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मेण्डलीय विकार या जीन उत्परिवर्तन के कारण
mendeliy vikar ya jeen utparivatran ke karan मेण्डलीय विकार या जीन उत्परिवर्तन के कारण in hindi
उत्परिवर्तन जीनो में अक्समता होने वाले परिवर्तन जो वंशानुगत होते है उनके उत्परिवर्तन कहते है। इनमें क्छ। क्षारकों में परिवर्तन होता है जिससे जीन के जीनोटाइप एवं फनोटाइप लक्षण बदल जाते है।
मेण्डलीन विकार:-
जीन उत्परिवर्तन के कारण
1 हीमोफिलिलिया:-
यह लिंग सह लग्न रोग है जिसमें मादा रोगवाहक तथा नर कोणी होता है इसने रक्त का थक्का बनाने से संबंधित प्रोटीन के एकल क्षार युग्म में परिवर्तन होता है जिससे जरा सी चोट लगने पर भीरक्त का थक्का नहीं बनता है।
इसमें महिला के रोगी होने की संभावना नहीं होती है क्योकि ऐसी स्थिति में जनको में रोग वाहक महिला तथा रोगी पिता होना चाहिए जो कि संभव नहीं है।
इस रोग को शाही रोग भी कहते है क्योकि इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया स्वयं इस रोग की सेवा वाहक थी तथाउसके अनेक वंशज इस कोण से ग्रस्त थे।
2 फिनाश्ल किटोन्यूरिया:-
सामान्य स्थिति:-
फिनाइल एलैनिन म्द्रउम टायरोसिनम रोग होने पर:-
फिनाइल एलैनिन म्द्रउम ंइेमदज टायरोसिनम
फिनाइल पायरूविक अम्ल व अन्य व्युत्पन्न एकत्रित लक्षण-मंद-बुद्धि मानसिक जडता
3- दाँत्र कोशिका अखतता ैपबसम.बमसस ।दवसमदमं:-
इसमें लाल रूधिर कणिका गोलाकार तस्तरीनुमा या उभयावल से ट्रंतियाजार हो जाती है जिससे हीमोग्लोबिल के कमी के कारण रक्त की कमी हो जाती है।
यह रोग एक युग्मक विकल्पी जोडे के द्वारा नियंत्रित होता है।
इनसे तीन संभावित जीनोटाइफ निम्न हो सकते है।
इससे प्रथम स्थिति में समयुग्मजी प्रभावी रोग उत्पन्न नहीं होता है तथा द्वितीय स्थिति विलययुग्मनी में भी रोग उत्पन्न नहीं होता है लेकिन यह रोग वाहक होती है तथा संतति में रोग उत्पन्न होने की संभावना 50 प्रतिशत होती है। तृतीय स्थिति समयुग्मती अप्रभावी होने पर रोग उत्पन्न होता है।
कारण:-
रोग होने पर हिमो Hb की B . श्रृंखला में छटे (6) स्थान पर ग्रूलैटेनिक अमीनोअम्ल के स्थान पर वैलिनी(Vol ) अमिनो अम्ल आ जाता है क्योकि GAG कोड के स्थान पर GUG कोड आ जाता है।
चित्र
4-सिस्टिक फाइब्रोसिस
5-थैलेसीमिया
6-बर्णन्धता
गुणसूत्रीय विकार
1- क्लाइनफैल्टर-सिण्ड्रोम:- यह लिंग सहलग्न गुणसूत्रीय विकार है इसमे गुणसूत्र पाये जाते है ये नर होते है।
लक्षण:- 1 इनमें मादा के समान स्तर विकसित हो जाते है 2 ये बन्धय होते है।
2- टर्नर सिण्ड्रोम:- यह लिंग सह लग्न गुणसूत्रीय विकार है इसमें गुणसूत्र पाये जाते है ये मादा होती है।
लक्षण:- 1 इनमें स्तनो को विकास नहीं होता 2 ये बन्धय होते है।
3- डाउन सिण्ड्रोम:- यह अलिंग सह लग्न गुणसूत्रीय विकार है। इसमे गुणसूत्र पाये जाते है यह 21 वें गुणसूत्र की एक अतिरिक्त प्रतिलिपी पाई जाती है । (ट्राईसोम एकाधिसूत्रता)
लक्षण:-
1 मस्तिष्क कम विकसित
2 शारीरिक ऊचाई कम
3 सिर गोल एवं छोटा
4 अधिक समय तक जीवित नहीं रहते है।
5 मानसिक अवरूद्धता मंगोलियाई मूर्ख
6 मुंह खुला रहता है।
7 जीभ मोटी
8 हथेली में मोटी गहरी रेखा (पाय क्रीम) पाई जाती है।
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