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मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ?

मालकाना के युद्ध में मुस्लिम सेना की पराजय

जालौर राज्य में खिलजी सेना द्वारा की जा रही लूट-पाट से कान्हड़दे का खून खौल उठा उसने राजपूत सरदारों का आह्वान किया। परिणामस्वरूप सुल्तान की सेना पर राजपूत सैनिकों द्वारा वज्रपात होने लगा जगह-जगह उन्हें अपने प्राणों को बचाने के लिए भागना पड़ा मेड़ता के पास मालकाना में एक ओर खिलजी सुल्तान की सेना थी, दूसरी ओर क्रुद्ध राजपूत सेना भीषण युद्ध हुआ, भूखे सिंहों की तरह राजपूत सैनिक सुल्तान की सेना पर टूट पड़े – और उसके सेनापति शम्सखों को उसकी पत्नी सहित बंदी बना लिया गया।

मालकाना के युद्ध का समाचार जब सुल्तान को मिला तो यह स्वयं एक विशाल सेना लेकर जालौर के लिए रवाना हुआ।

जालौर दुर्ग का घेरा  जालौर पहुँच कर सुल्तान ने दुर्ग को घेरने का काम कमालुद्दीन को सौपा। कान्हड़दे ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ शत्रु का मुकाबला किया। उसने मालदेव को बाड़ी के नाके पर तैनात किया, लेकिन कमालुद्दीन दुर्ग के घेरा डालने में सफल हो गया। कुछ दिनों तक दोनों पक्षों में भयंकर झड़पें होती रही, जिसमें कभी एक पक्ष को जय मिलती तो कभी दूसरे पक्ष को परन्तु धीरे-धीरे सुल्तान की सेना की स्थिति मजबूत होती चली गयी और दुर्ग में घिरे कान्हडदे तथा उसके सैनिकों की स्थिति दिन प्रतिदिन कमजोर होती गयी। पेयजल और खाद्य सामग्री के अभाव ने स्थिति को और खराब बना दिया।

विश्वासघात =  दुर्ग में घिरी राजपूत शक्ति पर घातक प्रहार कान्हड़देव के एक दहिया सरदार बीका द्वारा विश्वासघात के रूप में हुआ। इस दहिया सरदार को सुल्तान ने जालोर दुर्ग का स्वामी बन स्वप्न दिखाकर अपनी ओर मिला लिया। इसने मुस्लिम सेना को जालौर दुर्ग में घुसने का दिया। राजपूत सेना को इस मार्ग से शत्रु सेना के आक्रमण की कोई आशा नहीं थी, इसलिए इस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था भी नहीं की गई थी। बीका की पत्नी को जब अपने पति के विश्वास जानकारी मिली तो उस क्षत्राणी ने राजद्रोही पति के तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

राजपूत सेना की पराजय  सुल्तान की सेना आसानी से जब दुर्ग के भीतर पहुँच गयी तो कान्हड़दे की सेना टूट पड़ी दुर्ग के अन्दर इस अप्रत्याशित युद्ध में कान्हडदे वीरगति को प्राप्त हुए। राजा की मृत्यु के पश्चात् भी राजपूत सरदारों ने साहस नहीं खोया और शत्रु सेना पर भीषण रहे, लेकिन मुस्लिम सेना संख्या बल में राजपूतों की सेना से बहुत अधिक थी दोनों के मध्य भीष सैनिक दुर्ग में और होता रहा राजपूत सैनिक, शत्रुओं का निरंतर संहार करते रहे, लेकिन मुस्लिम रहे। धीरे-धीरे राजपूत वीरों की संख्या कम होती गयी और जब उनके विजय की संभावना लगभग हो गयी, तो राजपूत वीरांगनाओं ने जौहर की ज्वाला में अपने आपकी आहूति प्रदान कर दी रक्तपात के पश्चात् जालौर के सोनगढ़ पर मुस्लिम सेना का 1311-12 ई. में अधिकार स्थापित ह इस युद्ध में कान्हडदे के परिवार का केवल एक सदस्य मालदेव जीवित बच्चा था जिसे सुलतान ने का कार्यभार सम्भालने के लिए नियुक्त किया था।

मूल्यांकन कान्हड़दे निश्चित रूप से एक शूरवीर योद्धा, प्रखर देशभक्त, स्वाभिमानी एवं ति व्यक्ति था। डॉ० दशरथ शर्मा के अनुसार उसमें कूटनीति का अभाव था, वरना उसकी महानत अधिक बढ़ जाती। यदि वह अपनी स्वतंत्रता की रक्षा अलवा तथा गुजरात के सहयोग से सिसोदिया चौहानों को साथ लेकर करता, तो सुल्तान की सेना किसी भी तरह सफल नहीं होती।

कान्हड़दे ने सिवाणा पर सुल्तान के जबकि सुल्तान का लक्ष्य जालौर पर आक्रमण के दौरान शीतलदेव की कोई सहायता नहीं था। यदि शीतलदेव एवं कान्हडदे दोनों संगठित मुस्लिम सेना से युद्ध करते तो परिणाम विपरीत होता।

खलजी के बाद तुगलक तथा सैयद सुल्तानों ने भी जालौर पर अपना प्रभुत्व जमाने के प्रयास लेकिन स्वतंत्रता एवं स्वाभिमान प्रिय राजपूत सैनिकों को वे पुनः नहीं जीत सके इस प्रकार राज मुस्लिम आक्रमणकारियों के समक्ष स्थायी रूप से कभी समर्पण नहीं किया।

राजस्थान में राजपूतों की पराजय के कारण

राजपूत स्वतंत्रता प्रिय स्वाभिमानी, प्रखर देशभक्त तथा उच्च नैतिक आदर्शों पर चल धार्मिक प्रवृत्ति के शासक थे इनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी कि ये कभी एक नहीं हो सके। राजा से या अपने पढ़ौसी से संघर्ष करता रहता था। यही कारण है कि पृथ्वीराज चौहान से लेकर रतनसिंह तथा कान्हड़दे इसी परम्परा को गति प्रदान करते रहे।

तुर्की के विरुद्ध राजपूत शासकों ने कड़ा प्रतिरोध किया, लेकिन ये परास्त हुए, जिस कारण निम्नलिखित है-

1. एकता का अभाव तुर्कों के विरूद्ध राजपूत शासक कभी भी एक नहीं हुए। उन्होंने अ शासकों को आसानी से पराजित कर दिया। एक-एक दुर्ग को जीतने में तुर्क सेना को एडी पूरा जोर लगाना पड़ रहा था और कई कई महिनों तक वे निरंतर दुर्गों को घेरे हुए युद्ध करते ऐसे में घिरे हुए राजपूत शासक को दूसरे से सहायता प्राप्त हो जाती तो क्रमशः पराजित नहीं संगठित रूप से किये जाने वाले युद्ध के विषय में कोई विचार नहीं रखते थे।

2. विश्वासघात कुछ देशद्रोहियों ने भी अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने विश्वासघात किया। रणथम्भौर में रतिपाल एवं रणमल शत्रु से जा मिले। जालौर में दहिया ने शत्रु को दुर्ग में प्रवेश करने का मार्ग बताया। इन देशद्रोहियों के विश्वासघात ने राजपूत राज्यों के पतन का मार्ग प्रशस्त किया। इन विश्वासघातियों को जिन्होंने अपने स्वामी को ही धोखा दिया उचित दण्ड मिला। रतिपाल एवं रणमल को रणथम्भौर पर विजय करने के बाद खलजी ने स्वयं ही मौत के घाट उतार दिया। बीका के तो उसकी पत्नी ने स्वयं ही तलवार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे। 3. गुप्तचर व्यवस्था की कमी राजपूत शासकों के पास गुप्तचर व्यवस्था का अभाव था इसलिए उन्हें शत्रुओं की गतिविधियों का कोई ज्ञान ही हो पाता था। कभी कभी तो शत्रु पूर्णतया तैयार होकर उनके द्वार पर आ जाता था, तब वे युद्ध करने की तैयारी करते थे।

इनसे शत्रुपक्ष की प्रत्येक जानकारी प्राप्त हो सकती थी. उनकी कमजोरियों से लाभ उठाया जा सकता था. यहाँ तक कि उनमें फूट भी डलवायी जा सकती थी लेकिन तत्कालीन राजपूत शासक शत्रु की कमजोर स्थिति का लाभ उठाने का विचार ही नहीं रखते थे।

4. युद्ध में उच्च आदर्शों का पालन राजपूत शासक प्राचीन भारत के उच्च आदर्शों का पालन करते हुए धर्म संगत प्रजा का पालन करते थे युद्ध भूमि में भी वे धर्म का सदैव ध्यान रखते थे, जैसे- मैदान से मागती हुई सेना पर आक्रमण नहीं करना, गौरी के विरूद्ध पृथ्वीराज की इस नीति ने उसे बार बार भारत आने को प्रेरित किया यही दृश्य रणथम्भौर में जब धर्मसिंह एवं भीमसिंह से पराजित होकर तुर्क सेना लौट चली तो इन्होंने आक्रमण नहीं किया और ये उन्हें भागता हुआ छोड़कर जब रणथम्भौर की ओर लौट चले तो उन्होंने वापस आकर इन पर आक्रमण कर दिया।

राजपूत शासक धर्म पालन हेतु अपने प्राणों की बाजी लगाने को तत्पर रहते थे शरणागत की रक्षा करना भी प्राचीनकाल से भारतीयों का आदर्श रहा है। इस प्रकार राजपूत शासक चाहे युद्ध भूमि में तुर्कों से पराजित हो गये, फिर भी नैतिक मूल्यों के आधार पर वे सदैव विजयी रहे हैं।

महत्त्वपूर्ण बिन्दु

  1. राजस्थान के इतिहास में 700 ई. से 1200 ई. तक का काल राजपूत काल कहलाता है।
  2. मुस्लिम लेखकों ने राजपुत्र को अपनी रचनाओं में राजपूत लिखा है
  3. चाहमान (चौहान), प्रारंभिक काल में सपादलक्ष (सांभर झील के आस पास रहते थे, यहीं से चौहान राजवंश का उदय हुआ।
  4. चौहान शासक अजयराज ने अजयमेरु (अजमेर) नगर की स्थापना की तथा इसे अपनी राजधानी बनाया।
  5. प्रारंम्भिक काल में तुर्कों की राजनीति का केन्द्र नागौर था।
  6. चौहान शासक सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज चौहान अल्पायु में पिता की मृत्यु के पश्चात् (1177 ई) में शासक बना।
  7. पृथ्वीराज ने एक वर्ष तक अपनी माता कर्पूरदेवी के संरक्षण में शासन संचालन किया।
  8. जयानक द्वारा रचित “पृथ्वीराज विजय एवं चन्दरबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो चौहान राजवंश की इतिहास विषयक महत्वपूर्ण कृतियों है।
  9. पृथ्वीराज चौहान ने चंदेलवंशी परमर्दिदेव के राज्य पर आक्रमण कर महोबा पर अधिकार किया था।
  10. पृथ्वीराज चौहान की दिग्विजय नीति से उत्तर-पूर्व में गहड़वाल (जयचन्द्र), पूर्व में चन्देल (परमर्दिदेव) तथा दक्षिण में चालुक्य (भीमदेव द्वितीय) वंशी राज्यों में शत्रुभाव उत्पन्न हो गया था।
  11. 1191 ई. तक पृथ्वीराज चौहान ने पश्चिमोत्तर से होने वाले तुर्की आक्रमणों में विजय प्राप्त की थी पराजित तुर्की सेना एवं सेनानायकों को सुरक्षित भाग जाने दिया था।
  12. 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध को तुर्क मुहम्मद गौरी ने धोखेबाजी एवं पूर्तता से जीता।
  13. रणथम्भौर में चौहान राजवंश का संस्थापक गोविन्दराज पृथ्वीराज चौहान का पुत्र था।
  14. रणथम्भौर के चौहान शासक हम्मीर देव के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत नयन्द्र द्वारा रचित हम्मीर महाकाय, जोधराज द्वारा रचित हम्मीर रासों एवं चन्द्रशेखर द्वारा “हम्मीर हठ ग्रंथ है।
  15. अलाउद्दीन खलजी ने 1200 ई. से 12982 ई. के मध्य रणथम्भौर पर अधिकार करने के लिए बार आक्रमण किये जिनमें राजपूत सेना से परास्त होकर उसे वापस दिल्ली लौटना पड़ा।
  16. हम्मीर में अलाउद्दीन खलजी से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए उसके सैनिक अधिकारियों को यहाँ शरण देकर उन्हें अभयदान दिया।
  17. रणथम्भौर पर सुल्तान के सेनापतियों (उलुगखी एवं नुसरतखी) ने जब घेरा डाला तो राजपू भीषण आक्रमण में नुसरतखी मारा गया।
  18. चित्तौड़ के दुर्ग का निर्माण मौर्यवंशी शासक चित्रांग ने किया था।
  19. मेवाड़ राज्य की राजधानी चितीड़ थी और यहाँ गुहिलवंश के शासक रतनसिंह रावल राम के उत्तराधिकारी 1302 ई. में राजसिहासन पर आरूढ़ हुए।
  20. रावल रतनसिंह की पत्नी रानी पदमनी अद्भुत सौन्दर्यवान नारी रत्न थी जिसको प्राप्त करने लिए अलाउद्दीन खलजी ने चित्तौड़ पर अपनी सम्पूर्ण शक्ति से आक्रमण किया, लेकिन वह नहीं पा सका।
  21. मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत नामक अपनी रचना में रानी पद्मनी सम्बन्धी विवरण लि है।
  22. चित्तौड़ को जीतने के बाद सजी ने करलेआम का आदेश देकर अपनी सेना से एक दिन में 30,000 निर्दोष लोगों को त के घाट उतरवा दिया तो भी स्वतंत्रता प्रेमी राजपूत निरंतर करते रहे और 1326 ई. में सीसोद के सरदार हम्मीर ने चितौड़ पर सिसोदिया राजवंश की स्थान की।
  23. जालौर का प्राचीनकाल में जाबालीपुर नाम था तथा इसके दुर्ग को सुवर्णगिरी कहा जाता जो परवर्तीकाल में सोनगढ़ कहलाया।
  24. जालौर के चौहान राजवंश की जानकारी का प्रमुख स्रोत पद्मनाम द्वारा रचित कान्ह प्रबंध एवं नैणसी की ख्यात है।
  25. गुजरात से लूटपाट कर दिल्ली लौटती हुई सेना को कान्हड़दे के राजपूत सरदारों ने जेता के नेतृत्व में लूट-खसोट कर भगा दिया। इस लूट में सोमनाथ मंदिर के पवित्र शिवलिंग के टुकड़े भी प्राप्त हुए जिनको हम्मीर ने विधि-विधान से पाँच मंदिरों में स्थापित करवाया।
  26. अलाउद्दीन खलजी की पुत्री राजकुमारी फिरोजा, कान्हड़दे के पुत्र वीरमदेव से विवाह चाहती थी।
  27. जालौर की कुंजी सिवाणा दुर्ग था जिसकी रक्षा का दायित्व शीतलदेव नामक चौहान सरद जिम्मे था।
  28. 1312 ई. में अलाउद्दीन खलजी ने जालौर पर अधिकार स्थापित कर लिया।

अभ्यासार्थ प्रश्न

बहुचयनात्मक प्रश्न (सही विकल्प लिखिए)

1. चाहमान (चौहान) राजवंश का प्रारंभिक केन्द्र था।

(क) सपादलक्ष

(ख) नागदा

(ग) नागौर

(घ) रणथम्भौर

2. अजमेर (अजयमेरू) नगर की स्थापना की थी।

(क) पृथ्वीराज चौहान ने

(ख) अणराज ने

(ग) अजयराज ने

3. पृथ्वीराज चौहान ने पराजित किया था।

(क) चन्देल शासक को

(  ख   ) भण्डानकों को

(ग) चालुक्यवंशी शासक को

(घ) उपरोक्त सभी को

4. चित्तौड़ के शासक रतनसिंह राजपूत वंश से सम्बन्धित थे।

(क) गुहिल

(ख) सिसोदिया

(ग) प्रतिहार

(घ) चौहान

5. चित्तौड़ दुर्ग का निर्माण कराया था।

(क) महाराणा प्रताप ने

(ख) महाराणा कुंभा ने

(ग) चित्रांग ने

(घ) राजा रतनसिंह ने

6. अलाउद्दीन खलजी ने चित्तौड़ पर घेरा डाले रखा था।

(क) आठ माह

(ख) नौ माह

(ग) दस माह

(घ) ग्यारह माह

7.कान्हड़दे प्रबंध के रचियता थे।

(क) चन्दरबरदाई.

(ख) पद्मनाभ

(ग) चन्द्रशेखर

(घ) नैणसी

अति लघुतरात्मक प्रश्न (दो पंक्तियों में उत्तर दीजिए)

1. चौहान राजवंश का मूल स्थान बताइए

2. हर्षनाथ अभिलेख से किस वंश की जानकारी मिलती है ?

3. पृथ्वीराज चौहान ने किस चंदेल शासक को पराजित किया था ?

4. चन्दरबरदाई की रचना का उल्लेख कीजिए ।

5. मौर्यवंशी शासक ने कौन से दुर्ग का निर्माण करवाया था ?

6.  रतनसिंह किस राजवंश से सम्बन्धित थे ?

7. रणथम्भौर कहाँ स्थित है ?

8. रणथम्भौर का प्रवेश द्वार किस स्थान को कहा गया है ?

9. राव हम्मीर किस राजवंश से सम्बन्धित थे ?

10. चित्तौड़ पर खलजी के आक्रमण की तिथि लिखिए।

11. चित्तौड़ में जौहर का नेतृत्व किसने किया था ?

12. जालौर को प्राचीन काल में किस नाम से पुकारा जाता था ?

13. “हम्मीर हठ’ के रचियता का नाम लिखिए।

14. जालौर के राजकुमार से विवाह करने को कौन आतुर थी ?

15. गुलविहिस्त कौन थी ?

16. सिवाणा किले के किलेदार का नाम लिखिए ।

17. ‘कान्हड़दे प्रबन्ध के रचियता कौन थे ?

लघुत्तरात्मक प्रश्न (आठ पंक्तियों में उत्तर दीजिए)

  1. प्रमुख राजपूत राजवंशों का नामोल्लेख कीजिए।
  2. चौहान राजवंश की स्थापना किसके द्वारा एवं किस क्षेत्र में हुई ?
  3. पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य की सीमा का निर्धारण कीजिए।
  4. पृथ्वीराज चौहान के इतिहास के स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  5. पृथ्वीराज चौहान एवं जयचन्द्र गहड़वाल के मध्य वैमनस्यता के कारणों का उल्लेख
  6. पृथ्वीराज चौहान द्वारा तुर्कों के विरूद्ध की गई प्रमुख भूलों का उल्लेख कीजिए।
  7. रणथम्भौर की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति का उल्लेख करते हुए उसके सामरिक महत्व रेखांकित कीजिए।
  8. रणथम्भौर के हम्मीर द्वारा मुस्लिम विद्रोहियों को क्यों शरण दी गई ?
  9. खिलजी से जा मिलने वाले रणधम्मौर के विद्रोहियों का नामोल्लेख कीजिए।
  10. चित्तौड़ के दुर्ग का सामरिक महत्व लिखिए।
  11. पृथ्वीराज चौहान के दरबार में आश्रय प्राप्त विद्वानों का नाम लिखिए।
  12. चित्तौड़ के युद्ध में रतनसिंह के साथ सीसोद के सरदार द्वारा दिये गये बलिदान का कीजिए।
  13. चित्तौड़ दुर्ग में किये गये जौहर का उल्लेख कीजिए।
  14. जालौर पर खिलजी के आक्रमण से प्रमुख कारण लिखिए।
  15. वीरमदेव से विवाह करने हेतु कुमारी फिरोजा ने अंततः क्या किया ?
  16. 16. सिवाणा के घेरे का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।

निबंधात्मक प्रश्न (पांच पृष्ठों में उत्तर दीजिए)

  1. बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत पर तुर्की के आक्रमण करने के कारणों का सविस्तार कीजिए।
  2. पृथ्वीराज तृतीय द्वारा की गई विजयों का उल्लेख करते हुए उसके साम्राज्य की सीमा उल्लेख कीजिए। उसकी विजयों का रया प्रभाव हुआ ?
  3. तराइन के द्वितीय युद्ध की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख करते हुए उसके परिणामों कीजिए।
  4. राव हम्मीरदेव द्वारा खिलजी आक्रमण के प्रतिरोध का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  5. चित्तौड़ पर खिलजी द्वारा किये गये आक्रमण के क्या कारण थे ? राजपूत सरदारों द्वारा संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  6. जालीर पर तुर्क आक्रमण के कारण लिखिए। युद्ध का विस्तृत वर्णन करते हुए जानकारी दीजिए।

उत्तरमाला (बहुचयनात्मक प्रश्न )

1. (क)

2. (ग)

3. (घ)

4. (क)

5. (ग)

6. (क)

7. (ख)

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