JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

लखनऊ घराने की नींव किसने रखी | संस्थापक लखनऊ घराना किससे संबंधित है दूसरा नाम क्या है ?

lucknow gharana kathak in hindi लखनऊ घराने की नींव किसने रखी | संस्थापक लखनऊ घराना किससे संबंधित है दूसरा नाम क्या है ?

लखनऊ घराना: अवध के नवाब वाजिद आली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ। लखनऊ शैली के कथक नृत्य में सुंदरता, प्राकृतिक संतुलन होती है। कलात्मक रचनाएँ, ठुमरी आदि अभिनय के साथ साथ होरिस (शाब्दिक अभिनय) और आशु रचनाएँ जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं। वर्तमान में, पंडित बिरजु महाराज (अच्छन महाराजजी के बेटे) इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ख्याल गायन शैली ?
अथवा
ख्याल के मुख्य लक्षण
आज शास्त्रीय हिन्दुस्तानी संगीत में ख्याल को गौरव का स्थान प्राप्त है। हम वास्तव में ख्याल के आरम्भ के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकते। यह एक विदेशी शब्द है और इसका अर्थ ‘कल्पना‘ है और इसे सुनेंगे तो यह पाएंगे कि यह ध्रुपद से अधिक गीतात्मक है, लेकिन यह संदेह का विषय है कि क्या इसका संगीतात्मक रूप भी विदेशी है। कुछ विद्वानों की यह राय है कि वास्तव में इसकी जड़ें प्राचीन भारतीय रूपक आलापों में हैं। यह भी कहा जाता है कि तेरहवीं शताब्दी के अमीर खुसरो ने भी इसे प्रोत्साहन दिया। पन्द्रहवीं शताब्दी के सुलतान मोहम्मद शर्खी को ख्याल को प्रोत्साहित करने का श्रेय जाता है तथापि इसे अठारहवीं शताब्दी के नियामत खान, सदारंग और अदारंग के हाथों परिपक्वता मिली थी।
आज ख्याल जिस रूप में गाया जाता है इसकी दो विविधताएं हैं: धीमी लय या विलम्बित ख्याल और तेज या द्रुत ख्याल। रूप में ये दोनों एक समान हैं। इनके दो अनुभाग होते हैं- स्थाई और अन्तरा। विलम्बित को धीमी लय में गाया जाता है और दूत को तेज लय से तकनीक की दृष्टि से प्रतिपादन/रुपद की तुलना में कम महत्त्वपूर्ण है। अधिक कोमल गमक और अलंकरण होते हैं।
दोनों प्रकार के ख्यालों के दो अनुभाग होते हैं। स्थाई और अन्तरा स्थाई अधिकांशतः निम्न और मध्यम सप्तक तक सीमित रहती है। अन्तरा सामान्यतः मध्यम और ऊपरी सप्तकों में चलता है। स्थाई और अन्तरा मिल कर एक गीत, रचना या बन्दिश बनाते हैं जिसे हम ‘चीज‘ कहते हैं। एक समग्र कृति के रूप में यह राग के उस सार को उद्घाटित करता है जिसमें इसे स्थापित किया जाता है।
ध्रुपद में वाणियों की तुलना में ख्याल में घराने होते है। ये विभिन्न व्यक्तियों या राजाओं अथवा कुलीन पुरुषों जैसे संरक्षकों द्वारा स्थापित या विकसित गायन शैलियां हैं।
संगीत घराना
इनमें से प्राचीनतम ‘ग्वालियर घराना‘ है। इस शैली के प्रवर्तक एक ‘नत्थन पीरबख्श‘ थे जो ग्वालियर में बस गए थे और इसीलिए इसका यह नाम पड़ा। इनके हद्दू खां और हस्सू खां नाम के दो पोते थे। ये उन्नीसवीं शताब्दी में हुए थे और इस शैली के महान उस्ताद माने जाते थे। इस घराने की विशेषता खुला स्वर, शब्दों का स्पष्ट उच्चारण तथा राग, स्वर और ताल की ओर एक व्यापक ध्यान है। यह घराना ख्याल गायकी के लिए प्रसिद्ध है। इस घराने के कुछ प्रमुख गायक
कृष्णराव शंकर पण्डित, राजा भैया पूंछवाले, नाथ खां, पीर बक्श, हद्दू खां, पंडित विष्णु दिगम्बर पलक्कर, अनंत मनोहर जोशी, विनायक राव पटवर्धन, मेंहदी हुसैन खां, अन्ना बुआ, ओंकार नाथ ठाकुर, बी.आर. देवधर आदि हैं।
आगरा घराना‘ के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना आगरा के खुदा बख्श ने की है। इन्होंने ग्वालियर के नत्थन पीरबख्श के साथ अध्ययन किया था लेकिन इन्होंने अपनी शैली का विकास किया। इस घराने में भी स्वर खुला और स्पष्ट है। इस घराने की विशेषता बोल तान है अर्थात् गीत के बोल या शब्दों का प्रयोग करके एक द्रुत या मध्यम लयकारी परिच्छेदी गीत को मध्यम ताल में गाया जाता है। हाल के इस घराने के सबसे प्रसिद्ध संगीतकार विलायत हुसैन खां और फैयाज खां रहे हैं।
जयपुर अतरौली घराना‘ के बारे में यह कहा जाता है कि यह सीधे ध्रुपद से निकला है। यह उन्नीसवी-बीसवीं शताब्दी के अल्लादिया खां द्वारा स्थापित है। इस घराने का ख्याल सदैव मध्यम लय में होता है। शब्दों का उच्चारण स्पष्ट रूप में और एक खुले तथा स्पष्ट स्वर में किया जाता है। इसकी विशिष्ट विशेषताएं वे परिच्छेद हैं जो प्राथमिक रूप से अलंकारों पर आधारित हैं, अर्थात् आवृत्तिमूलक रागात्मक मूलभाव-और ताल प्रभाग का एक लगभग तानमानी आग्रह। हाल के कुछ प्रमुख गायक मल्लिकार्जुन मंसूर, किशोरी अमोनकर आदि रहे हैं।
जयपुर घराना: 19वीं शताब्दी के मध्य में स्थापित इस घराने के प्रमुख संगीतकार हैं- रजब अली खां, सवाली खां, मुरारफ खां, सादिक अली खां, अमीर बक्श, आशिक अली खां, जमालुद्दीन खां, शमसुद्दीन, अली खां, आजिद हुसैन आदि।

बनारस घराना: जानकीप्रसाद ने इस घराने का प्रतिष्ठा किया था। यहाँ नटवरी का अनन्य उपयोग होता है एवं पखवाज और तबला का इस्तेमाल कम होता है। यहाँ ठाट और ततकार में अंतर होता है। न्यूनतम चक्कर दाएं और बाएँ दोनों पक्षों से लिया जाता है।
रायगढ़ घराना:छत्तीसगढ़ के महाराज चक्रधार सिंह इस घराने का प्रतिष्ठा किया था। विभिन्न पृष्ठभूमि के अलग शैलियों और कलाकारों के संगम और तबला रचनाओं से एक अनूठा माहौल बनाया गया था। पंडित कार्तिक राम, पंडित फिर्तु महाराज, पंडित कल्यानदास महांत, पंडित बरमानलक इस घराने के प्रसिद्ध नर्तक हैं।
सहारनपुर घराना: खलीफा मोहम्मद जमा नायक सूफी द्वारा स्थापित यह घराना अलाप होती तथा ध्रुवपद गायकी के लिए जाना जाता हैं इनके अन्य प्रमुख संगीतकार हैं- बन्दे अली खां (प्रसिद्ध वीणा वादक), जकरूद्दीन खां, बहराम खां, अलावंदे खां, नसीरूद्दीन खां, रहीमुद्दीन खां डागर, डागर बंधु नसीर मोइनुद्दीन और नसीर अमीनुद्दीन डागर तथा युवा डागर बंधु नसीर जहीरूद्दीन और नसीर फय्याजुद्दीन डागर आदि। सहसखां घराना: ग्वालियर घराने से संबंधित रहे इस घराने की स्थापित ग्वालियर घराने के हुद्दुखां के दामाद इनायत हुसैन खां ने की। इसके प्रमुख गायक हैं- इनायत हुसैन खां, हैदर खां, मुस्ताक हुसैन खां, निसार हुसैन खां आदि।
कव्वाल बच्चे घराना: ख्याल गायकी के लिए प्रसिद्ध यह घराना अत्यंत प्राचीन माना जाता है। इसके प्रमुख ख्याल गायक हैं- सावंत एवं बुला (दोनों भाई), शंकर खां, मक्कत खां, जादू खां, बड़ा मोहम्मद खां, मुबारक अली खां, सादिक अली खां आदि।
दिल्ली घराना: इस घराने की स्थापना तानसेन द्वारा की गई मानी जाती है परंतु कुछ संगीतकार इसे 19वीं सदी में मियां अचपल द्वारा स्थापित मानते हैं। इसके प्रमुख संगीतकार हैं- सादिक खां, बहादुर खां, दिलावर खां, मुराद खां, मीर नासिर अहमद, वजीर खां, मोहम्मद सिद्दीकी खां, निसार अहमद खां, पन्ना लाल गोसाई आदि।
फतेहपुर सिकरी घराना: मुगल बादशाह जहांगीर के काल में प्रसिद्ध ध्रुपद तथा ख्याल गायक जेन खां तथा जोरावर खां द्वारा स्थापित इस घराने के कुछ अन्य प्रमुख संगीतकार हैं- दूल्हे खां, घासीत खां, छोटे खां, गुलाम रसूल खां, मदार बख्श, सैय्यद खां आदि।
किराना घराना: उस्ताद बंदे, अली खां द्वारा स्थापित इस घराने ने स्वरों को अधिकाधिक सरसता के साथ गाने में महारत हासिल किया है। इसके प्रमुख संगीतकार हैं; उस्ताद बेहरे, अब्दुल वहीद खां, उस्ताद अब्दुल करीम खां, सुरेश बाबू माने, सरस्वती राने, गंगुबाई हंगल, स्वामी गंधर्व, भीमसेन जोशी, हीराबाई बड़ोदकर, प्राणनाथ, फिरोज दस्तुर, शकुर खां आदि।
भिंडी घराना: यह घराना मध्य ख्याल गायकी के लिए जाना जाता है। इसके प्रमुख गायकों में नजीर खां, छज्जु खां, अमान अली खां, शिवकुमार शुक्ल, रमेश नाडकर्णी आदि उल्लेखनीय हैं।
खुरजा घराना: नाथक खां तथा उनके पुत्र जादू खां द्वारा 18वीं शताब्दी में स्थापित इस घराने के प्रमुख सदस्य रहे हैं-इमाम खां, गुलाम हुसैन, जफर खां, गुलाम हैदर खां, उस्ताद अल्ताफ हुसैन खां आदि।
अन्त में हम श्रामपुर सहसवान घरानेश् पर आते हैं। चूंकि प्रारम्भिक गायक उत्तर प्रदेश के रामपुर के थे, इसलिए इस, घराने का भी यही नाम पड़ गया। इसमें धीमे और द्रत ख्याल सामान्यतः एक तराने के बाद गाते हैं। यह घराना गायकी में विशेषज्ञ माना जाता है। इस घराने की गायन शैली अति गीतात्मक है और स्वर अलंकरण से परिपूर्ण होते हैं। इस घराने की स्थापना उस्ताद वजीर खां ने की। हाल के इस घराने के दो प्रमुख गायक निसार हसैन खां और रशीद खां रहे हैं। इसके प्रमुख संगीतकार हैं- इनायत हुसैन खां, मोहम्मद अली, बहादुर हुसैन, इश्तियाक हुसैन खां, सरफराज हुसैन खां, गुलाम मुस्तफा, निसार हुसैन खां, हफीज अहमद खां आदि।
ठुमरी और टप्पा संगीत
समारोहों में सुनी जाने वाली लोकप्रिय गायन शैलियां हैं। ठुमरी अपनी संरचना और प्रस्तुति में अति गीतात्मक है। इन गायन प्रकारों को ष्अर्द्धश् या श्सुगमश् शास्त्रीय नाम दिया जाता है। श्ठुमरीश् एक प्रेम गीत है और इसलिए शब्द रचना अति महत्त्वपूर्ण है। यह संगीतात्मक वादन से घनिष्ठ रूप से समन्वित है, और ठुमरी को गाए जाने के लिए मनोदशा को ध्यान में रखते हुए इसे खमाज, काफी, भैरवी इत्यादि जैसे रागों में प्रस्तुत किया जाता है और संगीतात्मक व्याकरण का सख्ती से पालन नहीं किया जाता। ठुमरी गायन की दो शैलियां हैंरू पूरब या बनारस शैली जो काफी हद तक धीमी तथा सौम्य है और पंजाब शैली, जो अधिक जीवंत है। रसूलन देवी, सिद्धेश्वरी देवी इस शैली की प्रमुख गायिकाएं रही हैं।
श्टप्पाश् एक ऐसा गीत होता है जिसमें स्वरों को द्रुत लय में गाया जाता है। यह एक कठिन रचना होती है और इसमें अधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है। ध्रुपद और ख्याल शैलियों की भांति, ठुमरी और टप्पा दोनों के लिए विशेष प्रशिक्षण अपेक्षित होता है। टप्पा जिन रागों में गाया जाता है, वे उसी प्रकार के राग होते हैं जिनमें ठुमरी गाई जाती है। टप्पा गायन में पण्डित एल. के. पण्डित और मालिनी राजुरकर को विशेषज्ञता प्राप्त रही है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now