JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

वर्ग संघर्ष किसे कहते है | समाजशास्त्र में वर्ग संघर्ष पर कार्ल मार्क्स के विचार  लेविस कोसर class struggle in hindi

marxist theory of class struggle in hindi वर्ग संघर्ष किसे कहते है | समाजशास्त्र में वर्ग संघर्ष पर कार्ल मार्क्स के विचार  लेविस कोसर karl marx thoughts ?

वर्ग संघर्ष पर कार्ल मार्क्स के विचार
वर्ग संघर्ष सिद्धांत को स्पष्ट करने का मुख्य प्रयास कार्ल मार्क्स के पूँजीवाद पर उसके अध्ययन के दौरान उत्पन्न सिद्धांत में किया गया है। मार्क्स ने कहा था कि ‘आज तक के मौजूदा । समाजों का इतिहास वास्तव में वर्ग संघर्ष का ही इतिहास है।‘ इसका अर्थ यह हुआ कि समाज मूल रूप से दो भागों में विभाजित है आधारकि संरचना और उच्चतम संरचना।

बॉक्स 28.01
आधारिक संरचना आर्थिक क्षेत्र के आधार पर निर्मित होती है जो मूलरूप से सामाजिक संरचना को शक्ति प्रदान करती है और इसमें किसी भी प्रकार के परिवर्तन अन्य संरचनाओं को प्रभावित करेंगे। मार्क्सवाद यह बताना चाहता है कि सभी संघर्षों का उद्गम आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित होता है तथा जिसका मुख्य कारण उत्पादनों के संसाधनों का असमान वितरण होता है।

अतीत के विभिन्न कालों में विभिन्न नामों से जैसे स्वतंत्र तथा गुलाम, कुलीन एवं निम्न वर्ग, सामंत और दास या एक शब्द विरोधी रहे हैं। इन वर्गों में अर्थव्यवस्था में उनकी भिन्न-भिन्न स्थितियों के कारण अंतर होता है।

इंगेल्स तथा मार्क्स ने प्राचीन साम्यवाद, प्राचीन दास समाज, सामंती समाज, आधुनिक पूँजीवादी समाज सामाजिक संरचना के प्रमुख ऐतिहासिक स्वरूपों की पहचान की है। प्रत्येक युग में उत्पादन के प्रकार इतिहास में राज्य विशेष की वर्ग संबंधों की प्रकृति सहित समाज की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक विशेषताओं को निर्धारित करते हैं।

वर्ग संघर्ष के पहलू
पूँजीवादी समाज में मूल संरचना दो प्रतिद्वंद्वी वर्गों द्वारा निर्मित होती है एक बुर्जुआ वर्ग अथवा जिसके हाथ में उत्पादन के संसाधन हैं (संपन्न)। तथा दूसरा वह है जो सर्वहारा वर्ग है जिसके पास कोई संसाधन नहीं होते (वंचित वर्ग)। यह समूह बूर्जुआ वर्ग के लिए काम करता है जिसका मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ कमाना है। वह कामगारों के प्रति अमानवीय व्यवहार करता है। इसके परिणामस्वरूप कामगारों का शोषण और उनको बंधुआ मजदूर बनाया जाता है। असंतोष और अभावग्रस्त होने के कारण उनमें वर्ग जागरुकता पैदा होती है। ये जागरूक वर्ग अपने हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक दूसरे से संघर्ष करने लगते हैं।
बोध प्रश्न 1
1) वर्ग संघर्ष के पहलुओं पर एक टिप्पणी लिखिए। अपने उत्तर को दस पंक्तियों में दीजिए।
2) पूँजीवादी व्यवस्था में उत्पादनों के संसाधनों के मालिकों को किस नाम से जाना जाता है।
(सही उत्तर पर सही का निशान लगाएँ)
प) सर्वहारा वर्ग
पप) बुर्जुआ वर्ग
पपप) शक्तिशाली कुलीन वर्ग
पअ) अभावग्रस्त वर्ग

इसके विपरीत लाभार्थी लोग यह सोचते हैं कि स्वार्थ से एक सुव्यवस्थित समाज का संचालन होता है। इस संबंध में मार्क्स का कहना है कि यही संघर्ष का मूल स्रोत है। जहाँ तक पूँजीवादी समाज का प्रश्न है, धनी पूँजीपति एक समान राजनीतिक तथा सैद्धांतिक विचारधारा के आधार पर संगठित हो जाते थे। इसी वर्ग जागरुकता ने श्रमिकों के लिए भी ऐसा ही कार्य किया। एक बार जब श्रमिक यह महसूस करने लगे कि उत्पादन की प्रक्रिया में उन्हें शामिल नहीं किया जाता है और उनकी उपेक्षा हो रही है। ऐसी स्थिति में वे समाज में परिवर्तन करना आरंभ कर देंगे। मार्क्स के अनुसार श्रमिक पूँजीवादी व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। यहाँ पर हम साफतौर पर समझ गए हैं कि किस प्रकार से संघर्ष नई मूल्य व्यवस्था को पैदा करता है और उसे किस प्रकार से कार्यात्मक रूप प्रदान करता है। मार्क्स का वर्ग और वर्ग संघर्ष का सिद्धांत उनके सामाजिक परिवर्तन के व्यापक ढाँचे में सम्मिलित किया गया है जो अब उनके सामाजिक विश्लेषण में ऐतिहासिक तथा सामाजिक सिद्धांतों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है। इसके बावजूद भी उनके इस सिद्धांत की आलोचना की गई है।

 मार्क्स के सिद्धांत की आलोचना
मार्क्स के सिद्धांत बहुत ही आलोचना के विषय रहे हैं। अतः
प) उनके वर्ग के साथ पूर्वाग्रहों के कारण उन्होंने अन्य सामाजिक संबंधों जैसे कि राष्ट्रवादी प्रभाव तथा इतिहास में राष्ट्रों के बीच संघर्ष आदि की उपेक्षा की है। उन्होंने यूरोपीयं राष्ट्रों में बढ़ती राष्ट्रीय समुदायिक भावना की भी उपेक्षा की है जिसके द्वारा सामान्य मानव हितों पर बल देने के साथ नई नैतिक एवं सामाजिक संकल्पनाओं को बढ़ावा दिया है।

पप) मार्क्स की उनके वर्ग विभाजन की संकल्प्ना के आधार पर भी आलोचना की गई है। साक्ष्य बताते हैं कि 20वीं सदी के पूँजीवाद ने इस तरह की स्थितियाँ उत्पन्न की हैं जिनमें श्रमिक वर्ग को अधिक समय तक पूरी तरह उपेक्षित नहीं किया जा सकता। सामान्य जीवन स्तर, सामाजिक सेवाओं तथा रोजगार की सुरक्षा में विस्तार होने के साथ व्यक्ति की आम स्थिति में सुधार हुआ है।

पपप) नए मध्य वर्ग की उत्पत्ति के कारण भी वर्ग धुव्रीकरण का सिद्धांत गलत सिद्ध हुआ है। यह नया वर्ग कामगारों, पर्यवेक्षकों, प्रबंधकों आदि से निर्मित हुआ है जो व्यवसाय, उपभोग और जीवन शैली के आधार पर स्तरीकरण अर्थात् सामाजिक प्रतिष्ठा का महत्वपूर्ण घटक है।
.
पअ) मार्क्सवादी सिद्धांत में गतिशीलता की उच्च दर ने वर्ग दृढ़ता को प्रस्तुत किया है जिसके परिणामस्वरूप समूह स्थिति और महत्वपूर्ण बन गयी।

पअ) कुशल व्यवसाय के अर्थों में श्रमिक वर्ग अत्यधिक रूप से उपेक्षित हो गया। इसलिए वर्गों में समरूपता नहीं रही। मध्य वर्ग के विस्तार तथा जीवन स्तर में सामान्य सुधार के कारण श्रमिक वर्ग बूर्जुआ वर्ग में परिवर्तित होने लगा।
मध्यकालीन भारत के विशाल किले, जातियाँ परस्पर मिलकर रहते थे।
साभारः बी. किरण मई
 लेविस कोसर के विचार
लेविस कोसर वर्ग संघर्ष को समाज के लिए गतिशीलता के रूप में स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि समाज की वास्तविकता अंतर-संबद्ध भागों की उत्पत्ति है । इन भागों के बीच अंसतुलन के कारण अंतर-समूह और अंतः समूह में संघर्ष पैदा होता है जो परस्पर सामाजिक संबंधों का महत्वपूर्ण तत्त्व है। कोसर महसूस करते हैं कि बार-बार को संघर्ष समाज में मौजूदा नियमों को सुधारने या नए मूल्यों को बनाने में लगातार सहायता करते हैं। उनके कहने का आशय है कि सामाजिक संबंधों में शक्ति का संतुलन एक महत्वपूर्ण घटक है। वर्ग/सामाजिक संघर्ष अधिकतर वहीं पर अधिक मौजूद होते हैं जहाँ समाज के सदस्यों के बीच लगातार अत्यधिक परस्पर कार्यकलाप होते हैं। कोसर मानते हैं कि वर्ग संघर्ष सामान्य दुश्मन से संघर्ष के लिए व्यक्तियों को संगठित करने में सुरक्षा वाल्व की तरह काम करता है।

 डा.डॉर्फ तथा वर्ग संघर्ष
राल्फ डाहेंडॉर्फ मानते हैं कि सामाजिक जीवन में वर्ग संघर्ष एक मूल तत्त्व है तथा जब द्वंद्वात्मक रूप का विकास हो रहा है उस समय सामान्य स्थिति बिचलना स्वभाविक है। मार्क्स की ही तरह डाह्रेंडॉर्फ भी इस मूल धारणा को ध्यान में रखते हैं कि वर्ग संघर्ष क्रियाशील संस्थाओं में प्रतिद्वंद्वी समूहों वाले सभी समाजों की स्वभाविक विसंगतियों के कारण उत्पन्न होते हैं। मार्क्स की तरह ही वे भी दो वर्गों की बात करते हैं जो एक दूसरे से संबंधित है और संघर्ष करने की प्रवृत्तियाँ रखते हैं। इसे दूसरे शब्दों में यूँ कहा जा सकता है कि उन्होंने समाज को दो वर्गों में विभक्त किया है एक जिसके पास अधिकार है और दूसरा वह जिसके पास कोई नहीं हैं। इन समूहों के स्वार्थ एक दूसरे के विपरीत होते हैं। अधिकार संपन्न लोग अपनी स्थिति को उसी तरह से बनाए रखना चाहते हैं तथा जो लोग अधिकार विहीन होते हैं वे अधिकार संबंधों की संरचना में परिवर्तन करना चाहते हैं। समान हितों वाले इन समूहों को अंतिम रूप से संघर्षशील वर्गों के नाम से जाना जाता है।

बॉक्स 28.02
डाह्रेंडॉर्फ मार्क्स से प्रभावित होने के बावजूद वे यह नहीं मानते कि उत्पादन के । स्वामित्व के परिवर्तन से वर्ग संघर्ष समाप्त हो जाएगा। इसके विपरीत वे मानते हैं कि क्रांति विरोधी वर्गों का निर्माण करेगी जो समाज में संघर्ष को स्थायी बना देगा। यही प्रतिद्वंद्वी रूप है।

डाह्रेंडॉफ के अनुसार एसोसिएशनों में शक्ति और अधिकार के प्रश्न पर समाज की प्रभावशाली समन्वित संघर्ष चलता है। आई सी ए के अंदर संचालित संबंध सामाजिक कार्यों की इकाइयाँ है। इस प्रकार की आई सी ए चर्च, सतरंज क्लब आदि होंगी। चूँकि समाज में एक आई सी ए दूसरी आई सी ए से संबद्ध होती है, इनमें संघर्ष अंतर-समूह और अंतः-समूह दोनों प्रकार के होते हैं। एक ही आई सी ए में शक्ति के पदानुक्रम की स्थितियाँ होती हैं इन स्थितियों के संबंध में ही संघर्ष पैदा होता है। चूंकि प्रत्येक समाज चाहे वह किसी भी विकास के स्तर का हो उसमें अनेक आई सी ए इकाइयाँ होती हैं उनमें परस्पर वर्ग संघर्ष संबंध होते हैं। इस प्रकार व्यापक रूप में एक समाज के अंदर सभी आई सी ए संघर्ष को पैदा करने में सहयोग देती हैं। इन संघर्षों को संघर्षरत संगठनों के तंत्र के माध्यम से टाला जा सकता है या इनका समाधान किया जा सकता है और समग्रतरू स्थिरता में योगदान दिया जा सकता है।

डाह्रेंडॉफ के अनुसार ‘अस्थाई समूहों‘ से वर्गीय समाजों में परिवर्तन या प्रगति होती है। इन समूहों में किसी परिस्थिति के प्रति अप्रकट या निहित स्वार्थ होते हैं। ऐसी स्थिति में वहाँ स्वार्थ समूहों में सामान्य या एक समान जागरुकता पैदा हो जाती है। वह महसूस करता है कि वे एक जैसी परिस्थितियों में होते हैं अतः उन सभी को उनके स्वार्थ का पता लग जाता है और उनके स्वार्थ घोषित हो जाते हैं। इसलिए जब तक उनके गुप्त स्वार्थ रहते हैं तो यह एक मात्र महत्वपूर्ण है। यह स्थिति प्रगति के लिए पर्याप्त नहीं होती। इसके लिए साम्प्रदायिक जीवन तष्टा सांस्कृति के अन्य पक्षों की भी आवश्यकता होती है।

अभ्यास 1
कौन-सा स्वरूप भारतीय वास्तविकता की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है? कार्यात्मक रूप अथवा वर्ग संघर्ष रूप है अध्ययन केंद्र में अन्य विद्यार्थियों से अपने विश्लेषण की चर्चा कीजिए।

इस प्रकार डाहेरंडॉर्फ का मानना है कि अधिकार संबंधों की स्वार्थपूर्ण संरचनाओं के परिणाम स्वरूप वर्ग संघर्ष होता है। डाह्रेंडॉर्फ तर्क देते हैं कि श्रेष्ठ या अधिनिस्थों के बीच आर्थिक संबंधों के कारण वर्ग संघर्ष की स्थिति नहीं बनती। यहाँ पर मुख्य मुद्दा अधिकार है जो किसी एक या अनेक व्यक्तियों के पास दूसरों के ऊपर रखे जाते हैं। जिस प्रकार अधिकारी / कर्मचारी संबंध हमेशा संघर्षात्मक होते हैं। इसी प्रकार स्पष्ट है कि जहाँ पर किसी संगठन में अधिकार और अधीनता होगी वहाँ वर्ग संघर्ष होगा जैसे अस्पताल, विश्वविद्यालय या सेना की बटालियन।

सी.डब्ल्यू. मिल्लस तथा शक्तिशाली कुलीन वर्ग
सी डब्ल्यू मिल्लस ने वर्ग शक्ति संरचना पर प्रकाश डाला है जिसे उन्होंने अमरीका के एक विशिष्ट मामले में देखा है। वे दो वर्गों में समाज के दो वर्गों में विभाजन की बात करते हैं। कुलीन और सामान्य जन/कुलीन वर्ग का अर्थ है श्रेष्ठ या सबसे उत्तम । यह वर्ग अल्पसंख्यक वर्ग होता है जो समाज में किसी न किसी कारण से श्रेष्ठ वर्ग के रूप में जाना जाता है। वास्तव में कुलीन सिद्धांत का विकास मार्क्स के वर्ग सिद्धांत की प्रतिक्रिया में तथा वर्ग रहित समाज की संकल्पना के विरोध में हुआ है। अतः कुलीन वर्ग का शासन अपरिहार्य है तथा वर्ग रहित समाज काल्पनिक है। इन कुलीन सिद्धांतों का एक और पक्ष है जिसमें वे मार्क्सवाद में नियतिवाद की आलोचना तो की जाती है परंतु वे स्वयं यही नहीं बताते कि प्रत्येक समाज दो स्तरों में बँटा होता है एक शासक अल्पसंख्यक और दूसरे शासित बहुसंख्यक । अपितु वे यह भी कहते हैं सभी समाजों का इस प्रकार विभाजन होता है। पेरेटो का दावा है कि राजनीतिक समाज का एक प्रकार कुलीन और सामान्य जन के इस सिद्धांत को सार्वभौमिक रूप से सिद्ध करता है।

मार्क्स का सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक समाज में शासक वर्ग मौजूद होता है जिनके पास अपने उत्पादन के साधन और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं तथा एक अथवा अन्य वर्ग वे होते हैं जो इनसे शासित होते हैं। ये दोनों वर्ग हमेशा संघर्षरत रहते हैं और वे उत्पादक शक्तियों के विकास द्वारा प्रभावित रहते हैं अर्थात् प्रौद्योगिकी में परिवर्तन का उन पर प्रभाव पड़ता है। मार्क्स मानते हैं कि संघर्ष में शासक वर्ग की विजय होती हैं जो अंततः वर्ग रहित समाज के निर्माण में सहायक होती है। इस सिद्धांत को कुलीन सिद्धांत के विद्वानों ने स्वीकार नहीं किया है।

जैसे कि पहले ही बताया जा चुका है कि सी डब्ल्यू मिल्लस समाज में दो वर्गों के बारे में चर्चा करते हैं कि एक कुलीन वर्ग होता है जो शासन करता है और दूसरा सामान्य जन होता है जो शासित होता है और कुलीन वर्ग का विरोध करता है। उनका मानना है कि कुलीन शक्ति का निर्माण समाज के तीन वर्गों सेना, उद्योग और राजनीति से होता है। इसे वे अमरीका की शक्ति संरचना की एकाधिकारिता मानते हैं। फिर ये कुलीन समूह उच्चतम शैक्षिक सुविधाएँ तथा परिवारों की शक्ति सम्पन्न पृष्ठभूमि के कारण और भी मजबूत बन जाते हैं। दूसरी और सामान्य जन निष्क्रीय ग्रहणकर्ता मात्र रहता है तथा वे कुलीन वर्गों को कभी भी चुनौती नहीं दे सकता। अतः यह कहा जा सकता है कि कुलीन वर्ग समाज में अपनी स्थिति को श्रेष्ठ बनाए रखने में समर्थ रहता है।

बोध प्रश्न 2
1) अमरीका में वर्गों की विद्यमानता के संबंध में सी डब्ल्यू मिल्लस के विचारों को लिखें।इअपने उत्तर के लिए पाँच पंक्तियों का प्रयोग करें।
2) रिक्त स्थान भरिए:
क) …………………………………… मानते हैं।
ख) कि…………………………………….
ग) ………………………………….. परिवर्तन लाने में प्रमुख कारण होगी।

मार्क्सवादी सिद्धांत को मानने वाले विद्वान समझते कि वर्ग संघर्ष को परिवर्तन लाने वाला मानते हैं। जबकि कुलीन सिद्धांतवादियों का मानना है कि कुलीन वर्ग का जब ह्रास हो जाता है तो एक नए कलीन वर्ग का उदय होता है और उसका विस्तार हो जाता है। इस प्रकार परिवर्तन होता रहता है। शासक वर्ग के निर्माण में केवल उसी समय परिवर्तन आता है जब उत्पादन की सम्पूर्ण व्यवस्था और समाप्ति के स्वामित्व में तीव्र परिवर्तन आता है। यह ‘कुलीन वर्गों का प्रसार‘ अथवा ‘सामाजिक गतिशीलता‘ आधुनिक समाजों की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।

अभ्यास 2
क्या कुलीन शक्ति का विश्लेषण भारत पर लागू होता है। यदि ऐसा है तो वे कौन है जो जिनसे कुलीन शक्ति का निर्माण होता है। अपना निर्णय करने से पूर्व कुछ लोगों से चर्चा कीजिए। अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों से चर्चा करें।

वर्ग संघर्ष सिद्धांत: एक मूल्यांकन
अब हम वर्ग संघर्ष सिद्धांत की कुछ कमियों की चर्चा करते हैं। हमने देखा है कि:
प) संघर्ष सिद्धांत बताना चाहता है कि सभी संघर्ष और विरोध समाज को दो पक्षों में विभाजित करते हैं । इस प्रकार से किसी भी समाज का स्पष्ट विभाजन संभव नहीं है।
पप) वे यह भी मानते हैं कि समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया सतत् और अंतहीन है। यह सच नहीं है। अनेक परम्परागत समाजों में कोई खास परिवर्तन नहीं हुए हैं।
पपप) उसके अतिरिक्त इन सिद्धांतवादियों ने हमेशा ही संघर्ष को परिवर्तन के साथ संबद्ध किया है। वे कहते हैं कि वास्तव में परिवर्तन संघर्ष का स्वभाविक अनुसरण करता है। परंतु यह सिद्ध हो चुका है कि जब संघर्ष परिवर्तन का अनुकरण करता है लेकिन परिवर्तन से संघर्ष हो यह जरूरी नहीं है।
पअ) संघर्ष के सिद्धांतवादी सकारात्मक और नकारात्मक संघर्ष के बीच विभेद करने में असफल रहे हैं। वे इस तथ्य को नहीं मानते संघर्ष सामाजिक संबद्धता और स्थिरता में ही नहीं अपितु बिखराव और अस्थिरता में भी योगदान करते हैं।
अ) और अंत में यह कह सकते हैं ये सिद्धांतवादी अनुभवपरक प्रमाणिक आँकड़ों के स्थान पर उद्धृत सामग्रियों पर अत्यधिक निर्भर रहे हैं।

यदि संघर्ष सिद्धांत ने समाज में अपनी भूमिका पर अनावश्यक विशेष बल दिया है और समाज में स्थिरता बनाए रखने के लिए अनुबंध की भूमिका की उपेक्षा करने का प्रयास किया है। वर्ग विभाजन के अध्ययन के लिए यह दृष्टिकोण न तो तर्क संगत और न ही व्यावहारिक ।

 बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
1) वर्ग संघर्ष कार्ल मार्क्स की पूँजीवादी सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है जहाँ उत्पादन संसाधनों के स्वामी तथा सर्वहारा वर्ग या श्रमिक विरोधी और परस्पर विमुख स्थिति में होते हैं। बुर्जुआ वर्ग द्वारा सर्वहारा वर्ग का शोषण करने से दोनों सामाजिक वर्गों में हिंसात्मक संघर्ष है और आखिरकार श्रमिकों द्वारा क्रांति या पूँजीवादियों को उखाड़ दिया जाता है।
2) (पप)

बोध प्रश्न 2
1) अमेरिका में वर्ग संरचना का अध्ययन सी डब्ल्यू मिल्लस ने किया। उन्होंने महसूस किया कि मुख्यतः दो वर्ग कुलीन वर्ग और सामान्य जनता वर्ग होते हैं। कुलीन शासन करते हैं और प्रभावशाली पृष्ठभूमि से आते हैं। मिल्ल्स के अनुसार यह शक्तिशाली कुलीन वर्ग है जिसने अमेरिका की जनता पर शासन किया है। सी डब्ल्यू मिल्लस के अनुसार इस। शक्तिशाली कुलीन वर्ग में उच्च सैन्य अधिकारी, बृहत व्यावसायिक संगठनों के स्वामी तथा बड़े व्यावसायिक संगठनों के स्वामी तथा बड़े राजनीतिक नेता शामिल होते हैं। मिल्लस के अनुसार इन तीन वर्गों ने अमेरिका में बड़े-बड़े निर्णय लिए।
2) क) मार्क्सवादी
ख) वर्ग
ग) वर्ग संघर्ष

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

1 month ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

1 month ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

1 month ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

1 month ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

2 months ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

2 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now