JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: sociology

धर्मनिरपेक्षता पर गांधी जी के विचार क्या है धर्मनिरपेक्षवादी किसे कहते है mahatma gandhi views on secularism in hindi

mahatma gandhi views on secularism in hindi धर्मनिरपेक्षता पर गांधी जी के विचार क्या है धर्मनिरपेक्षवादी किसे कहते है ?

धर्मनिरपेक्षता (Secularism)
भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को रूढ़िवाद और सांप्रदायिकता द्वारा उत्पन्न समस्याओं का हल करने के लिए अपनाया गया है। यह राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्थाओं जैसे जीवन के क्षेत्रों से धर्म का स्पष्ट अंतर दर्शाता है। प्रत्येक धर्म का आदर होना चाहिए और निजी तौर पर प्रचार होना चाहिए। वैचारिक शब्दों में यह विश्वासों और प्रचलनों की वह व्यवस्था नहीं है जो राजनीतिक विचारधारा के साथ मिलती है। कुल मिलाकर धर्मनिरपेक्षता धर्म को राज्यतंत्र से अलग करती है। यह इस दृष्टिकोण का भी समर्थन करती है कि सभी समुदायों को राज्य द्वारा समान अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त धर्मनिरपेक्षवादियों को सभी धार्मिक विश्वासों के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से तालमेल रखना चाहिए और सामाजिक जीवन को समतावादी तरीके से समझना चाहिए।

धर्मनिरपेक्षता का अभिप्राय उन विचारों से हैं जो धार्मिक शिक्षा के विपरीत हैं। इसे धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया से जोड़ा गया हैं। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज के विभिन्न वर्ग धार्मिक प्रतीकों और धार्मिक संस्थाओं से मुक्त होते हैं। धर्मनिरपेक्षता का विचार पश्चिम में आधुनिक विज्ञान और प्रोटेस्टैंट धर्म की बोली से दक्षिण एशियाई समाजों में आया है। यह परिवर्तन समस्याओं से भरा है और इसे सही प्रक्रिया के संदर्भ में नही समझा जा सकता।

बॉक्स 32.01
भारत किसी एक समुदाय विशेष का देश नहीं है क्योंकि इसमें विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं…..यदि हिंदुओं का यह मानना है कि भारत केवल हिन्दुओं का है तो वे स्वप्नलोक में रह रहे हैं। हिंदु, मुसलमान, पारसी और ईसाई जिन्होंने भारत को अपना देश बनाया है वे सभी इसके निवासी हैं और उन्हें इसमें अपने हितों के लिए रहना होगा। विश्व के किसी. भाग में एक राष्ट्रीयता नहीं है और समान धर्म नहीं है और न ही भारत में भी ऐसा रहा है।
मोहन दास करमचंद गांधी, हिंद स्वराज, (1908)

धर्मनिरपेक्षता के पहलू (Aspects of Secularism)
यद्यपि रूढ़िवाद और साम्प्रदायिकता आज विश्व में व्यापक रूप से जटिल और विद्यटनकारी समस्या बनी हुई हैं। लेकिन इस सबका समाधान है धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत । हालांकि धर्मनिरपेक्षता की कोई ऐसी परिभाषा नहीं है जिसे पूरा विश्व मानता हो। धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत सबसे पहले राजा से चर्च को अलग करने के लिए प्रयोग किया गया था। यह एक राजनीतिक आयाम था। सामाजिक क्षेत्र में धर्मनिपेक्षता का अर्थ व्यक्तिगत अथवा व्यक्ति के जीवन की धर्म की गला घोंटू व्यवस्था को ढीला करना है। भारतीय संदर्भ में धार्मिक मूल्यों की उपस्थिति को उद्घोषित किया गया है जिसमें विविध मार्गों पर बल दिया जा सकता है। इस संबंध में और अधिक जानकारी के लिए ई एस ओ-15 के खंड की इकाई 16 में धर्मनिरपेक्षता और धर्मनिरपेक्षीकरण को भी देखें जिसमें इस कार्यक्रम का वर्णन किया गया है। इस तरह से भारत में धर्मनिरपेक्षता शब्द का विभिन्न अर्थों में प्रयोग किया गया है। मदन (सं. 1991ः 394-412) के अनुसार निम्नलिखित आयामों को शामिल किया गया हैः

प) धर्म से राज्य को अलग रखना।
पप) राज्य के द्वारा सभी समुदायों के साथ समान और निष्पक्ष व्यवहार करना ।
पप) तर्कपूर्ण उद्देश्य की भावना सहित धार्मिक विश्वासों का दृष्टिकोण रखना।
पअ) बिना किसी विशेष समुदाय का ध्यान रखे, बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने का विश्वास दिलाना।

 धर्मनिरपेक्षवादी विचार (Secular Views)
धर्मनिपेक्षता के दर्शन के तर्कपूर्ण प्रयोग को ध्यान में रखकर देखा जाए तो रूढ़िवादिता और साम्प्रदायिकता पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। धर्मनिरपेक्षता के माध्यम से रूढ़िवादिता और साम्प्रदायिकता का मुकाबला करने के लिए तीन तरह के विचार प्रस्तुत किए जा सकते हैं। ये हैंः

प) साम्प्रदायिकता के विरुद्ध सैद्धांतिक अभियान चला कर सभी स्तर के निरू साम्प्रदायिक लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण का सबसे बड़ा तर्क यह है कि यदि लोगों के दिमाग से साम्प्रदायिक सिद्धांत को ही समाप्त कर दिया जाए तो साम्प्रदायिकता स्वयं ही समाप्त हो जाएगी।
पप) लोकतंत्र अधिकारों के दृष्टिकोण के साथ-साथ साम्प्रदायिकता उन्मूलन के लिए नीचे बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि निचले स्तर पर लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा की जाए। इसके अतिरिक्त आज एक नए तरीके की गतिशीलता की अत्यंत आवश्यकता है जो राजनीति से जुड़ी हो किंतु नीचे के स्तर के दृष्टिकोण से भिन्न हो। यद्यपि इस दृष्टिकोण को लागू करने में कठिनाई यह है कि जब तक यह अभियान नीचे के स्तर पर पूरे भारत में नहीं चलाया जाता और इसके अंदर एकरूपता और संगठन शामिल नहीं होता है तब तक हम देखते हैं कि इस तरह से इस दृष्टिकोण का कोई लाभ नहीं होने वाला है।

पप) धर्म रूढ़िवाद, सम्प्रदायवाद और धर्मनिरपेक्षता से संबंधित एक प्रमुख मुद्दा है। हम किस प्रकार से धर्मनिपेक्षता का दृष्टिकोण रखते हुए धर्म की बात कर सकते हैं। प्रथमतः हमें किसी भी धर्म को नकारना नहीं चाहिए और न ही उन्हें गलत घोषित करना चाहिए। दूसरे हमें सामाजिक आधार वाले धर्मों में लोकतांत्रिकता और धर्मनिरपेक्षतावादी धर्मों में निहित असंगत बातों को उजागर करना चाहिए और तर्कसंगत दृष्टिकोण को अपनाना जाना चाहिए। मदन (1983) ने स्पष्ट किया है कि भारत ने अपने संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता को गणतंत्र के रूप में परिभाषित किया है । भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह नहीं है कि उसने धर्म का उन्मूलन कर दिया है। बल्कि धर्म से राज्य को अलग रखा गया है। परंतु धर्म से राजनीति को अलग रखने के लिए विचार नहीं किया गया। यहाँ लोग धर्म पर आधारित राजनीतिक पार्टियां बनाने के लिए स्वतंत्र हैं। इसलिए बहुधार्मिक समाज में यदि धर्मनिपेक्षता की स्थिति को देखना हो तो वह भारत में देखी जा सकती है।

कार्यकलाप 2
क्या आप समझते है कि धर्मनिरपेक्षता एक सिद्धांत मात्र है अथवा ऐसा हो सकता है कि भारत में प्रतिदिन यह वास्तविकता देखी जा सकती है? आप विभिन्न समुदायों के लोगों से व्यक्तिगत सम्पर्क करें और उनसे यह प्रश्न पूछे । उनके उत्तरों को अपनी नोटबुक में लिखे। यदि संभव हो सके तो उन लोगों से प्राप्त उत्तरों के बारे में अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों से विचार-विमर्श करें।

हम पहले ही बता चुके हैं कि धर्मनिरपेक्षता को विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया जा सकता हैं। फिर भी हम कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता लाग करने का अर्थ है राज्य से धर्म को अलग रखना और इसे व्यक्तिगत विश्वास तथा नीति/प्रतिबद्धता के घेरे से अलग रखना। इसलिए इस स्थिति में यह बताना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि किसी भी समाज में उपर्युक्त विवरण सही नहीं उतरता है। अलग रखने की घटना या विचार वास्तविकता के स्थान पर विश्लेषणात्मक अधिक हैं । इन सब बातों से लगता है कि कुछ राजनीतिक लोग धर्म के विरुद्ध खड़े दिखाई देते हैं। अन्य लोग या कुछ दूसरे लोग धर्म के मामले में तटस्थ रहते हैं। अंततः हम कह सकते हैं कि जो लोग धर्मनिपेक्षता में विश्वास करते हैं वे लोग इन दोनों सीमाओं के बीच में आते हैं।

भारत में स्वतंत्रता से पूर्व और उसके बाद की राजनीति में भारत की धर्मनिरपेक्ष नीति किस प्रकार से प्रतिबिम्बित हुई है? उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में मध्यम मार्गी राष्ट्रवादियों ने ‘‘उदार-बहुल‘‘ सिद्धांत हमारे सामने प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत में विश्वास प्रकट किया गया है कि धर्म को राजनीति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इसको निजी विश्वास तक सीमित रखना चाहिए । यही इसका उचित स्थान है। इस विचार से धार्मिक भावनाएँ तथा वो जो राष्ट्र को एक सूत्र में देखना चाहते हैं दोनों का संरक्षण रह सकेगा। इस सिद्धांत में विश्वास रखने के लिए अत्यंत आधुनिक सोच-समझ की आवश्यकता होती है किंतु समाज का एक बड़ा हिस्सा इस सिद्धांत को पचा नहीं सका। धर्मनिरपेक्षता राष्ट्रवाद के सिद्धांत को ‘‘रूढ़िवाद बहल‘‘ लोगों ने स्पष्ट रूप से हानि पहुँचाई है और इसे बदला गया है। इसे गांधी जी ने प्रोत्साहित किया था। उन्होंने धर्म को राजनीतिक कार्यों और राष्ट्र की एकता के लिए मूल आधार माना था।

गांधी जी के विचार (Gandhiji’s Views)
गांधी जी का तर्क था कि भावी राष्ट्र को हिंदू, मुस्लिम और सभी अन्य समुदायों से बहुत कुछ प्राप्त करना चाहिए। इस विचार ने राष्ट्रीय एकता में सहयोग प्रदान किया और राजनीति की मुख्य धारा में यह एक प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह सिद्धांत राजनीतिक गतिशीलता प्रदान करने के लिए तो पूर्ण रूप से सफल रहा था किंतु इसने सन 1947 की स्वतंत्रता के बाद समस्याएँ हमारे सामने खड़ी कर दी जो हमसे छुपी हुई नहीं हैं।

प) गांधी जी के इस विचार ने धार्मिकता को बढ़ावा दिया कि धार्मिक निष्ठा के प्रयोग से संचालन किया गया था जिसके कारण राष्ट्रीयता की भावना गलत सिद्ध हुई। इस तरह से रूढ़िवाद बहुल के सिद्धांत में जहाँ कमी आनी चाहिए थी उसके स्थान पर उसमें वृद्धि हुई और धार्मिक समुदायों के बीच अलगाव की दरार और गहरी हो गई।

पप) यह विचारधारा राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान और अधिक समृद्ध एवं शक्तिशाली बनी तथा इस विचारधारा वाले लोगों को विश्वास दिलाया गया कि स्वतंत्रता के बाद वे ही भारत के शासक बनेंगे।
पपप) एक और मूल समाजवादी सिद्धांत है। इस सिद्धांत ने धर्मनिरपेक्ष राज्य की कल्पना के आधार पर एक विशेष स्थान प्राप्त किया है। इसने ग्रामीण और शहरी दोनों के गरीब जन समूह की आकांक्षाओं को प्रभावित किया है। इस सिद्धांत में धार्मिक निष्ठा को राष्ट्रीय पहचान से अलग कर दिया गया था। राष्ट्रीय पहचान को केवल राजनीतिक आधार तक सीमित रखा गया जिसमें राष्ट्रीय तत्व को साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक तथ्यों से जोड़ा गया। धर्म को निजी मामला माना गया तथा धर्म का राजनीति क्षेत्र में व्यापार करना सिद्धांत के विरुद्ध माना गया है। यह स्थिति धर्म की उदार-बहुल सिद्धांत के समान है। यद्यपि मूल समाजवादी अपने आपको गरीब ही मानते हैं तथा उनका उद्देश्य है कि सम्पत्ति का समाज में पुनः वितरण करने के लिए वे अपने प्रयत्न जारी रखेंगे।

मूल समाजवादी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी का यह सिद्धांत 20वीं सदी के उत्तरार्ध में स्थापित हुआ था किंतु यह सिद्धांत अधिक दिनों तक नहीं चल पाया। इसके अतिरिक्त सम्पत्ति का . समान पुनः वितरण जो इसी गरीबी और अभिविन्यास करने की दिशा में था वह सिद्धांत गांधी जी के विचारों के प्रभाव से असफल हो गया।

गांधी जी का धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद का रूढ़िवाद बहुल सिद्धांत अनेक कारणों से प्रसिद्ध रहा थाः
प) विभिन्न वर्गों और समुदायों में गहरी धार्मिक भावनाएँ मौजूद थीं। इसलिए गांधी जी ने राष्ट्रवाद के उपयोग के लिए इसी मुख्य आधार पर लोगों में गतिशीलता पैदा की और उन्हें संगठित किया।
पप) इसके अतिरिक्त जब पिछड़े हुए लोगों के उद्धार के लिए कदम उठाए गए तो गांधी जी ने धनी, औद्योगिक, वाणिज्य से जुड़े लोगों को बिना हानि पहुँचाए उनका समाज और आर्थिक शक्ति पर नियंत्रण बरकरार रखा।

बॉक्स 32.03
1961 में नेहरू जी ने लिखा था कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह नहीं है कि वह धर्म विरोधी है। उनका यह वक्तव्य ठीक नहीं था। क्या सत्य था, वह यह कि मौजूदा राज्य सब लोगों में समान रूप में सम्मान और विश्वास जमाए तथा सबको समान अवसर उपलब्ध कराए। उन्होंने यह भी कहा कि इससे जनजीवन या विचारधारा पूरी तरह से प्रभावित नहीं होते। (गोपाल, 1980 पृष्ठ 330)।

इस विचारधारा ने एक ही तीर से दो शिकार किएः इसने राष्ट्रवाद के समर्थन के लिए लोगों को संगठित किया लेकिन पूंजी और सम्पति से संबंधित सभी विवादों पर चुप्पी भी साधी रखी। धनी वर्ग को इस सिद्धांत से कोई भय नहीं रहा। इसी तरह से गांधी जी ने कभी नहीं कहा कि गरीबों के हितों को अमीरों की धन लालसा पर बलिदान कर दिया जाए। इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत में एक ओर धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद का रूढ़िवाद बहुल सिद्धांत और दूसरी ओर साम्प्रदायिक तनाव दोनों राष्ट्रीय एकता में साथ-साथ पनपे हैं। इससे हमें राष्ट्रीय एकता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। अतः धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद जो धर्म अथवा समुदाय पर आधारित हैं, राजनीति के लिए लाभदायक नहीं हो सकते हैं। लेकिन जो धर्मनिरपेक्षवाद के सिद्धांत धर्म और राजनीति में अंतर को दर्शाते हैं वे राजनीति के क्षेत्र के लिए अति उत्तम हैं। इस प्रकार की धर्मनिरपेक्ष राजनीति उनकी गतिशीलता के आधार पर अमीरों अथवा गरीबों को आसानी से संगठित कर सकती है।

अतः हम कह सकते हैं कि जब तक जन समुदाय को शिक्षित नहीं किया जाता तब तक धर्मनिपेक्षवाद का पनपना कठिन है। लोगों के शिक्षित होने पर वे लोग साम्प्रदायिक रास्तों पर चलना बंद कर देंगे और वे सच्चे.लोकतांत्रिक गणराज्य के स्वपन को पूरा कर सकेंगे।

बोध प्रश्न 2
1) भारत के संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता शब्द की दो स्थितियों का उल्लेख करें।
क) ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
ख) ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
2) धर्मनिरपेक्षता पर गांधी जी के क्या विचार थे? अपना उत्तर 7-10 पंक्तियों में दीजिए।

सारांश
इस इकाई के आरंभ में हमने रूढ़िवाद, सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षवाद की अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से बताया है। इसके बाद हमने साम्प्रदायिकता का विश्लेषण किया है। हमने साम्प्रदायिक दंगों के कारणों की व्याख्या की है और अंतर-समुदाय गतिशीलता को स्पष्ट किया है। इसके बाद हमने धर्मनिरपेक्षता और उसके अनेक मतों की परीक्षा की तथा गांधी जी के धर्मनिरपेक्षवाद पर आधारित विचारों को भी प्रस्तुत किया। अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सही मायने में धर्मनिपेक्षवाद ही एक ऐसा मार्ग है जो साम्प्रदायिकता और साम्प्रदायिक प्रवृत्तियों का कड़ा प्रतिरोध कर सकता है।

शब्दावली
सांप्रदायिकता (ब्वउउनदंसपेउ) ः यह वह स्थिति है जब धर्म और धार्मिक समुदाय एक-दूसरे को वैमनस्य और शत्रुता की दृष्टि से देखते हैं। वे प्रायरू सांप्रदायिक दंगों के रूप में खुला संघर्ष करते हैं।
रूढ़िवाद (थ्नदकंउमदजंसपेउ) ः यह शब्द विश्वास और सिद्धांत के मामलों में धर्मग्रंथ की विश्वसनीयता पर बल देता है। कुछ समूह लड़ाई की मुद्रा में इसका सहारा लेते हैं और उन सिद्धांतों पर आधारित क्षेत्र की प्रभुसत्ता का दावा करते हैं।
धर्मनिपेक्षता (ैमबनसंतपेउ) ः यह वह सिद्धांत है जिसमें विश्वास किया जाता है कि सभी धार्मिक विश्वासों को आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक आदि अन्य क्षेत्रों से अलग किया जाए। ऐसा करने से यह आशा हो जाती है कि इससे सौहार्दपूर्ण और एकीकृत राष्ट्र राज्य बनेगा।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
इंजीनियर, ए.ए. (संपा.), 1984, “कम्यूनल रायट्स इन पोस्ट इंडिपेंडेंट इंडिया‘‘, संगम, हैदराबाद
विदनो, आर 1991, ‘‘अंडरस्टेंडिंग रिलिजन एंड पोलिटिक्स‘‘ डिडालस वाल्यूम 120 आफ दि प्रोसीडिंग्म आफ दि अमेरिकन एकेडेमी आफ आर्ट्स एंड साइंस, कैम्ब्रिज, एम.ए., यू, एस ए.
बासिलॉव वी.एन. एवं दुबे एस.सी. (संपा.) 1983, “सेक्यूलेराइजेशन इन मल्टी रिलिजस सोसाइटीज, इंडो-सोवियत प्रस्पेक्टिवस‘‘ भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, दिल्ली

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 2
1) क) धर्म से राज्य को अलग करना
ख) राज्य द्वारा सभी समुदायों के साथ समान और निष्पक्ष व्यवहार करना
2) गांधी जी का विचार था कि भावी राष्ट्र को सभी समुदायों से प्रेरणा लेनी चाहिए न कि केवल हिंदुओं और मुस्लिमों से ही। उनका विचार था कि राजनीति की मुख्य धारा में धार्मिक चिह्नों का प्रयोग होना चाहिए। लेकिन स्वतन्त्र भारत में यह विचारधारा बिल्कुल असफल रही तथा समुदायों के बीच और अधिक भेदभाव पैदा हुए। यह भी सच है कि धनवान और शक्तिशाली लोगों ने राष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया और यही लोग स्वतंत्रता के पश्चात भारत के सत्तावादी बन बैठे।

संदर्भ ग्रंथ सूची
पटेल बाबूभाई, जे, 1990 ‘‘द रिसेंट इश्यूज ऑफ काम्यूनल टेंशनस् – ए रैमिडियल थिकिंग‘‘ इन कुमार, रविन्द्र (संपा) 1990 प्राब्लम ऑफ कम्यूनिलिजम इन इंडिया, मित्तलः दिल्ली।
भारती अगेहनंदा, 1963, पिलिग्रिमेज इन द इंडियन ट्रैडिशन, हिस्ट्री ऑफ रिलिजनस् 3 (सं. 1) 135-167।
भट्ट जी.एस., 1961, ट्रेंड्स एंड मेशयर्स ऑफ स्टेटस मोबिलिटी अमंग द चमारस ऑफ देहरादून। दि इंस्टर्न एंथ्रोपोलिजिस्ट ग्प्ट(3)ः लखनऊ ईएफसीएस ।
चोपड़ा, वी.डी, मिश्रा, आर.के. हिंस, एन, 1984, अंगनी ऑफ पंजाब, पैट्रिऑट पब्लिशर्सः नई दिल्ली, पृ. 133-160।
कोपेट, डी. (संपा.) 1992, अंडरस्टैंडिंग रिचुअलस्, रूटलेजः लंदन एंड न्यूयार्क ।
दुर्खाइम, ई. 1915, दि एलिमेंट्री फार्मस ऑफ द रिलिजस् लाइफ, (ट्रांस, जे. एस. स्वेन) दि फ्री प्रेस: ग्लेनको।
अैक, डायना, एल, 1981, इंडियास् तीर्थ ‘‘क्रासिंग‘‘ इन सेकरेड ज्योग्राफी, हिस्ट्री ऑफ रिलिजयस्, मई 1981, 20.4 पृ. 323-344 ।
फु, स्टीफन, 1988, दि कोरकू ऑफ द विंध्या हिलस् । इंटर-इंडिया पब्लिकेशनस्ः नई दिल्ली।
गियर्टस क्लिफोर्ड (संपा), 1963, ओल्ड सोसाइटिज, एंड न्यू स्टेटस, दि क्वैस्ट फॉर माड्रेनेटी इन एशिया एंड अफ्रीका, अमेरिद पब्लिकेशिंग क. प्रा. लि.रू नई दिल्ली।
——–, 1963, दि इंटैगरेटिव रिवोल्यूशन प्रिमोरडिअल सैंटीमेंटस् एंड सिविल पोलिटिक्स इन टी न्यू स्टेटस, पृ. 105-157।
घोष, एस. के., 1981, वायलेंस इन द स्ट्रीटस: आर्डर एंड लिबर्टी इन इंडियन सोसायटी। लाइट एंड लाइफ पब्लिशर्सः नई दिल्ली, पृ. 67-128 ।
ग्लकमेन, एम, 1963, रिचुअल ऑफ रिबेलियन इन साउथ-ईस्ट अफ्रीका । इन आर्डर एंड रिबेलियन इन ट्राइबल अफ्रीका, लंदनः कोहेन एंड वेस्ट, पृ. 110-37।
गोपाल, एस. (संपा.) 1980, जवाहरलाल नेहरू: जैन अँथोलोजि, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेसः दिल्ली।
जॉनसन, हैरी एम, 1968, सोशालोजी-ए सिस्टेमैटिक इंट्रोडक्शन, रूटलेज किगन एंड पॉलः लंदन (अध्याय 15 और 17)।
कार्व, आई. 1982, ऑन द रोड – ए महाराष्ट्रीयन पिलग्रिमेज इन जर्नल ऑफ ऐशियन स्टडीज, 22ः13-29।
कपूर, त्रिभुवन, 1988, रिलिजन एंड रिचुअल इन रूरल इंडियाः ए केस स्टडी इन कुमाऊ, अभिनव पब्लिकेशनस्ः नई दिल्ली।
कपूर, एच., 1947, जैन अफ्रीका औरीस्टोक्रेसी। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेसः आक्सफोड।
मदन, टी.एन., 1983, ‘‘दि हिस्टोरिक्ल सिगनिफिकेंस ऑफ सेक्युलिरिजम इन इंडिया‘‘ इन डयूब एस. सी., एंड बासीलोव वी एन, 1983, सेक्युलराइजेशन इन मल्टीरिलिजयस सोसाइटीजः इंडो सोवियत परस्पैक्टिव आई सी एस एस आररू दिल्ली, पृ. 11-20।
मैकोलिफ, 1909, दि सिक्ख रिलिजन, आक्सफोर्ड।
मदन, टी.एन. 1987, नॉन रिननसिएशन थीमस् एंड इंटरप्रैटेशनस् ऑफ इंडियन कल्चर, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेसः दिल्ली।
——-, 1991, ‘‘इंट्रोडक्शन‘‘ टू मदन टी. एन. (संपा.) 1991, रिलिजन इन इंडिया, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेसः दिल्ली।
——-, 1991, ‘सेक्युलिरिजम इन इटस् प्लेस पृ. 394-412 इन रिलिजन इन इंडिया (संपा) मदन, टी.एन. 1991, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस: नई दिल्ली।
——-, 1993 ‘‘रिलिजस फंडामैंटलिजम‘‘ दि हिंदू, 29 नवम्बर, 93।
मूर, एस. जे. एंड फ्रेडरिक, वी, 1964, क्रिशिचयनस् इन इंडिया, पब्लिकेशनस् डिवीजनः दिल्ली।
मार्जलिन, फ्रेडरिक औपफेल, 1985, वाइवस् ऑफ द गॉड किंगः दि रिचुअलस् ऑफ द देवदासिस ऑफ पुरी, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेसः दिल्ली।
माथुर, के.एस. 1961, मिनिंग ऑफ हिंदूइज्म ए माल्वा विलेज। इन जर्नल ऑफ सोशल रिसर्च। प्ट/1-2, सी एस सी आर ।
ओडि, थॉमस, एफ, 1966, दि सोशलजी ऑफ रिलिजन। पेंटिस हालः नई दिल्ली।
पांडे, राज बाली, 1976, हिंदू संस्कार सोशल रिलिजयस् स्टडी ऑफ दि हिंदू सेकरामेंटस, मोतीलाल बनारसीदासः दिल्ली।
पटेल, बी.जे. 1999, दि रिसेंट इशयूज ऑफ काम्यूनल टेंशनसः ए रैमिडियल थिंकिंग इन रविन्द्र कुमार (संपा.) 1990 1 प्राब्लम ऑफ कम्युनिलिजम इन इंडिया। मित्तल पब्लिकेशनस्, दिल्ली।
पब्लिकेशनस् डिवीजन, 1966, मुस्लिम इन इंडिया। दिल्ली।
रेडक्लिफ-ब्राऊन, ए. आर. 1966 (1922), दि अंदमान आइलैंडर्स। दि फ्री प्रेसः न्यूयार्क।
संगवे, वी.ए. 1980, जैन कम्यूनिटी। पापुलर प्रकाशन: बाम्बे ।
सरस्वती, बैद्यनाथ, 1978, “सेकरेड काम्प्लैक्सिस इन इंडियन कल्चरल ट्रैडिशनस्’’। इन दि इस्टर्न अँथ्रोपौलाजिस्ट, 31(1)ः81-91।
——-,1985, काशी पिलग्रिमेज, दि एंड ऑफ एन एंडलैस जर्नी। इन झा माखन संपा) डाइमैंशनस ऑफ पिलग्रिमेज। इंटर इंडिया पब्लिकेशनस्: नई दिल्ली।
सिंह, डा. गोपाल, 1970, द सिक्खस्, एम. सेशचलम एंड क. मद्रास ।
सिंघी, एन.के., 1991, ए स्टडी ऑफ जैनस् इन राजस्थान टाउन इन कैरिथरस, एम., एंड कैरोलाइन हम्फ्री (संपा) दि असैम्बली ऑफ लिसनर्स जैनस इन सोसाइटी, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेसः कैम्ब्रिज ।
श्रीनिवास, एम.एन., 1970, (1962), कास्ट इन माड्रन इंडिया एंड अदर जैसेस। एशिया पब्लिशिंग हाउसः बाम्बे।
ट्रने वी एंड ई. ट्रर्नर, 1978, इमेज एंड पिलग्रिमेज इन क्रिश्चियन कल्चर, कोल्मबिया प्रेस: न्यूयार्क।
ट्रर्नर, विक्टर डब्ल्यू, 1979, प्रोसेस, परफारमेंस एंड पिलग्रिमेज । कान्सेप्ट पब्लिशिंग कंपनीः नई दिल्ली।
कार्नेल यूनिवर्सिटी प्रेसः इथाका एंड लंदन।
——,1974 ख (1969), दि रिचुअल प्रोसेसः स्ट्रक्चर एंड एंटी स्ट्रक्चर । पैंगुइन बुक्सः हामॅडवर्थ।
टर्नर वी एंड ई, टर्नर, 1978, इमेज एंड पिलग्रिमेज इन क्रिश्चियन कल्चर / कोल्मबिया प्रेसः न्यूयार्क।
टर्नर, विक्टर, डब्ल्यू, 197, प्रोसेस, परफार्मेंस एंड पिलग्रिमेज । कन्सेप्ट पब्लिशिंग कंपनीः नई दिल्ली।
वेन गेनेप, ए., 1966, दि राइटस् ऑफ पैसेज (अनु.एम.बी. वाइजडम एंड जी.एल. केफे) यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेसः शिकागो।
वर्मा, वीरेंद्र, 1990, कम्यूनिलिजमः रैमिडियल सजैशनस् इन कुमार (संपा) रविन्द्रा 1990, प्राब्लम ऑफ कम्यूनिलिजम इन इंडिया, मित्तल पब्लिकेशनस्ः दिल्ली।

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद, आपः
ऽ सोदाहरण रूढ़िवाद का वर्णन कर सकेंगे,
ऽ साम्प्रदायिकता का भी सोदाहरण विश्लेषण कर सकेंगे, और
ऽ धर्मनिरपेक्षता के अर्थ और भारत में इसकी भूमिका को स्पष्ट कर सकेंगे।

प्रस्तावना
इस इकाई के आरंभ में हम रूढ़िवाद, साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता की मूल अवधारणाओं का स्पष्टीकरण करेंगे। उसके बाद हम इनके विषय में विस्तृत चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम रूढ़िवाद की अवधारणा लेंगे, और इसे स्पष्ट करेंगे।

उसके बाद साम्प्रदायिकता की चर्चा करेंगे और साम्प्रदायिक दंगों के पीछे क्या कारण हैं, उनका उल्लेख करेंगे। सामाजिक एवं आर्थिक पहलू तथा समुदायों के बीच पारस्परिक संबंधों के विषय में भी चर्चा करेंगे। इसके बाद समुदायों के पारस्परिक संबंधों का विश्लेषण किया जायेगा । अंततः हम धर्मनिरपेक्षता के विषय में बात करेंगे, जिसे एक दृष्टि से रूढ़िवाद और साम्प्रदायिकता का हल माना जाता है। इस संदर्भ में हम कुछ धर्मनिरपेक्षावादी विचारों और गांधी जी के विचारों की भी समीक्षा करेंगे।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

2 days ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

5 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

1 week ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now