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Categories: Physics

धारावाही चालक में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा Direction of Magnetic Field in current carrying conductor

Direction of Magnetic Field in current carrying conductor धारावाही चालक में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा : हमने पिछले एक टॉपिक में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का अध्ययन किया था , हमने वहाँ कुछ नियमों के बारे में पढ़ा था जिनकी सहायता से हम चुंबकीय क्षेत्र की दिशा का पता लगा सकते है वहां हमने स्नो नियम (Snow rule) , दांये हाथ के अंगूठे का नियम (Right hand thumb rule) , वृतीय धाराओं के लिए दायीं हथेली का नियम (Right hand Palm Rule for circular current ) , मैक्सवल का कार्क पेच नियम (Maxwell’s Cark Screw rule) नियमों का अध्ययन किया था।
अब हम यहाँ धारावाही चालक में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का प्रायोगिक अध्ययन करेंगे अर्थात धारावाही में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने के लिए हम एक प्रयोग करेंगे।

प्रयोग (Experiment) :

चित्रानुसार एक PQRS कागज का बोर्ड लेते है तथा इसको क्षैतिज में स्थापित करके एक धारावाही चालक AB को इसके भीतर से गुजारते हुए ऊर्ध्वाधर स्थापित करते है जैसा चित्र में दर्शाया गया है।
कागज के गत्ते पर लोहे का बुरादा डालकर एक हल्की पतली परत बना देते है तथा तार AB को बैटरी से जोड़ देते है जिससे धारावाही चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है।
धीरे धीरे गट्टे को हाथ से कम्पन्न करवाने से हम देखते है की लोहे का बुरादा वृत्तों का रूप ग्रहण कर लेता है जिसका केंद्र एक बिंदु पर प्राप्त होता है।
यदि हम चुम्बकीय सुई या कम्पास की सहायता से दिशा ज्ञात करने पर हम पाते है की सुई की दिशा ,  चित्र में वृतों पर दर्शायी गए तीर के निशान के समान होती है।
तथा जब बैटरी के टर्मिनल आपस में बदल दिए जाए तो कार्डबोर्ड पर वृत्तों की दिशा बदल जाती है तथा चुम्बकीय सुई में सुई का विक्षेप भी विपरीत दिशा में प्राप्त होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बैटरी के टर्मिनल आपस में बदलने पर धारा दिशा बदल जाती है अर्थात पहले से विपरीत दिशा में बहने लग जाती है।

वृत्ताकार कुण्डली में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा (Direction of magnetic field in the circular Coil  )

वृत्ताकार कुण्डली में विद्युत धारा प्रवाहित करके अर्थात बैटरी से जोड़कर देखने पर यदि धारा वामावृत्त दिशा (Anti clock wise अर्थात घडी की विपरीत दिशा) में बहती हुई प्रतीत होती है तो कुण्डली (Coil) का वह सिरा उत्तरी ध्रुव (N) की भांति व्यवहार करता है।
यदि वृताकार कुण्डली में धारा दक्षिणा वृत दिशा (clock wise अर्थात घडी की दिशा) में बहती हुई प्रतीत होती है तो कुंडली का वह सिरा दक्षिणी ध्रुव (S) की तरह व्यवहार करता है।

धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र में बल (force on a current carrying conductor in a magnetic field) : यदि किसी चुम्बकीय क्षेत्र में एक धारावाही चालक को रखा जाए तो इस चालक पर एक बल आरोपित होता है और इस बल की दिशा , चुम्बकीय क्षेत्र और धारा दोनों की दिशा के लम्बवत होती है। यदि चालक गति करने के लिए स्वतंत्र है तो वह इस बल की दिशा में गति करने लगता है। इस तथ्य को निम्नलिखित साधारण प्रयोगों द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है –

1. एक तार के टुकड़े को एक नाल चुम्बक के ध्रुवों N और S के मध्य इस प्रकार ढीला बाँधा जाता है कि तार की लम्बाई ध्रुवों के मध्य चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत हो। तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर हम देखते है कि तार ऊपर की ओर उठकर तन जाता है।

तार में धारा की दिशा उलट देने पर या चुम्बक को उलट कर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा उलट देने पर हम पाते है कि तार नीचे की तरफ तन जाता है। स्पष्ट है कि धारावाही तार पर चुम्बकीय क्षेत्र में बल लगता है।

2. बारलो का पहिया (barlow’s wheel principle) : इस प्रयोग की रूप रेखा में दिखाई गयी है। इसमें एक ताम्बे का हल्के पहिया W होता है जिसके दाँते लम्बे और नुकीले होते है। यह एक क्षैतिज चालक तार XX’ के परित: स्वतंत्रतापूर्वक घूम सकता है। पहिये के ठीक निचे एक आयताकार कटोरी रखी जाती है जिसमें पारा भरा होता है। पारा लेने का कारण इसका सुचालक होना है। इस व्यवस्था को इस प्रकार समायोजित किया जाता है कि घूमते समय पहिये का दांता बारी बारी से पारे को स्पर्श करे। पारे से भरी कटोरी को एक शक्तिशाली नाल चुम्बक के ध्रुवों N और S के मध्य रखते है। जब पहिये की धुरी XX’ और पारे के बीच विद्युत धारा प्रवाहित करते है तब पहिया स्वत: ही घुमने लगता है। इसका कारण यह है कि जब पहिये का कोई दांता पारे के सम्पर्क में आता है तब विद्युत परिपथ पूरा हो जाता है है और चुम्बकीय क्षेत्र के कारण पहिये के उस दांते पर एक बल (माना F) कार्य करने लगता है। चित्र में बल की दिशा तीर से प्रदर्शित की गयी है। इस बल के कारण पहिया घूम जाता है। पहिये के घुमने पर अलग दांता पारे के सम्पर्क में आता है और विद्युत परिपथ पुनः पूरा हो जाता है और पहिया फिर से घूम जाता है। इस प्रकार पहिया लगातार घूमता रहता है।

उपर्युक्त प्रयोगों से स्पष्ट है चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर एक बल कार्य करता है जिसकी दिशा धारा की दिशा और चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा दोनों के लम्बवत होती है।

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