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चुंबकीय क्षेत्र की परिभाषा क्या है ,मात्रक ,विमीय सूत्र Magnetic field in hindi चुंबकीय क्षेत्र किसे कहते हैं
Magnetic field in hindi unit dimensional formula चुंबकीय क्षेत्र की परिभाषा क्या होता है ? ,मात्रक ,विमीय सूत्र , चुंबकीय क्षेत्र किसे कहते हैं ?
परिभाषा : “ऐसा क्षेत्र जिसमे किसी बिंदु पर रखी गयी चुंबकीय सुई एक निश्चित दिशा में ठहरती है इसे क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र कहते है।”
चुंबकीय सुई जिस दिशा में ठहरती है इसे चुंबकीय क्षेत्र की दिशा कहते है।
अतः यह एक सदिश राशि है इसे B से प्रदर्शित करते है इसका SI मात्रक वेबर/वर्गमीटर (Weber/m2) या टेसला (Tesla) है। तथा इसकी विमा (विमीय सूत्र ) M1L0T-2A-1 है।
चुंबकीय क्षेत्र में रखी हुई सुई उस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र को प्रदर्शित करती है।
असमान चुंबकीय क्षेत्र में दिशा अलग अलग होती है जबकि समान चुंबकीय क्षेत्र में दिशा एक ही होती है।
स्थिर अवस्था में आवेश विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है जबकि गतिशील आवेश विद्युत क्षेत्र व चुंबकीय क्षेत्र दोनों उत्पन्न करता है।
चुंबकीय क्षेत्र में किसी गतिमान आवेशित कण पर कार्य करने वाले बल को चुंबकीय बल कहते है।
माना कोई आवेश q किसी चुंबकीय क्षेत्र B में V वेग से गति कर रहा है अतः q आवेश पर लगने वाला चुंबकीय बल निम्न सूत्र से दिया जाता है (जबकि विद्युत क्षेत्र अनुपस्थित है )
F = qVB
यदि वेग V तथा चुंबकीय क्षेत्र B के मध्य कोण θ है तो
F = qVB sinθ
यदि कोण θ का मान 90 डिग्री है तो इस स्थिति में बल अधिकतम होगा जिसका मान निम्न सूत्र से दिया जाता है
Fmaximum = qVB
सूत्र से चुंबकीय क्षेत्र निकालने के लिए ]
B = Fmax/qV
यदि आवेशित कण पर 1 कूलॉम आवेश उपस्थित हो तथा आवेशित कण 1 मीटर प्रति सेकण्ड के वेग से गति कर रहा है अर्थात q = 1 C , V = 1 m/s
अतः B = F
अतः चुंबकीय क्षेत्र को निम्न प्रकार भी परिभाषित कर सकते है
” किसी स्थान पर एक मीटर प्रति सेकंड से (एकांक) गतिमान एक कूलॉम (एकांक) आवेशित कण पर लगने वाले बल के परिमाण को चुंबकीय क्षेत्र कहते है जबकि आवेश चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत गतिशील है। ”
चुंबकीय क्षेत्र को अन्य कई नामो से जाना जाता है जैसे चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता , चुंबकीय प्रेरण व चुम्ब्कीय फ्लक्स घनत्व आदि।
चुम्बकत्व
लगभग 600 ईसा पूर्व से ज्ञात है कि मैग्नेटाइट नामक खनिज पदार्थ के टुकड़ों में लोहे के पदार्थों को आकर्षित करने का गुण है। ऐसे पदार्थो को चुम्बक कहा गया एवं लोहे को आकर्षित करने के गुण को चुम्बकत्व कहा गया। प्रकृति में मिलने के कारण इन्हें प्राकृतिक चुम्बक कहते हैं। रासायनिक रूप से यह लोहे का ऑक्साइड होता है। इसकी कोई निश्चित आकृति नहीं होती है। कुछ पदार्थों को कृत्रिम विधियों द्वारा चुम्बक बनाया जा सकता है, जैसे लोहा, इस्पात, कोबाल्ट आदि। इन्हें कृत्रिम चुम्बक कहते हैं। ये विभिन्न आकृति की होती है, जैसे- छड़ चुम्बक, घोड़ा-नाल चुम्बक, चुम्बकीय सूई आदि।
चुम्बक के गुण
आकर्षण- चुम्बक में लोहे, इस्पात आदि धातुओं को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता होती है। यदि किसी चुम्बक को लौह बुरादों के पास लाया जाय, तो बुरादा चुम्बक में चिपक जाता है। चिपके हुए बुरादे की मात्रा, चुम्बक के दोनों सिरों पर सबसे अधिक एवं मध्य में सबसे कम होती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि चुम्बक की आकर्षण शक्ति उसके दोनों किनारों पर सबसे अधिक एवं मध्य में सबसे कम होती है। चुम्बक के किनारे के दोनों सिरों को चुम्बक के ध्रुव कहलाते हैं।
दिशात्मक गुण– यदि किसी चुम्बक को धागे से बाँधकर मुक्त रूप से लटका दिया जाय, तो स्थिर होने पर उसका एक ध्रुव उत्तर की ओर और दूसरा ध्रुव दक्षिण की ओर हो जाता है। उत्तर दिशा सूचित करने वाले ध्रुव को चुम्बक का उत्तरी ध्रुव या धनात्मक ध्रुव (छवजी च्वसम वत ़ अम च्वसम) तथा दक्षिण दिशा सूचित करने वाले ध्रुव को चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव या ऋणात्मक ध्रुव (ैवनजी च्वसम वत दृ अम च्वसम) कहते है। चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को छ से एवं दक्षिणी ध्रुव को ै से व्यक्त करते है। दंड चुम्बक के दोनों ध्रुव से होकर गुजरने वाली काल्पनिक सरल रेखा को उसे चुम्बक का चुम्बकीय अक्ष कहते है। दोनों ध्रुव के बीच की दूरी को चुम्बकीय लम्बाई कहते है। मुक्त रूप से लटकता हुआ दंड चुम्बक जब स्थिर होता है तब उसके अक्ष से होकर गुजरने वाली एक ऊर्ध्वाधर समतल को चुम्बकीय याम्योत्तर कहते है।
ध्रुवों का आकर्षण एवं प्रतिकर्षण– दो चुम्बको के असमान ध्रुव (अर्थात उत्तरी दक्षिणी) एक दूसरे को आकर्षित करते है तथा दो समान ध्रुव (अर्थात उत्तरी-उत्तरी या दक्षिणी-दक्षिणी) एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते है। एक विलग ध्रुव का कोई अस्तित्व नहीं होता है। किसी चुम्बक को बीच से तोड़ देने पर इसके ध्रुव अलग-अलग नहीं होते, बल्कि टूटे हुए भाग पुनः चुम्बक बन जाते है तथा प्रत्येक भाग में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव उत्पन्न हो जाते है। अतरू एक अकेले चुम्बकीय ध्रुव का कोई अस्तित्व नही होता है।।
चुम्बकीय प्रेरण– चुम्बक चुम्बकीय पदार्थों में प्रेरण द्वारा चुम्बकत्व उत्पन्न कर देता है। नर्म लोहे की छड़ को किसी शक्तिशाली चुम्बक के एक ध्रुव के समीप लायें, तो वह छड़ भी एक चुम्बक बन जाती है। छड़ के उस सिरे पर जो चुम्बक के ध्रुव के समीप है, विपरीत ध्रुव बनता है तथा छड़ के दूसरे छोर पर समान ध्रुव बनता है। इस घटना को चुम्बकीय प्रेरण कहते है।
चुम्बकीय क्षेत्र– चुम्बक के चारों और का वह क्षेत्र, जिसमें चुम्बक के प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा चुम्बकीय सूई से निर्धारित की जाती हैं। चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक ब्ण्ळण्ैण् पद्धति में गौस तथा ैण्प्ण् पद्धति में टेसला होता है। (1 ळंनेे = 10-4 ज्मेसं)
चम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता या, चुम्बकीय तीव्रता- चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लम्बवत् एकांक लम्बाई का ऐसा चालक तार रखा जाए जिसमें एकांक प्रबलता की धारा प्रवाहित हो रही हो, तो चालक पर लगने वाला बल ही चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की माप होगी। चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटर/ऐम्पीयर मीटर अथवा वेबर/मी.2- या टेसला (ज्) होता है।
चुम्बकीय क्षेत्र की अभिधारणा (concept of magnetic field) : वह क्षेत्र जिसमें एक छोटी चुम्बकीय सुई किसी बिंदु पर सदैव एक निश्चित दिशा में ठहरती है , चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। यह एक सदिश राशि है अर्थात इसके बिंदु से एक वेक्टर राशि सम्बद्ध होती है। इस राशि को B से प्रदर्शित करते है। चुम्बकीय सुई चुम्बकीय क्षेत्र में किसी बिंदु पर इसी क्षेत्र B की दिशा में ठहरती है। स्पष्ट है कि चुम्बकीय क्षेत्र में रखी गयी चुम्बकीय सुई उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा का संकेत देती है। यदि किसी स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र समान है तो चुंबकीय सुई उस स्थान पर एक ही दिशा में ठहरती है लेकिन असमान चुम्बकीय क्षेत्र में प्रत्येक बिंदु पर उसकी दिशा बदलती है।
चुम्बकीय क्षेत्र और चुम्बकीय बल रेखाएँ (magnetic field and magnetic field lines of forces)
चुम्बकीय क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा , चुम्बकीय बल रेखाओं द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है। यदि किसी दिक्सूचक सुई को दण्ड चुम्बक के चुंबकीय क्षेत्र में रखकर चलाते है तो सुई के ठहरने की दिशा लगातार बदलती है .सुई के चलने का मार्ग एक निष्कोण अथवा चिकना वक्र होता है जो दण्ड चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से आरम्भ होकर दक्षिणी ध्रुव पर समाप्त होता है। इस वक्रीय मार्ग को चुम्बकीय बल रेखा कहते है। अत: किसी चुम्बकीय क्षेत्र में बल रेखाएँ वे काल्पनिक वक्र होती है जो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती है। चुम्बकीय बल रेखा के किसी बिंदु पर खिंची गयी स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर परिणामी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती है।
चित्र (a) और (b) में क्रमशः दण्ड चुम्बक और धारावाही परिनालिका के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएं प्रदर्शित की गयी है।
चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण (properties of magnetic lines of force)
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