिरिनिका के एक लेख से महाचैत्य का निर्माण परा किये जाने की सचना मिलती है। महास्तूप के साथ-साथ बोद्ध धर्म से संबंधित अन्य स्मारकों एवं मंदिरों का निर्माण भी हआ। रानियों द्वारा निर्माण कार्य के लिये श्नवकाम्मकश् नामक अधिकारियों की नियुक्ति की गयी थी।
सर्वप्रथम 1926 ई. में लांगहट नामक विद्वान ने यहां के परावशेषों को खोज निकाला था। तत्पश्चात 1927 से 1959 के बीच यहां कई बार उत्खनन कार्य हुए। फलस्वरूप यहां से अनेक स्तूप, चैत्य, विहार, मंदिर आदि प्रकाश में आये हैं।
नागार्जुनीकोण्ड से लांगहर्स्ट को नौ स्तपों के ध्वंसावशेष प्राप्त हए थे जिनमें से चर पाषाण पटियाओं से जड़े गये थे। नागाजुनाकाण्ड से जो स्तूप मिलते हैं वे अमरावती के स्तप से मिलते-जलते हैं। यहां का महास्तप गोलाकार था। इसका व्यास 106 फुट तथा ऊँचाई लगभग 80 फुट थी। भूतल पर 13 फुट चैड़ा प्रदक्षिणापथ था जिसके चारों ओर वेदिका थी। स्तूप के ऊपरी भाग को कालान्तर में उत्कीर्ण शिलापट्टों से अलंकत किया गया। शिलापट्टों पर बौद्धधर्म से संबंधित कथानकों को प्रचुरता से उत्कीर्ण किया गया है। कुछ दृश्य जातक कथाओं से भी लिये गये हैं। प्रमुख दृश्यों में बुद्ध के जन्म, महाभिनिष्क्रिमण, संबोधि, धर्मचक्रप्रवर्तन, माया का स्वप्न, मार विजय आदि हैं। नागार्जुनीकोण्ड स्तूप की प्रमुख विशेषता आयकों का निर्माण है। श्आयकश् एक विशेष प्रकार का चबूतरा होता था। स्तूप के आधार को आयताकार रूप में बाहर की ओर चारों दिशाओं में आगे बढ़ाकर बनाया जाता था। नागार्जुनीकोण्ड के आयकों पर अमरावती स्तूप की ही भांति अलंकृत शिलापट्ट लगाये गये थे। इस स्तूप की वेदिका में प्रवेश द्वार तो मिलते हैं किन्तु तोरणों का अभाव है। उत्कीर्ण शिलापट्टों का कला-सौन्दर्य दर्शनीय है। तक्षण की ऐसी स्वच्छता, सच्चाई एवं बारीकी, संपुजन की निपुणता, वस्त्राभूषणों का संयम एवं मनोहर रूप आदि अन्यत्र मिलता कठिन है। ये आंध्र शिल्प की चरम परिणति को सूचित करते हैं।
नागार्जुनीकोण्ड की खुदाई में महास्तूप के अतिरिक्त कई लघु स्तूप, मंदिर, मूर्तियां एवं राजप्रासाद के ध्वंसावशेष भी प्राप्त हुए हैं। हारीति, पुष्पभद्रस्वामी शिव तथा कार्तिकेय के मंदिर एवं बैठी मुद्रा में बनी हारीति की मूर्ति उल्लेखनीय है। राजप्रासाद के ध्वंसावशेषों में परिखा, प्राकार एवं द्वारतोरण मिलते हैं। प्रासाद के उत्तर दिशा में व्यायामशाला मिलती है। नागार्जुनीकोण्ड के स्मारकों का काल ईसा पूर्व दूसरी से पांचवीं शती ईसवी के मध्य निर्धारित किया गया है।
अमरावती तथा नागार्जुनकोण्ड के अतिरिक्त दकन में कृष्णा तथा गोदावरी नदियों के बीच के प्रदेश में स्थित अन्य कई स्थानों जैसे भट्टिप्रोल, पेउगंज, गोली, जगय्यपेट्ट, घण्टशाल आदि में अनेक स्तूपों, चैत्यों तथा विहारों का निर्माण सातवाहन-ईक्ष्वाकु युग में किया गया था।
प्रश्न: बौद्ध कला के रूप में चैत्य तथा विहार स्थापत्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर: पर्वत गफाओं को खोदकर गुहा विहार बनवाने की जो परम्परा मौर्यकाल में प्रारम्भ हुई, वह सातवाहन काल में आते-आते चर्मोत्कर्ष पर पहुंच
गयी। खुदाई के कार्य को सेलकम्म (शैलकर्म) तथा खुदाई करने वाले की संज्ञा सेलवड्ढकी (शैलवर्धकि) थी। उत्कीर्ण गुफा को कीर्ति तथा उसके प्रवेश द्वार को कीर्तिमुख कहा जाने लगा। गुफा के सम्मख चट्टान काटकर जो स्तम्भ तैयार किये जाते थे उन्हें कीर्तिस्तम्भ कहा गया।
सातवाहन काल में पश्चिमी भारत में पर्वत गुफाओं को काटकर चैत्यगृह तथा विहारों का निर्माण किया गया। श्चैत्य श् का शाब्दिक अर्थ है चिता-संबंधी। शवदाह के पश्चात् बचे हुए अवशेषों को भूमि में गाड़कर उनके ऊपर जो समाधियां बनाई गयीं उन्हीं का प्रारम्भ में चैत्य अथवा स्तूप कहा गया। इन समाधियों. में श्महापुरुषोंश् के धातु-अवशेष सुरक्षित थे, अतः चैत्य उपासना के केन्द्र बन गये। कालान्तर में बौद्धों ने इन्हें अपनी उपासना का केन्द्र बना लिया और इस कारण चैत्य-वास्त बौद्धधर्म का अभिन्न अंग बन गया। पहले चैत्य या स्तूप खुले स्थान में होता था किन्तु बाद में उसे भवनों में स्थापित किया गया। इस प्रकार के भवन चैत्यगृह कहे गये। ये दो प्रकार के होते थे –
1. पहाड़ों को काटकर बनाये गये चैत्य (Rock-cut Chaityas) तथा ।
2. ईंट-पत्थरों की सहायता से खुले स्थान में बनाये गये चैत्य (Structural Chaityas) |
इनमें पहाड़ों को काटकर बनाये गये चैत्यगृहों के उदाहरण ही दकन की विभिन्न पहाड़ी गुफाओं से मिलते हैं। चैत्यगहों के समीप ही भिक्षओं के रहने के लिये आवास बनाये गये जिन्हें विहार कहा गया। इस प्रकार चैत्यगृह वस्तुतः प्रार्थना भवन (गहा-मंदिर होते थे जो स्तूपों के समीप बनाये जाते थे, जबकि विहार भिक्षुओं के निवास के लिये बने हए मठ या संघाराम होते थे। चैत्यग्रहों की संख्या तो कम है लेकिन गुहा-विहार बड़ी संख्या (लगभग 100) में मिलते हैं। इनमें अधिकतम बौद्ध हैं।
चैत्यगहों की जो संरचना उपलब्ध है, उसके अनुसार उनके आरम्भ का भाग आयताकार तथा अन्त का भाग अर्धवृत्ताकार या अर्धगोलाकार होता था। इसकी आकृति घोड के नाल जैसी होती थी। अन्तिम भाग में ही ठोस अण्डाकार स्तुप बनाया जाता था जिसकी पूजा की जाती थी। चूँकि स्तूप को चैत्य भी कहा जाता है, अतः इस प्रकार की गुफा को चैत्यगृह कहा जाने लगा। इसकी दोहरी आकृति के कारण इसे द्वयर्स (बेसर) चैत्य भी कहा जाता है। स्तूप पर हर्मिका तथा एक के ऊपर एक तीन छन्त्र रहते थे। स्तूप के सामने मण्डप तथा अगल-बगल के सामने प्रदक्षिणा के लिये बरामदे होते थे। मण्डप की छते गजपष्ठाकार (।चेपकंस) अथवा ढ़ोलाकार होती थी। मण्डप बरामदे को अलग करने के लिये चैत्य में दोनों ओर स्तम्भ बनाये जाते थे। गफा की खुदाई कीर्तिमुख (प्रवेश द्वार) से ही आरम्भ होती थी। इसके दो भाग थे – ऊपरी तथा निचला।
ऊपरी भाग में घोड़े की नाल (Horse Soe) की आकृति का चाप (Arch) बनाया जाता था जिसके श्चैत्य गवाक्ष (कीर्तिमुख) कहा जाता है। निचला भाग ठोस चट्टानी दीवार का था। इसमें तीन प्रवेश गलेश द्वार काटे जाते थे। मध्यवर्ती दार मण्डप (नाभि) तक पहुँचने के लिये होता था। अगल-बगल के द्वार प्रदक्षिण कर दायी और से बाहर निकल जाता था। मध्यवर्ती द्वार भिक्षुओं के लिये आरक्षित था जो इसी से जाकर स्तूप का स्पर्श करते थे। इस प्रकार सम्पूर्ण चैत्यगृह तैया होता था। इसे श्कुभाश् श्गहाश् अथवा श्घरश् भी कहा जाता है। संस्कुत में शिलाटंकित गुफाओ के लिये श्लवणश् (लेस) शब्द का भी प्रयोग मिलता है। इस प्रकार चैत्यगृह में मुख्यतः तीन अंग हाते थे –
1. मध्यवर्ती कक्ष (नाभि या मध्यवीथी)
2. मण्डप या महामण्डप
3. स्तम्भ।
वी.एस. अग्रवाल के अनसार श्चैत्यगह को वस्ततः बौद्ध धर्म का देवालय कहना चाहिए।श् इसका आकार इसाई गिरजाघरों से बहुत कुछ मिलता-जुलता है जिनमें नेव (मण्डप), आइल (प्रदक्षिणापथ) तथा ऐप्स (गर्भगृह) होते थे। चैत्यगृह के विभिन्न अंगों की तुलना हिन्दु मंदिरों से भी की जा सकती है। स्तूप का भाग मंदिरों के गर्भगृह के समान था तथा स्वयं स्तुप देवमूर्ति जैसा था। मध्यवीथी की तुलना मंदिर के मण्डप से तथा दोनों ओर की पार्श्व वीथियों की तुलना प्रदक्षिणापथ से की जा सकती है। कालान्तर में चैत्यगृहों के ही आधार पर हिन्दू मंदिरों की वास्तु तथा शिल्प का विकास हुआ।
चैत्यगहों से कुछ भिन्न प्रकार की गहा विहारों की रचना मिलती है। इनके भीतर चैकोर घर के आंगन की भाँति विशाल मण्डप बनाया जाता था और उसके तीन ओर छोटे-छोटे चैकोर कोठार जाते थे जो भिक्षुओं के निवास के लिये थे। सामने की दीवार में प्रवेश द्वार और उसके सामने स्तम्भों पर आधारित बरामदा बनता था। कुछ चैत्य तथा विहार ईंट पत्थर की सहायता से खुले मैदान में भी बनाये जाते थे। मैदानी चैत्यों की छतें गजपृष्ठाकार अथवा ढोलाकार होती थी। इनकी बाहरी दीवारों में भी प्रकाश के लिये गवाक्ष (झरोखे) काटे जाते थे। मैदानी विहारों में मण्डप के स्थान पर आंगन बनता था जिसके तीन ओर कमरे बनते थे। आंगन तथा कमरों के बीच स्तम्भों पर टिके हुए बरामदे बनाये जाते थे। चैत्यगृह तथा विहार पहले लकड़ी के बनते थे। कालान्तर में इन्हीं की अनुकृति पाषाण में उतार दी गयी। अतः पर्सी ब्राउन का यह मत स्वीकार्य नहीं है कि गुफा निर्माण कला भारतीयों ने ईरान (परसिपोलिस) से सीखी थी। वस्तुतः गुफायें गाँव की झोपड़ी अथवा घर के मूल स्वरूप को लेकर खोदी गयी थी। कलाकारों ने इन्हीं को ध्यान में रखकर चट्टानों में खोदाई कर सुन्दर एवं स्थायी गुफाओं का निर्माण किया।
पश्चिमी भारत के चैत्य एवं विहार
पश्चिमी भारत में इस समय अनेक चैत्यगृहों का निर्माण करवाया गया। चैत्यगृह तो कम है लेकिन विहार बड़ी संख्या में मिलते हैं। कालक्रम की दृष्टि से इन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – हीनयानी तथा महायानी। हीनयान मत में बद्ध की मूर्ति नहीं बनती थी तथा प्रतीकों के माध्यम से ही उन्हें व्यक्त कर पूजा जाता था। इस दृष्टि से गुफा में स्तूप को ही स्थापित कर उसकी पूजा होती थी। हीनयान धर्म से संबंधित प्रमुख चैत्यगृह हैं – भाजा, कोण्डाने, पीतलखोरा, अजन्ता (नवीं-दसवीं गुफा, बेडसा, नासिक तथा काले इनमें किसी प्रकार का अलंकरण अथवा मूर्ति नहीं मिलती तथा साधारण स्तूप ही स्थापित किया गया है। इनका समय ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ईसवी की दूसरी शताब्दी तक निर्धारित किया जाता है। अधिकांश चैत्यगृहों में विहार भी साथ-साथ बनाये गये हैं। सातवाहनयुगीन गुफायें हीनयान मत से संबंधित हैं क्योंकि इस समय तक महायान का उदय नहीं हुआ था। अतः उनमें कहीं भी बुद्ध की प्रतिमा नहीं पाई जाती तथा उनका अंकन पादुका, आसन, स्तूप, बोधिवृक्ष आदि के माध्यम से ही किया गया है। पश्चिम भारत के प्रमुख चैत्यों एव विहारों का विवरण इस प्रकार है – भाजा का चैत्य रू यह महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित है। भाजा की गुफायें पश्चिमी महाराष्ट्र की सबसे प्राचीन गुफाआ में से हैं जिनका उत्कीर्णन ईसा पूर्व दूसरी शती के प्रारंभ में हुआ होगा। ये भोरघाट में कालें के दक्षिण में हैं। इनमें विहार, चैत्यगृह तथा 14 स्तूप हैं। चैत्यगृह में कोई मूर्ति नहीं मिलती अपितु मण्डप के स्तम्भों पर त्रिरत्न, नन्दिपद, श्रीवत्स, चक्र आदि उत्कीर्ण किये गये हैं। स्तम्भों की कुल संख्या 27 है। यहां के विहार के भीतरी मण्डप के तीनों ओर भिक्षुओं के निवास के लिये कोठरियां बनाई गयी थी जिनमें से प्रत्येक में पत्थर की चैकी थी जिस पर भिक्षु शयन करते मुखमण्डप के स्तम्भों के शीर्ष भाग पर स्त्री-पुरुष की वृषारोही मूर्तियां कलात्मक दृष्टि से अच्छी हैं। दो दृश्य विशेष सेे उल्लेखनीय हैं। पहले से रथ पर सवार एक पुरुष दो अनुचरों के साथ तथा दूसरे में हाथी पर सवार अनुचर के किसी पुरुष की आकृति है। कुछ विद्वान् इन्हें सूर्य तथा इन्द्र की आकृति मानते हैं। भाजा के चैत्यगृह की कुछ दूरी १ चैदह छोटे बड़े ठोस स्तूप बनाये गये हैं। इनकी मेधि के ऊपरी भाग पर वेदिका का अलंकरण है।
कोण्डाने का चैत्य रू यह कुलावा जिले में है। कार्ले से दस मील दूरी पर स्थित इस स्थान से चैत्य तथा विहार । हैं। यहां का विहार प्रसिद्ध है जो पूर्णतया काष्ठशिल्प की अनुकृति पर तैयार किया गया है। इसके बीच का बड़ा म स्तम्भों पर टिका हुआ है। स्तम्भों पर गजपृष्ठाकार छत बनी है। मुखमण्डप की पिछली दीवार में तीन प्रवेश द्वार तक जालीदार झरोखे बनाये गये हैं। भीतरी मण्डप के तीन ओर भिक्षुओं के आवास के लिये कक्ष बनाये गये हैं। कोण्डाने के साथ तथा विहार मिलते कोण्डाने के चैत्य एवं विहार का निर्माण ईसा पूर्व की दूसरी शती में करवाया गया था।
पीतलखोरा का बौद्ध गुहा स्थापत्य रू यह खानदेश में है। शतमाला नामक पहाडी में पीतलखोरा गुफायें खोदी गयी है। इनकी संख्या तेरह है। नासिक तथा सोपारा से प्रतिष्ठान की ओर जाने वाले व्यापारिक मार्ग पर यह स्थित था। यहा का गुफाओ का उत्कीर्ण भी ईसा पूर्व दूसरी शती में आरम्भ किया गया। पहले यहां हीनयान का प्रभाव था किन्तु बाद में महायान मत का प्रचलन हुआ। गुहा संख्या तीन चैत्यगह है जो 35श् ग 86श् के आकार की है। इसका एक सिरा अर्धवृत्त. (बेसर) प्रकार का हा इसम 37 अठपहलू स्तम्भ लगे थे जिनमें 12 अब भी सरक्षित हैं। ये मण्डप तथा प्रदक्षिणापथ को अलग करत था स्तम्भा पर उत्कीर्ण दो लेखों से पता चलता है कि पीतलखोरा गफाओं का निर्माण प्रतिष्ठान के श्रेष्ठियों द्वारा करवाया गया था। चैत्यगृह में बने स्तूप के भीतर धात-अवशेषों से यक्त मंजषायें रखी गयी थी। इसमें एक सोपान भी है जिसमें 11 साढ़िया हैं। उनके दोनों ओर सपक्ष अश्व एवं उनके पीछे दो यक्ष खोदकर बनाये गये हैं। चैथी गफा, जो एक विहार था, का मखमण्डप मर्तियों से अलंकत शासनाने पर कीर्तिमान बनाये गये थे। छरू चैत्यगवाक्ष अब भी सक्षित दशा म हा २१ नीचे उत्कीर्ण मिथुन मूर्तियां भव्य एवं सन्दर हैं। स्तम्भों पर ही अनेक अलंकरण हैं। मण्डप में सात गर्भशालायें तथा भीतर मुख्यशाला है। मुख्य प्रवेश द्वार की ऊँची कुर्सी पर गजारोहियों की पंक्ति खुदी हुई हैं द्वार-स्तम्भ भी बहुविध अलंकृत हैं। कमलासन पर बैठी लक्ष्मी दोनों हाथों में सनाल कल लिये हुए उत्कीर्ण हैं। उन्हें दो हाथी अभिषिक्त कर रहे हैं। किनारे वाले स्तम्भों पर त्रिरत्न एवं फुल्लों का अलंकरण है। द्वारपालों की मर्तियां काफी प्रभावोत्पादक हैं। पांच से नौ तक की गुफायें विहार एवं तेरहवीं गुफा चैत्यगृह है। नवी गुफा सबसे बड़ी है। उसके भीतरी मण्डप के छज्जे के ऊपर वेदिका अलंकरण है। चैत्यगृह के मण्डप की दो स्तम्भ पंक्तियां स्तूप के पीछे तक बनाई गयी हैं।
पीतलखोरा के चैत्य एवं विहारों पर हीनयान मत का प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। बौद्ध ग्रंथ श्महामायूरीश् में इस स्थान का नाम पीतंगल्य दिया गया है।
अजन्ता बौद्ध गुहा स्थापत्य रू महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में अजन्ता की पहाड़ी स्थित है। तक्षण तथा चित्रकला दोनों ही दृष्टियों से भारतीय कला केन्द्रों में अजन्ता का स्थान अत्यन्त ऊँचा है। यह ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी ईसवी तक हुआ। दूसरी शताब्दी तक यहां हीनयान मत का प्रभाव था, तत्पश्चात् महायान मत का। यहां कुल 29 गुफायें उत्कीर्ण की गयीं। इनमें चार चैत्य तथा शेष 25 विहार गुफायें हैं।
अजन्ता की दसवीं गुफा को सबसे प्राचीन चैत्य माना जाता है जिसका काल ईसा पूर्व दूसरी शती है। इसके मण्डप तथा प्रदक्षिणापथ के बीच 59 स्तम्भों की पंक्ति है। स्तम्भ बीच में चैकोर तथा अन्दर की ओर झुके हुए हैं। मण्डप के स्तूप के ऊपर टेढ़ी धरन स्तम्भों के सिरों से निकलती हुई दिखायी गयी है। इस गुफा के उत्खाता कलाकार ने इसे अनेक प्रकार से अलंकृत किया है। स्तूप का आधार गोलाकार है किन्तु उसके ऊपर का भाग लम्बा अण्डाकार है। नवी गुफा भी चैत्य गृह है। इसका आकार अपेक्षाकृत छोटा है। इसके मुखपट्ट के मध्य में एक प्रवेश द्वार तथा अंगल-बगल दो गवाक्ष बनाये गये हैं। तीनों के शीर्ष भाग पर छज्जा निकला हुआ है। उसके ऊपर संगीतशाला है तथा इसके ऊपर कीर्तिमुख है। इससे चैत्य के भीतर प्रकाश एवं वायु का प्रवेश होता था। सामने की ओर वेदिका का अलंकरण तथा भीतर वर्गाकार मण्डप स्थित है। उक्त दोनों चैत्य गृहों में शुंग काल की अनेक चित्रकारियां बनी हैं।
अजन्ता की 12वीं, 13वीं तथा 8वीं गुफायें विहार हैं। 12वीं गुफा सबसे प्राचीन है जो 10वीं गुफा चैत्यगृह से संबंधित है। नवीं चैत्यगुहा के साथ आठवीं विहार गुहा का निर्माण हुआ। यह हीनयान से संबंधित है। अन्य गुफायें महायान मत की हैं। अजन्ता की पांच गुफायें (10, 9, 8, 12 तथा 13) ही प्रारंभिक चरण की हैं। कालान्तर में अन्य गुफायें उकेरी गयीं।
16वीं-17वीं गुफायें विहार तथा पहली दूसरी चैत्य गृह हैं। इनका अलंकरण अत्युत्कृष्ट है।

Sbistudy

Recent Posts

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

4 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

7 days ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

7 days ago

elastic collision of two particles in hindi definition formula दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है

दो कणों की अप्रत्यास्थ टक्कर क्या है elastic collision of two particles in hindi definition…

7 days ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now