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कार्बनिक खाद्य , मिश्रित कृषि (Mixed farming) , mixed cropping in hindi
कार्बनिक खाद्य : भारत में कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थ अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध होते है , यह पदार्थ सामान्यत: घरेलु अपशिष्ट , शहरी अपशिष्ट , वाहित मल , पशुओं का मल मूत्र , हड्डियों का चुरा आदि कार्बनिक अपशिष्ट कहलाते है।
उपरोक्त कार्बनिक अपशिष्ट को सूक्ष्म जीवों की सहायता से जैविक अपघटन करवाया जा सकता है तथा इस क्रिया के फलस्वरूप यह कार्बनिक अपशिष्ट कार्बनिक खाद्य में परिवर्तित हो जाते है जिसे भूमि की उर्वरता में वृद्धि हेतु उपयोग किया जा सकता है।
प्रश्न 1 : जैविक कृषि का आर्थिक तथा पारिस्थितिकी महत्व बताइये।
उत्तर : उपरोक्त महत्व निम्न प्रकार से है –
- जैविक कृषि सरल व सस्ती विधि है , इसका उपयोग छोटे किसानो के द्वारा भी किया जा सकता है।
- इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत जैव उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाने पर भूमि की जल धारण क्षमता तथा वायु संचार में वृद्धि होती है।
- जैविक कृषि के उपयोग के कारण भूमि में रासायनिक पदार्थो के विषैले प्रभाव में कमी आती है जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है।
- जैव उर्वरको के उपयोग से भूमिकी उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है।
- कृषि की यह विधि प्रदूषण रहित होती है।
- इस प्रकार की कृषि से भूमि के कटाव को रोका जा सकता है।
- इस कृषि में जैव उर्वरको के उपयोग से मृदा को संतुलित मात्रा में पोषक तत्व मिलते है , जिसकी सहायता से मृदा की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है।
- उपरोक्त कृषि के उपयोग से मृदा की उर्वरक क्षमता लम्बे समय तक बनी रहती है। जिसके फलस्वरूप लम्बे समय तक कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।
- इस प्रकार की कृषि में जैव उर्वरको का उपयोग किये जाने पर कृषि की लागत में कमी आती है जिसके कारण एक कृषक को सीधा आर्थिक लाभ होता है।
मिश्रित कृषि (Mixed farming)
कृषि का ऐसा प्रक्रम या प्रणाली जिसके अंतर्गत एक निश्चित स्थान पर विभिन्न प्रकार के कृषि कार्य जैसे दुग्ध उत्पादन , मुर्गी पालन , मत्स्य पालन , सूअर पालन , फसल उत्पादन आदि के साथ साथ किये जाते है , मिश्रित कृषि या मिक्स्ड फार्मिंग कहलाती है।
इस प्रकार की कृषि के प्रक्रम को अपनाए जाने पर कृषक को आर्थिक लाभ होता है तथा कृषि भूमि का पूर्णत: उपयोग किया जाता है।
उपरोक्त प्रकार की कृषि प्रणाली को अपनाने हेतु निम्न कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है –
(A) मृदा की गुणवत्ता
(B) पशुधन की प्रकृति
(C) जल की उपलब्धता
(D) तकनिकी संयोग
(E) आर्थिक संसाधन
मिश्रित कृषि के अंतर्गत निम्न प्रकार के तंत्र स्थापित किये जा सकते है –
(A) खाद्य पदार्थ या चारा उत्पादन तंत्र : इसके अंतर्गत खाद्य फसल जैसे चावल , गेहूँ , मक्का तथा चारा फसल जैसे ज्वार , बरसीम आदि की कृषि की जाती है जिसके फलस्वरूप पर्याप्त मात्रा में खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो सके।
(B) कृषि वानिकी तंत्र : इसके अन्तर्गत कृषि भूमि में वृक्षों के साथ साथ फसली पादपों की कृषि की जा सकती है।
(C) उद्यान पशु चार्णिक तंत्र : इसके अंतर्गत फल उत्पन्न करने वाले वृक्षों तथा झाड़ियों के साथ घास उत्पन्न किया जा सकता है , यह सामान्यत: मिश्रित कृषि में अपनाया जाने वाला तन्त्र है।
नोट : मिश्रित कृषि एक संकलित प्रयास है जिसकी सहायता से कृषि उत्पादों का प्रतिपालनीय उत्पादन किया जा सकता है।
mixed cropping
इस प्रकार के कृषि प्रक्रम के अंतर्गत एक खेत में एक से अधिक फसल की कृषि की जाती है।
कृषि का यह प्रक्रम सामान्यत: वर्षा सिंचित क्षेत्रो में अपनाया जाता है।
इस प्रकार की कृषि का प्रमुख उद्देश्य वर्षा की कमी से फसल में होने वाली हानि को कम करना होता है क्योंकि जब खेत में एक फसल नष्ट हो जाए या कमजोर हो तो दूसरी फसल की सहायता से कुछ आर्थिक सहायता प्राप्त की जा सकती है।
मिश्रित कृषि को अपनाने हेतु निम्न बिन्दुओ को ध्यान में रखे –
(A) उत्पन्न की जाने वाले दोनों फसलो का समाव
(B) मृदा का समाव
(C) जल की उपलब्धता
मिश्रित कृषि के प्रमुख लाभ निम्न प्रकार से है –
(A) इस प्रकार की कृषि के फलस्वरूप एक फसल के पूर्णत: नष्ट होने पर भी पूर्ण आर्थिक हानि नहीं होती क्योंकि एक साथ एक से अधिक कृषि उत्पाद प्राप्त होते है।
(B) सामान्यतया उत्पादन में वृद्धि होती है।
(C) मृदा की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है।
(D) पिडको के द्वारा की जाने वाली हानि में कमी आती है।
मिश्रित कृषि के अंतर्गत जिन फसलो को बोया जाता है उनमे से कुछ निम्न है –
(A) सोयाबीन तथा अरहर
(B) मक्का तथा उड़द
(C) अरहर तथा मूंग
(D) मूंगफली तथा सूरजमुखी
(E) गेंहू तथा चना
(F) गेंहू तथा सरसों
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