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पुरूष जनन तंत्र , मानव जनन की घटनाएं , male reproduction system in hindi
male reproduction system in hindi मानव जनन की घटनाएं पुरूष जनन तंत्र , मुख्य नर जनन अंग , जननेन्द्रिय , ग्रन्थियाँ ,
मनुष्य एकलिंगी लैगिक प्रजनन करने वाला एवं सजीव प्रजक प्राणी है इसमें लैगिक द्विरूप्ता पाई जाती है। मानव में यौवनारंभ पर होने वाली मुख्य घटनाएं निम्न है:-
1 युग्मक जनन
2 वीर्यसेचन
3 निषेचन
4 युग्मनज का बनना व विकास
5 कोरकपुटी का बनना
6 अन्तरोपण
7 गर्भविधि
8 प्रसव
पुरूष जनन तंत्र (male reproduction system)
1 मुख्य नर जनन अंग :-
मनुष्य (पुरूष) में मख्य जनन अंग के रूप में एक जोडी वृषण पाये जाते है जो 2-3 सेमी चैडे एवं 4-5 सेमी लम्बे होते है। वृषणों पर एक ढीला आवरण पाया जाता है जिसे वृषण कोण;ज्मेजमे ैंब कहते है।
वृषण उदर गुहा के बाहर दोनो टाँगों के मध्य वृषण कोश में स्थित होते है। क्योकि इनका तापमान उदरगुहा की तुलनाम में 2-2.50 degree सेंटीग्रेट से कम होता है जो कि शुक्राणुओ के निर्माण के लिए उपयुक्त होता है।
2 पुरूष सहायक लिंग नलिकाऐं:-
मानव में नर में निम्न सहायक जन नलिकायें पायी जाती है।
- वृषण जालिका (rete testis)
- शुक्रवाहिकायें (vasa efferentia) वृषण के अन्दर
- अधिचृषण (एपिडिमिस )(epididymis) वृषण के लगभग
6 मीटर लम्बी अत्यधिक कुण्डलित।
- शुक्रवाहक (vas deferens)
- रूखलनीय वाहिनी (ejaculatory ducts)
- जनन मूत्र नलिका (Genital urinary canal)
3 बाह्रा जननेन्द्रिय:-
नर में ब्राहा जननेन्द्रिय के रूप में एक लम्बी बेलनाकार पेशिय रचना पाई जाती है जिसे शिशन च्मदपे कहते है। इसका अग्र सिर फुला हुआ होता है। च्मदपे जिसे शिशनमुण्ड ळसंेे चमदपे कहते है। इसके अग्र सिरे पर त्वचा का ढिला आवरण होता है जिसे शिशन घर कहते है इसके नीचे जनन मूत्र छिद्र पाया जाता है।
सामान्य अवस्था में शिशन शिथिल होता तथा मूत्र त्याग का कार्य करता है लैगिक उत्तेजना के समय यह पेशियों के कारण लम्बा एवं कठोर हो जाता है जिससे वीर्यसेचन की क्रिया सुगमतापूर्वक होती है।
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4 नर सहायक जनन ग्रन्थियाँ-
चित्र.
मनुष्य में तीन सहायक जनन ग्रन्थियाँ पाई जाती है।
1- शुक्राशय सेमीनल वेसिकल:- एक जोडी
2- प्रोस्टेट ग्रन्थि जो पुरस्थ ग्रन्थि:- एक होती है।
3- कंद-मूत्र पथ ग्रन्थियाँ (बल्बोयूरिथल ग्लेण्ड) (क्राउपर ग्रन्थि) त्र एक जोडी
कार्य:-
नर सहायक जनन ग्रन्थियों से उत्पन्न स्त्राव को शुक्रीय द्रव ैमउदंस चसंेउं कहते है। इससे ब्ं फेक्टोजैमउपदंस च्संेउं कुछ एन्जाइम पाई पाये जाते है।
कंद:-
मूत्रपथ ग्रन्थि का स्त्राव शीशन को स्नेठन (चिकनाई) प्रदान करता है ताकि मैथून क्रिया के दौरान वीये सेचन की क्रिया सुगमता से हो सके।
वृषण की आन्तरिक संरचना:-
प्रत्येक वृषण पर उपत्वचा का एक मोटा कठोर आवरण होता है जिसे श्वेत कुचुक कहते है प्रत्येक वृषण में लगीाग 250 कक्षक पाणि पाई जाती है। जिनके वृषणपातिका कहते है।
प्रत्येक वृषण पालिका में एक से तीन 1-3 नलिका पाई जाती है जिनहें शुक्रजनन नलिका (seminiferous tubules)कहते है। इनसे निकली सूक्ष्म नलिकाएं वृषण नलिकाएं बनाती है।जो शुक्रवाहिका में खुलती है तथा शुक्रवाहिकायें वृषण से बाहर निकलकर अधिवृषण में खुलती है।
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शुक्रजनक कोशिका में दो प्रकार की कोशिका पाई जाती है।
1 नर जर्म कोशिका शुक्रजन कोशिका स्परमेटोगोनिय:-
यह शुक्राणुओं का निर्माण करती है।
2 सरटोली कोशिका:-
ये पिरमिड के आकार की बडी कोशिका होती है ये शुक्राणुओं को पोषण देती है।
शुक्रजनक केतिका मध्य अवकाश को अन्तराली अवकाश कहते है। इसमें मुख्य रूप से अन्तराली कोशिका लेडिग कोशिका पाई जाती है इनके द्वारा एण्ड्रोजन पुंजन हार्मोन का स्त्रवण होता है जो नर के गौणसेगिन लक्षणों का नियंत्रण करता है इसके अतिरिक्त अंतरीाली अवकाश में तंत्रिका कोशिका, रूधीर कोशिका एवं कुछ प्रतिरक्षी कोशिका पाई जाती है।
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