हिंदी माध्यम नोट्स
मानव निर्मित इन्सुलिन , जीव उपचार/जीव थैरेपी , आणिवक निदान- परम्परागत विधि
Man-made insulin मानव निर्मित इन्सुलिन:-
परम्परागत रूप से सुअर और अन्य जीवों को मानकर इन्सुलिन प्राप्त की जाती थी। इन्सुलिन में दो पेप्टाइड श्रृंखलताऐं A व B पायी जाती है जो आपस में डाइसल्फाइड बंध के द्वारा जुडी होती है यह प्राक इन्सुलिन के रूप में होती है जिसमें एक अतिरिक्त फैलाव पेप्टाइड C पाया जाता है।
चित्र
1983 मे अमेरिकी कम्पनी एली लीली ने कृत्रिम इन्सुलिन का निर्माण किया तथा उसे हूमृलिन नाम दिया। E-coli जीवाणु में इन्सुलिन की पेप्टाइड A और B की पूरक श्रृंखला वाले DNA को संवाहक की सहायता से प्रवेश कराया तथा प्राप्त पेप्टाइड । और ठ को डाईसल्फाइड द्वारा इन्सुलिन इन्सुलिन बनायी गयी।
जीव उपचार/जीव थैरेपी:-
दोषपूर्ण जीव का प्रतिस्थापन सामान्य जीव के द्वारा करके विभन्न आनुवाँशिक एवं जठिल बीमारियों का उपचार करना जीन उपचार कहलाता है।
उदाहरण:- अमेरिका मे 4 वर्षीय बालिका का 1990 में ।क्। (एडिनोसिन डिएमीनेज) का उपचार किया गया। यह एन्जाइम पतिरक्षा तंत्र से संबंधित है।
परम्परागत रूप से इंजेक्शन के द्वारा इन्जाइम प्रतिस्थापन किया जाता था। अथवा अस्थिमज्जा प्रत्यारोपण के द्वारा उपचार किया जाता था। यह स्थायी समाधान बाकी है।
जीव उपचार के तहत लसिकाणुओं को शरीर से बाहर निकालकर प्रयोगशाला में समर्पित किया गया। इनमें ADA के C-DNA को रेसेवायरस संवाहक की सहायता से प्रवेश कराया गया तथा पुनः शहरर में प्रवेश कराया गया।
सफल स्थायी उपचार हेतु प्रारम्भिक भ्रूणीय अवस्था में ही ADA उत्पन्न करने वाले अच्छे जीवों को अस्थिमज्जा में प्रवेश करायाग गया है।
आणिवक निदान- परम्परागत विधि:-
1- रक्त परिवक्षण
2- मूत्र परिरक्षण
3- सिरम परिरक्षण
कमी:- शरीर में रोग जनकों की संस्था अधिक होने पर रोग के लक्षणों के द्वारा रोग की पहचान होती है
प्रारम्भिक अवस्था में रोग जनकों की पहचान हेतु मासिक निदान तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। जो निम्न है:-
PCR विधि:-
रोगाणु,, जीवाणु के न्यूक्लिक अम्ल का प्रवर्धन करके रोगजनक की पहचान की जा सकती है। इस प्रकार एडस रोगियों में HIV की पहचान करने में तथा कैसर रोगियों में उत्परिवर्तनयजीव की पहचान की जाती है।
DNA संपरीक्षित/प्रोब विधि:- में न्यूक्लिक अम्ल के एकता सूत्र को प्रोब्र के रूप में प्रयुक्त करते है तथा उसे अपने पुरक के साथ जोडी बनाने पर स्वविकिरण चित्रण के द्वारा पहचान लिया जाता है ।
ELISA- ऐलिजा विधि:- यह प्रतिजन प्रतिरक्षी सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें प्रतिजन की पहचान द्वारा अथवा प्रतिवक्षी की पहचान द्वारा रोग का निदान किया जाता है।
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…