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Microstates of a System in hindi , निकाय की सूक्ष्म अवस्थायें स्थूल निकायों में ऊष्मीय व रुद्धोष्म अन्योन्य क्रियाएँ

जानेंगे Microstates of a System in hindi , निकाय की सूक्ष्म अवस्थायें ?

स्थूल निकायों में ऊष्मीय व रुद्धोष्म अन्योन्य क्रियाएँ
(मूल अभिधारणायें, ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम, विहित वितरण तथा संवितरण फलन)
(Thermal and Adiabatic Interactions of Macroscopic Systems)
(Basic Concepts, Zeroth Law of Thermodynamics, Canonical Distribution and Partition Function)
प्रस्तावना (Introduction)
ऐसे निकाय जिनमें निकाय के अनुसार विशाल संख्या में सूक्ष्म कण जैसे अणु, परमाणु, आयन, इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन व फोटोन आदि होते हैं, उन्हें स्थूल निकाय (macro-system) कहते हैं। इस प्रकार के निकायों के अध्ययन के लिए दो विधियाँ हैं : (i) ऊष्मागतिकी ( thermodynamic) तथा (ii) सांख्यिकीय (statistical)। ऊष्मागतिकी विधि में निकाय की आन्तरिक संरचना जैसे कणों की संख्या, उनके वेग एवं ऊर्जा स्तर आदि पर कोई विचार नहीं करते हैं बल्कि निकाय के प्राचल (parameters), जैसे आयतन, दाब ताप, ऊर्जा, बाह्य विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र आदि जिनके द्वारा निकाय की अवस्था में पविर्तन किया जा सकता है, में सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। किसी स्थूल निकाय का वर्णन कुछ मापन योग्य स्थूल स्वतंत्र चरों के द्वारा संभव होता है जो उसके गति – समीकरणों को प्रभावित करते हैं। इन प्राचलों को निकाय के बाह्य प्राचल (external parameters) कहते हैं और इनके द्वारा आरोपित प्रतिबन्धों के अन्तर्गत निरूपित निकाय की अवस्था को स्थूल अवस्था ( macrostate) कहते हैं। इसके विपरीत सांख्यिकीय विधि में निकाय के कणों पर यान्त्रिकी के नियमों (mechnical laws) को लगा कर स्थूल राशियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हैं। निकाय में सूक्ष्म कणों की अवस्था को उनके ऊर्जा स्तरों द्वारा निरूपित करते हैं। ये अवस्थाऐं सूक्ष्म अवस्थाऐं (microstates) कहलाती हैं। इस प्रकार सांख्यिकीय विधि का मुख्य उद्देश्य स्थूल निकाय में कणों की सूक्ष्म अवस्थाओं एवं स्थूल अवस्थाओं में सम्बन्ध स्थापित करना होता है ।
 निकाय की सूक्ष्म अवस्थायें (Microstates of a System)
निकाय के सूक्ष्म कण परमाणु या अणुओं के अध्ययन से यह पता चलता है कि कण क्वान्टम यान्त्रिकी के नियमों के अनुसार व्यवहार करते हैं अर्थात् कण की किसी अवस्था को सम्बन्ध क्वान्टम संख्याओं के समुच्चय (set) के द्वारा उसी तरह निरूपित करते हैं जिस तरह परमाणु के बाह्य कक्ष में गतिशील इलेक्ट्रॉन की अवस्था को उसके चार क्वान्टम संख्याओं (n, l, ml , ms) के समुच्चय द्वारा निरूपित किया जाता है। कण की इस अवस्था को सूक्ष्म अवस्था (microstate) कहते हैं। इस प्रकार निकाय की सूक्ष्म अवस्थाऐं क्वान्टम संख्याओं के समुच्चय द्वारा निरूपित होती है। परन्तु निकाय की सभी सूक्ष्म अवस्थाऐं निकाय में संरक्षण के नियमों का पालन नहीं करती है इसलिए निकाय की केवल उन्हीं सूक्ष्म अवस्थाओं पर विचार करते हैं जो स्थूल निकाय में लगाई गई सभी शर्तों (conditions) का पालन करती हैं। ये सूक्ष्म अवस्थाओं की अभिगम्य (accessible) अवस्थाऐं कहलाती हैं।
विलगित निकाय (Isolated system), जो किसी अन्य निकाय के अन्योन्य क्रिया नहीं करता है या प्रभावित नहीं होता है और न ही ऊर्जा विनिमय करता है, में प्रत्येक क्वान्टम संख्याओं के समुच्चय के साथ निश्चित मान की ऊर्जा संबद्ध होती है तथा इसे निकाय का ऊर्जा स्तर कहते हैं। एक ही ऊर्जा स्तर से कई क्वान्टम संख्याओं के समुच्चय संलग्न हो सकते हैं। यह निकाय की क्वान्टम अवस्था की अपभ्रष्टता ( degeneracy) कहलाती है और यदि प्रत्येक क्वान्टम अवस्था एक भिन्न ऊर्जा स्तर को निरूपित करती है तो यह अनपभ्रष्टता (non-degeneracy) की अवस्था कहलाती है। प्रत्येक निकाय में न्यूनतम ऊर्जा स्तर वाली एक अवस्था अवश्य होती है जिसे निकाय की मूल अवस्था (ground state) कहते हैं और यदि किसी निकाय के कण मूल अवस्था के अतिरिक्त किसी अन्य अवस्था में हों तो वह उत्तेजित अवस्था (excited state) में कहलाता है। निकाय के ऊर्जा स्तर बाह्य प्राचलों जैसे आयतन, बाह्य विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र पर निर्भर होते हैं अर्थात् बाह्य प्राचलों के परिवर्तन से उनके ऊर्जा स्तरों में परिवर्तन हो जाता है और यदि बाह्य प्राचल नियत हैं तो निकाय के ऊर्जा स्तर भी नियत रहते हैं ।
स्थूल निकायों में अन्योन्य क्रिया ( Interactions of Macroscopic Systems)

माना दो स्थूल निकाय A व A’ पारस्परिक अन्योन्य क्रिया करते हैं एवं परस्पर ऊर्जा विनिमय कर सकते हैं। निकायों A व A ́ से बना संयुक्त निकाय A* एक विलगित निकाय ( isolated system ) है जिसकी ऊर्जा संरक्षित (conserved) रहती है। निकायों A व A’ के बीच अन्योन्य क्रिया का वर्णन करने के लिये संयुक्त निकाय A* के समरूपी निकायों का एक ऐसा समुच्चय (set) लेते हैं जिसमें अन्योन्य क्रिया करने वाले निकाय A व A ́ होते हैं। निकाय A व A’ के बीच अन्योन्य क्रिया के परिणामस्वरूप समुच्चय (set) के प्रत्येक निकाय युग्म A व A’ के बीच ऊर्जा विनिमय साधारणतः समान नहीं होती है अर्थात् समुच्चय के भिन्न संयुक्त निकायों के अन्तर्गत् घटक निकायों A व A’ में अन्योन्य क्रिया द्वारा ऊर्जा विनिमय भिन्न होता है। निकाय युग्मों में ऊर्जा विनिमय की प्रायिकता के आधार पर विभिन्न अन्योन्य क्रिया के द्वारा संयुक्त निकायों के लिए औसत ऊर्जा विनिमय का मान ज्ञात किया जा सकता है।

चित्र 1.3-1
माना विचाराधीन किसी संयुक्त निकाय के निकायों A व A ́ की अन्योन्य क्रिया से पूर्व औसत ऊर्जायें क्रमशः Ef व Ef’ तथा अन्योन्य क्रिया के पश्चात् औसत ऊर्जायें क्रमशः Ef व Ef ‘ हैं। चूंकि संयुक्त निकाय की कुल ऊर्जा नियत रहती है इसलिए

यहाँ △E (Ēf –Ei) व △Ē’ = (Ēf ‘– Ei ‘) क्रमश: निकायों A व A ́ की अन्योन्य क्रिया द्वारा औसत ऊर्जा के परिवर्तन को व्यक्त करता है। साधारणतः निकाय A व A’ दो प्रकार से अन्योन्य क्रिया कर सकते हैं तथा बाह्य प्राचलों द्वारा प्रभावित हो सकते हैं : (i) ऊष्मीय अन्योन्य क्रिया, जिसमें बाह्य प्राचल एवं निकाय के ऊर्जा स्तर दोनों नियत रहते (ii) यान्त्रिक या रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया जिसमें कुछ बाह्य प्राचल एवं निकाय ऊर्जा स्तर परिवर्तित हो जाते हैं। (i) ऊष्मीय अन्योन्य क्रिया (Thermal Interaction) : यदि निकायों के बाह्य प्राचलों को नियत रखा जाये ताकि उनके ऊर्जा स्तर ( energy level) अपरिवर्तित रहें तो निकायों में होने वाली अन्योन्य क्रिया को ऊष्मीय अन्योन्य क्रिया कहते हैं। यदि इस प्रक्रिया में किसी निकाय की ऊर्जा में वृद्धि होती है तो निकाय द्वारा ऊष्मा का अवशोषण (absorption) होता है। इसे + Q द्वारा व्यक्त करते हैं और यदि किसी निकाय की ऊर्जा में कमी होती है तो ऊष्मा का उत्सर्जन (emission) होता है। इसे – Q द्वारा व्यक्त करते हैं। इस प्रकार समीकरण (i) से,
यदि E = Q तथा Ē’ समीकरण (1) से
या
=
Q’ मान लें तो
Q+Q’ = 0
Q =-Q ́
..(2)
समीकरण (2) से स्पष्ट है कि एक निकाय A द्वारा अवशोषित ऊष्मा Q, दूसरे निकाय A ́ के द्वारा उत्सर्जित ऊष्मा Q’ के बराबर होती है। अतः उपरोक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ऊष्मीय अन्योन्य क्रिया की स्थिति में जब बाह्य प्राचल नियत होते हैं और उनके ऊर्जा स्तरों में काई परिवर्तन नहीं होता है तो किसी भी निकाय की माध्य ऊर्जा में परिवर्तन का कारण नियत ऊर्जा स्तरों में अन्योन्य क्रिया के प्रभाव स्वरूप वितरण में परिवर्तन होता है।
(ii) ऊष्मा रोधन या ऊष्मीय विलगन (Thermal Insulation or Thermal Isolation) : किन्हीं दो निकायों के यदि उचित रूप से विलग (isolated) कर दें तो A व A ́ के बीच अन्योन्य क्रिया को रोका जा सकता है। जब तक निकाय के बाह्य प्राचलों को स्थिर रखते हैं और उनके बीच ऊर्जा विनिमय नहीं होता है तब तक दोनों निकाय अन्योन्य क्रिया नहीं करते हैं। वे निकाय ऊष्मा रोधित ( thermally insulated) या रुद्धोष्म रूप से विलगित (adiabatically isolated) निकाय कहलाते हैं। दो निकायों का पर्याप्त पृथक्करण करके या उनके बीच पर्याप्त मोटाई का ऊष्मारोधी पदार्थ जैसे ऐस्बेस्टॉस ( asbestos ) या फाइबर ग्लास (fibre glass) आदि रखकर उन्हें ऊष्मा रोधित बनाया जा सकता है। यदि ऊष्मारोधित निकाय प्रारम्भ में साम्यावस्था ( equilibrium) में है तो वह साम्यावस्था में रहेंगे जब तक बाह्य प्राचलों के मान अपरिवर्तित रहते हैं। जब तक किसी निकाय का अन्य निकायों से ऊष्मा रोध है तब तक उसमें घटित होने वाले सभी प्रक्रम (process ) रुद्धोष्म ( adiabatic) कहलाते हैं।
(iii) रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया (Adiabatic Interaction) : माना निकाय A तथा A’ परस्पर ऊष्मा रोधित है । निकायों के बाह्य प्राचलों में से कुछ में परिवर्तन कर ये परस्पर अन्योन्य क्रिया कर सकते हैं तथा ऊर्जा विनिमय कर सकते हैं। इस प्रकर की अन्योन्य क्रिया को रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया कहते हैं। रूद्धोष्म रूप से विलगित निकाय (adibatically isolated system) में माध्य ऊर्जा में वृद्धि स्थूल निकाय पर किया गया स्थूल कार्य (macroscopic work) कहलाता है। चूंकि माध्य ऊर्जा में परिवर्तन एक सांख्यिकीय राशि होती है इसलिए इसके द्वारा निकाय पर किया गया औसत कार्य भी सांख्यिकीय राशि होगी। इसे +W ( धनात्मक W ) से व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार निकाय की माध्य ऊर्जा में कमी स्थूल निकाय द्वारा किया गया स्थूल कार्य कहलाता है। इसे –W (ऋणात्मक W) से व्यक्त करते हैं।

अतः समीकरण (i) से
W = △Ē तथा W’ = △Ē’
चूँकि A व A’ का संयुक्त निकाय A* विलगित निकाय है इसलिए ऊर्जा के संरक्षण के नियम से,
या
W + W ́ = 0 W = – W
…..(3)
अतः रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया में किसी एक निकाय पर किया गया कार्य दूसरे निकाय द्वारा किये गये कार्य क बराबर होता है।
चूंकि निकाय में रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया कुछ बाह्य प्राचलों के परिवर्तन से सम्भव होती है इसलिये इस प्रक्रिया में कुछ ऊर्जा स्तरों में परिवर्तन हो जाता है। अतः रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया करने वाले निकायों में से किसी एक की माध्य ऊर्जा दो कारणों से परिवर्तित होती है :
पहला, इस निकाय की प्रत्येक अवस्था की ऊर्जा में परिवर्तन तथा दूसरा किसी भी अवस्था में निकाय के पाये जाने की प्रायिकता में परिवर्तन ।
रूद्धोष्म रूप से विलगित निकाय में एक से दूसरे निकाय पर किये गये स्थूल कार्य के द्वारा ऊर्जा विनिमय होता है इसलिए रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया को यान्त्रिक अन्योन्य क्रिया (mechanical interaction) भी कहते हैं।
(iv) व्यापक अन्योन्य क्रिया (General Interaction) : सामान्यतया अन्योन्य क्रिया करने वाले निकाय न तो रूद्धोष्म रूप से विलगित होते हैं और न ही उनके बाह्य प्राचल स्थिर रखे जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में अन्योन्य क्रिया करने वाले निकायों की माध्य ऊर्जा में कुल परिवर्तन दोनों प्रकार के ऊष्मीय एवं यान्त्रिक अन्योन्य क्रियाओं के द्वारा होता है। व्यापक रूप में परिवर्तन को निम्न प्रकार से लिख सकते हैं :
ΔΕ = W + Q
……(4)
जहाँ Q बाह्य प्राचल नियत रखते हुए माध्य ऊर्जा के परिवर्तन को व्यक्त करता है तथा W बाह्य प्राचलों के परिवर्तन के कारण माध्य ऊर्जा के परिवर्तन को व्यक्त करता है और यह निकाय पर किये गये स्थूल कार्य के बराबर होता है। समीकरण (4) द्वारा प्रदर्शित अन्योन्य क्रिया को व्यापक अन्योन्य क्रिया कहते हैं। निकायों की माध्य ऊर्जा के परिवर्तन का W एवं Q में विभाजन तब ही अर्थपूर्ण होता है जब इनको प्रायोगिक तौर पर पृथक्कृत कर सकते हैं। कार्य W एवं ऊष्मा Q ऊजा के ही रूप हैं और इन्हें परस्पर रूपांतरित किया जा सकता है। इसी कारण से निकायों में अन्योन्य क्रिया द्वारा कार्य एवं ऊष्मा के सम्बन्धों के अध्ययन को ऊष्मागतिकी (thermodynamics) कहते हैं तथा समीकरण (4) को ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (first law of thermodynamics) कहा जाता है। यह नियम ऊर्जा के संरक्षण के नियम (law of conservation of energy) को भी व्यक्त करता है। ΔE, W तथा Q ऊर्जा के ही विभिन्न स्वरूप होने के कारण इनके मात्रक जूल में होते हैं। कभी-कभी ऊष्मा के लिए मात्रक कैलोरी का भी उपयोग किया जाता है।
1 कैलोरी = 4.18 जूल
उपरोक्त अन्योन्य क्रियाओं को समझने के लिए माना दो गैसीय निकाय A व A ́ किसी कुचलाक बेलन में स्थित हैं तथा ये दोनों एक गतिशील पिस्टन द्वारा पृथक्कृत हैं। यदि पिस्टन ऊष्मारोधी है तथा स्थिर है तो दोनों निकाय परस्पर अन्योन्य क्रिया नहीं करेंगे।

चित्र 1.3-2

यदि पिस्टन ऊष्मा रोधी नहीं है परन्तु स्थिर है तो ऊष्मा एक निकाय से दूसरे निकाय की ओर संचरित होती है और निकायों के दाबों में परिवर्तन कर देती है । इस प्रकार की अन्योन्य क्रिया में बाह्य प्राचल (आयतन) स्थिर रहता है इसे ऊष्मीय अन्योन्य क्रिया कहते हैं।
अब यदि पिस्टन ऊष्मारोधी है तथा गति करने के लिए स्वतन्त्र है तो दोनों निकायों के दाब व आयतन परिवर्तित हो सकते हैं अर्थात् इस स्थिति में एक निकाय द्वारा दूसरे निकाय पर कार्य किया जायेगा। इस प्रकार के अन्योन्य क्रिया में बाह्य प्राचल स्थिर नहीं रहता है। अतः इस अन्योन्य क्रिया को यान्त्रिकी अन्योन्य क्रिया या रूद्धोष्म अन्योन्य क्रिया कहते हैं।
यदि पिस्टन ऊष्मारोधी नहीं है और गति करने के लिए भी स्वतन्त्र है तो दोनों निकायों के बीच दोनों प्रकार की, ऊष्मीय एवं यान्त्रिकी, अन्योन्य क्रिया होती है। इस प्रकार की अन्योन्य क्रिया को व्यापक अन्योन्य क्रिया कहते हैं।
(v) अत्यणु व्यापक अन्योन्य क्रिया ( Infinitesimal general interaction) : यदि अन्योन्य क्रिया से एक निकाय प्रारम्भिक स्थूल अवस्था से अन्तिम अवस्था में आता है और इन स्थूल अवस्थाओं का अन्तर अत्यन्त सूक्ष्म है तो अन्तिम अवस्था में ऊर्जा एवं बाह्य प्राचलों के मानों का प्रारम्भिक मानों से अन्तर सूक्ष्म होता है। अतः यदि निकाय के अवस्था परिवर्तन से माध्य ऊर्जा में सूक्ष्म वृद्धि dē हो तो अवशोषित ऊष्मा एवं किये गये कार्य दोनों के मान में परिवर्तन भी सूक्ष्म होंगे। इन्हें क्रमशः अत्यणु मान δQ एवं δw से व्यक्त करते हैं। इस प्रकार अत्यणु व्यापक अन्योन्य क्रिया के लिए समीकरण (4) को निम्न प्रकार से लिख सकते हैं :
dĒ = δQ + δ w
….(5)
dE व δQ और δW के संकेतन में अन्तर का यह कारण है कि dE का मान निकाय की प्रारम्भिक व अन्तिम अवस्थायें ज्ञात होने पर प्राप्त किया जा सकता है परन्तु δQ व δW के लिये यह सम्भव नहीं है। δQ व δW का मान दी गई अवस्थाओं के मध्य परिवर्तन के लिए प्रयुक्त मार्ग पर निर्भर करता है

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