हिंदी माध्यम नोट्स
मणिपुरी नृत्य का इतिहास manipuri dance in hindi which state मणिपुर का लोक नृत्य क्या है डांस इनफार्मेशन इन हिंदी
manipuri dance in hindi which state मणिपुरी नृत्य का इतिहास मणिपुर का लोक नृत्य क्या है डांस इनफार्मेशन इन हिंदी ?
मणिपुरी
प्राचीन काल में भारत के दूर-दराज के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की सुंदर मणिपुर घाटी ने अपनी ही एक नृत्य शैली मणिपुरी को सजीव बनाए रखा है। इस कलात्मक नृत्य की उत्पत्ति का इतिहास क्या है, कोई नहीं जानता, हालांकि इसके काफी प्रमाण है कि अत्यंत प्राचीन समय से ही मणिपुर के लोग संगीत और नृत्य प्रेमी रहे हैं. और स्वयं को गंधर्वो के वंशज मानते हैं। 18वीं शताब्दी तक भक्ति पंथ ने मणिपुर में अपनी जड़ें जमा ली थीं और यहां के शासकों का प्रश्रय पाकर लोकप्रिय धर्म बन गया।
इस क्षेत्र के नृत्य को पुनरूज्जीवित और सुनियोजि करने का श्रेय राजा भाग्यचंद्र को है, जो 1764 ई. में मणिपुर के शासक बने। वे भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे और उन्होंने भक्ति पंथ की उन्नति के लिए पूरी निष्ठा के साथ कार्य किया। उन्होंने इम्फाल में गोविन्द जी का मंदिर बनवाया, स्वयं रासलीला की रचना की, भगवान कृष्ण के जीवन की घटनाओं को प्रस्तुत करने वाले रासनृत्यों को प्रोत्साहन दिया और नृत्य कार्यक्रमों के लिए मंडल या कक्ष बनवाए। राजा भाग्यचंद्र ने संगीत और नृत्य को जो दिल खोल कर प्रोत्साहन दिया उससे अंततः मणिपुरी नृत्य का पुनरूस्थान हुआ। राजा ने अपने राज्य के अनुभवी संगीतज्ञों और नृत्य गुरूओं को बुलाया। उनकी सहायता से मणिपुरी नृत्य शैली के सिद्धांत और विधियां तय की। लिखा हुआ ग्रंथ श्गोबिंद संगीत लीला विलासश् मणिपुरी संगीत और नृत्य के विषय पर एक महत्वपूर्ण कृति माना गया है।
भाग्यचंद्र के उत्तराधिकारियों ने भी इस कला की ओर समुचित ध्यान दिया। 19वीं शताब्दी में गंभीर सिंह (1825-1834) और चंद्र कति सिंह (1850-1886) जैसे शासकों ने न केवल मणिपुरी नृत्य शैली को प्रोत्साहन देकर, बल्कि इसके विकास और उन्नति के लिए गहन अध्ययन और मौलिक योगदान करके इसकी महत्वपूर्ण सेवा की।
1891 ई. में मणिपुर पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने से इस छोटे से राज्य की नृत्य कला उपेक्षा की शिकार हो गई।
20वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में रवींद्रनाथ ठाकुर का ध्यान मणिपुरी नृत्य की ओर आकृष्ट हुआ। यही मणिपुरी नृत्य के इतिहास के आधुनिक दौर का समारंभ था। मणिपुरी शैली के गुरूओं, नवकुमार, सेनारिक सिंह, राजकुमार और नीलेश्वर मुखर्जी ने विभिन्न तरीकों से इन नृत्य का विकास किया।
शांतिनिकेतन में तो मणिपुरी का विकास हो ही रहा था, विपिन सिंह इस नृत्य शैली को बंबई ले गए, और नवकुमार ने अहमदाबाद जाकरर इसका प्रशिक्षण देना शुरू किया। प्राचीन मणिपुरी का परंपरागत केंद्र इम्फाल, महान गुरूओं अमूबा सिंह, अमूदोन शर्मा और अतोम्बा सिंह के अधीन, इस नृत्य शैली के सबसे बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो गया। इस नृत्य की विख्यात कलाकारों झवेरी बहनों रीता देवी, सविता मेहता, निर्मला मेहता और तम्बाल यायमा ने इस नृत्य की ख्याति को भारत के अंदर और बाहर दूर-दूर तक सफलतापूर्वक पहुंचाया है। मणिपुरी नृत्य शैली इस मूल मान्याता पर आधारित है कि अनुभूति, मनः स्थिति, मनोभव और मानसिक आवेश को शरीर के अंग संचालन से व्यक्त किया जा सकता है। मतलब यह है कि इसके लिए मास्तिक और शरीर को एक दूसरे के साथ पूरी तरह आत्मसात करना होता है। शरीर के मोहक हावभावों और सुरताल पर थिरकने से संगीत माधुर्य को रूप में बदला जाता है, और उधर संगीत भावों का संचार करता है। विनम्रतापूर्ण अंग संचालन, इस नृत्य का नाजुक पक्ष है, जिसे अक्सर स्त्रियां प्रस्तुत करती हैं, जबकि दृढ़ अथवा बलिष्ठ पक्ष पुरुषों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार अंग संचालन के दो निश्चित रूप हैं- लास्य और तांडव। लास्य में शरीर के अंगों का सरल-स्वाभाविक संचालन, बिना किसी अतिरिक्त बल प्रयोग के करना होता है। इसमें ताल और लय के अनसार धीमी या तेज गति हो सकती है। तांडव पक्ष में, मन क भावा की अभिव्यक्ति के लिए श्आंगिक अभिनयश् मणिपरी नत्य का महत्वपूर्ण पहलू है। सिर, आंखों, गर्दन, कंधों, जंघा, घुटनों, हाथों, अगुलियों और पैरों के संचालन की विभिन्न विधियां हैं।
इस नृत्य के संगीत के लिए ढोल, बांसुरी, तुरही, इसराज, तम्बरा, झांझ और मृदंग कुछ महत्वपूर्ण वाद्य हैं। मणिपुरी ढोल की अपनी ही विशेषता है। यह केवल मणिपरी नत्य के लिए ही उपयक्त है। इस नत्य शैल की वेशभूषा भी बड़ा आकर्षक है। लंबा घाघरा, उसके ऊपर एक और घाघरा चोली सभी पर संदर और घनी कशीदाकारी होती हैय और कई तरह के सुंदर आभूषण, कलाकार, विशेषकर स्त्रियों के व्यक्तित्व को निखार देते हैं।
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…