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मुंशी आयंगर सूत्र क्या था , munshi ayyangar formula in hindi राजभाषा प्रारूप समिति सदस्य अध्यक्ष

जाने मुंशी आयंगर सूत्र क्या था , munshi ayyangar formula in hindi राजभाषा प्रारूप समिति सदस्य अध्यक्ष कार्य ?

प्रश्न: मुंशी आयंगर सूत्र 
उत्तर: मूल अधिकार उप-समिति ने एक प्रारूप तैयार किया था जिसके अनुसार हिंदुस्तानी को राजभाषा का स्थान दिया गया था जो नागरिक के विकल्प पर देवनागरी या फारसी लिपि में लिखी जा सकती थी। 16 जुलाई, 1947 को कांग्रेस संसदीय दल में इस बात पर विचार किया गया कि राजभाषा किसे बनाया जाए – हिंदी को या हिंदुस्तानी को। हिंदुस्तानी के समर्थकों में जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद और सरदार पटेल थे। किंतु जब मतदान हुआ तो हिंदी के पक्ष में 63 और हिंदुस्तानी के पक्ष में 32 मत पड़े। देवनागरी लिपि के पक्ष में 63 और विपक्ष में 18 मत थे। इस मतदान का परिणाम संविधान के प्रारूप में तुरंत प्रतिबिंबित हुआ। फरवरी, 1948 में जब संविधान का प्रारूप परिचालित किया गया तो उसमें हिंदी शब्द था, हिंदुस्तानी (हिंदी या उर्दू, शब्द हुआ दिए गए।
राजभाषा से संबंधित भाग का प्रारूप तैयार करने के लिए एक प्रारूप समिति का गठन किया गया जिसमें 16 सदस्य थे। इनमें बाबा साहेब अंबेडकर, मौलाना आजाद और श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी थे। किंतु 2 सदस्यों ने मुख्य रूप से यह कार्य किया। वे थे गोपालस्वामी आयंगर और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी। इन्होंने परिश्रमपूर्वक एक प्रारूप तैयार किया जिसे अन्य सदस्यों ने अनुमोदित किया। इसीलिए इस भाग को श्मुंशी आयंगर सूत्रश् कहते हैं।

प्रश्न: देशी रियासतों का विलय एवं राजनीतिक एकीकरण में जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर तथा विदेशी उपनिवेशों का विलय कैसे हुआ।
उत्तर: आजादी के समय भारत का लगभग 40ः भूभाग 562 छोटी-बड़ी देशी रियासतों के अन्तर्गत था। इस समय सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि देशी रियासतों को किस प्रकार एक प्रशासन के अन्तर्गत लाया जाए। 1947 में जब भारत की आजादी की बात हुई, तो कई बड़ी रियासतें आजादी के सपने देखने लगी और उसे कार्यरूप देने के लिए उपाय ढूंढने लगे। देशी रियासतों के शासक यह दावा करने लगे कि दो नवजात-राज्यों (भारत एवं पाकिस्तान) को पैरामाउंटेसी (सर्वोच्चता) हस्तांतरित नहीं की जा सकती। 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने यह घोषित किया कि ‘‘सम्राट की सरकार पैरामाउंटेसी के अन्तर्गत अपनी शक्तियां और कर्तव्यों को ब्रिटिश भारत की किसी सरकार को सौंपने का इरादा नहीं रखती। एटली की घोषणा में देशी रियासतों की महत्वाकांक्ष को हवा दी।
22 जून, 1947 को सरदार पटेल ने नवगठित रियासत विभाग का अतिरिक्त कार्यभार अपने सचिव वी.पी. मेनन के साथ संभाला। पटेल ने उन राजाओं से अपील की कि भारतीय क्षेत्र में स्थित देशी रियासतें तीन विषयों-विदेशी संबंध, सेना तथा संचार पर भारतीय संघ की स्वीकृति प्रदान करे। पटेल ने दबे तौर पर रियासतों को यह धमकी भी दी कि वे रियासत की बेकाबू हो रही जनता को नियंत्रित करने में मदद के लिए समर्थ नहीं हो पाएंगे तथा 15 अगस्त के बाद सरकार की शर्ते और कड़ी होती जाएंगी। रियासतों में जनता के आंदोलन, कांग्रेस के उग्रवादी रवैया तथा पटेल की दृढ़ता एवं कठोरता की ख्याति के कारण 15 अगस्त, 1947 तक तीन रियासतों जूनागढ़, जम्मू एवं कश्मीर तथा हैदराबाद को छोड़कर सभी रजवाड़े भारत संघ में शामिल हो गए।
प्रश्न: देशी रियासतों के विलय एवं राजनीतिक एकीकरण में जूनागढ़ का विलय
उत्तर: जूनागढ़ सौराष्ट्र के तट पर स्थित एक छोटी सी रियासत थी, जो चारों ओर से भारतीय भू-भाग से घिरी थी। 15 अगस्त, 1947 को जूनागढ़ के नवाब ने अपने राज्य का विलय पाकिस्तान के साथ करने की घोषणा की किन्तु यहां की जनता जो सर्वाधिक हिन्दू थे, भारत संघ में शामिल होना चाहते थे। पाकिस्तान ने जूनागढ़ के विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया किन्त यहां की जनता ने इस निर्णय के विरुद्ध एक जनांदोलन संगठित किया किया और नवाब को पाकिस्तान भागने के लिए मजबूर कर दिया। नवाब के भागने के बाद जूनागढ़ के दीवान शहनवाज भुट्टो ने भारत सरकार को हस्तक्षेप करने के लिए आमंत्रित किया तो भारतीय सेना राज्य में शांति स्थापना हेतु भेजी गई। फरवरी 1948 में रियासत के अन्दर जनमत संग्रह कराया गया, जिनका निर्णय भारत में विलय के पक्ष में था।
प्रश्न: देशी रियासतों के विलय एवं राजनीतिक एकीकरण में हैदाराबाद का विलय
उत्तर: हैदराबाद भारत की सबसे बड़ी रियासत थी, जो पूर्णतः भारतीय भू-भाग के अन्दर स्थित थी। 15 अगस्त, 1947 को हैदराबाद के निजाम ने भारत संघ में शामिल होने से मना कर दिया। निजाम ने पाकिस्तान से प्रोत्साहन पाकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने का दावा पेश किया साथ ही इसने अपनी सेना का विस्तार भी करने लगा। नवम्बर, 1947 में भारत सरकार निजाम के साथ एक यथास्थिति संधि करने के लिए तैयार इस शर्त पर हो गई कि जब तक संधि वार्ता जारी रहेगी निजाम अपने रियासत में प्रतिनिधिमलक सरकार बनाएगा। निजाम ने माउंटबेटेन के दोस्त तथा अग्रज वकाल सर वाल्टर मोकलोन को अपनी तरफ से भारत सरकार से संधि करने के लिए नियक्त किया। निजाम की यह योजना थी कि वह संधिवार्ता को लंबा खींचकर अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ाया जाए ताकि भारत सरकार पर अपनी संप्रभुता मनवाने के लिए दबाव डाल सकें। हैदराबाद के निजाम तथा अधिकारियों की सांठगांठ से एक उग्रवादी मुस्लिम संगठन इतिहास-उल-मुसलमीन और उसके अर्धसैनिक अंग रजाकरों ने निजाम के विरुद्ध संघर्ष करने वाली जनता पर आक्रमण करके भयभीत करना शुरू कर दिया।
7 अगस्त, 1947 को निजाम से जनतंत्र की मांग के लिए एक शक्तिशाली सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत हैदराबाद रियासत कांग्रेस ने किया किन्तु सत्याग्राहियों पर अत्याचार किया जाने लगा साथ ही उन पर रजाकरों ने आक्रमण शुरू कर दिया। इस आंदोलन से पूर्व ही 1946 में कम्युनिस्टों के नेतृत्व में एक शक्तिशाली किसान आंदोलन रियासत के तेलंगाना क्षेत्र में विकसित हुआ था, जो अगस्त, 1947 तक कमजोर पड़ गया था किन्तु रजाकरों द्वारा जनता पर किए जाने वाले हमलों के कारण यह आंदोलन पुनः जीवित हो गया। हैदाराबाद रियासत के इस विस्फोटक परिस्थितियों में भारतीय सेना 13 सितम्बर, 1948 को हैदराबाद में प्रवेश कर गई और तीन दिनों बाद ही निजाम ने समर्पण कर दिया तथा नवम्बर, 1948 में भारतीय संघ में विलय को स्वीकार कर लिया। भारत सरकार ने उदारता दिखाते हुए निजाम को कोई सजा नहीं दी तथा उसे राज्य के औपचारिक प्रमुख के रूप में बहाल रखा गया और 50 लाख रुपये की प्रिवी पर्स के साथ ही उसकी निजी संपत्ति का
अधिकांश भाग रखने की अनुमति दे दी गई।

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