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पर्वत किसे कहते हैं ? पर्वत उच्चावच की परिभाषा या है वर्गीकरण कितने प्रकार के होते हैं Mountains in hindi

Mountains in hindi पर्वत किसे कहते हैं ? पर्वत उच्चावच की परिभाषा या है वर्गीकरण कितने प्रकार के होते हैं ?

स्थलरूपाों का उद्भव एवं वर्गीकरण
(CLASSIFICATION & EVOLUTION OF LAND FORMS)
भू-पृष्ठ पर हमें अनेक प्रकार के स्थलरूपा दिखाई पड़ते हैं। कहीं हिमालय जैसे ऊँचे पर्वत है, कहीं विशाल गहरे महासागर हैं, कहीं मैदान है तो कहीं रेगिस्तान का विस्तार है। स्थल-मण्डल की सतह पर उभंकार (Vertical) स्थलीय विषम-तापों को उच्चावच कहा जाता है जिसे स्थल रूपा भी कहा जाता है। ये विशाल पर्वत के रूपा में ऊँचे हो सकते हैं या पहाड़ी टीलों के रूपा में कम ऊँचे या घाटियों के रूपा में गहरे हो सकते हैं। विस्तार व आकार की दृष्टि से इन्हें तीन वृहद श्रेणियों में बाँटा जाता हैः-
(1) प्रथम श्रेणी के उच्चावच – इसमें पृथ्वी तल के सबसे बड़े व प्रमुख उच्चावच शामिल किये जाते हैं, महाद्वीप व महासागर। समस्त ग्लोब के 70.8% पर जल मण्डल (सागर एवं महासागर) तथा 29.2% पर स्थल मण्डल (महाद्वीप) का विस्तार है। इनकी उत्पत्ति का हम विश्लेषण कर चुके हैं।
(2) द्वितीय श्रेणी के उच्चावच – पर्वत, पठार, मैदान व झीलों को द्वितीय श्रेणी के उच्चावचों में रखा जाता है। इन्हें संरचनात्मक स्थलरूपा (Structural Land forms) भी कहा जाता है। इनका निर्माण प्रथम श्रेणी के उच्चावचों के ऊपर होता है। इनके निर्माण व उत्पत्ति में पृथ्वी के आन्तरिक बलों का विशेष योगदान होता है।
(3) तृतीय श्रेणी के उच्चावच – द्वितीय श्रेणी के उच्चावच पर निर्मित तथा विकसित स्थलरूपा तृतीय श्रेणी के भूरूपा कहलाते हैं। पर्वत, पठारों व मैदानों पर बाह्य बलों द्वारा (अपक्षय व अपरदन) अनेक स्थलरूपाों की उत्पत्ति होती है। ये विनाशकारी बलों से बनते हैं, अतः विनाशात्मक स्थलरूपा (Destructional Land forms) कहलाते हैं।
इस अध्याय में हम द्वितीय श्रेणी के उच्चावच, पर्वत, पठार व मैदान के विषय में चर्चा करेंगे। भू-पृष्ठ पर ये विशिष्ट आकृतियाँ हैं जो अन्य भू-रूपाों के लिये प्लेटफार्म बनाती हैं। इनका निर्माण महाद्वीपों पर मुख्य रूपा से आन्तरिक शक्तियों या पटल विरूपाणकारी शक्तियों के क्रियाशील होने से होता है। भूपृष्ठ पर 27.8% भाग पर स्थल खण्ड का विस्तार है, जिस पर सबसे ज्यादा ऊँचे उठे हुए भाग पर्वत कहलाते हैं, विस्तृत समतल भू-भाग जो बहुत कम ऊँचा हो मैदान कहलाता है तथा अपेक्षाकृत ऊँचे, चैरस, सपाट भू-भाग पठार कहलाते हैं।

पर्वत (Mountains)

भू-पृष्ठ पर ऊँचे उठे भू-भाग जिनका क्षेत्रफल धरातल पर ज्यादा व शीर्ष (चोटी) पर कम होता है पर्वत कहलाते हैं। इनका ढाल तीव्र होता है व ऊँचाई 600 मीटर से हजारों मीटर तक पायी जाती है।
सेल्सबरी के अनुसार – ‘पर्वत वे उच्च स्थलीय भाग होते हैं, जिनका शिखर काफी संकुचित होता है‘।
फ्रिंच के अनुसार – ‘पर्वत सागर तल से 600 मीटर या इससे अधिक ऊँचे उठे हुए वे भू-भाग हैं जो निकटवर्ती धरातल से प्रायः 26 से 35° का कोण बनाते हैं।‘
संसार में अनेक पर्वत विभिन्न भागों में फैले हुए है जिनमे सर्वोच्च ऊँचे पर्वत हिमालय पर्वत श्रृंखला है, जिसका सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट 8864 मीटर ऊँचा है। विभिन्न पर्वतों के रूपाा भी अलग-अलग पाए जाते है। इनको भौगोलिक विशेषताओ के आधार पर निम्न भागों में बांटा जा सकता हैः-
(अ) पर्वत समूह (Cardillera) – यह विस्तृत क्षेत्र में भिन्न-भिन्न प्रकार व काल में निर्मित पर्वत श्रेणियों का समूह होता है। जैसे एशिया का मध्यवर्ती पर्वत क्रम या उत्तरी अमेरिका का पर्वत समूह।
(ब) पर्वत तंत्र (Mountain System) – एक ही काल में एक ही प्रकार से निर्मित अनेक पर्वत श्रेणियों को पर्वत तंत्र कहते हैं। संयुक्त राज का अप्लेशियन पर्वत इस क्रम का पर्वत है।
(स) पर्वत श्रेणी (Mountain Range) – एक ही प्रकार की संरचना एवं समान आयु की लम्बी, पतली व सैंकरी पट्टी में फैले पर्वत जिनके कई शिखर हों, पर्वत श्रेणी कहलाते है। हिमालय पर्वत श्रेणी इस क्रम में आती है।
(द) पर्वत कटक (Mountain Ridge) -उच्च पर्वत शिखरों की लम्बी, पतली पर्वतों का क्रम जिसमें भ्रश क्रिया अधिक हई हो व तीव्र ढाल हो पर्वत कटक कहा जाता है। इस क्रम में उत्तरी अमेरिका का रॉकीज पर्वत एवं दक्षिण अमेरिका का एण्डीज पर्वत रखा जा सकता है।
(इ) पर्वत श्रृंखला (Mountain Chain) -उत्पत्ति एवं आयु की दृष्टि से असमान तथा मध्य में समतल भाग या पठार हो तो ऐसे अनेक पर्वतों के विस्तार को पर्वत श्रृंखला कहा जाता है। यूरोप का आल्पस पर्वत तथा दक्षिण पश्चिम एशिया में पामीर की गाँठ से निकलने वाले पर्वत इस क्रम में रखे जा सकते हैं।
पर्वतों का वर्गीकरण
(Classification of Mountains)
भू-पृष्ठ पर पाये जाने वाले पर्वतों को कई आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता हैः-
(1) ऊँचाई के आधार पर वर्गीकरण
1. उच्च पर्वत (High Mountains)- जिन पर्वतों की ऊँचाई 2000 मी. से अधिक होती है, वे इस श्रेणी में रखे जाते हैं। जैसे हिमालय, ऑल्पस, रॉकीज आदि।
2. साधारण उच्च पर्वत (Rouggered Mountains) – जिन पर्वतों की ऊँचाई 1500 से 2000 मी. के मध्य होती है, उन्हें साधारण उच्च पर्वत कहा जाता है, जैसे अमेरिका का अप्लेशियन पर्वत या भारत में विन्ध्याचल पर्वत।
3. रुक्ष पर्वत (Rough Mountains) -ये पर्वत 1000 से 1500 मीटर की ऊँचाई के होते हैं। भारत के सतपुड़ा, अरावली, शिवालिक इस क्रम के पर्वत हैं।
4. निम्न पर्वत (Low Mountains) – जिन पर्वतों की ऊँचाई लम्बे समय से अपरदन के कारण 1000 मीटर से भी कम हो जाती है, उन्हें निम्न पर्वत कहा जाता है, जैसे पश्चिम एवं पूर्वी घाट या खिगन पर्वत।
(द) स्थिति के आधार पर भी पर्वतो को तीन प्रकारों में रखा जाता हैः
(1) महाद्वीपीय पर्वत जो महाद्वीपों के मध्य सर्वाधिक विस्तार वाले होते हैं। यूराल, हिन्दकुश, आल्पस
(2) तटीय पर्वत जो महाद्वीपों के तट पर फैले होते हैं जैसे रॉकीज, एण्डीज, एटलस।
(3) सागरीय पर्वत महासागरों में स्थित होते हैं। ये प्रायः ज्वालामुखी पर्वत होते हैं व कही-कही सागर द्रोणियों व निमग्न तटों पर भी इनका विस्तार देखने को मिलता है।
(3) आयु के आधार पर वर्गीकरण – पर्वतों के निर्माण के समय के आधार पर चार प्रकार के पर्वत भू-पृष्ठ पर पाये जाते है-
के समय के आधार पर चार प्रकार के भू-पृष्ठ पर पाये जाते हैं
(1) कम्ब्रियन पर्व पर्वत (Dadambrian Mountains) -लगभग 40 करोड़ वर्ष पूर्व भू-पृष्ठ पर भूगर्भिक कहलचलों के कारण इन पर्वतों का निर्माण हुआ। ये आज घर्षित व कम ऊँचाई वाले पर्वत रूपाा में पाये जाते है। इनकी स्थिति दृढ़ भू-खण्डों के साथ मिलती है। जैसे-भारत में छोटा नागरपुर के पठार या सिंहभूमि क्षेत्र, अरावली पर्वत, अमेरिका का एलगोमन व यूरोप का स्केन्डीनेवियन पर्वत ।
(2) कैलिडोनियन पर्वत (Caledonian Mountains) -सिल्यूरियन और डेवोनियन युग के मध्य भू-पृष्ठ पर पुनः पर्वत निर्माणकारी हलचलें हई। यह समय लगभग 32 करोड वर्ष पूर्व रहा होगा। इसका मे उत्तरी उमेरिका में अप्लेशियन यरोप में स्कॉटलैण्ड, अफ्रीका में सहराई वलन, आस्ट्रेलिया में नारीगुण पर्वत बने। नार्वे, मध्य एशिया व तुस्मानिया में इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
(3) हर्मीनियन पर्वत (Hercynian Mountains) – इन पर्वतों का निर्माण आज से लगभग 2 करोड़ वर्ष पर्व हआ। इस हलचल को अप्लेशियन हलचल भी कहा जाता है। उत्तरी अमेरिका का अप्लेशियन पर्वत, मध्य यूरोप में यूराल पर्वत, मध्य एशिया में ध्यानशान, खिगन, जुरोरिया, यूरोप में वास्य ब्लेक फारेस्ट एवं स्पेन में मेसेरा इसी क्रम के पर्वत हैं।
(4) अल्पाइन पर्वत (Alpine Mountains) – टर्शयरी युग में हुई हलचल के फलस्वरूपा बने पर भू-पृष्ठ के सबसे नवीन पर्वत हैं। इसमें उत्तरी अमेरिका में रॉकीज, दक्षिण अमेरिका में एण्डीज एशिया में हिमालय, यूरोप में आल्पस प्रमुख पर्वत हैं। इन्हें वलित पर्वत भी कहा जाता है।
उत्पत्ति व संरचना के आधार पर:
(अ) मोड़दार पर्वत (Folded Mountains) -अवसादों या चट्टानों में संकुचन के कारण दबाव मोड़ पड़ जाने के कारण इन पर्वतों का निर्माण होता है। हिमालय, आल्पस, एण्डीज इसी प्रकार के पर्वत ।
(ब) ब्लॉक पर्वत (Block Mountains) – ये पर्वत चट्टानों के एक खण्ड के उत्थान अथवा दर पड़ने पर निकटवर्ती चट्टानों के धंस जाने से निर्मित होते हैं। इन पर्वतों का शीर्ष चपटा होता है। जैसे वॉसेज ब्लेक फारेस्ट, फलिन्डर्स आदि।
(ब) ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains) – कुछ पर्वतों का निर्माण ज्वालामुखी विस्फोट से निकले पदार्थों के निक्षेप से होता है। ये शंकु की आकृति में होते हैं व ज्वालामुखी केन्द्र पर स्थित होते. हैं, जैसे- माँ विसूवियस, माँ फ्यूजियामा।
(द) अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountains) -ये कम ऊँचाई के घर्षित पर्वत होते हैं। निरन्तर अपरदन व अपक्षय के फलस्वरूपा इन पर्वतों के स्वरूपा में बहुत अन्तर आ जाता है। जैसे अरावली पर्वत।

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