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मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव Notes pdf अध्याय – 10 microbes in human welfare class 12 notes in hindi
microbes in human welfare class 12 notes in hindi मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव Notes pdf अध्याय – 10 chapter 10 12th biology ?
अध्याय – 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव
सूक्ष्मजीव-
ऽ वे जीव जो अत्यन्त सूक्ष्म होते है जिन्हें हम नग्न आंखों से नही देख सकते है।
ऽ सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते है।
घरेलू उत्पाद में सूूक्ष्मजीव
i. दही (Curd) -दूध से दही का उत्पादन सूक्ष्मजीव लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया या लैक्टोबैसिलस दूध में वृद्धि करते और अम्ल उत्पन्न करते है जो दूध में उपस्थित प्रोटीन को स्कन्द्रित कर देता है दही की थोड़ी सी मात्रा को निवेश द्रव्य कहते है दूध से अधिक मात्रा में विटामिन B12 दही में पाया जाता है B12 रक्त उत्पादन में सहायक होता है तथा इसकी कमी से अरक्तता एनिमिया नामक रोग उत्पन्न हो जाता हैं।
ii. डोसा इडली- डोसा व इडली बनाने के लिए स्टैप्टोकोकस पीकेलिस तथा ल्यूकोनास्टाॅक जीवाणु का प्रयोग करते है आंते में में किण्वन प्रक्रिया करते है जिससे CO2 गैस निकलती है और आंत फूल जाता है।
iii. ब्रेड – बे्रड बनाने के लिए यीस्ट (सैकैरोमाइसीस सेरीवेसिसद्ध को गेहंू के आंटेे में मिलाया जाता है गेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेहूं में यीस्ट द्वारा किण्वन के पश्चात् CO2 गैस का उत्पादन होता है जिससे आंटा फूल जाता है। बेकर्स यीस्ट मे किण्वन हेतु एक महत्वपूर्ण एंजाइम जाइमेज पाया जाता है।
iv. एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein)
इसमें सभी आवश्यक अमीनों अम्ल पाये जाते है स्पाइरूलिना एक कोशिकायंे शैवाल का प्रयोग प्रोटीन के रूप में किया जाता है इसमे 60ः प्रोटीन,खनिज व विटामिन की मात्रा होती है। क्लोरेला में 40ः प्रोटीन।
औद्योगिक उत्पादो में सूक्ष्मजीव-
व्यवसायिक पैमाने पर सूक्ष्मजीवों के उत्पादन के लिए बड़े बर्तन की आवश्यकता होती है जिसे किण्वक या Fermentor कहते है।
i. किण्वित पेय-
सूक्ष्मजीव विशेषकर यीस्ट का प्रयोग प्राचीन काल से वाइन बियर, विस्की, ब्रांडी या रम जैसे पेयो के उत्पादन में किया जाता आ रहा हैै इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यीस्ट का मल्टीकृत धान्यों तथा फलों के रसों में एथेनाल उत्पन्न करने में प्रयोग किया जाता है विभिन्न प्रकार के एल्कोटलीय पेय की प्राप्ति किण्वन तथा विभिन्न प्रकार के संसाधन कच्चे पदार्थो पर निर्भर करती है वाइन व बियर का उत्पादन बिना आसवन द्वारा जबकि बिस्की ब्र्राण्डी तथा रम किण्वित रस के आसवन द्वारा तैयार किये जाते है।
ii. प्रति जैविक (ऐण्टीबाॅयोटिक) –
प्रतिजैविक एक प्रकार के रासायनिक पदार्थ है जिनका निर्माण कुछ सूक्ष्म जीवों द्वारा होता है। ये रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवियों की वृ़िद्ध को मंद अथवा उन्हे मार सकते हैं।
सबसे पहला एटिबायोटिक पैनीसिलिन था, जिसकी खोज एलैग्जंेडर फलैंनिग ने कि।
पैनीसिलिन पैनीसीलियम नोट्टय नामक मोल्ड से उत्पन्न होता है।
एंटीबायोटिक दो प्रकार के होते है-
i. विस्तृत स्पेक्टम प्रतिजैविक (Broad Spectrum Antibioric)
येे ऐसे प्रतिजैविक है, जो अनेक प्रकार के सूूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है। जैसे-पैनीसिलिन,टेटासाइक्लिन।
ii. विशिष्ट स्पेक्टम प्र्रतिजैविक (Specific Spectrum Antibioric)
इस प्रकार के प्रतिजैविक केवल एक प्रकार के रोगजनक को नष्ट करते है।
विभिन्न प्रतिजैविक निम्न है :
जीवाणु द्वारा
प्रतिजैविक सूक्ष्मजीव
स्ट्रेप्टोेमाइसीन स्टेप्टोमाइसीन ग्रीसियस
क्लोरोमाइसीन स्टेप्टोमाइसीन वेनेजुएली
इरिथ्रोेमाइडससीन स्टेप्टोमाइसीन इरिथियस
कवक द्वारा
प्रतिजैेविक सूक्ष्मजीव
पेनिसिलिन पेनिसिलियम नोटटेम
वैकेरिन जिब्बरेला बैकेटा
iii. कार्बनिक अम्ल, एंजाइम व जैवसक्रिय अणु-
कुछ विशेष प्रकार के रसायनों जैसे कार्बनिक अम्ल एंजाइम का औद्योगिक पैमानेे पर निर्माण में अनेक सूक्ष्म जीवों का प्रयोग करते है।
ऽ कार्बनिक अम्ल
i. सिटिक अम्ल – इसे एक कवक ऐस्परजिलस नाइगर नामक कवक से उत्पादन किया जाता है। इसका उपयोग दवाइयों, खाद्य पदार्थो रंगोे को बनाने में किया जाता है।
ii. एरिटिक अम्ल (सिरका Vinegar)-
इसे किण्वन द्वारा दो चरणों मे प्राप्त किया जाता है।
प्रथम चरण में यीस्ट, कार्बोहाइड्रेट का एथिल एल्कोहाल में परिवर्तित किया जाता हैं।
66H12O6 2 C2H5OH़2Co2
ग्लूकोस (कार्बोहाइड्रेट)
दूसरा चरण में प्राप्त एथिल एल्कोहल को एसीटोबैक्टर, एसिटाई जीवाणु द्वारा आक्सीकरण करके एसिटिक एसिड का उत्पादन किया जाता है।
एसीटोबैक्टर, एसिटाई
C2H5OH़O2 CH3COOH़H2O
एसिटिक एसिड
iii. लेक्टिक एसिड 63H6O3
लेक्टिक एसिड का उत्पादन बैक्टोबैसिलस जीवाणु द्वारा किण्वन क्रिया द्वाररा प्राप्त किया जाता है।
iv. ब्युटिक एसिड CH3CH2 CH2COOH
ब्युटिक एसिड का उत्पादन क्लोस्टीडियम ल्यूटायलिकय जीवाणुु द्वारा किया जाता है।
v. प्यूमेरिक एसिड
इसके उत्पादन के लिए राइजोपस नाइग्ग्रीकेन्स नामक कवक द्वारा किया जाता है।
CHCOOH
CHCOOH
ऽ एंजाइम
i. प्रोटिएज- इसका उत्पादन एस्परजिलस ओराइजी नामक कवक द्वारा किया जाता है। इसका प्रयोग डिटर्जेन्ट के प्रयोग में किया जाता है।
ii. पेक्टिनेज- यह एंजाइम एस्परजिलस नाइगर नामक कवक द्वारा उत्पादन होता है पेक्टिनेज एंजाइम का उपयोग फलों के रसो को स्वच्छ रखने के लिए किया जाता है।
iii. स्टेप्टोकाइनेज (रिशू प्लाज्मीनोंजन एकिटवेटर) (TPA)
रक्त के थके को घोलनें के लिए स्टेप्टोकाइनेज एंजाइम का उपयोग किया जाता है। इसे स्टेप्टोकोकस जीवाणु से उत्पादन किया जाता हैं।
ऽ जैव सक्रिय अणु-
i. साइक्लोस्पोरिन (A)
इसका उपयोग अंग प्रत्यारोपण किये गय व्यक्ति में प्रतिरक्षा निषेधात्मक के रूप् में दिया जाता है। इसका उत्पादन टाइकोडर्मा पाॅली स्पोरम नामक कवक से किया जाता है।
ii. स्टेटिन-
इसका प्र्रयोग रक्त में कोलेस्टाल को कम करने में किया जाता है। इसका उत्पादन मोनास्कस परप्यूरियस नामक कवक से किया जाता है।
वाहितमल उपचार में सूक्ष्मजीव-
नगरो-शहरों के व्यर्थ जल को वाहित मल कहते है इसमें कार्बनिक पदार्थो की बड़ी मात्रा व सू़क्ष्मजीव पाये जाते है जो रोगजनकीय होते है। इसे नदी, झरने में सीधे विसर्जित नही किया जाता है विसर्जन से पूर्व वाहित मल का उपचार वाहित मल संयत्र में किया जाता है ताकि वह प्रदूषण मुक्त हो जाये।
यह उपचार निम्न दो चरणों में पूर्ण होता है।
1. प्राथमिक उपचार-
मूलभूत रूप से उपचार के इस पद में वाहित मल से बड़े व छोटे कण को निस्यंदन (फिल्ड्रेशन) तथा अवसादन (सेडीमिटेंशन) द्वारा भौतिक रूप से अलग कर दिया जाता है।
2. द्वितीयक उपचार, जीवविज्ञानीय उपचार-
प्राथमिक बाहिस्त्राव को वायुवीय बैंको से गुजारा जाता है इससे सूक्ष्म जीवोे की वृद्धि उर्णक के रूप में होने लगती है वृद्धि के दौरान मेें सूक्ष्मजीव बाहिस्त्राव में कार्बनिक पदार्थो के प्रमुख भागों की खयत करता है। ये बाहिस्त्राव ठव्क् को महत्वपूर्ण रूप से घटाने लगता है।
BOD (बायोकैमिकल आॅक्सीजन डिमांड) –
BOD आॅक्सीजन की उस मात्रा को संदर्भित करता है जो जीवाणु द्वारा एक लीटर पानी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थो की खपत करता है।
वहित मल का तब तक उपचार किया जाता है जब तक की ठव्क् घर न जाये ठव्क् पर्याप्त मात्रा में घट जाने के पश्चात् बाहिस्त्राव को निःसादन टैंक में भेजते है जहां जीवाणु झुण्ड अवसाद के रूप परिवर्तित कर दिया जाता है द्वितीयक उपचार के बाद बाहिस्त्राव को नदियों में छोड़ दिया जाता है।
संयत्र का एक प्रारूप बायोगैस-
बायोगैस एक प्रकार से गैसो का मिश्रण है जो सूक्ष्मजीव सक्रियता द्वारा उत्पन्न होती हैै कुछ बैक्टीरिय जो सेलूलोज पर आवायवीय रूप से उगते है और ब्व2 व भ्2 के साथ-साथ बड़े मात्रा में ब्भ्4 गैस भी उत्पन्न करते है सामूहिक रूप से इन जीवाणुओं को मीथैनोजन कहते है इनमें सामान्य जीवाणु मीथेनोबैक्टीरियम है ये बैक्टीरिया सामान्यता अवायवीय गाढ़े कीचड़ में पाया जाता है और पशुओं के रूमेन ;प्रथम आमाशयद्ध में भी पाया जाता है। ये जीवाणु सैल्युलोज को तोड़ने में सहायक व पशुओ के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
इस प्रकार पशुओं के गोबर में यह जीव प्रचुर मात्रा में पाये जाते है इन जीवाणुओं का प्रयोग बायोगैस उत्पन्न करने में किया जाता है जिसे सामान्यता या गोबर गैस भी कहते है।
बायोगैस संयत्र-
एक टैंक 10-15 फीट गहरी होती है जिसमें गोबर की कदम भरी जाती है टैंक में एक ढक्कन लगा होता है जो गैस बनने पर उपर उठता है गैस होल्डर से पाइप द्वारा गैस को निकल कर घरो मेें खाना बनाने हेतु एवं प्रकाश उत्पन्न करने हेतु करते है बचा गोबर निकास नली द्वारा बाहर आता है जिसका प्रयोग खाद्य के रूप में खेतों में करते हैं।
बायोगैस के उपयोग-
ऽ बायोगैस प्रदूषण कम उत्पन्न करता है।
ऽ बायोगैस से बचे गोबर को खाद्य के रूप में प्रयोग करते है।
ऽ खान बनाने के लिए।
जैव-नियंत्रण कारक के रूप में सूक्ष्मजीव-
पादप रोगों तथा पीड़को के नियंत्रण के लिए जैव वैज्ञानिक विधि का प्रयोग ही जैव नियंत्रण कहलाता है आधुनिक समाज में यह समस्याएं रसायनों, कीटनाशियों के रूप में की जाती है ये मनुष्य व अन्य जीवों के लिए अत्यंत विषैले होते है खरपतवार नाशी जिसका प्रयोग अवांक्षनीय पौधों को नष्ट करने के लिए किया जाता है जोे मृदा को प्रदूषित करता है।
ऽ जैव पीड़कनाशियो की आवश्यकता-
वर्तमान मेें पीड़कनियंत्रण के रूप में अनेक प्रकार के रसायनिक पीड़कनाशियों के रूप में प्रयोग किया जाता है जो निम्न प्रकार के होते है-
1. खरपतवार नाशी (Herbicides)
इनका उपयोग खरपतवार नियंत्रण के रूप् में किया जाता है जिसके कारण मृदा प्रदूषित होती है।
2. कीटनाशी (Insecticiobs)
इनका प्रयोग विशेष कीट वर्ग को नष्ट करने के लिए किया जाता है जो मनुष्य व अन्य जीवों के लिए हानिकारक है।
3. कृृन्तकनाशी (Rodenticides)
इनका उपयोग चुहे खरगोश जैसे कृन्तक को नष्ट करने के लिए प्रयोग मंे लाये जाते है जो अनेक जीवों के लिए हानिकारक है। उपरोक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुये रसायनिक नियंत्रण के स्थान पर जैव नियंत्रण अति आवश्यक हो गया है। जैव कीटनाशी को दो वर्गो में विभाजित किया गया है।
ऽ जैव खरपतवार नाशी –
ये ऐसे जीव है जो खेतो में उगे अवांछनीय पौधा को नष्ट करता है।
1. कोविनिअल कीट (कैक्टोस्लास्टिस कैक्टोरम) का प्रयोग भारत में व्चनदपजं नामक खरपतवार को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
2. जैव पीड़कनाशी- मे ऐसे जीव है जो विशेष प्रकार के कीटो को नष्ट करते हैं।
पीड़क तथा रोगो का जैव नियंत्रण-
कृषि में पीड़कां के नियंत्रण् की यह विधि रसायनों के प्रयोग की तुलना में प्राकृतिक परभक्षण पर आधरित है।
ऽ बैसीलस थूरिन्जिएन्सिस का प्रयोग बटरफलाड केंटर पिलर के नियंत्रण में किया जाता है यह जीव टाक्सिन लारण में उत्पन्न करता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।
ऽ भृंग (Batle) व व्याघ्र पंतग (äagly) मच्छरों को नष्ट करते है।
ऽ बैक्यूलोवाइटस-
बैक्यूलोवाइटस वाइटस का समूह है, जो विभेष वर्ग के कीटो को नष्ट करता हैं।
बैक्यूलोवाइटस को न्यूक्लियों पाॅलीहाइडो वाइटस जीन्स के अन्तर्गत रखा गया है।
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