हिंदी माध्यम नोट्स
lucas test for alcohol in hindi लुकास परीक्षण किसे कहते हैं ऐल्कोहॉल अल्कोहल का परिक्षण लिखिए
लुकास परीक्षण किसे कहते हैं ऐल्कोहॉल अल्कोहल का परिक्षण लिखिए lucas test for alcohol in hindi ?
लुकास परीक्षण (Lucas Test) :- ZnCl2 तथा सान्द्र HCI का मिश्रण लुकास अभिकर्मक कहलाता है। छ कार्बन परमाणुओं तक के ऐल्कोहॉल सान्द्र HCI में विलेय होते हैं जबकि इनके संगत क्लोराइड HCI में अविलेय होते हैं। प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक ऐल्कोहॉल की सान्द्र HCI से अभिक्रिया का वेग भिन्न भिन्न होता है। इस आधार पर ऐल्कोहॉलों को पहचाना जाता है। तृतीयक ऐल्कोहॉल, लुकास अभिकर्मक के साथ तुरन्त दूधियापन दर्शाते हैं । द्वितीयक ऐल्कोहॉल 5 मिनट के उपरान्त दूधियापन दर्शाते हैं. जबकि प्राथमिक ऐल्कोहॉल, कमरे के ताप पर सामान्यतः दूधियापन न हीं दर्शाते हैं।
अभिक्रिया चूंकि SNI प्रकार की है अतः कार्बोकैटायन का निर्माण होता है कार्बोकेटायन का स्थायित्व का क्रम निम्नलिखित होता है। तृतीयक द्वितीय प्राथमिक |अतः अभिक्रिया के वेग का क्रम भी इसी प्रकार होता है।
ऐल्कोहॉलों के मध्य अन्तर्परिवर्तन (Inter conversion among alcohols )
(i) प्राथमिक ऐल्कोहॉल का द्वितीयक ऐल्कोहॉल में परिवर्तन (Conversion of primary alcohol into secondary alcohol) :- यह परिवर्तन निम्नलिखित प्रकार से होता है।
(ii) प्राथमिक ऐल्कोहॉल का तृतीयक ऐल्कोहॉल में परिवर्तन (Conversion of primary alcohol
into tertiary alcohol)
(iii) द्वितीयक ऐल्कोहॉल का तृतीयक ऐल्कोहॉल में परिवर्तन (Conversion of secondary alcohol into tertiary alcohol)
(iv) उच्चतर ऐल्कोहॉल का निम्नतर ऐल्कोहॉल में परिवर्तन (Conversion of higher alcohol to lower alcohol)
(v) निम्नतर ऐल्कोहॉल का उच्चतर ऐल्कोहॉल में परिवर्तन (Conversion of lower alcohol to higher alohol)
डाइहाइड्रिक ऐल्कोहॉल (Dihydric Alcohol)
डाइहाइड्रिक ऐल्कोहॉलों को ग्लाइकॉल भी कहते हैं। इनमें दो हाइड्रॉक्सी (ऐल्कोहॉलिक) समूह होते हैं। हाइड्रॉक्सी समूह के क्रमशः 1, 2 – स्थिति, 1, 3- स्थिति, एवं 1, 4 स्थिति पर होने पर इन्हें 1, 2- ग्लाइकॉल, 1, 3- ग्लाइकॉल एवं 1, 4- ग्लाइकॉल कहते हैं । 1, 2- ग्लाइकॉल को a-, 1, 3- ग्लाइकॉल को – तथा 1, 4- ग्लाइकॉल को Y – ग्लाइकॉल भी कहते हैं।
2.8.1 नामकरण
a-ग्लाइकॉल का सामान्य नाम उस ऐल्कीन से व्युत्पित करते हैं जिसके हाइड्रॉक्सिलीकरण द्वारा इसे प्राप्त किया जाता है। उदाहरणार्थ-
IUPAC पद्धति के अनुसार इन्हे ऐल्केन डाइऑल कहते हैं। डाइऑल से पूर्व शृंखला पर इनकी स्थिति को लिख देते हैं। यदि श्रृंखला पर पार्श्व ऐल्किल प्रतिस्थापी उपस्थित हैं तो उनको अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम में उनकी स्थिति को दर्शाते हुये पूर्वलग्नित कर देते हैं। उदाहरणार्थ-
परफार्मिक अम्ल (99% H2O2 + फार्मिक अम्ल) एक श्रेष्ठ हाइड्रॉक्सिलीकारक के रूप में प्रयुक्त होता है।
(2) डाइब्रोमोऐल्केन को जलीय सोडियम बाइकार्बोनेट या जलीय NaOH के साथ उबालने पर-
(3) डाई ब्रोमो ऐल्केन की पोटैशियम ऐसीटेट से अभिक्रिया करके यौगिक को डाईएसीटेट में बदल लेते हैं। इस डाइऐसीटेट का मेथेनॉलिक हाइड्रोजन क्लोराइड से जल अपघटन करने पर डाईऑल बनते हैं-
(5) ऐल्कीनों को हाइपोक्लोरस अम्ल में प्रवाहित करने पर प्राप्त क्लोरोहाइड्रिन को जलीय सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट के साथ उबालने पर निकटवर्ती (vicinial) ग्लाइकॉल प्राप्त होते हैं।
निकटवर्ती ग्लाइकॉल या 1,2 – डाइऑल की रासायनिक अभिक्रियायें (Chemical reactions of vicinal glycol)
एथिलीन ग्लाइकॉल (एथेन – 1. 2 – डाइऑल ) एक महत्वपूर्ण निकटवर्ती ग्लाइकॉल है। मुख्य रूप से इसका उदाहरण लेकर ही हम निकटवर्ती ग्लाइकॉल की रासायनिक अभिक्रियाओं का वर्णन करेंगे।
(1) सोडियम के साथ अभिक्रिया निकटवर्ती ग्लाइकॉल सोडियम के साथ निम्न ताप पर मोनो सोडियम लवण और उच्च ताप पर डाइसोडियम लवण देते हैं।
(2) हाइड्रोजनक्लोराइड के साथ अभिक्रिया- ये हाइड्रोजनक्लोराइड के साथ निम्न ताप पर मोनोक्लोरोहाइड्रिन और उच्च ताप पर डाइक्लोरोऐल्केन बनाते हैं।
(3) हाइड्रोजन आयोडाइड के साथ अभिक्रिया – निकटवर्ती ग्लाइकॉल हाइड्रोजन आयोडाइड के साथ अभिक्रिया पर निकटवर्ती डाइआयोडो ऐल्केन देते हैं जो शीघ्रता से संगत ऐल्कीन में बदल जाते है ।
(4) निकटवर्ती ग्लाइकॉल PX 3 ( X = CI एवं Br) के साथ अभिक्रिया पर निकटवर्ती डाइहैलाइड. बनाते हैं।
(5) PI3 के साथ अभिक्रिया— निकटवर्ती ग्लाइकोल PI3 के साथ अभिक्रिया करके पहले निकटवर्ती डाइआयोडाइड बनाते हैं जो आयोडीन मुक्त करके शीघ्रता से ऐल्कीन में परिवर्तित हो जाते हैं।
(6) कार्बनिक मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों के साथ – ये कार्बनिक मोनोकार्बोक्सिलिक अम्लों के साथ मोनो- तथा डाइ- एस्टर बनाते हैं। सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल की थोड़ी सी मात्रा उत्प्रेरक के रूप में लेते हैं।
(7) कार्बनिक डाइकार्बोक्सिलिक अम्लों के साथ – ग्लाइकॉल की कार्बनिक डाइकार्बोक्सिलिक अम्लों के साथ संघनन अभिक्रिया पर संघनन बहुलक (पॉलीएस्टर) बनते हैं ।
n
उदाहरणार्थ- ग्लाइकॉल की टरथैलिक अम्ल के साथ अभिक्रिया पर टेरिलीन या डेक्रान बहुलक बनता है।
(8) अकार्बनिक ऑक्सी अम्लों के साथ- सांद्र नाइट्रिक अम्ल + सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल के मिश्रण के साथ अभिक्रिया पर अकार्बनिक एस्टर बनते हैं।
(9) ऐल्डिहाइड एवं कीटोन के साथ निकटवर्ती डाइऑल ऐल्डिहाइड एवं कीटोन के साथ अभिक्रिया करके क्रमशः चक्रीय ऐसीटैल एवं चक्रीय कीटैल (1,3-डाइऑक्सोलेन) बनाते हैं अभिक्रिया p- टॉलूइनसल्फोनिक अम्ल की उपस्थिति में होती है।
चक्रीय ऐसीटैल एवं चक्रीय कीटैल से ऐल्डिहाइड एवं कीटोनों को पुनः प्राप्त किया जा सकता है। यदि इनकी अभिक्रिया परआयोडिक अम्ल के साथ डाऑक्सेन विलायक में की जाये।
(10) सांद्र HNO3 से ऑक्सीकरण – (i) निकटवर्ती ग्लाइकॉल का ऑक्सीकरण विभिन्न ऑक्सीकारकों से करने पर विभिन्न उत्पाद प्राप्त होते हैं। ग्लाइकॉल के ऑक्सीकरण से सिद्धान्तनुसार निम्नलिखित उत्पाद संभव है-
सांद्र HNO3 से ऑक्सीकरण पर ग्लाइकॉलिक अम्ल (B) तथा ऑक्सेलिक अम्ल (E) शीघ्रता से प्राप्त हो जाते हैं।
11. लैडटेट्राऐसीटेट या परआयोडिक अम्ल से ऑक्सीकरणीय विदलन- अम्लीय या क्षारकीय या उदासीन परमेंगनेट विलयन या अम्लीय डाइक्रोमेट विलयन या लैड टैट्राऐसीटेट का परआयोडिक अम्ल से ऑक्सीकरण कर निकटवर्ती ग्लाइकॉल में कार्बन-बंध का विदलन (Oxidative cleavage) हो जाता है और ऐल्डिहाइड अम्ल और / या कीटोन प्राप्त होते हैं।
समपक्ष-1,2-ग्लाइकॉल का ऑक्सीकरणीय विदलन विपक्ष – 1, 2 – ग्लाइकॉल की तुलना में बहुत सुगमता से हो जाता है ।
अभिक्रिया में चक्रीय मध्यवर्ती बनता है और निम्न प्रकार सम्पन्न होती है-
(a) लैडटेट्राऐमीटेट से ऑक्सीकरण
(b) परआयोडिक अम्ल (HIO) से ऑक्सीकरण-
इस प्रकार के ऑक्सीकरणों पर त्रिविम बाधा विन्यास का प्रभाव पड़ता है । पिनेकॉल की अपेक्षा ग्लाइकॉल का ऑक्सीकरण सुगमता से हो जाता है।
(i) निर्जल ZnCI2 की उपस्थिति में गर्म करने पर ग्लाइकॉल से ऐसीटैल्डिहाइड प्राप्त होता है
(ii) 737 K पर अकेले या Ag उत्प्रेरक की उपस्थिति में गर्म करने पर एपॉक्साइड बनते हैं
इस प्रकार प्राप्त एथिलीन ग्लाइकॉल की अभिक्रिया ऐल्कोहॉल से कराने पर ऐल्किल सेलोसोल्व बनते हैं जो विलायक के रूप में काम आते हैं।
ये सैलोसोल्व एथिलीन ऑक्साइड के एक अन्य अणु के साथ अम्ल की उपस्थिति में संघनन पर कार्बिटॉल बनाते हैं ।
(iii) फॉस्फोरिक अम्ल (H3PO4 ) के साथ गर्म करने पर पॉलिएथिलीनग्लाइकॉल प्राप्त होते हैं।
डाइएथिल ग्लाइकोल की पुनः ऐल्कोहॉलों से अभिक्रिया पर डाइग्लाइम (एक प्रकार का ईथर) प्राप्त होते हैं।
फॉस्फोरिक अम्ल की अधिक मात्रा और ताप परिवर्तन करके डेकाएथिलीन ग्लाइकॉल तक बनाये जा सकते हैं। पॉलिएथिलीन ग्लाइकॉल गम, रेजिन एवं सैलुलोस आदि के विलायक के रूप में प्रयुक्त होते हैं।
(iv) सांद्र H2SO4 के साथ आसवित करने पर एथिलीन ग्लाइकॉल 1,4-डाइऑक्सेन बनाता है जो एक औद्योगिक विलायक के रूप प्रयुक्त होता है।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…