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Categories: Physics

चुम्बकीय द्विध्रुव तथा चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण की परिभाषा क्या है ,सूत्र , मात्रक magnetic dipole moment

Magnetic dipole and magnetic dipole moment in hindi चुम्बकीय द्विध्रुव किसे कहते है ? और चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण की परिभाषा क्या है , विमा , मात्रक

प्रस्तावना : यहाँ हम इन दोनों के बारे में विस्तार से अध्ययन करने जा रहे है की ये दोनों क्या होते है साथ ही इनके लिए सूत्र की स्थापना भी करेंगे।

चुम्बकीय द्विध्रुव (Magnetic dipole ) : हमने विद्युत क्षेत्र का अध्ययन करते समय पढ़ा था की विद्युत द्विध्रुव को किसी विधुत क्षेत्र में रखने पर विधुत द्विध्रुव पर एक बलयुग्म कार्य करता है।

ठीक इसी प्रकार “जब किसी वस्तु को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाए और इस वस्तु पर बल युग्म कार्य करे तो यह वस्तु चुंबकीय द्विध्रुव कहलाती है। ”

जब दण्ड चुम्बक , धारावाही कुण्डली अथवा धारावाही परिनालिका को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाए तो इन पर एक बलयुग्म कार्य करता है अतः ये सब चुम्बकीय द्विध्रुव के उदाहरण है।

जब किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र में दंड चुम्बक को रखा जाता है तो इस दंड चुंबक पर एक बल युग्म कार्य करता है जिसके कारण यह चुम्बक अपनी माध्य स्थिति से विचलित होकर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में हो जाती है , जिससे यह सिद्ध होता है की दण्ड चुम्बक भी चुम्बकीय द्विध्रुव का उदाहरण है।

चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण (magnetic dipole moment)

चुम्बक की ध्रुव प्रबलता तथा उसी चुंबक की प्रभावी लम्बाई के गुणनफल को चुंबक का चुम्बकीय आघूर्ण कहते है।
माना किसी चुम्बक के ध्रुव की प्रबलता m है तथा प्रभावी लम्बाई 2L है तो परिभाषा से चुम्बकीय आघूर्ण (M)
M = m x 2L
हम यह भी पढ़ चुके है की एक धारावाही कुण्डली भी द्विध्रुव का उदाहरण है इसके लिए चुम्बकीय द्विध्रुव का मान निम्न प्रकार ज्ञात करते है।
माना एक A क्षेत्रफल धारावाही कुंडली है जिसमे N फेरे लिपटे हुए है तथा I धारा प्रवाहित हो रही है और B तथा इसकी दिशा में θ कोण बन रहा है तो बल आघूर्ण (T)
T = NIABsinθ
यहाँ
NIA को चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण कहते है।
यह एक सदिश राशि है तथा इसका मात्रक Am2 होता है।

संक्रमण धातु संकुलों के चुम्बकीय गुण :

संक्रमण तत्वों के संकुलों के अध्ययन में इलेक्ट्रॉनिक स्पेक्ट्रोस्कोपी का काफी महत्व है। इसके साथ ही चुम्बकीय गुणों का भी इसमें काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चूँकि संक्रमण तत्व संकुलों में आंशिक रूप से भरे हुए d कक्षक विद्यमान होते है अत: इनमे चुम्बकीय गुण पाए जाते है। केन्द्रीय धातु परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास , ऑक्सीकरण अवस्था और उपसह्संयोजन संख्या के अनुसार संक्रमण धातु संकुलों में चुम्बकीय गुणों की विविधता पाई जाती है।

चुम्बकीय गुणों का अध्ययन करने से पहले हम चुम्बकत्व और चुम्बकीय गुणों से सम्बन्धित कुछ पदों की व्याख्या करेंगे :

1. ध्रुव शक्ति : एक इकाई ध्रुव उसे कहा जाता है जो वायु या निर्वात में रखने पर दूसरे इकाई शक्ति वाले ध्रुव को एक डाइन बल से प्रतिकर्षित करे या आकर्षित करे।

2. चुम्बकीय आघूर्ण : किसी छड चुम्बक का चुम्बकीय आघूर्ण उसके दोनों सिरों की ध्रुव शक्ति और उनके मध्य की दूरी का गुणनफल होता है अर्थात

चुम्बकीय आघूर्ण =  m x l

यहाँ m = ध्रुव शक्ति

l = दो ध्रुवों के मध्य की दूरी

3. चुम्बकन की तीव्रता या इकाई आयतन चुम्बकीय आघूर्ण : चुम्बकन की तीव्रता I से तात्पर्य है प्रति इकाई क्षेत्रफल में प्रेरित ध्रुव शक्ति। अत: यदि किसी चुम्बकीय पदार्थ की ध्रुव शक्ति m हो , दोनों ध्रुवों के मध्य की दूरी l हो और ध्रुव का क्षेत्रफल A हो तो –

I = m/A = m.l/V = चुम्बकीय आघूर्ण/आयतन

4. गॉस का नियम और कुल चुम्बकीय प्रेरण : किसी चुम्बकीय क्षेत्र की एक इकाई तीव्रता होती है , यदि एक इकाई क्षेत्रफल (1 वर्ग सेंटीमीटर) में से एक इकाई बल गुजरता हो। यदि किसी पदार्थ को H गॉस की शक्ति वाले चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाए तो उस पदार्थ में चुम्बकीय प्रभाव प्रेरित हो जाता है। कुल चुम्बकीय प्रेरण B या चुम्बकीय फ्लक्स , पदार्थ के इकाई क्षेत्रफल में से गुजरने वाली बल रेखाओं की कुल संख्या को कहा जाता है। इसे ज्ञात करने के लिए गॉस ने निम्नलिखित सूत्र दिया :-

B = H + 4πI

समीकरण में H का भाग देने पर ,

B/H = 1 + 4πI/H  . . . . .. . . . .. . . . . समीकरण-1

5. चुम्बकीय पारगम्यता : किसी पदार्थ के इकाई क्षेत्रफल में चुम्बकीय बल रेखाओं की कुल संख्या तथा निर्वात में चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाओं की संख्या के अनुपात B/H को उस पदार्थ की चुम्बकीय पारगम्यता P कहते है , अत:

P = B/H  . . . . .. . . . .. . . . . समीकरण-2

6. चुम्बकीय प्रवृति : इसे हम इकाई आयतन की प्रवृत्ति या आयतन प्रवृति कहते है तथा इसे काई (chi) χ द्वारा प्रदर्शित करते है। किसी पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृति से तात्पर्य है कि वह पदार्थ बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति कितना संवेदनशील है अर्थात चुम्बकन से कितना प्रभावित होता है। यह निम्नलिखित समीकरण द्वारा ज्ञात किया जा सकता है –

χ = I/H  . . . . .. . . . .. . . . . समीकरण-3

P और χ चुँकि चुम्बकीय क्षेत्र के पदों के अनुपात है अत: इन दोनों का कोई मात्रक अथवा इकाई नहीं होती बल्क़ि इनके मान केवल प्राकृतिक संख्याओं के रूप में प्रदर्शित किये जाते है।

समीकरण 1 , 2 , और 3 से ,

P = 1 + 4πχ

चुम्बकीय प्रवृति को हम सामान्यतया ग्राम प्रवृत्ति या विशिष्ट प्रवृत्ति के रूप में या मोलर प्रवृत्ति के रूप में प्रदर्शित करते है .प्रति इकाई संहति चुम्बकीय प्रवृत्ति को ग्राम प्रवृति कहते है तथा इसे χg द्वारा प्रदर्शित करते है।

अत:

ग्राम प्रवृत्ति = आयतन प्रवृति/घनत्व

या

χg = χ/d तथा मोलर प्रवृति =  χg x M

यहाँ M = पदार्थ का अणुभार

7. चुम्बकीय दृष्टि से तनु पदार्थ : वे पदार्थ जिनके क्रिस्टल जालक में उनके चुम्बकीय केंद्र दूर दूर स्थित हो चुम्बकीय दृष्टि से तनु पदार्थ कहलाते है। इसके विपरीत वे पदार्थ जिनके क्रिस्टल जालक में चुम्बकीय केंद्र इतने नजदीक हो कि वे एक दूसरे में चुम्बकीय अंतर्क्रिया को प्रारंभ कर सके , चुम्बकीय दृष्टि से सान्द्र पदार्थ कहलाते है।

चुम्बकीय आघूर्ण में कक्षकीय योगदान (orbital contribution to magnetic moment) : संक्रमण तत्वों के संकुल आयनों के चुम्बकीय आघूर्ण के मान केवल चक्रण मात्र सूत्र के आधार पर परिकलित किये जा सकते है , क्योंकि संक्रमण तत्वों में कक्षकीय गति से उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण को शून्य मान लिया जाता है। संक्रमण तत्वों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन d कक्षकों में विद्यमान होते है जो संकुल आयन के घेरे में ही होते है अत: उनके कक्षकीय गति के कारण उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण उनके चारों ओर विद्यमान लिगेंडो द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण द्वारा उदासीन कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त इनमें कक्षीय योगदान का शमन भी होता है। इसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के आधार पर आसानी से समझा जा सकता है।

यदि समान ऊर्जा स्तर पर हो तो z अक्ष पर 45°C के घूर्णन से dx2– y2 कक्षक dxy में परिवर्तित हो सकता है तथा dxy कक्षक यदि z अक्ष के प्रति 90°C का घूर्णन करे तो इसे dyz कक्षक में परिवर्तित किया जा सकता है।

किसी इलेक्ट्रॉन के अपनी अक्ष के प्रति कक्षकीय कोणीय आघूर्ण होने के लिए यह आवश्यक है कि वह कक्षक जिसमें यह इलेक्ट्रॉन गति कर रहा है उसके अक्ष के प्रति घूर्णन से वह किसी अन्य समान और समभ्रंश कक्षक में परिवर्तित हो जाए। चूँकि dz2 कक्षक का z अक्ष पर घूर्णन द्वारा किसी अन्य समभ्रंश कक्षक में परिवर्तन नहीं होता अत: इलेक्ट्रॉन के इस कक्षक में होने पर कोई कक्षकीय कोणीय आघूर्ण नहीं होता। लिगेंड क्षेत्र की उपस्थिति में यदि कक्षकों का अंतर्परिवर्तन सम्भव हो तो उनका कुछ कक्षकीय आघूर्ण होता है , अन्यथा उसका शमन हो जाता है।

उपर्युक्त के विपरीत अंतर संक्रमण तत्वों (लेन्थेनाइड) में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन 4f कक्षकों में विद्यमान होते है। ये भीतर के कक्षक होने के कारण बाहर के 5d , 6s और 6p कक्षकों द्वारा ढके रहते है , अत: इन 4f इलेक्ट्रॉनों की कक्षकीय गति के कारण उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण लिगेंडो के इलेक्ट्रॉनिक प्रभाव द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय आघूर्ण द्वारा उदासीन नहीं हो पाता , फलत: इनके चुम्बकीय आघूर्ण में इलेक्ट्रॉनों के चक्रण के साथ साथ कक्षकीय योगदान भी होता है।

अत: लेंथेनाइडो के चुम्बकीय आघूर्ण के परिकलन में L-S युग्मन से प्राप्त रूजल सोंडर्स की –

μ = g[J(J+1)]1/2

का उपयोग किया जाता है। इस समीकरण में समीकरण –

g = [1 + J(J+1) + S(S+1) – L(L+1)]/2J(J+1)

से g का मान रखने पर निम्नलिखित समीकरण प्राप्त होगी –

μ = [3/2 + S(S+1) – L(L+1)/2J(J+1)][J(J+1)]1/2

उपर्युक्त सूत्र के आधार पर हम किसी भी लैन्थेनाइड आयन के लिए चुम्बकीय आघूर्ण की गणना कर सकते है।

उदाहरण : Ce3+ और Pr3+ के लिए S , L और J के मान निम्न है। इन मानों को समीकरण में रखकर गणना करने पर इन आयनों के चुम्बकीय आघूर्ण के मान परिकलित किये जा सकते है। हुंड ने इन मानों का सब लेंथेनाइडो के लिए परिकलन किया ,

उदाहरण :

आयन S L J μ
Ce3+ ½ 3 5/2 2.54 BM
Pr3+ 1 5 4 3.58 BM

हुन्ड ने लेंथेनाइडो के लिए चुम्बकीय और कक्षीय गति को ध्यान में रखकर चुम्बकीय आघूर्ण के जो मान परिकलित किये वे प्रायोगिक मानों से दो अपवादों को छोड़कर काफी समानता रखते है। ये दो अपवाद है Sm3+ और Eu3+ , इनके लिए हुन्ड द्वारा परिकलित मान प्रायोगिक न्यूनतम मानों से भी न्यून आते है।

Eu3+ के लिए तो हुंड ने शून्य मान ही परिकलित किया। हुंड ने यह माना कि रुजल सोंडर्स के S-L युग्मन प्रभाव को पूरी श्रेणी में समान रूप से लागू किया जा सकता है। वैन लेक और फ्रैंक ने हुन्ड के सिद्धान्त पर एक द्वितीय कोटि का संशोधन किया जिससे मल्टीप्लेट अवस्थाओं को पृथक होने का अवसर मिल सकता है। इस प्रकार के संशोधन से उन्होंने जो मान प्राप्त किये वे प्रायोगिक मानों से बहुत अधिक समानता रखते है। लैंथेनाइडो के विभिन्न मानों को सारणी में दिया जा रहा है। इन मानों से हम स्पष्ट रूप से देख सकते है कि लैंथेनाइडो में इलेक्ट्रॉनों की कक्षीय गति और घूर्णन गति दोनों ही इनके चुम्बकीय आघूर्ण के लिए उत्तरदायी है तथा दोनों को ध्यान में रखकर इनके चुम्बकीय आघूर्ण को परिकलित किया जाए तो वे प्रायोगिक मानों के एकदम समान आते है।

तत्व परमाणु संख्या Ln3+ का विन्यास अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या चुम्बकीय आघूर्ण μB (प्रेक्षित) हुंड वैन लेक
La 57 4f0 0 0.00 0.00 0.00
Ce 58 4f1 1 2.39 2.54 2.56
Pr 59 4f2 2 3.60 3.58 3.62
Nd 60 4f3 3 3.62 3.62 3.68
Pm 61 4f4 4 2.68 2.83
Sm 62 4f5 5 1.54 0.84 1.60
Eu 63 4f6 6 3.61 0.00 3.45
Gd 64 4f7 7 8.2 7.94 7.94
Tb 65 4f8 6 9.6 9.7 9.7
Dy 66 4f9 5 10.5 10.6 10.6
Ho 67 4f10 4 10.5 10.6 10.6
Er 68 4f11 3 9.5 9.6 9.6
Tm 69 4f12 2 7.2 7.6 7.6
Yb 70 4f13 1 4.4 4.5 4.5
Lu 71 4f14 0 0.0 0.0

 

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