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Categories: sociology

तर्कसंगति या तार्किक दृष्टिकोण और तर्कसंगतिकरण का अभिप्राय अर्थ क्या है तर्कसंगत परिभाषा logical approach in hindi

logical approach in social science in hindi socialogy meaning तर्कसंगति या तार्किक दृष्टिकोण और तर्कसंगतिकरण का अभिप्राय अर्थ क्या है तर्कसंगत परिभाषा किसे कहते है ?

तर्कसंगति अथवा तार्किक दृष्टिकोण और तर्कसंगतिकरण का अभिप्राय
‘‘तर्कसंगति‘‘ का मतलब ऐसे विचारों और व्यवहारों से है जो तर्क की दृष्टि से संगत और अनुरूप है और जिनकी अनुभव के आधार पर जांच की जा सकती है। तर्कसंगति की प्रक्रिया का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा तर्कसंगति का प्रयोग जीवन के विभिन्न पक्षों और गतिविधियों में किया जाता है। तर्कसंगति मानव मात्र का विशिष्ट अभिलक्षण है। इस विश्वास ने दो सौ से भी अधिक वर्षों से तर्कसंगति को पाश्चात्य दर्शन का मूल विषय बना दिया है (मिचेल 1968ः 142)।

वेबर के मत में तर्कसंगति आधुनिक युग की विशेषता है। मैक्स वेबर का यह भी विश्वास है कि आधुनिक समाज को समझने के लिए हमें इसके तर्कसंगत अभिलक्षणों और तर्कसंगत शक्तियों को समझना होगा। उसके अनुसार आधुनिक पाश्चात्य जगत की विशेषता तर्कसंगति ही है। इसके कारण मानव गतिविधियों में विधिवत गणना, परिमाण-निर्धारण, पूर्वानुमान और नियमितता का महत्व बढ़ गया है। अब लोग अलौकिक शक्तियों पर विश्वास करने के बजाय तर्क, विवेक और परिकलन में अधिक विश्वास करते हैं। वेबर के मत में तर्कसंगति प्रक्रिया का अभिप्राय यह है कि सिद्धांत रूप से ऐसी किसी प्रकार की रहस्यमय अनिश्चित शक्तियां नहीं हैं जिनसे हमें अपने कार्य में किसी प्रकार की सहायता मिलती है बल्कि सिद्धांततः सभी चीजों को परिकलन द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। प्राचीन काल के लोगों की तरह हमें भूतप्रेत आदि को बस में करने के लिए रहस्यमयी जादुई शक्तियों की जरूरत नहीं है (वेबर 1946ः 139, हर्न 1985ः 76)। आइए, हम एक उदाहरण द्वारा समझें। अगर किसी को अच्छी फसल लेना हो तो वह या तो अपना समय, शक्ति और पैसा पूरा करे और प्रार्थना आदि में नष्ट करे अथवा व अपनी शक्ति और धन का उपयोग सिंचाई के लिए नहरों की खुदाई में अथवा ट्यूबवैल लगाने में करके अच्छी फसल प्राप्त करे। इनमें पहली स्थिति में वह रहस्यमयी अनिश्चित शक्तियों पर निर्भर है और दूसरी स्थिति में उसने तर्कसंगत परिकलन का सहारा लिया है।

वेबर के मत में तर्कसंगतिकरण पाश्चात्य संस्कृति की वैज्ञानिक विशेषज्ञता और प्रौद्योगिक विभेदीकरण का परिणाम है। उसने इस प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए कहा कि तर्कसंगतिकरण का अभिप्राय पूर्णता के लिए प्रयास करना है ताकि जीवन के व्यवहार में पूर्ण परिष्कार हो सके और बाह्य जगत पर नियंत्रण स्थापित हो सके (देखिए फ्राएंड 1972ः 18)। अपने विश्वासों को रहस्यमुक्त करना और विचारों को लौकिक बनाना, ये दोनों तर्क संगति की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण पहलू हैं। इनकी मदद से मनुष्य का संसार पर प्रभुत्व हो सकता है। इस प्रक्रिया से कानूनों और संगठनों को उचित रूप प्रदान किया जा सकता है।

जैसा कि इससे पहले उल्लेख किया जा चुका है वेबर की रचनाओं में तर्कसंगति की अवधारणा का बार-बार उल्लेख हुआ है और तर्कसंगतिकरण (यानी और अधिक तर्कसंगत बनाना) की भी बार-बार चर्चा हुई है। वेबर समाज को तर्कसंगत स्वरूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रयत्नशील रहा है। उसने अपनी रचनाओं में तर्कसंगति और तर्कसंगतिकरण दोनों अवधाणाओं का प्रयोग कई बार कई अर्थों में किया है। वेबर ने अपनी सभी कृतियों में सामाजिक रूपों की तर्कसंगति और उनके परिवर्तन से संबधित तर्क को भी खोजने का प्रयास किया है।

वेबर ने तर्कसंगति को सामाजिक व्यवस्था के तर्कसंगतिकरण की प्रक्रिया के रूप में देखा। यह सब मानव समाज में तर्कसंगत संगठनों और संस्थानों के उद्भव से संभव हुआ है.। उसने मानव मूल्यों, विश्वासों, विचारों और क्रियाओं में तर्कसंगतिकरण की प्रक्रिया का प्रतिबिंब पाया। उसने सामाजिक विज्ञानों में भी तर्कसंगति के तत्वों का आस्तत्व खोजा।

आधुनिक समाजों में तर्कसंगतिकरण की विशेषता की अभिव्यक्ति स्वैकरैशनल कार्यों के संदर्भ में हुई है, ये क्रिया उससे प्राप्त होने वाले लक्ष्य से संबंधित है। इस प्रकार तर्कसंगति की प्रक्रिया के क्षेत्र का विस्तार आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि व्यवस्थाओं और संगठनों तक है। वेबर ने तर्कसंगति की अवधारणा का व्यापक रूप से प्रयोग सामाजिक क्रियाओं, सामाजिक संगठनों और सामाजिक प्रक्रियाओं के अध्ययन के लिए किया है। उसने इसका प्रयोग समाज की वैज्ञानिक जांच की प्रणाली के रूप में भी किया। इस प्रकार वेबर की रचनाओं में तर्कसंगति का समावेश दो पूर्णतया भिन्न लेकिन परस्पर संबंद्ध विधियों से हुआ है। इनके बारे में हमने इस इकाई के अगले भाग (17. 3) में विवेचना की है। अगले भाग को पढ़ने से पहले, बोध प्रश्न 1 को पूरा करें।

बोध प्रश्न 1
प) निम्नलिखित वाक्यों में सही शब्दों से खाली जगह भरिए।
क) वेबर के मत में तर्कसंगतिकरण वैज्ञानिक ………………………..और ………………. विभेदीकरण का परिणाम है।
ख) तर्कसंगतिकरण का अभिप्राय ………………………………. पर नियंत्रण है।
पप) निम्नलिखित कथनों में सही अथवा गलत पर चिन्ह लगाइए।
क) तर्कसंगति का मतलब भूत-प्रेतों और जादू-टोने पर विश्वास करना है। सही/गलत
ख) मानवीय मूल्यों और विश्वासों को कभी भी तर्कसंगत नहीं बनाया जा सकता। सही/गलत
ग) तर्कसंगतिकरण का विस्तार समाज के सभी पक्षों तक हो सकता है। सही/गलत

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) क) विशेषज्ञता, प्रौद्योगिक
ख) बाह्य जगत
पप) क) गलत
ख) गलत
ग) सही

वेबर की रचनाओं में तर्कसंगति की अवधारणा
वेबर ने अपने अध्ययन में तर्कसंगति की अभिवयक्ति पूर्णतया अलग लेकिन परस्पर संबंद्ध तरीकों से की है। इनकी चर्चा नीचे की जा रही है।
(प) समाजः तर्कसंगतिकरण की प्रक्रिया
पहले अर्थ के अनुसार समाज का अध्ययन तर्कसंगतिकरण की प्रक्रिया है। समाज में होने वाले परिवर्तनों के पीछे यह नियम है कि पुराना कम तर्कसंगत स्वरूप बाद के अधिक तर्कसंगत स्वरूप में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रक्रिया को उसने तर्कसंगतिकरण कहा है यानी कि तर्क इतिहास अथवा ऐतिहासिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण घटक बन जाता है।

वेबर ने इतिहास के विकास, विशेष रूप से आधुनिक इतिहास के विकास को तर्कसंगति और तर्कसंगतिकरण रूप में देखा है। प्रोटेस्टेंटवाद, पूंजीवाद और नौकरशाही इस तर्कसंगतिकरण की प्रक्रिया स्वरूप है। इन्हें ऐतिहासिक विकास के एक भाग के रूप में ही सार्थकता मिलती है यानी ठीक उसी प्रकार जैसे पहले की अपेक्षा बाद का विकास अधिक तर्कसंगत होता है।

(पप) तर्कसंगतिः विज्ञान पद्धति का साधन
तर्कसंगति पर विचार करने का एक दूसरा तरीका भी है। इसमें तर्क संगति को विचार पद्धति का सिद्धांत अथवा शोध पद्धति माना जाता है। यहां वेबर का उद्देश्य विभिन्न सामाजिक रूपों और प्रक्रियाओं के पीछे निहित तर्क को खुले रूप में प्रस्तुत करना है। चाहे वे पहली नजर में तर्कहीन या तर्क-विरोधी क्यों न प्रतीत हों। इस दृष्टि से तर्कसंगति एक जांच की पद्धति है जो किसी सामाजिक स्वरूप या सामाजिक विकास के पीछे निहित तर्क को खोजने का प्रयास करती है। आगे के उपभागों में हमने समाज की तर्कसंगतिकरण की प्रक्रियाओं के तर्कसंगत अभिलक्षणों के बारे में विचार करें ।

तार्किक दृष्टिकोण
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
तर्कसंगति अथवा तार्किक दृष्टिकोण और तर्कसंगतिकरण का अभिप्राय
वेबर की रचनाओं में तर्कसंगति की अवधारणा
प्रोटेस्टेंटवाद
पूंजीवाद
नौकरशाही
तर्कसंगत के प्रकारः मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र
समाजशास्त्रीय शोध में तर्कसंगतिः मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई में तार्किक दृष्टिकोण अथवा तर्कसंगति के विषय में चर्चा की गई है। इस अवधारणा का वेबर की रचनाओं में बार बार उल्लेख है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आपके द्वारा संभव होगा
ऽ तर्कसंगति और तर्कसंगतिकरण, दोनों अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करना
ऽ प्रोटेस्टेंटवाद, पूंजीवाद और नौकरशाही व्यवस्था के संदर्भ में तर्कसंगति पर वेबर के अध्ययन की व्याख्या करना
ऽ समाजशास्त्रीय शोध और मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र के क्षेत्र में तर्कसंगति के विषय पर वेबर के विचारों में चर्चा करना।

प्रस्तावना
इस खंड की पिछली इकाइयों में आपने आदर्श प्ररूप, धार्मिक नैतिकता और आर्थिक व्यवहार के बीच संबंधों तथा शक्ति और सत्ता के बारे में समाजशास्त्र के क्षेत्र में मैक्स वेबर के महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जाना। इस इकाई में उसकी रचनाओं के मूल विषय अर्थात् तर्कसंगति की अवधारणा और तर्कसंगतिकरण के बारे में चर्चा की गई है। इस परिकल्पना का वेबर की सभी रचनाओं में उल्लेख हैं इसलिए हो सकता है कि, आपको इस इकाई के कुछ भाग पिछली इकाइयों की पुनरावृत्ति प्रतीत हों। इस इकाई में आपको अपनी पूर्व पठित अवधारणाओं को दोहराने का और तर्कसंगति के संदर्भ में उनका अध्ययन करने का अवसर मिलेगा।

इस इकाई को तीन भागों में बांटा गया है। पहले भाग (17.2) में तर्कसंगति और तर्कसंगतिकरण के अर्थ के बारे में संक्षेप में बताया गया है। दूसरे भाग(17.3) में वेबर द्वारा अपनी रचनाओं में प्रयोग की गई तर्कसंगति की अवधारणा के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इस भाग में प्रोटेस्टेंटवाद, पूंजीवाद, नौकरशाही व्यवस्था और तर्कसंगति के प्रकारों की चर्चा की गई है। तीसरे और अंतिम भाग(17.4) में वेबर द्वारा मूल्य-विमुक्त समाजशास्त्र के विशिष्ट संदर्भ में समाजशास्त्रीय शोध के लिए तर्कसंगति के अनुप्रयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

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