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Lux Flood theory in hindi concept of acid and base pdf लक्स फ्लड सिद्धांत क्या है अम्ल क्षार
जाने Lux Flood theory in hindi concept of acid and base pdf लक्स फ्लड सिद्धांत क्या है अम्ल क्षार ?
लक्स फ्लड सिद्धान्त (Lux Flood theory)
ब्रन्सटेद-लोरी सिद्धान्त में अम्ल-क्षारक अभिक्रिया समझाने के लिए प्रोटॉन की भूमिका पर बल दिया जाता है। बहुत सी ऐसी अभिक्रियाएँ ज्ञात हैं जो निर्विवाद रूप से अम्ल-क्षारक तो हैं लेकिन अणुओं में प्रोटॉन उपस्थित नहीं होता है, अतः प्रोटॉन स्थानान्तरण का प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसी अभिक्रियाओं की व्याख्या ऑक्साइड आयन के स्थानान्तरण के आधार पर लक्स (1939) ने दी जिसे बाद में फ्लड (1947) ने आगे बढ़ाया। इस परिभाषा को लक्स-फ्लड परिभाषा कहते हैं जिसके अनुसार ऑक्साइड ॐ दाता क्षारक तथा ऑक्साइड ग्राही अम्ल कहलाते हैं। इसे निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है:
क्षारक = अम्ल + xO2-
CaO = Ca2+ + O2-
SO4 2- = SO3 + O2-
SiO32- + SiO2 + O2-
इस परिभाषा के अनुसार अम्ल-क्षारक अभिक्रिया निम्न प्रकार प्रदर्शित की जा सकती हैं जिनमें धातु ऑक्साइड से अधातु ऑक्साइड में ऑक्साइड आयन O2 – का स्थानान्तरण होता है-
CaO + SiO, — CaSiO3
PbO + SO3 → PbSO 4
क्षारक अम्ल लवण
क्षारक ऑक्साइड क्षारकीय हाइड्रॉक्साइडों के एनहाइड्राइड तथा अम्ल ऑक्साइड ऑक्सी अम्लों के एनहाइड्राइड होते हैं जिन्हें उदाहरणस्वरूप निम्न समीकरणों की भांति दिखाया जा सकता है :
Ca(OH)2 → CaO+H2 O
H2SO4 → SO3 + H2O
2NaOH = Na2O+H2O
H2CO3 → CO2 + H2O
यह आवश्यक नहीं है कि अम्ल ऑक्साइडों के रूप में ही हो। कुछ अन्य यौगिक भी आयन ग्रहण कर अम्लों की तरह आचरण करते हैं उदाहरणार्थ टाइटेनियम, नायोबियम या टैन्टेलम के ऑक्साइड 1100K पर सोडियम पायरोसल्फेट को O2 आयन देते हैं जिसे निम्न अभिक्रिया द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है: उदाहरणार्थ
TiO2 + Na2S2O7 → TiOSO4 + Na2SO4
यदि कोई पदार्थ ऑक्साइड आयन ग्राही तथा दाता, दोनों ही प्रकार की अभिक्रियाएँ प्रदर्शित सकता है तो उसे उभयधर्मी (Amphoteric) कहते हैं। उदाहरण के लिए, जिंक तथा ऐलुमिनियम ऑक्साइडों की अभिक्रियाएँ नीचे दिखाई गई हैं :
ऑक्सीजन एक विद्युतऋणीय परमाणु है । हैलोजेन, सल्फर इत्यादि अन्य विद्युतऋणीय परमाणुओं से प्राप्त ऋणायनों के स्थानान्तरण के आधार पर लक्स-फ्लड परिभाषा का विस्तार किया जा सकता है। अर्थात् हैलाइड, सल्फाइड आदि आयनों के दाता यौगिकों को क्षारक तथा ग्राही पदार्थों को अम्ल की संज्ञा दी जा सकती है। उदाहरण के लिए, उच्च ताप पर निम्न अभिक्रिया में F- आयन AIF3 को अम्ल का कार्य करता है : स्थानान्तरित हो जाता है जिससे NaF क्षारक तथा AlF3
3NaF + AlF3 → 3Na+ + AlF63
लक्स-फ्लड परिभाषा गलित ऑक्साइड तन्त्रों के लिए उपयोगी पाई गई हैं। उदाहरण के लिए- उच्च ताप पर मृत्तिकाशिल्प (ceramics) तथा धातुकर्म (metallurgy) में ऑक्साइडों के मध्य अभिक्रिया होती है। लोहे के अयस्क में सिलिका (SiO2) मिली होती है। यह एक अम्लीय ऑक्साइड है जिसे दूर करने के लिए वात्या भट्टी (blast furnace) में क्षारीय ऑक्साइड CaO मिलाया जाता है इसी प्रकार कॉपर के धातुकर्म में सल्फाइड अयस्क में FeS अशुद्धि के रूप में पाया जाता है जिसे हटाने के लिए परावर्तनी भट्टी (reververatory furnace) में SiO2डाल कर वायु की उपस्थिति में सान्द्रित अयस्क को गर्म किया जाता है। आयरन सल्फाइड FeO में परिवर्तित होने के पश्चात् SiO2 से अभिक्रिया करके आयरन सिलिकेट धातुमल (slag) की एक हल्की परत बनाकर ऊपर आ जाती है जिसे दूर कर लिया जाता है :
SiO2+CaO → CaSiO3 (slag)
FeO + SiO2 = FeSiO3 (slag)
अयस्कों में फॉस्फेट तथा क्ले अशुद्धियों के रूप में पाये जाते हैं। गर्म करने पर इन अशुद्धियों के वाष्पशील ऑक्साइड P2O5 तथा SO3 निकल जाते हैं तथा CaO पीछे बच रहता है। लक्स-फ्लड सिद्धान्तानुसार CaO एक क्षारक है क्योंकि यह SiO2 को O2- स्थानान्तरित कर देता है जैसा कि निम्न
Ca3(PO4)2 + 3SiO2 → 3CaSiO3 + P2O5
CaSO4 + SiO2 → CaSiO3 + SO3
लक्स-फ्लड परिभाषा के आधार पर एक अम्लता मापक्रम (acidity scale) का प्रस्ताव किया गया है जिसमें प्रत्येक ऑक्साइड को अम्लता प्राचल (acidity parameter), a दिया जाता है। यदि किसी क्षारक व अम्ल के अम्लता प्राचल को ab व aa से प्रदर्शित किया जाये तो इन प्राचलों का अन्तर अम्ल व क्षारक में अभिक्रिया के फलस्वरूप ऐन्थैल्पी (Enthalpy) परिवर्तन के वर्गमूल के समान होता है।
Ab – aA = √H
उदाहरण के लिए, CaO व SiO2 के मध्य उपर्युक्त अभिक्रिया में AH का मान -85 kJ मोल-1 है। स्पष्ट है कि इन दोनों ऑक्साइडों के a मानों में लगभग 9.2 (= 85 ) इकाइयों का अन्तर है। ∝ के कुछ चयनित मान सारणी 6.4 में दिये गये हैं:
उपर्युक्त सारणी के अवलोकन से स्पष्ट है कि
(i) क्षारकीय ऑक्साइडों का a मान ऋणात्मक होता है। यह मान जितना ऋणात्मक होगा, पदार्थों में उतने ही अधिक क्षारकीय गुण पाये जायेंगे। इस प्रकार Cs2 O सबसे अधिक क्षारकीय ऑक्साइड है।
(ii) उभयधर्मी (amphoteric) ऑक्साइडों के a मान शून्य के निकट होते हैं। इस प्रकार H2 O, ZnO, व Al2O3 उभयधर्मी ऑक्साइड हैं।
(ii) अम्लीय ऑक्साइडों के धनीय a मान होते हैं। उच्च a मान उच्च अम्लीयता को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार Cl2O7 जो HCIO4 का ऐनहाइड्राइड है, सर्वाधिक अम्लीय ऑक्साइड है। धातु आयनों की ऑक्साइड ग्राही प्रकृति के आधार पर कुछ धातुओं के कार्बोनेट व सल्फेट के अपघटन को समझाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, आयरन (III) कार्बोनेट का अस्थायित्व यह दर्शित करता है कि Fe3+ आयन प्रबल अम्लीय है। अतः CO32– आयन तेजी से O2- ग्रहण कर लेता है जिससे Fe2(CO3) 3 अस्थायी हो जाता है ।
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विलायक तन्त्र सिद्धान्त (Solvent system theory)
कैडी (Cady) तथा ऐल्सी (Elsey) द्वारा अम्ल तथा क्षारक की परिभाषा विलायकों के आयनन से प्राप्त वायन व ऋणायन के आधार पर दी गई हैं। इसे विलायक तन्त्र परिभाषा कहते हैं।
जल की तरह बहुत से विलायकों में स्वतः आयनन (autoionisation) की प्रवृत्ति पाई जाती है जिसे मुख्य विलायकों के लिए नीचे दिखाया गया है :
विलायक – अम्ल + क्षारक
2H2O → H3O+ + OH–
2NH3 = NH4+ + NH2-
2H2SO4 = H3SO4+ + HSO4–
SO2 = SO2 + SO32- + SO32-
ब्रन्सटेद – लोरी परिभाषा के अनुसार अम्ल वे पदार्थ हैं जो प्रोटॉन देते हैं। हम जानते हैं कि प्रोटॉन जल के स्वतः आयनन से प्राप्त धनायन हैं। दूसरे शब्दों में, विलायक जल के स्वतः आयन से प्राप्त होने वाले धनायन जिन पदार्थों से प्राप्त होते हैं वे अम्ल हैं। इस परिभाषा का जब अन्य विलयकों के लिए विस्तार किया जाता है तो इसे विलायक तंत्र परिभाषा कहते हैं इस प्रकार, अम्ल वह प्रजाति है जो विलायक के स्वतः आयनन से प्राप्त धनायन की संख्या बढ़ाती है। दूसरी ओर क्षारक वे पदार्थ है। जो विलायक से प्राप्त ऋणायन की सान्द्रता को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, द्रव अमोनिया NH तथा NH2-आयनों में वियोजित होता है अतः द्रव अमोनिया में सभी अमोनियम लवण अम्ल व सभी ऐमाइड क्षारक होंगे। इस प्रकार NH4 CI, NH4 NO3आदि अम्लों के उदाहरण हैं जबकि NaNH2 KNH2 इत्यादि क्षारक हैं। इसी प्रकार SO2 में SOCI2 अम्ल होगा तथा सभी सल्फाइट (जैसे Na2SO3) क्षारक होगें क्योंकि SOCI2 से SO2 + आयन तथा Na2SO3 से SO,2 – आयन प्राप्त होते हैं जो SO2 के स्वतः आयनन से भी बनते हैं। यदि विलायक को AB से प्रदर्शित किया जाये जिससे A+ धनायन व B ऋणायन प्राप्त होते हैं तो जल की भांति विलायक का आयनिक गुणनफल KAB निम्न प्रकार लिखा जा सकता है :
KAB = [A+][B–]
विलायक तन्त्र परिभाषा के अनुसार विलायक के आयनीकरण से विपरीत दिशा ही उदासीनीकरण अभिक्रिया होगी। अर्थात् धनायन (अम्ल) तथा ऋणायन (क्षारक) की अभिक्रिया से विलायक का निर्माण ही उदासीनीकरण अभिक्रिया है। उदाहरण के लिए द्रव अमोनिया में NH4 Cl (अम्ल) व NaNH2 (क्षारक) की अभिक्रिया तथा द्रव SO2 में थायोनिल क्लोराइड (अम्ल) तथा सोडियम सल्फेट (क्षारक) के मध्य अभिक्रिया उदासीनीकरण अभिक्रियाएँ हैं :
NH4Cl + NaNH2 NaCI + 2NH3
SOCI2 + Na2SO3 = 2NaCl + 2SO2
इस परिभाषा की सहायता से विलायक अपघटन (solvolysis) अभिक्रियाएँ भी आसानी से जलअपघटन अभिक्रियाओं की भांति समझाई जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, अधातुओं के हेलाइडों की जलअपघटन अभिक्रियाओं की निर्जलीय विलायकों में विलायक अपघटनी अभिक्रियाओं से तुलना की जा सकती है। ये अभिक्रियाएँ POCI3 के माध्यम से नीचे स्पष्ट की गई हैं जिनमें CI का विलायक से प्राप्त ऋणायन OH द्वारा विस्थापन हो जाता है:
OPCI3 + 3H2O = OP(OH)3 + 3HCI
OPCI3 + 3ROH = OP (OR)3 + 3 HC1
OPCI3 + 3NH3 = OP(NH2)3 + 3HCI
इसके अतिरिक्त उभयधर्मी आचरण की भी आसानी से व्याख्या की जा सकती है। उदाहरण के लिए, Al(OH)3 जल में अविलेय है लेकिन प्रबल अम्ल या क्षारकीय विलयन में तेजी से घुल जाता है। इसी प्रकार Al2(SO3)3 लवण SO2 में अविलेय है लेकिन SOCI2 (अम्ल) या Cs2SO3 (क्षारक) में तेजी से घुल जाता है। इस प्रकार, Al(OH)3 की जल में तथा Al2 (SO2), की SO2 में उभयधर्मी आचरण की व्याख्या की जा सकती है।
कमियां – विलायक तन्त्र परिभाषा की प्रमुख विशेषता यह है कि प्रोटॉनिक तथा प्रोटॉनरहित, दोनों प्रकार के विलायकों में अम्ल-क्षारक अभिक्रिया की व्याख्या एक ही वक्तव्य से हो जाती है जबकि बन्सटेद – लोरी परिभाषा H+ आयन तथा लक्स – फ्लड परिभाषा O2- आयन के स्थानान्तरण पर आधारित हैं। लेकिन इस परिभाषा की निम्न सीमाएँ हैं ।
(i) किसी पदार्थ के अम्ल-क्षारक आचरण को समझाने के लिए विलायक की उपस्थिति आवश्यक है; विलायक की अनुपस्थिति में होने वाली अम्ल-क्षारक अभिक्रियाओं के लिए इस सिद्धान्त में कोई स्थान नहीं है ।
(ii) यह परिभाषा विलायकों के आयनन तथा उदासीनीकरण अभिक्रियाओं में आयनों के संयोग पर अत्यधिक बल देता है। बहुत सी उदासीनीकरण अभिक्रियाएँ ज्ञात हैं जिनमें अम्ल / क्षारक आयनित होते ही नहीं हैं। उदाहरण के लिए, थायोनिल क्लोराइड (SOCI2) को SO2 विलायक में अम्ल माना जाता है क्योंकि परिभाषा के अनुसार विलायक में यह SO2 + आयन देता है। वास्तव में SOCI2 में आयनन की नगण्य प्रवृत्ति पाई जाती है।
(iii) विलायक तन्त्र परिभाषा से अधिकांश अभिक्रियाओं की सैद्धान्तिक व्याख्या तो भली प्रकार की जा सकती है लेकिन कोई विशेष व्यावहारिक उपयोगिता नहीं पाई जाती है।
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