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चुंबकीय गुण किसे कहते हैं | ठोस में चुम्बकीय गुण की परिभाषा क्या है magnetic properties in hindi

magnetic properties in hindi चुंबकीय गुण किसे कहते हैं | ठोस में चुम्बकीय गुण की परिभाषा क्या है ?

परिभाषा : किसी पदार्थ का चुम्बक की तरह अथवा चुम्बक के प्रति व्यवहार को ही उस पदार्थ का चुम्बकीय गुण कहते है |

ठोसों के चुम्बकीय गुण (magnetic properties of solids) : ठोसों में चुम्बकीय गुणों की उत्पत्ति इलेक्ट्रॉनों के कारण होती है। प्रत्येक इलेक्ट्रॉन एक सूक्ष्म चुम्बक के समान व्यवहार करता है। जैसा कि हम जानते है , इलेक्ट्रॉन दो प्रकार की गति करता है।

(1) नाभिक के चारों ओर की कक्षीय गति और
(2) स्वयं के अक्ष पर चक्रण गति।
उपरोक्त दोनों गतियों के कारण ही इलेक्ट्रॉन क्रमशः कक्षीय चुम्बकीय आघूर्ण तथा चक्रण चुम्बकीय आघूर्ण से संयुक्त रहता है। इस चुम्बकीय आघूर्ण को बोर मेग्नेटॉन (µB) इकाई में मापा जाता है। इस चुम्बकीय आघूर्ण का परिमाण बहुत कम होता है।
1 µB = 9.27 x 10-24 Am2
चुम्बकीय गुणों के आधार पर ठोसों को पाँच भागों में बाँटा गया है –
  1. अनुचुम्बकीय ठोस
  2. प्रतिचुम्बकीय ठोस
  3. लौह चुम्बकीय ठोस
  4. प्रति लौह चुम्बकीय ठोस और
  5. फैरी चुम्बकीय ठोस
1. अनुचुम्बकीय ठोस (paramagnetic solids) : ऐसे ठोस जो चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर , दुर्बल रूप से आकर्षित होते है वे अनुचुम्बकीय ठोस कहलाते है। यह गुण अनुचुम्बकत्व (paramagnetism) कहलाता है। इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते है। अत: ये चुम्बकीय क्षेत्र की तरफ आकर्षित होते है। ये चुम्बकीय क्षेत्र में चुम्बक की तरह व्यवहार प्रदर्शित करते है। ये ठोस चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में चुम्बकीय गुण खो देते है। अत: इनमें चुम्बकीय गुण अस्थायी होता है। उदाहरण के लिए – Co , Ni , Fe , Cu , Cu2+ , Fe3+ , TiO , CuO आदि।
2. प्रतिचुम्बकीय ठोस (diamagnetic solids) : ऐसे ठोस , जो चुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर दुर्बल रूप से प्रतिकर्षित होते है वे प्रतिचुम्बकीय ठोस कहलाते है। इनमें सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित अवस्था में होते है। अत: एक इलेक्ट्रॉन द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण का प्रभाव , विपरीत चक्रण वाले दुसरे इलेक्ट्रॉन द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण से निरस्त हो जाता है। यह गुण प्रतिचुम्बकत्व (diamagnetism) कहलाता है। उदाहरण के लिए – संयोजकता कक्ष में दो इलेक्ट्रॉन युक्त आयन जैसे – H , Li+ , Be+2 आदि संयोजकता कक्षा में आठ इलेक्ट्रॉन युक्त आयन जैसे – Na+ , K+ , Mg+2 , Al+3 , F , O-2 आदि और संयोजकता कक्षा में 18 इलेक्ट्रॉन युक्त आयन जैसे – Zn+ , Ag+ , Cd+2 आदि से बने यौगिक प्रतिचुम्बकीय होते है। उदाहरण – NaCl , TiO2 , V2O5 , AnO , MgF2 आदि।
3. लौह चुम्बकीय ठोस (ferromagnetic solids) : ऐसे ठोस , जो चुम्बकीय क्षेत्र में प्रबल रूप से आकर्षित होते है , लोह चुम्बकीय ठोस कहलाते है तथा उनका यह गुण लौह चुम्बकत्व (ferromagnetism) कहलाता है। चुम्बकीय क्षेत्र में ये स्थायी चुम्बकीय गुण ग्रहण कर लेते है। अत: इनसे स्थायी चुम्बक बनाये जा सकते है। ठोस अवस्था में लौह चुम्बकीय पदार्थ के धातु आयन छोटे खण्डों में एक साथ समूहित हो जाते है , जिन्हें डोमेन कहते है। प्रत्येक डोमेन एक छोटे चुम्बक के समान व्यवहार करता है। चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में ये डोमेन ठोस में अनियमित रूप से अभिविन्यासित रहते है एवं उनका चुम्बकीय आघूर्ण निरस्त हो जाता है लेकिन चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति में सभी डोमेन चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में अभिविन्यासित हो जाते है तथा प्रबल चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करते है। चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी इनका चुम्बकीय प्रभाव बना रहता है , अत: स्थायी चुम्बकत्व प्रभाव दर्शाते है।
चित्र में संरेखण को दिखाया गया है।
उदाहरण के लिए Fe , Co , Ni , CrO2 आदि स्थायी चुम्बकत्व प्राप्त करने के कारण इनका औद्योगिक क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है। CrO2 का उपयोग कैसेट की टेप बनाने में किया जाता है।
4. प्रति लौह चुम्बकीय ठोस (antiferromagnetic solids) : इन ठोसों की संरचना लौह चुम्बकीय ठोसों के समान ही होती है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते है। लेकिन उनके डोमेन एक दूसरे के विपरीत अभिविन्यासित होते है तथा एक दुसरे के चुम्बकीय आघूर्ण को निरस्त कर देते है। इन ठोसों का यह गुण प्रति लौह चुम्बकत्व (anti ferromagnetism) कहलाता है। इसके उदाहरण है – MnO2 , Mn2O3 , Cr2O3 , V2O3 , FeO , NiO आदि।
5. फैरी चुम्बकीय ठोस (ferromagnetic solids) : इन ठोसों की संरचना लौह चुम्बकीय पदार्थो के समान ही होती है। लेकिन डोमेनों का चुम्बकीय आघूर्ण एक दूसरे के विपरीत लेकिन असमान होता है। इसलिए ये लौह चुम्बकीय पदार्थों की तुलना में चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा दुर्बल रूप से आकर्षित होते है। ठोसों के इस गुण को लघु लौह चुम्बकत्व भी कहा जाता है। Fe3O4 (मेग्नेटाइड) तथा फैराइट , जैसे – MgFe2O4, ZnFe2O4 आदि इन ठोसों के उदाहरण है।
फैराइट का सामान्य सूत्र – M2+Fe2O42- होता है। यहाँ M2+ = Mg2+ , Cu2+ , Zn2+ आदि है।
ठोसों के चुम्बकीय गुण पर ताप का प्रभाव विशेष :- ठोसों के चुम्बकीय गुणों पर ताप का प्रभाव पड़ता है। उच्च ताप पर लौह चुम्बकीय , फैरी चुम्बकीय तथा प्रति लौह चुम्बकीय ठोस , अनुचुम्बकीय ठोस में बदल जाते है , क्योंकि ताप बढाने पर इनमें उपस्थिति इलेक्ट्रॉन का चक्रण अव्यवस्थित हो जाता है जिससे ये अचुम्बकीय हो जाते है ,
जैसे – Fe3O4 फेरीचुम्बकीय है। इसे 850 K तक गर्म करने पर , यह अनुचुम्बकीय हो जाता है। ऐसा इलेक्ट्रॉन के चक्रण की दिशा में परिवर्तन हो जाने के कारण होता है।
(ii) V2O3 , NiO आदि , 150 K ताप पर प्रतिलौह चुम्बकीय होते है लेकिन ये 395 K के ताप पर अचुम्बकीय हो जाते है।
(iii) CrO2 सामान्य ताप पर लौह चुम्बकीय होता है तथा यह 395 K पर अनुचुम्बकीय हो जाता है।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : अक्रिस्टलीय पद को परिभाषित कीजिये। अक्रिस्टलीय ठोसों का कुछ उदाहरण दीजिये।
उत्तर : अक्रिस्टलीय ठोसों से आशय ऐसे ठोसों से है। जिसके संघटक कणों में लघुपरासी व्यवस्था होती है। इनकी आकृति अनियमित तथा प्रकृति समदैशिक होती है। इसके अतिरिक्त इनका गलनांक भी तीक्ष्ण नहीं होता है। अक्रिस्टलीय ठोस के कुछ उदाहरण है – काँच , रबर , प्लास्टिक , सेलुलोज आदि।
प्रश्न 2 : काँच , क्वार्टज़ जैसे ठोस से किस प्रकार भिन्न है ? किन परिस्थितियों में क्वार्ट्ज को कांच में परिवर्तित किया जा सकता है ?
उत्तर : काँच एक अतिशीतित द्रव तथा अक्रिस्टलीय पदार्थ है। क्वार्टज़ , सिलिका (SiO2) का क्रिस्टलीय रूप होता है। जिसमें चतुष्फलकीय इकाइयाँ SiO4 एक दूसरे से इस प्रकार जुडी होती है , कि एक चतुष्फलक का ऑक्सीजन परमाणु किसी दूसरे Si परमाणु के साथ सहभाजित होता है।
जी हाँ , क्वार्टज़ को गलाकर शीघ्रता से ठण्डा करके कांच में परिवर्तित किया जा सकता है। कांच में SiO4 चतुष्फल यादृछिक रूप से जुड़ें होते है।
प्रश्न 3 : निम्नलिखित ठोसों का वर्गीकरण आयनिक , धात्विक , आण्विक , सहसंयोजक अथवा अक्रिस्टलीय में कीजिये।
(i) टेट्राफास्फोरस डेकोक्साइड (P4O10)
(ii) अमोनियम फास्फेट (NH4)3PO4
(iii) SiC
(iv) I2
(v) P4
(vi) प्लास्टिक
(vii) ग्रेफाईट
(viii) पीतल
(ix) Rb
(x) LiBr
(Xi) Si
उत्तर : आयनिक ठोस : (NH4)3PO4 और LiBr
धात्विक ठोस : पीतल , Rb
आण्विक ठोस : P4O10 , I2 , P4
सहसंयोजकता ठोस : ग्रेफाईट , SiC , Si
अक्रिस्टलीय : प्लास्टिक
प्रश्न 4 : (a) उप सहसंयोजन संख्या का क्या अर्थ है ?
(b) निम्न परमाणुओं की उप सहसंयोजन संख्या क्या होती है ?
(i) एक घनीय निबिड़ संकुलित संरचना और
(ii) एक अन्त: केन्द्रित घनीय संरचना में।
उत्तर : (a) एक गोला जितने निकटवर्ती गोलों को स्पर्श करता है वह उसकी उपसहसंयोजन संख्या (coordination number) कहलाती है।
(b) (i) बारह (ii) आठ।
प्रश्न 5 : यदि आपको किसी अज्ञात धातु का घनत्व और एकक कोष्ठिका की विमाएँ ज्ञात है तो क्या आप उसके परमाण्विक द्रव्यमान की गणना कर सकते है ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर : तत्व (M) का परमाणु द्रव्यमान =  p x a3 x NA /Z
यहाँ p = घनत्व
a3 = आयतन
NA = आवोगाद्रो संख्या
Z = एकक कोष्ठिका में परमाणुओं की संख्या
प्रश्न 6 : किसी क्रिस्टल की स्थिरता उसके गलनांक के परिमाण द्वारा प्रकट होती है। टिप्पणी कीजिये।
किसी आँकड़ा पुस्तक (डाटा बुक) से (i) जल (ii) एथिल एल्कोहल (iii) डाई एथिल ईथर (iv) मेथेन के गलनांक एकत्र करे। इन अणुओं के मध्य अंतर आण्विक बलों के बारे में आप क्या कह सकते है ?
उत्तर : किसी क्रिस्टल का स्थायित्व उसके संघटक कणों में अंतर्क्रिया बल के परिमाण पर निर्भर करता है। आकर्षण बल जितना ही अधिक होता है , क्रिस्टल का स्थायित्व भी उतना ही अधिक होता है। उदाहरण के लिए NaCl और KCl जैसे आयनिक ठोसों का गलनांक और क्वथनांक बहुत उच्च होता है जबकि नैफ्थेलीन और आयोडीन आदि जैसे आण्विक ठोसों के गलनांक और क्वथनांक का मान कम होता है।
विभिन्न पदार्थो के गलनांक निम्नलिखित है –
(i) जल = 273 K
(ii) एथिल एल्कोहल = 155.7 K
(iii) डाई एथिल ईथर = 156.8 K
(iv) मेथेन = 90.5K
जल और एथिल एल्कोहल के अणुओं के बीच अंतर आण्विक बल मुख्यतः हाइड्रोजन आबंधन होता है। गलनांकों के मानों से यह स्पष्ट है कि इसका परिमाण एल्कोहल की अपेक्षा जल में अधिक होता है।
डाई एथिल ईथर के अणुओं के मध्य बल द्विध्रुवीय बल होता है जबकि मेथेन में यह मुख्यतः वांडरवाल बल होता है। जो कि इनके गलनांकों (सूचीबद्ध यौगिकों में न्यूनतम) से स्पष्ट है।
प्रश्न 7 : निम्नलिखित युगलों के पदों (शब्दों में कैसे विभेद करोगे ?)
(i) षट्कोणीय निबिड़ संकुलन और घनीय निबिड़ संकुलन
(ii) क्रिस्टल जालक और एकक कोष्ठिका
(iii) चतुष्फलकीय रिक्ति और अष्टफलकीय रिक्ति
उत्तर : (i) षट्भुजीय निविड़ संकुलन में , तृतीय परत के गोले प्रथम परत के गोलों (ABABABAB. . . . . . प्रकार के) से उधर्वाधर ऊपर की तरफ होते है। दूसरी तरफ , त्रिविमीय निबिड़ संकुलन में , चौथी परत के गोले प्रथम परत के गोलों (ABCABC. . . . . . प्रकार के) के ऊपर स्थित होते है।
(ii) क्रिस्टल जालक : क्रिस्टलीय ठोसों में अवयवी कण , तीनों विमाओं में एक नियमित तथा निश्चित ज्यामिति में व्यवस्थित होते है। अवयवी कणों की इस त्रिविमीय व्यवस्था को क्रिस्टल जालक कहते है।
सम्पूर्ण क्रिस्टल संरचना में वह छोटी से छोटी इकाई जो सभी दिशाओं में समान रूप से बार बार दोहराने पर पुन: क्रिस्टल संरचना का निर्माण करती है। एकक कोष्ठिका अथवा इकाई सेल कहलाती है।
(iii) चतुष्फलकीय रिक्ति और अष्टफलकीय रिक्ति :
प्रश्न 8 : निम्नलिखित जालकों में प्रत्येक की एकक कोष्ठिका में कितने जालक बिंदु होते है –
(i) फलक केन्द्रित घनीय
(ii) फलक केन्द्रित चतुष्कोणीय
(iii) अन्त: केन्द्रित
उत्तर : (i) फलक केन्द्रित घनीय व्यवस्था में ,
घन के कोनों पर स्थित जालक बिंदु = 8
प्रत्येक फलक के केन्द्र पर स्थित जालक बिंदु = 6
जालक बिन्दुओं की सम्पूर्ण संख्या = 8 + 6 = 14
(ii) फलक केन्द्रित चतुष्कोणीय में भी जालक बिन्दुओं की संख्या समान अर्थात 8+6 = 14 होती है (दोनों ही स्थितियों में , प्रति एकक कोष्ठिका कणों की संख्या ) = (8 x 1/8 + 6×1/2) = 4
(iii) अन्त: केन्द्रित घनीय व्यवस्था में ,
घन के कोनों पर स्थित जालक बिंदु = 8
अन्त: केंद्र में स्थित जालक बिंदु = 1
जालक बिन्दुओं की कुल संख्या = 8+1 = 9
प्रति एकक कोष्ठिका कणों की कुल संख्या = (8 x 1/8 + 1) = 2
प्रश्न 9 : समझाइये –
(i) धात्विक और आयनिक क्रिस्टलों के समानता और विभेद का आधार।
(ii) आयनिक ठोस कठोर और भंगुर होते है।
उत्तर : (i) समानता का आधार – धात्विक तथा आयनिक क्रिस्टलों की समानता का आधार आकर्षणों का स्थिर विद्युत बल होता है। यह आयनिक क्रिस्टलों के आयनों के बीच और धात्विक क्रिस्टलों के करनेल और संयोजी इलेक्ट्रॉनों के मध्य उपस्थित होते है। यही मुख्य कारण है कि धातु तथा आयनिक यौगिक विद्युत के अच्छे चालक होते है और इनका गलनांक भी उच्च होता है।
अन्तर का आधार : आयनिक क्रिस्टलों में अंतर का आधार आयनों में गतिशीलता की अनुपस्थिति है जबकि धात्विक क्रिस्टलों के संयोजी इलेक्ट्रॉन और कर्नेल में गतिशीलता उपस्थित होती है। परिणामस्वरूप आयनिक यौगिक केवल गलित अवस्था में विद्युत के चालक होते है जबकि धातुएँ ठोस अवस्था में भी चालक होते है।
(ii) आयनिक क्रिस्टल कठोर तथा भंगुर होते है क्योंकि इनके मध्य आकर्षण का प्रबल स्थिर वैद्युत बल होता है जो कि विपरीत आवेशित आयनों पर उपस्थित होता है।
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